सरकार आज देश की जनता के मन में उभरने वाले सवालों का जवाब देने के लिए तैयार हो गए थे. असल में सरकार की तैयारी पर लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया था. ऐसे में सरकार के लिए यह ज़रूरी हो गया था कि वे सवालों का जवाब देने के लिए तैयार हों.
वैसे भी सरकार हमेशा विदेश यात्रा पर रहते हैं. अब विदेश यात्रा पर रहेंगे तो जनता कैसे सवाल पूछेंगी? आखिर विदेश यात्रा के दौरान सरकार का हवाई जहाज जितने पत्रकारों को लेकर उड़ सकता है, उतने ही पत्रकार तो सवाल पूछ पायेंगे. सरकार ने अपनी इसी मजबूरी के चलते देश की जनता के सवालों का जवाब देने का मन बनाया था.
सवालों को प्राप्त करने के लिए सरकारी टीवी चैनल तैयार था. सरकार आज उसी टीवी चैनल पर देश की जनता के सवाल कैच करने के लिए बैठे थे. करीब एक घंटे के डिस्कशन के बाद इस फैसले पर पहुंचा गया कि किस क्षेत्र के लोग सबसे पहले सवाल पूछेंगे?
पता चला कि मुंबई के लोग सबसे पहले सवाल पूछ सकते हैं.
लगभग पूरी मुंबई सवाल पूछने के लिए टेलीफोन लेकर तैयार थी. लेकिन इतने सारे सवाल और सरकार एक. ऐसे में सबकुछ भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया. बात भी ठीक थी. आखिर हम इकनॉमिक सुपर पॉवर भी बन जाएँ तो भी भाग्य के सहारे ही बनेंगे.
अँधेरी, मुंबई के मंगेश देशमुख का भाग्य बढ़िया था. सवाल वाला उनका फोन कनेक्ट हो गया. उन्होंने सवाल दाग दिया. बोले; "सरकार, आपने कहा था कि मुंबई को शंघाई बना देंगे. मैं तो कभी शंघाई गया नहीं. ऐसे में क्या यह बात कही जा सकती है कि शंघाई में दो घंटे की बरसात के बाद ही जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है? लोकल ट्रेन्स बंद हो जाती हैं? पूरा शहर पानी से भर जाता है? और ऐसा क्या वहां हर साल होता है?"
सरकार कुछ कहते इससे पहले ही संवाददाता ने कहा; "देखिये, आपको केवल एक सवाल पूछने का अधिकार है. आपने चार सवाल पूछे हैं. आप इनमें से कोई एक सवाल पूछिए."
मंगेश देशमुख कुछ कहते उसके पहले ही सरकार बोले पड़े; "कोई बात नहीं. जनता है. जनता को चार तो क्या, चालीस सवाल पूछने का हक़ है. वे चाहें तो चालीस सवाल भी पूछ सकते हैं."
मंगेश जी लाइन पर ही थे. उन्होंने कहा; "नहीं सरकार, मैं चालीस सवाल नहीं पूछूंगा. आप मेरे इन्ही सवालों का जवाब दे दें."
स्टूडियो में बैठे संवाददाता ने कहा; "ठीक है. मंगेश जी, अब आप अपने सवाल का जवाब सुनिए. हाँ, सरकार अब हमने मंगेश जी की लाइन काट दी है. अब आप उनके सवाल का जवाब दे सकते हैं."
सरकार ने जवाब दिया. बोले; "हम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे"
इतना कहकर सरकार चुप हो गए. संवाददाता ने सरकार की तरफ देखा. जैसे पूछ रहा हो; " जवाब क्यों नहीं देते, सरकार?"
सरकार उनके मन की बात शायद भांप गए. बोले; "नेक्स्ट. अगला सवाल क्या है?"
संवाददाता जी सकपका गए. उन्हें थोड़ी न पता था कि सरकार जवाब दे चुके हैं. वे कुछ सोच ही रहे थे कि घंटी बज गई. उधर से आवाज़ आई; "हलो, हम बनारस से चन्द्र मोहन मिश्रा बोल रहे हैं. नमस्कार. हमारा प्रश्न है कि मंहगाई पर लगाम लगाने के लिए सरकार क्या कर रहे हैं? धन्यवाद ."
संवाददाता ने सरकार की तरफ देखा. सरकार भी जवाब देने के लिए तैयार दिखे. वे बोले; "देखिये, हम नौ-दस परसेंट के रेट से ग्रो करेंगे."
चन्द्र मोहन जी की लाइन संयोग से कटी नहीं थी. वे बोले; "वो तो ठीक है, सरकार लेकिन हमारे सवाल का जवाब दीजिये. मंहगाई पर लगाम......."
इतने में उनकी लाइन काट दी गई. संवाददाता बोले; "ठीक है, चन्द्र मोहन जी. अब सरकार का जवाब सुनिए."
सरकार बोले; "जवाब तो हमने दे दिया. हम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे."
संवाददाता फिर से भौचक्के. मन में तो उनके भी बहुत सारे प्रश्न जन्मे. फिर उन्हें याद आया कि वे तो सरकार के मुलाजिम हैं. उनके मन में उठ रहे प्रश्न हवा हो गए. प्रश्न हवा हुए ही थे कि एक और फोनकॉल आ गया.
दूसरी तरफ से आवाज़ आई; "हेलो, सरकार मैं रायपुर से अनिल पुसदकर बोल रहा हूँ. मेरा आपसे सवाल है कि नक्सलियों के खिलाफ कार्यवाई कब होगी? हमारे राज्य में पुलिसवालों की मौत कब रुकेगी?"
सरकार बोले; "गुड क्वेश्चन. हम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे."
सरकार के पास बैठे संवाददाता बेहोश होते-होते बचे. किसी तरह से संभले. सामने रखे गिलास से पानी पीया. कुछ संभले तो बोल पड़े; "सरकार, लगता है आपको जनता के सवाल सुनाई नहीं दे रहे."
सरकार बोले; "मैं उनके सवाल न भी सुन सकूँ तो भी मुझे पता चल जाएगा कि जनता कैसे-कैसे सवाल पूछ सकती है. आप मेरे जवाब पर कम और जनता के सवाल पर ज्यादा ध्यान दें."
संवाददाता जी क्या करते, सिवाय इसके कि वे जनता का अगला सवाल कैच करते. वे कुछ सोच ही रहे थे कि स्टूडियो वालों ने फोनकॉल कनेक्ट कर दिया. उधर से आवाज़ आई; "हेलो, मैं विश्वदीपक रसिया बोल रहा हूँ. सरकार से मेरा सवाल है..."
सरकार को आवाज़ कुछ जानी-पहचानी लगी. उन्होंने विश्वदीपक जी को टोकते हुए कहा; "रसिया जी, अभी तो आपने कल हवाई जहाज में मुझसे सवाल किया था. आप तो पत्रकार हैं. यहाँ तो मैं केवल जनता के सवालों का जवाब देने के लिए बैठा हूँ. आपने तो कल ही 'शार्क' शिखर सम्मलेन के दौरान मुझे दस मिनट तक सवाल पूछ-पूछ कर बोर किया है. यह जनता का मंच है. यहाँ मैं आपके सवालों का जवाब नहीं दूंगा. आपको सवाल पूछने हैं तो हवाई जहाज में मिलें."
सरकार जब चुप हुए तब लोगों को समझ में आया कि असल में ये आवाज़ प्रसिद्द टीवी पत्रकार विश्वदीपक रसिया की थी. सरकार के पास बैठे संवाददाता जी बोले; "क्या ज़माना आ गया है. टीवी पत्रकार को भी बीच-बीच में जनता बनने की लालसा जाग जाती है."
उनकी बात सुनकर सरकार मुस्कुराने लगे.
मुस्कराहट का दौर चला ही था कि फोन की घंटी फिर बजने लगी. संवाददाता अब तक सरकार के जवाब सुनकर बोर हो चुके थे. उबासी लेते हुए उन्होंने कहा; "हाँ जी, पूछिए. सरकार से. क्या सवाल है आपका?"
दूसरी तरफ से आवाज़ आई; "सरकार, मैं दिल्ली से मुकेश बंसल बोल रहा हूँ. मेरा प्रश्न है...."
बंसल साहब ने अपना प्रश्न पूरा भी नहीं किया कि सरकार बोल पड़े; "देखिये हम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे."
बंसल साहब का सवाल पूरा नहीं हुआ था. लिहाजा उनकी लाइन कटी नहीं थी. वे बोले; " सरकार, नौ-दस परसेंट की रेट से कैसे ग्रो करेंगे? निर्माणाधीन ब्रिज टूट जाता है. लोग मर जाते हैं. मलवे को उठाने के लिए जो क्रेन आती है वो खुद ही टूट जाती है. ये राजधानी में बसे अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी के एम्बेसेडर वगैरह अपने देश के निवेशकों को क्या रिपोर्ट भेजते
होंगे? आप खुद ही सोचें...."
अचानक बंसल साहब की लाइन कट गई.
सरकार बोले; " हें..हें..वो सब तो ठीक है बंसल साहब. लेकिन मैं आपको बता रहा हूँ न कि हम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे."
जवाब देकर सरकार अगले सवाल का इंतजार करने लगे. संवाददाता जी भी साथ में इंतजार करने लगे लेकिन फिर फोन की घंटी नहीं बजी.
अपने-अपने सवाल से लैस देश भर के लोग अब "हम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे"; इस कविता का भावार्थ खोज रहे हैं.
गुड क्वेश्चन !
ReplyDeleteजबाब बाद में !
हा हा.. ये भी खानदानी दवाखाना लगता है.. हर बिमारी का शर्तिया इलाज.. एक दवा से..
ReplyDeleteलेकिन आपको टिप्पणियाँ नौ दस परसेन्ट से अधिक शर्तिया मिलेगी इतने सुन्दर आलेख के लिए।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
यह "फोकस्ड-गवर्नेंस (Focused Governance)" का अप्रतिम उदाहरण है। कोई अण्ट-शण्ट सवाल आपको ग्रोथ रेट के टार्गेट से च्युत नहीं कर सकते।
ReplyDeleteमुझे तो भविष्य पर भरोसा बन रहा है।
इसी पोस्ट के बेसिस पर निवेश कर दिया जाये?! :)
इस भावार्थ को खोज पाना आम जनता के बस का नहीं है.
ReplyDeleteहम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे
ReplyDeleteबार बात यही थ्रो करेंगे....
-एक दम फोकसड सरकार है. इनकी तो जय हो!! ज्ञान जी को समर्थन!! (बाहर से-मुद्दा बेसड)
सही है हम नौ दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे । मानते क्यूं नही हर सवाल का यही लाजमी जवाब है ।
ReplyDeleteसरकारी जवाब जो है ।
अगर आप ऐसे हि लिखते रहे तो आपका ब्लॉग नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेगा...
ReplyDeleteजनता ना समझ है, समझती ही नहीं कि हम नौ-दस प्रसेंट से ग्रो करेंगे...खांमखा समझती है कि समस्याएं है और सरकार को उन्हे ठीक करना चाहिए. वैसे सरकार लगे हुए है...नौ-दस प्रसेंट से ग्रॉ करने के लिए...और तब तक करते रहेंगे जब तक जनता इन्हें थ्रो नहीं कर देती...हैल्लो...हल्लो..फोन काहे काट दिया जी...बात तो पूरी करने दो...
ReplyDeleteअब हम ठहरे आम जनता .......ठगे से खड़े हैं इस जवाब पर.....का कहें और का सोचें?????
ReplyDeleteसरकारों को सरकार चलाने के लिये फ़ोकस्ड रहना ही पडता है.:)
ReplyDeleteरामराम.
करेंगे जी करेंगे जरुर करेंगे नौ-दस प्रसेंट से ग्रो असल में नहीं तो आंकडों में ही सही मगर करेंगे जरुर .
ReplyDeleteआप ग्रो करो ये ही बहुत है परसेंटेज कौन पूछता है...आठ दस बोल रहे हैं तो एक आध से तो ग्रो कर ही लेंगे...
ReplyDeleteआपके सवाल जवाब पढ़ कर शेखर सुमन का कार्यक्रम 'टेडी बात' याद आ गया जहाँ संवाद दाता की हालत आपवाले संवाद दाता जैसी ही होती रहती है...बिचारे दीपक चौरसिया जी को कहे घसीट लाये...उन्हें रहने दो जहाँ वो हैं...
बहुत रोचक पोस्ट लिखी है...कब शुरू हुई और कब ख़तम हुई पता ही नहीं चला...मंत्री जी के जवाब की तरह...
नीरज
परंतु सरकार, मि. टेन परसेंट तो किसी और देश के राष्ट्रपति बन बैठे हैं!!!!!!!!!!!:)
ReplyDeleteआप तो और भी तेजी से ग्रो कर रहे हैं. सरकार को भी करने दीजिये. अब भारत तब ही ग्रो करेगा न, जब सरकार करेगी, सरकार तब करेगी, जब मन्त्री, बड़े अफसर, दानदाता उद्योगपति करेंगे. इसीलिये दाल ८० बिक रही है और आप प्लास्टिक पीटरों को ईर्ष्या हो रही है.
ReplyDelete"हम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे" इनमे - मंहगाई में, बेरोजगारी में, आतंकवाद में, भूख में, अपराध में, समलैंगिकता में, यौन हिंसा में, भ्रष्टाचार में, दलाली में, कमीशन में, ....
ReplyDeleteएक ठो से ऊपर से गुजर गयी....गणित ओर एकोनिक्म्स पहले से ही कमजोर है .ऊपर से आप ठाहरे वित्त सलाहाकार .या ऐसा ही कुछ...ऐसे घालमेल पोस्ट लिखी तो कृपया नीचे संक्षेप में सारांश भी लिख दे.....
ReplyDeleteवो तो ठीक है. और ये पक्का है:
ReplyDeleteहम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे.
:)
तो मिसिर जी, आप अपनी बतिया सरकार के मुँह में ठूस कर उससे कहलवा रहे हैं का? नौ-दस परसेन्ट का ग्रोथ तो कुछौ नाइ है। कुश बाबू दुरुस्त बोलत हैं..। जय हो!!!
ReplyDeleteबाकी जो भी हो... हम नौ-दस परसेंट की रेट से ग्रो करेंगे.
ReplyDeleteअगली पोस्ट का इंतजार है । हम कब तक नौ दस परसेंट की रेट से ग्रोथ करते रहेंगे ।
ReplyDeleteसच में आप भविष्य-दृष्टा हैं.
ReplyDeleteइसमें आपने फिर भी फ़ोन कॉल की सुविधा रखी थी, परन्तु यहाँ तो चार ट्वीट से ही काम हो गया.
शुरू से मध्य तक बहुत एन्टर-टैनिंग था, पर अंत होते होते दुखी हो गए.
कैसे एक मज़ाक आज सच हो गया है. एक नहीं, सब कुछ मज़ाक हो गया है.
ऐसा कुछ याद आता है..
"और हम डरेडरे ,
नीर नयन में भरे ,
ओढ़कर कफ़न , पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया , गुबार देखते रहे ! " - नीरज
वैसे पोस्ट अपने आप में बहोत बढ़िया है. पढ़ के बढ़ा मज़ा आया.
धन्यवाद !