दो दिन पहले अनिल रघुराज जी ने एक पोस्ट लिखी. शीर्षक था, 'मेरे बाद मेरे इस ब्लॉग का क्या होगा?'. बड़ा मौलिक सवाल है. इससे पहले किसी ब्लॉगर ने ऐसा सवाल नहीं दागा था. अनिल जी ने इस सवाल के जवाब में ढेर सारे संभावित परिणामों की सूची नहीं दी. एक-दो संभावनाओं की बात कही. जैसे उनके बाद उनका ब्लॉग 'किसी रेगिस्तान में छूटे हुए समान की तरह धीरे-धीरे रेत के टीले में धंस कर रह जायेगा.'
अनिल जी के इस सवाल से बहुत से ब्लॉगर बंधु दुखी हुए. कुछ ने उन्हें मोह-माया से निकलने की बात कही. कुछ ने बताया कि सृष्टि का नियम यही है कि मृत्यु तय है. लेकिन ब्रह्माण्ड के सबसे धाँसू ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' जो 'बारूद' नाम का हिन्दी ब्लॉग लिखते हैं, उन्होंने केवल पोस्ट पढ़ी. तुरंत फैसला नहीं कर पाये कि टिपण्णी में क्या लिखें? 'ब्लॉग दार्शनिक' होते तो उदय प्रताप सिंह जी के दो छंद टिपण्णी के रूप में चिपका देते. छंद हैं;
होनी निज हाथ में लिए है एक कालचक्र
........................जिसके समक्ष झुक सूर्य-चन्द्रमा गए
कांपते थे जिनके प्रताप से दिगंत वे;
........................नगण्य से अतीत के अथाह में समा गए
शूर-वीरता में जो अजेय कीर्तिमान रहे
........................अंगद सा पाँव इतिहास में जमा गए
चुटकी बजी जो काल कि तो वहीं तत्काल
........................जिंदगी की बागडोर मृत्यु को थमा गए
या फिर;
तिनके से काल के प्रवाह में विलीन हुए
........................शैल से अखंड अभिमानी वे कहाँ गए
छोटे-मोटे जीवधारियों की कौन बात करे
........................सिद्ध और प्रसिद्ध संत-ज्ञानी वे कहाँ गए
शक्तिमान सोम से और व्योम से अशोधनीय
........................बादलों सी चढ़ती जवानी वे कहाँ गए
और सोच लो जरा 'उदय' की कौन सी विसात जब;
........................आग थे जो होकर पानी-पानी वे कहाँ गए
अगर ब्लॉग-दार्शनिकता की दूसरी मंजिल पर खड़े रहते तो शायद इस शेर को कमेंट के रूप में चिपका देते;
मौत तो लफ्ज़ बेमानी है
जिसको मारा हयात ने मारा
लेकिन हमारे ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' जी व्यावहारिक इंसान हैं. लिहाजा उन्होंने सोचना शुरू किया कि उनके जाने के बाद उनके ब्लॉग का क्या होगा? बहुत सोचने के बाद उन्होंने ब्लॉग-वसीयत लिखने की ठान ली. और हाथो-हाथ ये वसीयत लिख डाली. आप वसीयत पढ़ें;
मैं ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' , इस ब्रह्माण्ड का सबसे धाँसू हिन्दी ब्लॉगर, अपने पूरे होश-ओ-हवाश में ये ब्लॉग-वसीयत लिख रहा हूँ. कल तक मैं समझता था कि वसीयत केवल घर-बार, जमीन-जायदाद, बैंक लॉकर, सोना-चाँदी वगैरह के भविष्य में होने वाले बँटवारे के लिए लिखी जाती है. लेकिन जब से एक साईट ने मेरे ब्लॉग की कीमत दस लाख डॉलर आंकी है, तबसे ये ब्लॉग ही मेरी सबसे अमूल्य निधि बन बैठा है. रूपये-पैसे, सोना-चाँदी वगैरह की कीमत मेरे लिए दो कौड़ी की भी नहीं रही. इसलिए ये ब्लॉग-वसीयत लिखना मेरे लिए मजबूरी हो चुकी है.
मेरी वसीयत की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं.
०१. जिस दिन मेरा आखिरी क्षण आ जाये और डॉक्टर मुझे मृत घोषित कर दें तो भी डॉक्टरों की बात पर विश्वास न किया जाय. मैं सचमुच मरा हूँ कि नहीं ये जानने के लिए मेरे कान में कहा जाय; "हलकान उठो, तुम्हारी पोस्ट पर नया कमेंट आया है." ये सुनने के बाद भी अगर मैं उठकर न बैठूं तो मुझे मृत मान लिया जाय.
