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Tuesday, November 22, 2011

@#!%&८? राष्ट्रीय गोबर मिशन




मंत्री जी सोच में डूबे थे. आप पूछ सकते हैं सोच में क्यों डूबे थे? खासकर तब, जब डूबने के लिए और बहुत कुछ है? तो मेरा कहना यह है कि आप सवाल बहुत करते हैं. पढ़ तो लीजिये कि उन्होंने सोच में डूबना क्यों पसंद किया? तो मैं बता रहा था कि मंत्री जी सोच में डूबे थे. मंत्री भी कौन विभाग के? मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड री-न्यूएबिल एनर्जी यानि नवीन और नवीनीकरणीय उर्जा मंत्रालय. क्या कहा? नाम नहीं सुना कभी? अरे भइया वही मंत्रालय जो किसी भी चीज से उर्जा बना लेता है. सूरज की रौशनी को पेट्रोमैक्स और बल्ब की रौशनी में परिवर्तित कर डालता है. गोबर से गैस बना देता है. पोलीथीन से तेल बना देता है. यहाँ तक कि कूड़ा से सरकार भी बना सकता है.

तो मैं बता रहा था कि इसी मंत्रालय के मंत्री सोच में डूबे थे. सामने सचिव महोदय बैठे. ऑब्जेक्शन मत कीजिए सचिव के आगे महोदय लगाना ज़रूरी होता है. यही सरकारी नियम है. तो सामने सचिव महोदय बैठे थे. सोच में डूबकर जब मंत्री जी बोर हो गए तो सिर उठाकर बोले; "लगातार आठवां महीना है जब हम लोग़ टारगेट अचीव नहीं कर पाए. क्या हो रहा है? जब मैं मंत्री बना था तो मैंने मीडिया को बताया था कि मैं इस देश में ऊर्जा के नए-नए स्रोत स्थापित करूँगा लेकिन यहाँ हाल यह है कि गोबर गैस के टारगेट को भी हम अचीव नहीं कर पा रहे?"

सचिव जी के बोलने की बारी थी. वे बोले भी. उन्होंने कहा; "लेकिन सर, क्या किया जाय जब हमारे पास गोबर ही उपलब्ध नहीं है. एक जमाना था जब देश में गोबर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था. लेकिन आज गोबर की कमी पड़ गई है. गोबर मिलेगा तब तो गोबर-गैस बनेगी."

मंत्री जी बोले; "लेकिन गोबर न मिलने का कारण क्या है? अचानक देश में गोबर की कमी हो जाना तो ठीक नहीं है न. गेंहू, चावल, दाल, सब्जी वगैरह की कमी समझ में आती है लेकिन गोबर की कमी? अरे भाई, भारत तो गोबर के लिए ही जाता है."

सचिव जी बोले; "लेकिन सर, यह कहना कि भारत को गोबर के लिए जाना जाता है ठीक नहीं होगा. भारत तो और बातों के लिए भी जाना जाता है. हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत करप्शन के लिए जाना जाता है. भारत महात्मा के लिए जाना जाता है. भारत ...."

मंत्री जी बोले; "ठीक है-ठीक है. मैं समझ गया. लेकिन सवाल यह है कि गोबर की कमी कैसे हो गई?"

सचिव जी ने अपनी फ़ाइल से एक कागज़ निकालते हुए कहा; "सर, यह रिपोर्ट है. हमने एक्सपर्ट्स लगाकर स्टडी करवाया तो पता चला कि पिछले वर्षों में देश में गायें ज्यादा कटने लगी हैं. वे अब कटकर एक्सपोर्ट्स होने के काम आती हैं. शायद गोबर की कमी इसीलिए हो रही है."

मंत्री जी बोले; "लेकिन हमारे यहाँ भैंस भी तो पायी जाती हैं. वे भी तो गोबर करती होंगी."

सचिव जी को पता था कि मंत्री जी ऐसा सवाल कर सकते हैं. वे इस सवाल के लिए तैयार थे. उन्होंने बताया; "सर, भैंस गोबर तो करती हैं लेकिन देश के लोग़ उस गोबर से उपले बनना ज्यादा ज़रूरी समझते हैं. और फिर सर, परिवार बड़े-बड़े होते हैं. एक परिवार में एक ही भैंस है. कई बार तो ऐसा देखा गया है कि एक ही भैंस का गोबर परिवार में चार भागों में बट जाता है. चारों लोग़ उस गोबर से उपले बनाते हैं जो जलाने के काम आता है."

मंत्री जी बोले; "और बैल? बैल भी तो गोबर करते होंगे? क्या बैलों ने गोबर करना छोड़ दिया है?"

सचिव जी इस अप्रत्याशित सवाल के लिए तैयार नहीं थे. कुछ क्षणों के लिए खुद को संभाला और बोले; "सर, देखा जाय तो बैल और करते ही क्या हैं? बैल गोबर ही तो करते हैं. लेकिन सर बैलों की संख्या भी तो घट गई है. वैसे सर, यहाँ एक समस्या और भी है कि भैंस तो एक जगह बंधी रहती है लेकिन बैल इधर-उधर आता-जाता रहता है. वह घूम-घूम कर गोबर करता है. ऐसे में लोग उसका पूरा गोबर इकठ्ठा नहीं कर पाते."

मंत्री जी भी शायद सोच में और डूब जाने के लिए तैयार नहीं थे. लिहाजा उन्होंने अपनी म्यान से एक और सवाल निकाला. बोले; "लेकिन बैल क्यों कम हो गए? क्या उन्हें अब भारतवर्ष पसंद नहीं आता?"

सचिव जी ने भी अपनी म्यान से जवाब निकाला. बोले; "सर, देखा जाय तो बैलों को हमेशा से ही भारतवर्ष पसंद रहा है. यहाँ समस्या यह है कि अब भारतवर्ष को बैल रास नहीं आते."

मंत्री जी ने पूछा; "क्यों? ऐसा क्यों? अगर भारतवर्ष को बैल रास नहीं आते तो फिर बैलों की जगह किसने ली?"

सचिव जी को पता था कि मंत्री जी यह ज़रूर पूछेंगे. वे बोले; "सर, अब बैलों की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है."

मंत्री जी के लिए यह सूचना नई टाइप लगी. बोले; "क्या बात करते हैं आप? जो काम बैल कर सकता है क्या वे सारे काम ट्रैक्टर करने लगे हैं?"

सचिव जी बोले; "ट्रैक्टर लगभग सारे काम कर सकता है, बस गोबर नहीं कर सकता. वैसे सर, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि अपने मंत्रालय के टारगेट अचीव करने के लिए हम वाणिज्य मंत्रालय से कहें कि गायें कम काटी जायें. गायों को काटकर उन्हें एक्सपोर्ट्स करने का नया लाइसेंस न दिया जाय?"

मंत्री जी बोले; "लेकिन ऐसा करने से तो लफड़ा हो जाएगा. क्लैश ऑफ इंटरेस्ट की बात उभर कर सामने आ जायेगी. अभी तक हमारी मिनिस्ट्री इस झमेले से दूर थी लेकिन वह भी इसमें पड़ जायेगी तो मीडिया वालों को एक और बहाना मिल जाएगा हमारी सरकार के खिलाफ लिखने का. वैसे क्या ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिससे गोबर मैन्यूफैक्चर किया जा सके?"

सचिव जी इस सवाल के लिए तैयार नहीं थे. उनके मन में एक बार तो आया कि कह दें कि; "सर देखा जाय तो हम और कर ही क्या रहे हैं? सब मिलकर गोबर मैन्यूफैक्चरिंग ही तो कर रहे हैं." फिर उन्हें लगा कि यह कहना ठीक नहीं होगा. लिहाजा उन्होंने मंत्री जी से कहा; "सर, अगर केवल इसलिए गोबर मैन्यूफैक्चर करना है कि उसकी गैस बनाई जाय तो फिर हम किसी समुद्र में सीधा-सीधा गैस ही खोज लें."

उनकी बात से मंत्री जी प्रभावित नहीं हुए. बोले; "लेट अस स्टिक टू आर प्रॉब्लम. समुद्र में गैस खोजना तो पेट्रोलियम मिनिस्ट्री का काम है. हमें गोबर गैस के बारे में सोचना है. आप केवल यह बताएं कि गोबर मैन्यूफैक्चर करने की कोई तकनीक है या नहीं?"

सचिव जी बोले; "सर, किस चीज को मैन्यूफैक्चर नहीं किया जा सकता? और खासकर सरकार तो कुछ भी मैन्यूफैक्चर कर सकती है."

सचिव जी की बात सुनकर मंत्री जी ने सरकार के टैलेंट की मन ही मन सराहना की. फिर सोचनीय मुद्रा बनाते हुए बोले; "वैसे सुना है कि गुड़ से भी गोबर बनाया जाता है. तो क्यों न हम उस तकनीक का इस्तेमाल करें?"

सचिव जी को लगा कि दो मिनट के लिए मंत्री जी की इजाजत लेकर बाहर जायें और हँस लें. फिर उन्हें लगा कि यह संभव नहीं है. वे बोले; "सर, अभी तक तो हम ज्यादातर गुड़ गोबर कर चुके हैं. अब तो गुड़ भी ज्यादा नहीं बचा."

मंत्री जी बोले; "वैसे गोबर मैन्यूफैक्चरिंग की कोई तकनीक है तो उसके बारे में बाद में सोचते हैं. पहले एक बार ट्राई किया जाय और जानवरों की संख्या बढ़ाकर पर्याप्त मात्रा में गोबर उपलब्ध करवाया जाय."

सचिव जी बोले; "लेकिन सर, यह कैसे होगा?"

मंत्री जी के पास शायद पहले से ही कोई प्लान था. बोले; "हम एक योजना की घोषणा करते हैं. योजना का नाम होगा "@#!%&८? राष्ट्रीय गोबर मिशन". एक बार योजना का उद्घाटन हो गया तो फिर अगले बजट में वित्तमंत्री को कहकर इस योजना के लिए करीब पाँच हज़ार करोड़ रुपया निकलवा लूंगा. आप बस योजना के लॉन्च करने के प्लान की घोषणा कीजिये."

सचिव जी ने सोचा कि मंत्री के पास कोई योजना है इसलिए ठीक यही होगा कि उन्ही से पूरी जानकारी ले ली जाय. वे बोले; "सर, आपने जिस तरह से योजना की बात की, उससे लगा कि आपके पास पूरा प्लान है. जब पूरा प्लान है ही तो वो मुझे बता ही दीजिये."

मंत्री जी को सचिव जी की बिना लाग-लपेट वाली बात खूब पसंद आयी. बोले; "तो फिर सुनो. योजना के पहले चरण में हम अपने मंत्रालय से एक सौ साठ करोड़ रुपया देंगे. उसके बाद चार महीने बाद बजट आने वाला है. उस बजट में पाँच
हज़ार करोड़ रुपया निकलवा लेंगे. काम आगे बढ़ेगा. अगले साल के अंत तक मीडिया में रिपोर्ट प्लांट करवाना है कि देश में अचानक गोबर की कमी हो गई है और यह योजना आगे नहीं बढ़ पाएगी. एक बार मीडिया में बात उठ गई और टीवी पर दस-पाँच पैनल डिस्कशन हो गए तो फिर इस गोबर योजना में एफ डी आई की इजाजत ले लेंगे. तुम तो जानते ही हो कि किसी भी उद्योग में एक बार एफ डी आई की ज़रुरत की बात हो जाती है तो उस उद्योग को लोग़ गंभीरता से लेने लगते हैं. ऐसे में आज यह देश के हित में है कि @#!%&८? राष्ट्रीय गोबर मिशन जल्द से जल्द शुरू किया जाय. बस अब काम शुरू करो और इस मिशन के पूरा होने के लिए अपनी जान लड़ा दो. तीन-चार दिन में एक सेमिनार में मुझे इस मिशन की घोषणा.....................

सचिव जी बड़ी तन्मयता से मंत्री जी को सुने जा रहे थे...