कंधे पर लटकते झोले को महामंत्री के हवाले कर हलवा-प्रेमी राजा गद्दी पर बैठ गया. गद्दी पर बैठते ही उसकी समझ में आ गया कि कंधे पर बिना कोई भार लिए अगर गद्दी पर बैठा जाय, तो बड़ा मज़ा आता है. इसे भी मज़ा आने लगा.
धाँसू गद्दी थी. उसके बैठते ही धंस गई.
उसे अपने भाग्य पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. उसकी इच्छा तो हुई कि दरबारियों के सामने ही गद्दी पर बार-बार उछले लेकिन फिर मन में विचार आया कि सब हँसेंगे. आखिर अब वह एक राजा था. एक राजा को सार्वजनिक तौर पर इस तरह से उछलना अलाऊ नहीं था. यही सोचकर वह ऐसा न कर सका.
लोक लाज के चलते राजा उछल तो नहीं सका लेकिन गद्दी पर उछलने की उसकी इच्छा मन से जा ही नहीं रही थी. हारकर उसने अपने मन की बात सुनी. महामंत्री से कहा; "हमारे ध्यान लगाने का समय हो गया है. हम अब मेडीटेट करेंगे इसलिए दरबारियों को छुट्टी दे दी जाय."
दरबारियों को छुट्टी दे दी गई. महामंत्री भी दरबार से निकल लिए.
खुद को अकेला पाकर राजा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह गद्दी पर बन्दर की तरह कूदने लगा. उसे बड़ा मज़ा आ रहा था. जब कूदकर थक गया तो बैठ गया. फिर ताली बजाई. जैसा कि हर राजा की ताली के साथ होता है, इसके साथ भी हुआ. नौकर हाज़िर हुआ. राजा ने कहा; "हमारे लिए हलवा पेश किया जाय."
नौकर चला गया. थोडी देर बाद ही राजमहल की रसोई हलवे के सुगंध से सराबोर हो गई. उसके बाद दरबार और रसोई को जोड़ने वाली गैलरी ने भी खुद को भाग्शाली महसूस किया. सुगंध का एक निश्चित हिस्सा उसे भी मिला. थोड़ी देर बार दरबार भी हलवे की सुगंध से भर गया. राजा के सामने हलवा पेश किया गया. सोने की कटोरी में स्वादिष्ट हलवा. घी और सूखे मेवे की जुगलबंदी वाला.
राजा और दरबारियों ने खाना शुरू किया. ऐसा हलवा उसने कभी सपने में भी नहीं खाया था. यह अलग बात थी कि हलवा के पीछे दीवाना था और हलवे का ही सपना भी देखता था लेकिन ऐसा हलवा उसे सपने में भी न मिला था. उसे हलवा इतना पसंद आया कि उसने एक कटोरी हलवा और मंगवाया.
हलवा खाने से उसे असीम स्वाद और ख़ुशी, दोनों की प्राप्ति हुई.
राजा और दरबारियों के दिन हलवामय होने लगे. एक्सपेरिमेंट के तौर पर तरह-तरह के हलवे बनने लगे. अपने घर में रहते हुए उसने केवल सूजी का हलवा खाया था लेकिन राजमहल आने के बाद उसे किस्म-किस्म के हलवे खाने का मौका मिला.
राजा के हलवा प्रेम ने उसके तमाम मंत्रियों को हलवे पर शोध करने के लिए प्रेरित किया. कभी कोई सिघाडे के हलवे पर बात करते पाया जाता तो कभी बेसन के हलवे पर. कई बार तो ऐसा भी देखा जाता कि कोई होनहार दरबारी पालक और जलकुम्भी के हलवे पर बात करते हुए बरामद होता.
तमाम देशों से बुलाकर हलवा बनानेवाले बड़े-बड़े रसोईये अप्वाइंट किये गए. एक अरबी कंपनी को सूखे मेवे सप्लाई करने का ठेका मिला. राज दरबार में जब भी दरबारियों की मीटिंग होती हमेशा हलवे को लेकर ही बातें की जातीं. हर दरबारी और मंत्री दरबार में रहकर हलवा खाता और दरबार से बाहर रहते हुए हलवे पर रिसर्च करता.
राजा और उसके दरबारियों की हलवा-चर्चा प्रिंट और विजुअल मीडिया के पत्रकारों के लिए तरह-तरह के अमेजिंग न्यूज और गॉसिप का साधन बनने लगी. जिन पत्रकारों और न्यूज चैनलों से राजा खुश रहता था और जिन्हें उसने जमीन-वमीन दे दी थी, वे राजा के इस हलवा-भक्षण कार्यक्रम और उससे होने वाले फायदे के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर लिखते. उसके हलवा प्रेम को राष्ट्रप्रेम से भी बड़ा बताते. कई न्यूज चैनल तो राजा और उसके दरबारियों के बारे में खोज-खोज कर अच्छी बात दिखाना शुरू कर दिया था. कुछ तो राजा और उसके मंत्रियों को सम्मानित करने लगे.
हलवा खाने में मस्त राजा और उसके दरबारियों को बाकी किसी बात से कोई मतलब नहीं रह गई थी. ज्यादा हलवा खाने से राज्य में चीनी मंहगी होने लगी. फिर बेसन, सूजी, और फल. देखते-देखते खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान छूने लगे. अगर कोई समस्याओं को उठाता तो समस्या के समाधान का उपक्रम करने के लिए राजा दरबारियों की मीटिंग करवाता और हलवा खाते हुए मीटिंग ख़त्म हो जाती.
पड़ोसी राज्य के राजा को भी न्यूज चैनल और अखबारों से पता चला कि हलवा-प्रेमी राजा हलवे में किस तरह से डूबा हुआ है. वह अपने सैनिकों और गुप्तचर वगैरह भेजकर इस राजा के इलाके का हालचाल लेने लगा. जब पड़ोसी राजा के सैनिक और गुप्तचर कई बार इस राज्य की सीमा में देखे जाने लगे तो वे न्यून चैनल जिनकी राजा से नहीं पटती थी, उन्होंने पड़ोसी राजा द्बारा अपने सैनिकों के भेजने की खबरें दिखाना शुरू किया. साथ में यह भी दिखाना शुरू किया कि किस तरह से राजा और उसके दरबारियों द्बारा हलवा-भक्षण कार्यक्रम की वजह से चीनी का दाम बढ़ गया है.
मीडिया में शोर-शराबा हुआ. ये शोर-शराबा सुनकर राज्य की प्रजा चिंतित रहने लगी. जब गुप्तचरों ने इस बात की सूचना राजा तक पहुंचाई तो उसने एक दिन दरबारियों की मीटिंग बुलाई गई. हलवा खाते हुए राजमहल ने एक प्रेस वक्तव्य जारी किया जिसमें लिखा था;
"प्रजा में व्याप्त चिंता से महाराज बहुत चिंतित हैं. उन्होंने अपने तीन दरबारियों को दिन में केवल एक बार हलवा खाने की हिदायत दी है. महाराज ने थाईलैंड से लाये गए हलवा बनानेवाले एक रसोइए की तनख्वाह में पूरे आठ परसेंट की कटौती की हिदायत दी है. साथ ही हमें यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि अब से महाराज हलवे में कम चीनी खाएँगे."
सारा राज्य महाराज के त्याग से गदगद हुआ.
वैसे भी चीनी खा खाकर लोगों में चीनी की बीमारी बहुत प्रतिशत बढ़ गयी है। अतः चीनी का दाम बढ़ना भी चाहिए। मुझे लगता है दूरदर्शी फिल्मकार ने यही सब सोचकर चीनी कम फिल्म बनायी होगी।
ReplyDeleteहमलोगों के नसीब में यह हलवा न अब है और न बचपन में ही था। बचपन में जब किसी चीज को न खाने की जिद्द करता था तो अक्सर घर के बड़े डाँटकर बोलते थे कि - यह नहीं खायगा तो क्या खायगा -हलवा?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अच्छा व्यंग्य है।
ReplyDeleteहलवाराजा के ऑस्टेरिटी मेज़र से हम भी द्रवित हुये! आज से इकॉनमी क्लास हलवा खाने का व्रत लेते हैं। :)
ReplyDeleteअच्छा है महाराज जी शुगर के चक्कर से बच जायेंगे. बढ़िया व्यंग्य आभार.
ReplyDeleteमहाराज जी को अपने दरबारियों को शूगर फ्री हलवा खाने की हिदायत देनी चाहिए....इकोनमी क्लास वाला:)
ReplyDeleteTyag ki murti Raja ke tyag ki marmik katha dekh kar aankh num ho aayi.
ReplyDeleteKisi tarah haluwa khate khate padha.
Ab kya pata economy class me haluwa milega bhi ki ghar se tifin le kar nikalna padega.
Maharaj ke tyag ko dekh nat mastak hun.
जब राजा के राजस्व का अधिकांश हिस्सा हलवा भक्षण कार्यक्रम को समर्पित होने लगा तो जनता में हाहाकार मच गया। बाकी खाद्य दुर्लभ हो गये और सारा राज्य हलवा से ही भर उठा। जित देखो तित हलवा। जिन्हें मीठे से परहेज था वे पनाह मांगने लगे।
ReplyDeleteसबसे बड़े दरबार में पहुँच कर बोले- “जहाँपनाह, हमारे राज्य में सिर्फ़ हलवा कार्यक्रम चल रहा है। सारा राजस्व हलवा में चला गया तो हम क्या खाएंगे...?”
बड़े महाराजाधिराज के सबसे बड़े दंडाधिकारी ने राजा से पूछा- “हलवा खाने के अलावा दूसरे कुछ जरूरी काम क्यों नहीं करते?”
राजा ने हलवा पर नियन्त्रण रखने का वादा किया, लेकिन भूख थी कि शान्त ही नहीं हो रही थी। आखिरकार बड़े दंडपाल ने हलवा भक्षण कार्यक्रम पर साफ रोक लगा दी। इसके बाद ‘ऑस्टेरिटी मेजर्स’ घोषित किए गये।
शानदार है सरजी !!!! :D
ReplyDeleteवैसे यही हलवा थोडा सस्ता (इकोनोमी क्लास वाला) हो जाता है तो दरबारियों को इसका स्वाद गोबर जैसा लगने लगता है.
आँखे भर आई, गला भर गया. पता नहीं किस जनम में ऐसे पूण्य काम किये थे जो ऐसा त्यागी राजा मिला. जितनी स्तुति की जाय कम है.
ReplyDeleteवाह! क्या हलवामय स्वादिष्ट व्यंजन माने व्यंग्य पेश किया है.
क्या कहूँ ......... जबरदस्त करारा व्यंग्य लिखा है....
ReplyDeleteवैसे राजा का मानना है कि सभी मंत्री संतरी बेशक हलवा खाएं , लेकिन प्रजाजन के सम्मुख न तो हलवा का गुणगान करें और न ही आचरण से झलकने दें कि उनका लक्ष्य हलवा खाना भर है...
ऐसे त्यागी राजा का आचरण अनुकरणीय है । सारी अर्थव्यवस्था का हलवा बनने में देर नहीं है ।
ReplyDeleteसुन्दर! हलवा प्रेमी राजा की जय हो! क्या-क्या खुराफ़ातें सोचते रहते हैं गुरु-चेला द्वय!
ReplyDeleteहुम्म! ये केटल क्लास हलवा खिला रहे हैं आप राजा को! ग़लत बात!! राजा होने का मतलब है पांच सितारा क्लास. उससे नीचे कोई बात ही नहीं होनी चाहिए. :-)
ReplyDelete@ अनूप जी,
ReplyDeleteआप गेहूँ के साथ घुन को पीस रहे हैं :)
"अब से महाराज हलवे में कम चीनी खाएँगे"
ReplyDeleteक्या राजा को डायबेटिस हो गया या आस्टेरिटीआइटिस का दौरा पड़ा?:)
हा! हा!!
ReplyDeleteलाजवाब कटाक्ष...
आपकी पोस्ट पढ़ कर देश के सारे डाक्टर गदगद हैं और दिवाली से पहले ही दिवाली मनाने में जुट गए हैं...
ReplyDeleteकारण ऐसा नहीं है जिसपर शोध किया जाये...स्पष्ट है...शायद ही कोई बदनसीब होगा जिसका जी, मन या इच्छा...आपकी पोस्ट पढ़ कर हलवा खाने की नहीं हुई होगी...याने जिसने भी पोस्ट पढ़ी होगी उसने हलवा जरूर खाने का सोचा या खाया होगा... एक बार नहीं अब तक तो हर कोई चार पांच बार सोच या खा चुका होगा...आगे भी खायेगा ही इसमें भी कोई संदेह नहीं है...अस्तु , बात ये हुई की जो हलवा इस तरह खाता चला जायेगा उसको या तो दिल की बीमारी जकड लेगी या शूगर की और बहुत ही प्रेम एवं नियम से भक्षण करने वाले के हिस्से में दोनों बीमारियाँ आ जाएँ तो आर्श्चय नहीं होगा...तो बताईये डाक्टर खुश होंगे की नहीं...
नाम व्यंग का लेते हैं और उसकी आड़ में लोगों का स्वास्थ्य ख़राब करते हैं...आपको तनिक भी लाज नहीं आती...धिक्कार है. याने कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना....विधान सभा चुनाव में खड़े होने का इरादा तो नहीं है...लक्षण तो नेताओं वाले उभर रहे हैं...:))
नीरज
'धाँसू गद्दी थी. उसके बैठते ही धंस गई. ' गद्दी खरीदने से पहले उसके धाँसूपन का टेस्ट करना चाहिए ये बात हम नोट करे लेते हैं. और देखिये हलवाप्रेमी राजा की कहानी तो थियोरी हो गयी. हर मामले में फिट हो जाती है. एक नयी किताब आनी चाहिए: 'अ न्यू पॉलिटिकल इकोनोमी थिंकिंग बाई रतिराम विद एक्सक्लूसिव एक्साम्प्ल्स फ्रॉम रिजीम ऑफ़ हलुआप्रेमी राजा. '
ReplyDelete