शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा| ||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Monday, April 27, 2009
हजारों साल.....एक माइक्रो पोस्ट
पिछले करीब दो महीने से जब भी कुछ दोस्तों के साथ राजनीति की बात होती है तो यह शेर हमेशा याद आ जाता है;
हजारों साल 'नर्गिस' अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा
अभिषेक भाई , तब्भी समझ नहीं पाया -धुरंधर लोग तो समझे ही बैठे हैं -उनसे पूंछने पर जगहसाई निश्चित है -आप ऐसा करो भाई ह्पके से इसकी व्याख्या मेरे मेल बॉक्स में सरका दो ! बहुत दिनों से हातिम ताई की नाईं खोज रहा था उसे जो इसके सही अर्थ को मुझे हृदयंगम करा सके सोदाहरानार्थ ! अब मिल गये हो तो छोडेंगें नहीं -कस के पकड़ रहे हैं ! नैतिक जिम्मेदारी तो शिव भाई की ही बनती थी पर वे बड़ी ऊंची बात कह मित्रों की वाह वाही में पुलकित हैं उन्हें जवाब देने की फिकर ही नहीं !
क्या बात है शिव भाई! आप ने तो शेर का मिजाज ही बदल दिया।
ReplyDeleteशिव भैया इस चुनाव मे भी नर्गिस रोती ही नज़र आ रही है और मुश्किल ये है दीदावर भी नज़र नही आ रहा है।
ReplyDeleteशिव भाई सच बताऊँ इस शेर का सही सही अर्थ मुझे आज तक समझ में नहीं आया ! व्याख्या करेंगें प्लीज !
ReplyDeleteइस पोस्ट पर जद्दनबाई कसमसा रही होंगी अपनी कब्र में!
ReplyDeleteहम जैसे उर्दू न जानने वालों के लिए हिन्दी में अर्थ लिखेंगे तो हम भी आनन्द ले पाएंगे.
ReplyDeleteहमारी भावनाओं को शेर में ढाल दिया मिश्रा जी.................एक ठो पान थाम ले इसी बात पे
ReplyDeleteएक नया स्वाद दिया इस शेर का.
ReplyDeleteवो सुबह कभी तो आएगी.
ReplyDeleteक्या कहें मिश्राजी? यहां तो कुछ भी नही पैदा होने वाला.
ReplyDeleteरामराम.
पूरा का पूरा तो मुझे भी समझ में नहीं आया था... पर मतलब खोज के ले आया मैं. वैसे इतनी आसानी से समझ में आ जाता तो शेर काहे का :-)
ReplyDelete[नर्गिस:.आँख की आकृति से मिलता-जुलता फूल.
बेनूरी: ज्योतिविहीनता.
दीदावर: आँख रखने वाला (पारखी)]
हुउम्म! वैसे हम त कहेंगे कि नहिए होता सरवा दीदावर पैदा त निम्मन रहता न.
ReplyDeleteवाह वा..खूब कहा शिव भाई !
ReplyDelete- लावण्या
अभिषेक भाई ,
ReplyDeleteतब्भी समझ नहीं पाया -धुरंधर लोग तो समझे ही बैठे हैं -उनसे पूंछने पर जगहसाई निश्चित है -आप ऐसा करो भाई ह्पके से इसकी व्याख्या मेरे मेल बॉक्स में सरका दो ! बहुत दिनों से हातिम ताई की नाईं खोज रहा था उसे जो इसके सही अर्थ को मुझे हृदयंगम करा सके सोदाहरानार्थ ! अब मिल गये हो तो छोडेंगें नहीं -कस के पकड़ रहे हैं !
नैतिक जिम्मेदारी तो शिव भाई की ही बनती थी पर वे बड़ी ऊंची बात कह मित्रों की वाह वाही में पुलकित हैं उन्हें जवाब देने की फिकर ही नहीं !
सच कहा आपने, किंतु मुश्किल तो ये है जब ये दीदावर पैदा भी होता हजार साल बाद तो जल्द ही पट्टी भी बाँध लेता है आँखों पर
ReplyDeleteवाह! लुच्ची गांधीगिरी की तो आपनें हवा ही निकाल दी।
ReplyDeleteहमें तो: " हों जो दो चार शराबी तो तौबा करलें....कौम की कौम है डूबी हुई मैखाने में...."याद आता है...अब आप हमारा क्या कर लेंगे?
ReplyDeleteनीरज