०२. मेरे चले जाने के बाद मेरे ब्लॉग के संचालन का काम मेरे तीनों पुत्रों के हाथों में दे दिया जाय. मेरे ब्लॉग का नाम भी बारूद से बदलकर 'बारूद का ढेर' कर दिया जाय. जब मैं अकेले लिखता था तबतक तो बारूद नाम समझ में आता है लेकिन जब वही ब्लॉग मेरी जगह मेरे तीन पुत्र संचालित करेंगे तो 'बारूद का ढेर' नाम खूब फबेगा.
०३. मेरे मरने के बाद मेरे ब्लॉग को सामूहिक ब्लॉग में कन्वर्ट कर दिया जाय. जब तक मैं लिखूंगा तब तक सप्ताह में तीन से ज्यादा पोस्ट नहीं लिख पाऊंगा. इस बात की वजह से मुझे उन ब्लागरों से हमेशा ईर्ष्या होती रही जो दिन में पाँच-पाँच पोस्ट ठेलते रहते हैं. मेरी दिली तमन्ना है कि मेरे पुत्र एक दिन में कम से कम बीस पोस्ट ठेलें ताकि ब्लॉगवाणी पर पूरे पेज में मेरा ब्लॉग छाया रहे. मेरी आत्मा को शान्ति देने का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं हो सकता.
०४. मेरी मृत्यु के बाद मेरे पुत्र सिर्फ़ उन्ही ब्लॉगर के ब्लॉग पर कमेंट करें जिनके ब्लॉग पर मैं कमेंट करता रहा हूँ. मुझे श्रद्धांजलि देते हुए हुए जितनी भी पोस्ट लिखी जाय, उनपर बहुत सारी फर्जी आईडी बनाकर ढेर सारा कमेंट अवश्य करें. मेरा मंझला पुत्र, जो अभी मुहल्ले के तमाम घरों की दीवारों पर चोरी-छिपे गालियाँ लिखता है, उसे मैं बेनामी कमेंट करने और बाकी के ब्लागरों के लिए गालियाँ लिखने का महत्वपूर्ण काम सौंपता हूँ.
०५. इतने दिनों तक ब्लॉग लिखने के बावजूद मैं आजतक बिना छंद और तुकबंदी की एक भी कविता नहीं लिख सका. ये बात मेरे मन में हीन भावना पैदा करती रही है. मेरा छोटा पुत्र जो रह-रहकर आसमान की तरफ़ देखने लगता है और जिसके अन्दर बुद्धिजीवी बनने के सभी लक्षण मौजूद हैं, मैं उसे बिना छंदों और बिना तुकबंदी वाली कविता लिखने का काम सौंपता हूँ. अगर मेरा छोटा पुत्र इस काम को न कर सके तो उसे चिंता करने की जरूरत नहीं. वह जयशंकर प्रसाद, राम दरश मिश्र और पाब्लो नेरुदा की कविताओं को अपनी कविता बताकर तब तक छापता रहे जब तक पकड़ा न जाए.
०६. मैंने ब्लॉग लिखकर समाजवाद लाने की एक कवायद शुरू की थी. इतने दिनों के बाद मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि समाजवाद के आने का चांस बहुत कम है. लेकिन इंसान को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए. मैं चाहता हूँ कि मेरी इस अधूरी कोशिश को मेरे तीनों पुत्र आगे बढायें. हिम्मत न हारना ही असली समाजवादी की निशानी है.
०७. मैंने अपनी बकलमख़ुद लिखकर तैयार कर ली है. हालांकि अजित वडनेरकर जी ने मुझे लिखने के लिए कभी नहीं कहा लेकिन मैंने इस आशा से लिख लिया था कि वे एक न एक दिन जरूर कहेंगे. अगर मेरे जीते जी वे नहीं कहते हैं तो फिर मेरे पुत्रों को मैं जिम्मेदारी सौंपता हूँ कि वे मेरे बकलमख़ुद को मेरे ही ब्लॉग पर छाप लें.
०८. मैंने अभी तक के अपने ब्लागिंग कैरियर में बाकी के ब्लागरों के लेखन को कूड़ा बताया है. मैं चाहता हूँ कि मेरे जाने के बाद मेरे पुत्र मेरे इस काम को आगे बढायें. मैं यह भी चाहता हूँ कि मेरे तीनों पुत्र महीने में कम से कम एक बार हिन्दी ब्लागिंग में विद्यमान अपरिपक्वता के बारे में बहस जरूर करें. ऐसी पोस्ट पर टिप्पणियों की संख्या में कमीं नहीं आती.
०९. मैंने कई बार ऐसी पोस्ट लिखी जिसमें तमाम महान लोगों को दो कौड़ी का बताया. कई बार तो मैं गाँधी जी को भी बेकार घोषित कर चुका हूँ. मैं चाहता हूँ कि मेरे पुत्र मेरे इस काम को भी आगे बढायें. महीने में कम से कम एक पोस्ट ऐसी लिखें जिसमें किसी महापुरुष को बेकार बतायें. ऐसी पोस्ट लिखने से खूब नाम होता है.
१०. मेरे ब्लॉग पर लगाए गए विज्ञापन की कमाई को मेरे पुत्र आपस में बाँट लें. मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि इस मामले में कोई झगडा नहीं होगा क्योंकि कमाई की रकम १०० डॉलर पार नहीं कर सकेगी.
११. बहुत कोशिश करने के बाद भी मैं अपने ब्लॉग पर आजतक एक भी विमर्श नहीं चला सका. विश्व साहित्य हो या जाति की समस्या, नारी मुक्ति आन्दोलन हो या फिर विश्व अर्थव्यवस्था, साम्यवाद हो या फिर साम्राज्यवाद, ऐसे किसी भी विषय मैं एक भी बहस आयोजित न कर पाने की अक्षमता मुझे बहुत खलती है. मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरे पुत्र मेरे इस ब्लॉग पर महीने में कम से कम एक बहस जरूर आयोजित करें. ऐसी बहस चलाने से मेरी इस हीन भावना से मेरी आत्मा को मुक्ति मिलेगी.
मैंने अभी तक ग्यारह बातें ही लिखी हैं. इसका कारण यह है कि ग्यारह की संख्या शुभ मानी जाती है. मैं अपनी इस वसीयत में आगे और भी 'कामना' जोड़ सकता हूँ. मैंने फैसला किया है कि इस काम के लिए मैं किसी ब्लॉगर-वकील से बात करूंगा.
पुनश्च:
हलकान जी की ब्लॉग-वसीयत पब्लिश की जाय या नहीं, इस बात को लेकर मैं दुविधा में था. लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर बिड़ला जी और अम्बानी जी की धन-दौलत वाली वसीयत अदालतों में पढी जा सकती है तो विद्रोही जी की ब्लॉग-वसीयत ब्लॉगर बन्धुवों के बीच रखना कोई ख़राब बात नहीं होगी.
Thursday, April 24, 2008
ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' की ब्लॉग-वसीयत
@mishrashiv I'm reading: ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' की ब्लॉग-वसीयतTweet this (ट्वीट करें)!
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ब्लागरी में मौज,
ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही'
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हलकान महोदय की चिट्ठा पाठकों को हलकान कर देने वाली यह हलकानी वसीयत वाकई प्रासंगिक और परिपूर्ण सी लगती है.
ReplyDeleteहम सभी चिट्ठाकारों को नक़ल बनाकर चिपकाकर अपनी ब्लॉगवसीयतनामा बना लेनी चाहिए... :)
उपरोक्त सारी बाते ठीक है पर आपने मुझे अपनी वसीहत मे पेंशन एंव बीमे की रकम का उत्तराधिकारी घोषित करने का जो वादा चैट पर किया था उसका क्या हुआ, मैने तो आपकी वसीहत के मुताबिक ढेरो लेख तैयार भी कर डाले ,कि ना जाने कब जरूरत पड जाये,कल तो आप अपने पुत्रो से बहुत नाराज थे अचानक ये दुर्योधन के पिताश्री का चौला कैसे पहन लिया, कल तो आपको मेरे अलावा कोई नही दिख रहा था ,आज अचानक ये क्या ? क्या आज आपके पुत्रॊ ने थोडी सी पिलादी तो आपका पुत्र प्रेम जाग्रत हो गया. और हम जो सालो से लागत लगा रहे है वो धुल गई,लगता है हमे भी कोर्ट का ही रास्ता देखना पडेगा , हमारे पास आपकी पहली वसीहत बिना तारीख के पडी है :)
ReplyDeleteमतलब ब्लागिंग को सीरियसता के साथ लिया जाय.
ReplyDeleteरुपया-पैसा की वसीयत तो बनाने से रहा. कम से कम ब्लॉग-वसीयत ही बन जायेगी.
हलकान साहब ने रास्ता दिखा ही दिया है. रवि रतलामी जी की बात
भी ठीक है. हमसब ब्लागर्स को ब्लॉग-वसीयत बना लेनी चाहिए...:-)
बहुते नया तरह का वसीयत है. रस्ता देखा दिए हैं हलकान भाई. जय हो.
ReplyDeleteह्म्म! ये हलकान ब्लॉगर किसी को गोद लेने का विचार रखते है क्या? अगर हाँ तो मै उपलब्ध हूँ।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट, मजा आया पढकर।
कृपया ब्लोगर वकील का पता मिलते ही मेरे चिट्ठे पर धकेल दे......
ReplyDeletePassword bhi bataate jaayen.. :D
ReplyDeletenahi to bachche bechare bilakhte rah jaayenge.. :P
श्रद्धांजलि हेतु मैने बारूद का ढ़ेर बना दिया है। आप कृपया वहां श्रद्धांजलि दें! :D
ReplyDeleteहलकान जी जन्नतनशीं होने के बाद चैन से रहें अगर पहुंचे जन्नत तो, भई ऐसे धांसू ब्लॉगर्स को तो जन्नत में एंट्री मिलने के चांसेस बहुतै कम होते हैं ;)
ReplyDeleteचलो जी पैंतीस चालीस साल बाद ये वसीयत अपने काम आएगी नकल मार कर लिखेंगे इसी से। ;)
बाकी सब तो ठीक है... लेकिन इस वसीयत में ब्लॉग पर टिपण्णी करने वालों को तो कुछ मिला ही नहीं :-)
ReplyDeleteशिवजी आपकी पोस्ट से ज्यादा मजा ज्ञान जी के बारूद का ढेर पर क्लिक करके आया। :)
ReplyDeleteबिन गवाह की वसीयत का कोई मूल्य नहीं।
ReplyDeleteहलकान से बोलिए कि इतने ज्यादा हलकान न हों। मेरी बात को सीरियसता से न लें। मैंने तो जानबूझ उन जैसे ब्लॉगरों को छेड़ने के लिए यह पोस्ट ठेली थी।
ReplyDeletejay ho bhayi....aanand aaya...
ReplyDeleteजमाते रहिये जी. (आलोक जी से साभार)
ReplyDeleteहम ऊपर स्वर्ग में आकर चेक करेंगे कि आप वहाँ के ब्लॉगजगत में क्या गुल खिला रहे हैं. बशर्त्ते हमें वहाँ का दरबान घुसने दे.
ReplyDeleteअद्भुत है साहेब आपका ब्योंगो। आनंदम् आनंदम्।
ReplyDeleteहमारा नाम काहे बीच में ले आए हैं आप ? बकलमखुद का मतलब खुद ही लिखना और खुद ही ठेलना दोनो होता है। सो देर काहे की ?
[वैसे ही काफी वक्त दे चुके हैं आपको]
वसीयत धांसू है जी।
ReplyDeleteरंजना जी की ये टिपण्णी मेल से मिली है.
ReplyDeleteवाह!अद्भुत वसीयत !
ईश्वर से प्रार्थना है कि आपके तीनो पुत्र/बारूद की ढेर, जिनपर आपने विश्वास कर इतना बड़ा सपना सौंपने की सोची है,शत प्रतिशत उसे पूरा करें और आपकी इस व्यंग्य की परम्परा को बखूबी निभाएं.आप भी शतायु हों और आपके तीन पुत्र भी..........और उनके पुत्र भी.............परम्परा न टूटे........
आपकी वसीयत नामे को पढकर घूघुती जी द्वारा लिखा गया लेख याद आ गया।
ReplyDeleteवसीयत के पहले ही टिप्पणियो मे आगे की सोची जाने लगी है आगे भगवान मालिक है .
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteजान कर सुखद आश्चर्य हुआ की ब्लॉगर के पास भी ऐसा कुछ होता है जिसके लिए वसीहत की ज़रूरत पढे. अभी तक ब्लोग्गिंग करने वाले निक्कामे नाकारा और नालायक कहलाये जाते थे आप ने हलकान जी कीब्लॉग-वसीयत करके सम्पूर्ण ब्लॉगर जाती को जो सम्मान दिया है उसके लिए शुक्रिया.
नीरज
यार ये बड़ी जोर का झटका छूट कैसे गया ? बारूद के ढेर के लिए अर्जी लगा दें ?
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