Thursday, April 30, 2009

ऐसे में यह बालर तो सस्ता साबित हुआ.......

क्रिकेट है तो देश है. देश है तो नेता है. नेता हैं तो उद्योगपति है. उद्योगपति है तो नेतागीरी है. नेतागीरी है तो चमचागीरी है. चमचागीरी है तो नेता हैं. और नेता हैं तो क्रिकेट है.

लीजिये वृत्त पूरा हुआ और हम वहीँ पहुँच गए, जहाँ से चले थे.

फालतू में भूगोल-विदों ने पृथ्वी को गोल साबित करने के लिए तरह-तरह के प्रयोग किये. मैं तो कहता हूँ क्रिकेट से शुरू करते नेता, चमचा वगैरह से होते आगे चले जाते तो क्रिकेट पर पहुँच जाते. साबित कर देते कि पृथ्वी गोल है.
लेकिन शायद उनदिनों क्रिकेट ऐसा नहीं था.

अब ऐसा हो गया है.

वैसे यह बात तो बहुत दिनों पहले की है. दस साल पहले की बात ही ले लीजिये. उनदिनों क्रिकेट में पैसा होता था. अब स्थिति बदल गई है. अब पैसे में क्रिकेट है. अब सच बात तो यह है कि कवि ने; "सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है" नामक महान 'काव्य एक लाइना' पहले न लिखा होता तो हम ताल ठोंक कर कह देते कि उन्होंने आज के क्रिकेट को देखकर ही प्रेरणा ली कि वे ऐसी लाइन गढ़ सकें.

पैसे में क्रिकेट समा गया है. बहुत मज़ा आ रहा है. आज ही अखबार में पढ़ रहा था कि इंग्लैंड के खिलाड़ी श्री एंड्र्यू फ्लिंटाफ ने आई पी एल में खेलते हुए तीन विकेट लिए. लिए क्या कमेंटेटर की भाषा में कहें तो झटक लिए. झटक के चल दिए.

इस साल के आई पी एल में अब और नहीं खेलेंगे. तीन विकेट लेकर ही घायल हो गए. जब चले गए तब हिसाब लगाया गया. पता चला उन्होंने जो तीन विकेट लिए उसपर विजय माल्या जी का करीब ढाई करोड़ रुपया खर्च हो गया. तिरासी लाख रुपया प्रति विकेट.

सुनकर लगा जैसे इस फीस में से अगर बैट्समैन को कुछ किकबैक देने के लिए तैयार हो जाते तो बैट्समैन बेचारा बिना खेले ही अपना विकेट दे देता. न रन-अप पर दौड़ने का झमेला रहता न ही ताकत लगाकर गेंद फेंकनी पड़ती.

अब आप यह तो नहिये पूछिए कि माल्या जी कौन ठहरे? आपने अगर यह पूछ लिया तो याद रखिये ममता दी को कहकर आपके घर के सामने धरना करवा दूंगा.

खैर, वापस आते हैं माल्या जी पर. माल्या जी कुछ महीने पहले ही अड़ गए थे. नरेश गोयल जी के साथ मिलकर सरकार से लड़ गए थे. बोले; "हमारे पास पैसे नहीं हैं. अगर सरकार ने हमें बिना ब्याज वाला लोन नहीं दिया तो हम अपनी एयरलाइन्स बंद कर देंगे."

सरकारी सहारे पर या फिर मंदी पर कोई विज्ञापन तो बनता नहीं. बनता होता तो कोई लिख डालता कि;

ये बेचारा मंदी का मारा
इसे चाहिए सरकारी सहारा

अब हमदर्द का सिंकारा नहीं होता. अब हमदर्द का सहारा होता है. माल्या जी को दर्द हुआ. ऐसे में उनके हमदर्द निकले हमारे नागरिक उड्डयन मंत्री. दर्द से पीड़ित इन मंत्री जी ने माल्या जी के लिए खुलकर बैटिंग की. प्रेस कांफ्रेंस में चौकों-छक्कों की झड़ी लगा दी.

तमाम लोगों ने ताली बजाई. बोले; "क्या खेलते हैं. वाह!"

जिनके पास पैसा नहीं होता वे तीन विकेट के लिए केवल ढाई करोड़ देते हैं. पैसा रहता तो न जाने क्या दे देते. शायद पचास करोड़ दे देते. बैटिंग करके बनाये गए रनों का हिसाब अलग से होता. उसके पैसे श्री एंड्र्यू फ्लिंटाफ को अलग से मिलते.

क्रिकेट को चलनेवाले नहीं बदलते तो कोई बात नहीं, क्रिकेट तो बदल ही गया है. टेस्ट मैच होता था. वन डे होने लगा. उससे भी बोर हो लिए तो ट्वेंटी-ट्वेंटी खेलवा डाला. इससे बोर होंगे तो क्या करेंगे? वो अगले तीन-चार साल में पता चल जाएगा.

विद्वान टाइप लोग बता रहे हैं कि मंदी की मारी अर्थव्यवस्था में पैसे की कमी हो गई है. उधर विद्वान बता रहे हैं कि पैसे की कमी है और इधर अज्ञानी टाइप लोग पूछ रहे हैं कहाँ है कमी? क्रिकेट खिलाड़ियों को इतना पैसा मिल रहा है.

अरे अज्ञानियों, यह समझो कि पैसे की कमी है तब इतना पैसा मिल रहा है. नहीं तो एक-एक खिलाड़ी को एक विकेट लेने के लिए कम से कम चालीस करोड़ मिलते.

शाहरुख़ खान परेशान हैं. उन्होंने भी एक-एक विकेट के लिए कितना पैसा खर्चा किया है. पैसा खर्चा हो गया लेकिन टीम नहीं जीत पा रही है. दो मैच तक तो बोले कि; "हम स्पोर्ट्समैन स्पिरिट वाले लोग हैं." तीसरे मैच तक स्पिरिट में कमी हो गई. चौथे तक स्पोर्ट्स जाता रहा. टीम हारती रही.

अब तो खान साहब दक्षिण अफ्रीका से भारत चले आये हैं. आते-आते बोले; "अब तो तभी आऊंगा जब टीम जीतेगी."

हाय रे. इतने अमीर आदमी की टीम नहीं जीत पा रही. इतना पैसा खर्चा किया इन्होने. इसके बावजूद टीम नहीं जीत पा रही.

मेरे एक मित्र एक मैच के दूसरे दिन बोले; "कल देखा युवराज सिंह ने दो रन पर आउट होकर क्या किया?"

मैंने कहा; "नहीं तो. क्या किया उन्होंने?"

वे बोले; "आउट होते ही अपनी टीम के मालकिन का चेहरा देखने लगा. शायद देखने की कोशिश कर रहा था कि मालकिन कितनी नाराज़ है."

सही बात है. इस क्रिकेट में कोच का चेहरा ज्यादा मायने नहीं रखता. मालिक-मालकिन का चेहरा मायने रखता है. फोटोजेनिक चेहरा है न. हमेशा फोटोजेनिक चेहरे ही मायने रखते हैं.

अजीब क्रिकेट है यह ट्वेंटी-ट्वेंटी. तमाम नए तरीके इस्तेमाल होते हैं. अलग तरह का विश्लेषण होता है. स्ट्रेटजी ब्रेक होता है. मैदान में खेल रहे खिलाड़ी से कमेंटेटर भाई लोग डायरेक्ट बात कर लेते हैं. "कैसा फील कर रहे हो?"

उधर से आवाज़ आती है; "हवा चल रही है. हम ऐसा खेल रहे हैं. फील्डिंग साइड वैसा खेल रही है."

अरे प्रभु. आप कैसा खेल रहे हैं वो तो हम देख ही रहे हैं. मुंह से नहीं बताएँगे तो हमें पता नहीं चलेगा क्या?

आने वाले दिनों में नए-नए तरीके और जुडेंगे. जन टूर्नामेंट पूरा हो जाएगा तो हर खिलाड़ी की बैलेंसशीट बनेगी. देखेंगे इस बात पर बहस हो रही है कि फलाने बालर ने पॉँच विकेट तो लिए लेकिन इस पांच विकेट को अगर उनके फीस से डिवाइड करें तो देखेंगे कि प्रति विकेट एक करोड़ का खर्च आया.

कोई विद्वान यह बात भी बीच में ला पटकेगा कि इन पांच विकेट में से दो विकेट ऐसे थे जिन बैट्समैन को फीस के तौर पर दो-दो करोड़ मिले थे. बाकी के तीन को अस्सी-अस्सी लाख मिले थे. मतलब यह कि इन्होने जिन पांच बैट्समैन को आउट किया उनकी टोटल फीस चार करोड़ चालीस लाख थी.

ऐसे में यह बालर तो सस्ता साबित हुआ.......

18 comments:

  1. चौके छक्के या विकेट नहीं गीरते...ऐसा लगता है पैसा बरस रहा है. कभी लगता है फिल्मी क्रिकेट देख रहें है. लगान टाइप. इसलिए देखते ही नहीं.

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  2. छक्का मारा आपने बहुत व्यंग्य में धार।
    पैसा हुआ क्रिकेट अब पैसा जीवन-सार।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. बैंगाणी जी सही कह रहे हैं. हमने तो एक भी मैच नही देखा अब क्या कहें?

    रामराम.

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  4. "अब आप यह तो नहिये पूछिए कि माल्या जी कौन ठहरे? आपने अगर यह पूछ लिया तो याद रखिये ममता दी को कहकर आपके घर के सामने धरना करवा दूंगा."

    बहुत ममता दी के धमकी देते हैं, जोगी बाबा से एक्के बेर बोलेंगे न, फिट्ट कर देंगे सब. जानते नईं हैं हमके?

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  5. यह आईपीएल जया एकादशी की कथा सा लगता है - माल्यवन्त गन्धर्व और पुष्पवती नामक गन्धर्वकन्या का नृत्य विवरण।
    जय जगदीश्वर!

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  6. इतना मंहगा बालर खरीदने का क्या फ़ायदा?

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  7. आपका आलेख भी छक्के से कम नहीं पड़ा-कितने का है??

    बेहतरीन!!

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  8. आज मेरे ऑफ़िस में कलकत्ते की टीम की लगातार हार पर कोई कह रहा था कि शाहरुख खान को उस पाप का दण्ड मिल रहा है जो उन्होंने क्रिकेट के एक देवता सुनील गावस्कर के प्रति अमर्यादित टिप्पणी करके अर्जित कर लिया। अब कोई यह हिसाब लगाए कि उनकी टिप्पणी में प्रयुक्त शब्द कितने मूल्य के साबित हुए।

    भारत में क्रिकेट के चाहने वालों ने गजब का बाजार पैदा कर दिया है। इसमें वैज्ञानिक तकनीक से लेकर अन्धविश्वास तक और राजनीति से लेकर अर्थशास्त्र तक सब कुछ समाया हुआ है।

    मजेदार व्यंग्य लिखा है आपने। बधाई।

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  9. बालर बॉलीवुड की हिरोइन की तरह है और बैट्समैन हीरो. फिल्में तो हीरोइने भी हिट करा देती हैं... लेकिन सस्ती होती हैं हीरो की तुलना में. और हीरो भी ससुरे एकाध फिल्म हिट करने के बाद वैसे ही पैसे लेते हैं जैसे ये क्रिकेटर ले रहे हैं. खान साहब की जैसी कमाई है वैसे जा रही है :-)

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  10. भाई आप ने कहा मान लिया। इस बार तो देख ही नहीं पा रहे हैं।

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  11. क्रिकेट ने मुल्क को निकम्मा कर दिया
    वर्ना हम भी लोग थे कुछ काम के

    क्रिकेट को मैं बरसों से आपराधिक गतिविधि मानता रहा हूं। आप जैसे क्रिकेट प्रेमी को भी कुछ न कुछ अब चुभनेलगा है तभी ऐसी पोस्ट जन्म ले रही हैं।

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  12. वाह भैया! अच्छा किया कि प्रमाणित कर दिया कि दुनिया गोल है:)

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  13. "आने वाले दिनों में नए-नए तरीके और जुडेंगे. जन टूर्नामेंट पूरा हो जाएगा तो हर खिलाड़ी की बैलेंसशीट बनेगी."

    शिव कुमार् जी, इसका मतलब अर्थ सलाहकारों का भविष्य उज्जवल है..))

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  14. लेख पढ़ने से पहले कुछ और अंदाजा लगाया था. शानदार

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  15. आप किस खेमे के हैं जो ऐसा लेख लिख मारे हैं....अब अगर आ.ई.पी.एल में आपको नहीं खिलाया तो इसका मतलब ये थोड़े ही है की आप अपनी भडांस क्रिकेट जैसे धार्मिक खेल पर इस प्रकार के लेख लिख कर निकालो...पैसे वाले ही तो पैसा लुटा रहे हैं...कठपुतली का खेल है बंधू...देखो और ताली बजाओ...बेकार उनसे बंधे धागों में मत उलझो...
    नीरज
    पुनश्च: वैसे पोस्ट आप बहुत जोर का लिखे हैं....बहुत जोर माने बहुत ही जोर का...जय हो...(ई कांग्रेस का नारा वाला जय हो नहीं है...प्रशंशा वाला जय हो है...)

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  16. साड़ी बीच नारी है कि नारी बीच साड़ी है...उधर ये टी20 और इधर ये वोट-मेला...

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  17. Jabse ye cricketer khule aam bik gaye maine to dekhana band kar diya. Aur bhee gam hain jamane men.

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय