Wednesday, September 30, 2009

ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' की डायरी से कुछ....

रिश्ते बन ही जाते हैं. बहाना कोई भी हो सकता है. हलकान भाई याद हैं आपको? अरे वही, हलकान 'विद्रोही', अपने स्टार ब्लॉगर. वही जिनकी वसीयत छाप दी थी मैंने. उसके बाद उनकी डायरी भी. ब्लागिंग की वजह से ढेर सारे लोगों से जान-पहचान हुई. हलकान भाई उनमें प्रमुख हैं.

विजयादशमी के दिन उनसे मिलने गया था. हमेशा की तरह ब्लागिंग के बारे में सोचते हुए बिजी थे. मुद्दा वही. हिंदी ब्लागिंग को कैसे बढ़ाया जाय? खैर, विजयादशमी की बधाई लेन-देन के लिए उन्होंने समय निकाला. बधाई दी. बधाई ली.

बधाई लेन-देन के बाद फिर उसी बात पर चिंतन. ब्लागिंग के बारे में क्या-क्या किया जा सकता है? ठीक वैसे ही जैसे कई साहित्यकार इस बात पर चिंतित रहते हैं कि आज से बासठ साल बाद हिंदी की दशा क्या होगी?

बात शुरू हुई तो बोले; "तुम भी टिक गए ब्लागिंग में. वो भी दो साल."

मैंने कहा; "हाँ. सोचा तो कभी मैंने भी नहीं था लेकिन सच तो यही है कि टिक गया. सब आपका आर्शीवाद है."

वे बोले; " आर्शीवाद काहे का? असल कारण कुछ और है. तुम्हें अपना तो कुछ मौलिक लिखना है नहीं. दूसरों की लिखी डायरी छाप देते हो. उसी से काम चला रहे हो. पता नहीं डायरी के पन्ने भी खुद टाइप करते हो या उसके लिए भी टाइपिस्ट रखा है."

मैंने कहा; "ऐसा मत कहिये हलकान भाई, मैं खुद ही टाइप करता हूँ. मेरे लिए ब्लागिंग उतनी महत्वपूर्ण नहीं है कि मैं तनख्वाह देकर केवल ब्लागिंग के लिए टाइपिस्ट रख लूँ."

वे बोले; "इसी बात का तो रोना है. हिंदी ब्लागिंग के ज्यादातर ब्लागर के लिए ब्लागिंग महत्वपूर्ण नहीं है. जिस तरह का समर्पण चाहिए वह दिखाई नहीं देता. तुम्हारे अन्दर भी वह भावना नहीं है कि हिंदी ब्लागिंग फूले-फले. समर्पण चाहिए ब्लागिंग के लिए. दूसरों की डायरी छाप कर कितने दिन चलाओगे?"

मैंने कहा; "हाँ, वह तो है. आप ठीक ही कह रहे हैं."

वे बोले; "मुझे ही देखो. हमेशा यह प्रयास रहता है कि हिंदी ब्लागिंग को कैसे समृद्ध किया जाय? कह सकते हो कि मैं ब्लागिंग ही खाता हूँ, ब्लागिंग ही पीता हूँ और ब्लागिंग ही सोता हूँ."

मैंने कहा; "सही कह रहे हैं. अपने ब्लॉग बारूद पर आपने जितना कुछ लिखा है, वह हिंदी ब्लागिंग के लिए संजीवनी है. जब तक आपका ब्लॉग है तब तक समझिये हिंदी ब्लागिंग का स्वर्णकाल चलता रहेगा."

वे बोले; "हा हा.....असल में बारूद तो कुछ नहीं. बारूद ब्लॉग तो हिंदी ब्लागिंग के लिए मेरे योगदान का दस प्रतिशत भी नहीं है. असल योगदान तो मेरे वे ब्लॉग हैं जो मैं अपने नाम से नहीं लिखता."

सुनकर मुझे बड़ा अजीब लगा. मतलब यह कि हलकान भाई किसी और नाम से लिखते हैं?

मैं प्रश्नचिन्ह लिए उनसे कुछ कहने ही वाला था कि उन्होंने मेरे सामने एक डायरी खिसका दी. बोले; "अपने हो. यह पढ़ लो, सब समझ में आ जाएगा."

डायरी पढना शुरू किया. जैसे-जैसे पढता गया, दंग होता गया. मेरी हालत देखकर वे बोले; " आज समय आ गया है कि मेरे योगदान को लोग जानें. पढ़ लो. नोट कर लो. छाप देना अपने ब्लॉग पर. इसी बहाने तुम्हारी एक पोस्ट हो जायेगी. वैसे भी तुम्हें क्या चाहिए? एक डायरी के कुछ पन्ने."

उनके कहने के अनुसार मैं उनकी डायरी की कुछ प्रविष्टियाँ छाप रहा हूँ. चिंता न करें, उन्होंने परमीशन दे दी है. आप पढें और हिंदी ब्लागिंग के लिए उनके योगदान को सराहें.

६ नवम्बर, २००८

अजीब बात है. कोई भी आईडिया मन में आता है. सोचता हूँ कि उस आईडिया को लेकर ब्लॉग बनाऊंगा और यहाँ पता चलता है कि उसी आईडिया को लेकर मुझसे पहले ही किसी ने ब्लॉग बना लिया. पहले सोचा कि ब्लॉगरगण की जीवनी के कुछ हिस्से उनसे लिखवाकर अपने ब्लॉग पर छापूंगा. लेकिन अजित जी को पता नहीं कैसे मेरे आईडिया के बारे में पहले ही पता चल गया. वे मेरा आईडिया ले उड़े. फिर सोचा कि हिंदी ब्लागरों के जन्मदिन पर बधाई देते हुए एक ब्लॉग बना लूँ लेकिन वह आईडिया पाबला जी ले उड़े. फिर सोचा कि सांपों के बारे में जानकारी के लिए एक ब्लॉग बना लूँ लेकिन लवली जी को मेरे आईडिया का पता चल गया और उन्होंने...............पता नहीं ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है?

२ मार्च २००९

आज एक ब्लॉग कंसल्टेंट अप्वाइंट किया. ध्येय एक ही है. हिंदी ब्लागिंग को समृद्ध करना है. उसे आगे ले जाना है. कंसल्टेंट अच्छा है. आईडियावान कंसल्टेंट. जब मैंने उसे यह बताया कि कैसे लोगों को मेरे आईडिया के बारे में पता चल जाता है और वे ब्लॉग बना लेते हैं तो उसने कहा कि यह टेलीपैथी की वजह से होता है. इसलिए मुझे टेलीपैथी पर एक ब्लॉग शुरू कर देना चाहिए. मैंने आज ही त्रिशंकु नाम से एक आई डी बनाई और टेलीपैथी पर एक ब्लॉग शुरू कर दिया......

७ अप्रैल, २००९

कंसल्टेंट के कहने पर आज मैंने एक नया ब्लॉग बनाया जो सरकारी रोडवेज के कंडक्टरों के लिए समर्पित है. मैं इस ब्लॉग पर केवल रोडवेज के कंडक्टरों और उनकी नौकरी और समस्याओं के बारे में लिखूँगा....

१६ अप्रैल, २००९

पिछले सोमवार मैंने एक नया ब्लॉग बनाया. नाम है, "मैं चन्दन तुम पानी". मैं इस ब्लॉग पर हिंदी ब्लागरों की खिचाई करूंगा. पहली पोस्ट में मैंने एक ब्लॉगर की पोस्ट का जिक्र करते हुए पांच लाइन की एक पोस्ट लिखी. उस ब्लॉगर ने 'छात्र' की जगह 'क्षात्र' लिखा था. पांच लाइन की पोस्ट पर मुझे ब्लॉगवाणी पर कुल सत्रह पसंद मिली. टिप्पणियां कुल बाईस. असली ब्लागिंग तो यही है कि पांच लाइन लिखो और बाईस टिप्पणियां मिलें. चिरकुट हैं वे जो बड़ी-बड़ी पोस्ट लिखते हैं और उन्हें कुल तीन पसंद मिलती है.

२३ अप्रैल, २००९

आज मेरे ब्लॉग "मैं चन्दन तुम पानी" पर एक ब्लॉगर ने फर्जी आई डी से मेरे खिलाफ कमेन्ट किया. तकनीकि में अपनी कुशलता के कारण मुझे पता चल गया कि यह ब्लॉगर कौन था लेकिन मैं उसका नाम कैसे लेता? मैं अगर उसका नाम ले लेता तो वह भी मुझे लताड़ के चला जाता कि मैं खुद फर्जी आई डी क्रीयेट करके ब्लॉग लिखता हूँ. ऐसे ही कुछ समय होते हैं जब फर्जी नाम बहुत खलता है.....

