शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा| ||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
हमेशा की तरह बहुत ही अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर बहुत ही अच्छी जानकारी मिलती है , सबसे ख़ुशी की बात है आप ताला भी ट्रांसपरेंट लगाते हो कहाँ से लाये आप बताईये . नहीं तो .........
हमेशा की तरह बहुत ही अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर बहुत ही अच्छी जानकारी मिलती है , सबसे ख़ुशी की बात है आप ताला भी ट्रांसपरेंट लगाते हो कहाँ से लाये आप बताईये . नहीं तो .........
ReplyDeleteइसका मतलब कि आज से ब्लॉगिंग बंद..बहुत दुख हुआ जान कर.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति! लगता है इसे भी अखबार वाले चुरा लेंगे..
ReplyDelete:)
ReplyDelete:) :)
ReplyDeleteवैसे तो हम यहाँ आए ही नहीं, मगर आप ताला मार कर कहाँ चल दिये? :)
ReplyDeleteकहीं "चोलबे ना" वाली कोई बात तो नहीं :)
आप इस से पहले भी कोई इतनी बढ़िया पोस्ट लिखें हैं.....याद नहीं पढता....
ReplyDeleteजय हो....
नीरज
अरे वाह अच्छा किया साल भर का त्योहार है ्दुकान बढाकर मनाना ही चाहिये . लेकिन ज्ञान दादा की दुकान तो खुली है :)उसका क्या ?
ReplyDeleteये फोटो तो सुबह के जागरण में छपी थी... बदला.. :)
ReplyDeleteदुखद! मतलब इस ब्लॉग को सक्रिय रखने को पोस्ट मुझे ही लिखनी होंगी!
ReplyDeleteआज छुट्टी! क्या ईएल है?
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ReplyDeleteक्या खूब लगता है ?
ReplyDeleteभैयाजी, मामला क्या है? कोई टंकी ढूँढ ली क्या? :)
ReplyDeleteअरे खोजो रे...
किस चक्कर में हैं भाई दुकान बंद करके.....????
ReplyDeleteबंद किसे कर दिया ???
ReplyDeleteअनगिनत अर्थछवियों वाले इसे आलेख के लिए आभार :) वैसे मुझे पंगेबाज भाई की बात पसंद आयी कि दुकान बढ़ाकर ही साल भर का त्योहार मनाना चाहिए :)
ReplyDeleteसमीरलाल चले गये। अब खोल लो ताला!
ReplyDeleteऐं! ई का मतलब भाई? घर में डांट पड़ि गैल का?
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