१६ मई, २००९

झूठे हैं सब. मिश्रा को फ़ोन करके कहा कि मेरी पोस्ट पर एक पसंद क्लिक कर दो. उसने कहा कि उसने कर दिया और पसंद तेरह से चौदह हो गई. बाद में पता चला किसी और ने वह पसंद दी थी. हद है. एक पसंद भी नहीं दे सकते....

२८ मई, २००९

आज एक ब्लॉग बनाया. 'हिंदी ब्लागरों के चरम दिन' के नाम से. मैंने सोचा है कि इस ब्लॉग पर मैं पोस्ट लिख करा बताऊंगा कि किस हिंदी ब्लॉगर को किस दिन सबसे ज्यादा टिप्पणी और पसंद मिली.

३ जून, २००९

बहुत मज़ा आ रहा है. मेरे हर ब्लॉग के कम से कम एवरेज ९० फालोवर हो गए हैं. सब जलने लगे हैं मेरे ब्लॉग की प्रगति से. मुश्किल एक ही है. किसी को नहीं मालूम कि ये ब्लॉग किसका है. ऐसे में नाम न होने की कसक तो रहेगी लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता.

११ जून, २००९

आज मैंने अपनी एक सूक्ति, "ब्लागिंग ही जीवन है" को ढाई बाई तीन फुट के बोर्ड पर लिख कर अपने कम्यूटर के सामने वाली दीवार पर टांग दिया है. यह बोर्ड मुझे ब्लागिंग के लिए मोटिवेट करता रहेगा. लेकिन वही बात है न. एक पत्नी है जिसे मेरी प्रगति फूटी आँखों नहीं सुहाती. बोर्ड देखकर नाराज़ हो गई. कहती है कि घर के लिए सोफे का कवर खरीदने के लिए आना-कानी करता हूँ और बोर्ड पर कुल उन्नीस सौ पचास रूपये खर्च कर आया. अब इसपर कोई क्या कहे? उसे क्या पता कि "ब्लागिंग ही जीवन है" नामक सूक्ति हिंदी ब्लागिंग को आगे बढाने में किस तरह का रोल.....

१२ जुलाई, २००९

कंसल्टेंट के कहने पर आज मैंने एक नया ब्लॉग बनाया है जिसमें मैं उन ब्लॉग का जिक्र करते हुए पोस्ट लिखूँगा जिनके बारे में विदेशी अखबारों और पत्रिकाओं में छपेगा. वो दिन दूर नहीं जब मेरे इस ब्लॉग का जिक्र टाइम मैगजीन में होगा. यह पूरी तरह से एक नया आईडिया है. वैसे तो मैंने सोचा था कि भारतीय अखबारों में हिंदी ब्लॉग के जिक्र को लेकर मैं एक ब्लॉग बनाऊंगा लेकिन पता नहीं पाबला जी को कैसे मेरे आईडिया के बारे में........

२८ अगस्त, २००९

आज कंसल्टेंट ने एग्रीगेटर बनाने का आईडिया दिया. एग्रीगेटर का आईडिया मेरे दिमाग में.........

मैं अभी पढ़ ही रहा था कि उन्होंने मुझसे डायरी लेते हुए कहा; "जितना पढ़ लिए हो, उतना काफी है एक पोस्ट लिखने के लिए. लेकिन पोस्ट लिखना ज़रूर. अब समय आ गया है कि लोग मेरे योगदान के बारे में जानें और हिंदी ब्लागिंग पर किये गए मेरे एहसान को तौलने के लिए तराजू खरीदना शुरू करें.

मैं उनसे मिलकर चला आया. यह सोचते हुए कि आगे की डायरी पढ़ते तो क्या-क्या और पता चलता? कहीं यह तो नहीं लिखा रहता कि;

आज मैं बहुत खुश हूँ. आज से ठीक दस साल पहले मैंने ब्लॉगर बनाया था. कोई नहीं जानता कि एवन विलियम्स के नाम से मैंने ही ब्लॉगर का निर्माण किया था.........

16 comments:

  1. "एक पत्नी है जिसे मेरी प्रगति फूटी आँखों नहीं सुहाती. बोर्ड देखकर नाराज़ हो गई."

    ये प्रगति कौन हैं जी?

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  2. सारे भेद खोल देती है, मूई डायरी.

    कमाल है जी आप भी. कहाँ कहाँ से आइडिया आ जाते हैं और भेद खोल कर रख देते हैं.

    रसप्रद रहा. मजा आया. मुस्कुराते हुए पढ़ा.

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  3. हा हा हा ..पढ़ के अच्छा लगा ..पर पोस्ट अधूरी सी लगी ..आगे के पन्नो इन्तिज़ार रहेगा.

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  4. lagata hai dilli aane ki soc liye ho tabhi kalakatta se bhilai kanpur kota ki yatra par nikale ho :)

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  5. चिरकुट हैं वे जो बड़ी-बड़ी पोस्ट लिखते हैं और उन्हें कुल तीन पसंद मिलती है.
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    सरासर गलत! चिरकुट तो पसन्द बढ़ाना चाहते हैं खुद्दै। ये फीड एग्रेगेटर वाले तकनीकी प्रोग्राम का पेंच लगा देते हैं और जायज धतकरम नहीं करने देते!

    [आपकी यह पोस्ट हमें तनिक भी पसन्द नहीं आई। हम इतने नाराज हैं कि इसकी पसन्द बढ़ाने जा रहे हैं! :) ]

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  6. हमने सोचा था अपने ब्लॉग पर लोगो की डायरिया छापेंगे, पर........

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  7. तराजू तो हम खरीद के ले आये एहसान तौलने के लिए. लेकिन अब तौलें कैसे? तनिक हकलानजी से क्लियर करवाइए.

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  8. दायीं ओर के आखिरी शब्द कट रहे हैं। दिखायी नहीं देते।
    डायरी या कच्चा चिट्ठा है?

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  9. वाह इस डायरी ने तो नाम कमाने के लगभग सारे नायाब रास्ते सुझा दिए......

    जबरदस्त लिखा है,जबरदस्त ...........

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  10. लो जी ...दसहरा गया ..अब दीवाली की बधाई के लेन देन में लोग लगे रहेगे...आप जरूर दिन में आईडिया सोचते होगे तभी लोग कोपी पेस्ट कर लेते हैंगे जी.......क्यों नहीं ...हावडा के पुल पे एक ब्लॉग बना लेते .....अभी जाकर पसंद बढा के आता हूँ .....जायूं क्या

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  11. "तुम्हारे अन्दर भी वह भावना नहीं है कि हिंदी ब्लागिंग फूले-फले."

    फलने-फूलने का सरल सा तरीका है कि १२०० रुपये प्रति वर्ष का शुल्क लगा दो:)

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  12. हलकान साहब ने समसामयिक हलचलों पर जो कलम चलाई है उसके बारे में भी कुछ बताइये। ये तो आपने अच्छा टाइप किया। जैसा हलकान साहब ने लिखा शायद वैसा ही। हलकान साहब वाकई गजब का लिखते हैं।

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  13. डायरी लिखो और हिंदी ब्लागिंग को समृद्ध बनाने में अपना योगदान जारी रखो.

    वैसे तो इतना कर चुके हो कि अगर आप हिन्दी को भूल भी जाओ तो हिन्दी आपको भूलेगी नहीं. :)

    पसंद कितनी बढ़वाना है?? :)

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  14. हलकान जी के आईडिया तो बहुत भारी भारी हैं। एतना सारा ब्लॉग बना रहे हैं हलकान जी तो उन्हें ईतने सारे ब्लॉगों को कैसे मैनेज करें मुद्दे पर एक और ब्लॉग बना देना चाहिये।

    'मल्टीब्लॉगर कैसे बनें' :)

    मल्टीब्लॉगर लोग कैसे इतने सारे ब्लॉ़गों को मैनेज करते हैं ये मेरे लिये अब तक पहेली है। अपन तो एक सफेद घर को लेकर ही उलझे रहते हैं :)

    बहुत बढिया लिखा है। मजेदार।

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  15. अच्छा है जो हलकान विद्रोही जी ने ग़ज़लों पर कोई ब्लॉग नहीं बनाया वरना हम विद्रोह कर देते...
    आप से डर कर हमने तो भाई डायरी लिखना ही छोड़ दिया है...कल को आप जैसे किसी के हाथ पड़ गयी तो हमारे गो-लोक वासी होने के बाद भी हमारी दुर्योधन की तरह फजीयत हो जायेगी...आज माना हमें कोई नहीं जानता लेकिन ग़ालिब को भी उनके जीते जी कितने लोग जानते थे...ये तो बाद में उनकी पूछ हुई...
    नीरज

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय