Show me an example

Wednesday, March 24, 2010

ईर्ष्या पर वे कहते हैं....




आज प्रवीण पाण्डेय जी ने ईर्ष्या पर एक बढ़िया पोस्ट लिखी. बढ़िया तो वे हर विषय पर लिखते हैं. ईर्ष्या की जगह मसला सत्य या असत्य का होता तो भी वे उतना ही बढ़िया लिखते. कविता का मामला होता तो भी बढ़िया ही लिखते.

ईर्ष्या पर ब्लॉगर बन्धुवों ने टिप्पणी कर दी लेकिन सोचने वाली बात यह है कि दुनियाँ में क्या केवल ब्लॉगर ही रहते हैं? दुनियाँ तो नेता, अभिनेता, क्रिकेट खिलाड़ी, टेनिस खिलाड़ी, बाबा जी लोग, योगी, भोगी, रोगी, निरोगी, आयोगी और न जाने किन-किन से बनी है. जिस दुनियाँ में मनुष्य रहते हैं उसी में शरद पवार भी रहते हैं.

मेरा कहना यह है कि जब इतने सारे लोग रहेंगे तो ईर्ष्या जैसे महत्वपूर्ण विषय पर केवल ब्लॉगर बन्धुवों की टिप्पणी का होना तो सरासर अन्याय है. ऐसे में मैंने तमाम और लोगों की टिप्पणी इकठ्ठा की और उसे छाप रहा हूँ. आप पढ़िए.

बाबा रामदेव (अपने एक शिविर में) : "हे हे हे..मुझसे लोग पूछते हैं बाबाजी, ईर्ष्या क्या है? क्या है ईर्ष्या? चरक-संहिता और पतंजलि योगपीठ...क्षमा कीजिये मेरा मतलब पतंजलि योगदर्शन में लिखा गया है कि ईर्ष्या एक प्रकार का रोग है. तमाम बाबा लोग..खुद को साधू कहने वाले लोग मुझसे बड़ी ईर्ष्या करते हैं कि मैं इतना सफल कैसे हूँ?. परन्तु घबराने की बात नहीं. ईर्ष्या का इलाज है. रोज सुबह-शाम कपालभांति और अनुलोम-विलोम प्राणायाम से ईर्ष्या जैसी गंभीर बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है. हे..हे..बड़ी-बड़ी बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं. ह्रदय रोग, कैंसर जैसी बीमारी ठीक हो जाती है. हे हे ...करो बेटा करो...एक बहन आयी हैं पानीपत से...क्या नाम बताया आपने अपना?...हाँ?.. बहन बिमला...ये पिछले बारह वर्षों से ईर्ष्या की बीमारी से पीड़ित थी लेकिन कपालभांति और अनुलोम-विलोम से...कितना बताया बहन तुमने...कितना? बाईस किलो...हे हे ..बाईस किलो ईर्ष्या कम हुई है इनकी...हाँ.. करो बेटा..करो."

सुश्री मायावती : " .....हमारी सरकार के ऊपर आरोप लग रहे हैं. पहले केवल मनुवादी आरोप लगाते थे प्रंतु अब कांगरेस भी ऐसा कर रही है. ये सब लोग बहुजन समाज से ईर्ष्या करते हैं. मुझसे ईर्ष्या करते हैं. अब तो इस बात से भी ईर्ष्या कर रहे हैं कि मुझे बहुजन समाज रुपयों की माला पहना रहा है. उधर बाबा जी लोग हैं. पहले कसरत कराते थे अब ईर्ष्या करते हैं. राजनीति में आना चाहते हैं. बहुजन समाज की बढ़ती ताकत का असर ईर्ष्या के रूप में उभर कर....."

लालू जी : " भक्क..हट्ट..ई ईर्ष्या भी कोई करने का चीज है. करना है तो विरोध करो. नीतीश का विरोध करो..सब फ्रिकापरस्त..फासिस्ट ताकतों का विरोध करो..आई हैव टेकेन ओथ..का लिया? ओथ लिया है कि हमसब सेकुलर ताकत मिलके ई ईर्ष्या करने वालों को शासन में नहीं आने देना है...का कहा? ममता सेकुलर है? भक्क...जिसको रेलवे चलाने नहीं आता ऊ का सेकुलर होगी?"

शरद पवार : "मंहगाई बढ़ने का सबसे बड़ा कारण मीडिया द्वारा फैलाई गयी ईर्ष्या है...मीडिया की वजह से पिछले तीन-चार महीने में इतनी ईर्ष्या फ़ैल गई कि चीनी, तेल, दाल...ये सब मंहगा हो गया. अगर ईर्ष्या इसी तरह से फैलती रही तो अगले पंद्रह दिन में दूध मंहगा हो जाएगा. आशा है रवी की फसल में ईर्ष्या की पैदावार कम होगी और मंहगाई घटेगी.."

प्रणब मुखर्जी : " आल दो ईट इज नॉट गूड फॉर द इकोनोमी बाट कुटिल्लो (इनका मतलब कौटिल्य से है) हैड सेड दैट बाई बीइंग जीलोस ऑफ़ साम उवान इयु डू साम गूड फॉर इयोर सेल्फ.. एंड इफ सेल्फ इज गूड, कोंट्री उविल आलवेज बी गूड.."

सचिन तेंदुलकर : " कोई जब तक ईर्ष्या करना एन्जॉय कर सकता है, उसे करते रहना चाहिए..."

नारायण दत्त तिवारी : " ईर्ष्या ही तो मुख्य कारण बनी मुझे राजभवन से निकालने का. नौजवान मुझसे ईर्ष्या करने लगे थे.मैंने सुना है कांग्रेस पार्टी में नौजवानों की बड़ी सुनवाई होती है. लेकिन मेरा कहना यही है कि ईर्ष्या जितनी कम की जाय मेरे लिए उतनी ही अच्छी."

शशि थरूर : " आधे से ज्यादा भारत अंग्रेजी के मेरे ज्ञान की वजह से मुझसे ईर्ष्या करता है. जिनलोगों को इंटरलोक्यूटर का मतलब मुझे चार बार समझाना पड़े, वे तो मुझसे ईर्ष्या करेंगे ही. एक तो मेरे अंग्रेजी ज्ञान की वजह से और दूसरे अपने नासमझी की वजह से. वैसे ईर्ष्या भी दो तरह की होती है. कैटेल क्लास ईर्ष्या और होली काऊ ईर्ष्या.."

अटल बिहारी बाजपेयी जी : " ये अच्छी बात नहीं है. ईर्ष्या करना अच्छी बात नहीं. वैसे इस बात पर राय लेने के लिए आप अगर आडवानी जी के पास जाते तो वे आपको और अच्छी तरह से बताते. याद आया. मैंने ईर्ष्या पर एक कविता लिखी थी जब मै बीए का विद्यार्थी था. कविता कुछ यूं थी;

ईर्ष्या तू बैठी हैं मन में
इधर-उधर दिन भर करती है
नए रंग मन में भरती है
नहीं दिखी बचपन में
ईर्ष्या तू बैठी है मन में

मन विचलित है तेरे कारण
नहीं दीखता कोई निवारण
कभी-कभी ये सोचा करता
जा भटकूँ अब वन में
ईर्ष्या तू बैठी है मन में

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प्रधानमंत्री जी : " मुझे उन लोगों से ईर्ष्या होती है जिनके पास पोस्ट के साथ-साथ पॉवर भी है. जैसे जब भी मैं ओबामा साहब को देखता हूँ मुझे......"

चन्दन सिंह हाठी सेल्स मैनेजर गंगोत्री यन्त्र प्रतिष्ठान, हरिद्वार : "ईर्ष्या आज से नहीं बल्कि सदियों से लोगों के दुख का कारण बनी है. लेकिन अब चिंता की बात नहीं क्योंकि हमारे संस्थान ने ईर्ष्या 'स्टापर' यन्त्र बनाया है जो दूसरों की आपके प्रति ईर्ष्या को आपके शरीर को छूने नहीं देता. इस यन्त्र के इस्तेमाल से आप हमेशा ईर्ष्या की किरणों से अपनी रक्षा कर सकेंगे. हमारे संस्थान ने खोज की है कि ईर्ष्या की किरणें सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से भी ज्यादा खतरनाक होती हैं. जल्द ही आर्डर करें. याद रखें इस यन्त्र की सहायता से आप न सिर्फ दूसरों की ईर्ष्या से बच सकेंगे बल्कि आपकी दूसरों के प्रति ईर्ष्या में भयंकर वृद्धि होगी. जल्द ही आर्डर करें और सरप्राइज गिफ्ट का लाभ उठाएं."

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नोट: बाकी के बयान थोड़ी देर में टाइप करता हूँ. आपके पास भी कोई बयान हो टिप्पणी में लिख दीजिये.

Monday, March 15, 2010

बुदबुदाहट




कल सुबह आफिस आते हुए उन्हें देखा. वे सामने से चली आ रही थीं. जब उनपर नज़र पड़ी उस समय वे एक बैंक के एटीएम के ठीक सामने से गुज़र रही थीं. मैंने देखा कि अचानक वे शरमा गईं. मुझे लगा कहीं एटीएम मशीन देखकर तो नहीं शरमा गईं? लेकिन फिर सोचा कि एटीएम मशीन किसी के शरमाने का कारण क्यों बनेगी भला?

फिर तुरंत ही मन में ख़याल आया कि शायद कोई पुरानी बात याद करके उन्हें शरम आ गई होगी. अक्सर ऐसा होता है कि जिस बात पर हम मौक़ा-ए-वारदात पर नहीं शरमा पाते उस पर आनेवाले दिनों में कई बार शरमा लेते हैं. लेकिन मेरा यह ख़याल तब जाता रहा जब मैंने देखा कि चलते-चलते ही वे बुदबुदा रही थीं. ध्यान से देखने पर मामला समझ में आया. दरअसल सेल फ़ोन पर बात कर रही थीं. सेलफ़ोन का एक सपोर्टिंग यन्त्र कान से चिपका हुआ था और दूसरा मुंह के पास था.

अब तक समझ में आ गया था कि वे किसी के साथ बात करते हुए शरमाने का काम कर रही थीं.

चलते-चलते सेल फ़ोन पर बात करना कई बार बहुत कन्फ्यूजन क्रीयेट करता है. कहीं सिग्नल पर आपकी गाड़ी रुकी रहे. दायें-बायें नज़र दौड़ाइए. आते-जाते कोई न कोई बुदबुदाता हुआ नज़र आएगा.

कई बार ये बुदबुदाहट सामने चल रहे आदमी को डायरेक्शन देती सी प्रतीत होती है. जैसे कह रही हो; "हाँ, अब दो इंच दायें हो जाओ..... हाँ, अब अपनी चाल पांच सौ मीटर प्रति घंटा के हिसाब से बढ़ा लो..... अब दायें देखो."

इसी तरह सामने से भी कोई बुदबुदाता हुआ आते हुए दिखाई दे सकता है. सामने वाला करीब आ गया तो "जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो-शाम" पर मन ही मन अपना गला आजमाने वाला आदमी झिझक कर रुक जाता है.

एकबार के लिए लग सकता है जैसे सामने से आ रहे आदमी ने भी अपनी बुदबुदाहट में डायरेक्शन दे दिया है कि; "दो सेकंड के लिए रुक जा बे" और चलने वाला ठिठक कर खड़ा हो जाता है.

विकट नज़ारा होता है. देखकर लगता है जैसे हर आने-जाने वाला नेशनल बुदबुदाहट डे मना रहा हैं.

सड़क पर, पार्क में, बस में, कार में, ट्रेन में, यहाँ तक कि क्रिकेट के मैदान में फील्डिंग कर रहा फील्डर भी इसी बुदबुदाहट का शिकार है. देखकर लगता है कितना कुछ है सबके पास कहने के लिए. बस सुननेवाला चाहिए. वैसे ही कभी-कभी यह भी लगता है कि कितना कुछ है लोगों के पास सुनने के लिए, बस कहने वाला चाहिए.

ये कहने और सुनने वाले मिले नहीं कि बुदबुदाहट शुरू.

अगर बुदबुदाहट को बटखरे से तौलने का कोई सिस्टम हो तो पता चलेगा कि लोग डेली कम से कम ग्यारह किलो बुदबुदाहट किसी और को समर्पित कर दे रहे हैं. समर्पण की यह भावना ऐसी है कि आपको लगेगा कि बुदबुदाने वाला किसी न किसी के कान में अपनी पूरी लाइफ स्टोरी स्टोर कर चुका है लेकिन उसी इंसान के बारे में अचानक ऐसा कुछ सुनाई देगा कि सुनकर आप कहेंगे; "अरे ये ऐसा था? हमने तो कभी सोचा ही नहीं."

आते-जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पर नज़र डालिए सेलफ़ोन ने तमाम लोगों को अपने रूप के जाल में फंसा रखा है. अपना उपयोग करवा ले रहा है. लोग उपयोग करके धन्य हो ले रहे हैं.

टैक्सी चलाते-चलाते टैक्सी ड्राईवर फोन पर बुदबुदाता जा रहा है. ट्रैफिक के नियम की ऐसी की तैसी. कौन पुलिस वाला धरेगा? लगता है जैसे इस बुदबुदाहट की वजह से ही देश का जीडीपी बढ़ेगा. खुशहाली आएगी. टैक्सी ड्राईवर टेलीकम्यूनिकेशन के अर्थशास्त्र को पूरी तरह समझता है और मंदी के दौर में अपनी कंपनी को राहत पॅकेज दे रहा है. लायल्टी की अद्भुत मिसाल.

अपने टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर को उबारने का काम केवल टैक्सी ड्राईवर ने अपने कंधे पर ले रखा है, ऐसा नहीं है. कह सकते हैं किसने नहीं ले रखा? यहाँ तक कि स्कूली बच्चों ने अपने-अपने टेलिकॉम सर्विस कंपनी को उबारने की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठा रखी है. रोज सुबह आफिस आते हुए एक स्कूल के सामने से गुजरना होता है. लगभग हर छात्र अपनी-अपनी टेलिकॉम कंपनी को उबारने में लगा रहता है.

एक-एक आदमी के पास दो-तीन सिम कार्ड हैं. पता नहीं कितनी बात है जो एक सिम कार्ड में ख़तम नहीं होती.

लेजरथेरपी के लिए मैं एक डॉक्टर साहब के पास जाता था. एक दिन वहां एक महिला की तबियत अचानक खराब हो गई. जब उनसे उनके घर का फ़ोन नंबर पूछा गया तो वे बता ही नहीं पाई. बोली; "बच्चों के पास तीन सिम कार्ड है. अदल-बदल कर फ़ोन में लगाते रहते हैं. इसलिए मुझे याद नहीं है."

दो बच्चे हैं उनके और दोनों अभी पढ़ते हैं. सोचकर लगता है जैसे सारी पढ़ाई सिमकार्ड पर ही होती है. सबकुछ गड्डमड्ड है.

सेलफ़ोन का ऐसा विकट इस्तेमाल क्या सिर्फ अपने देश में है?

वारबर्ग पिंकस ने नब्बे के दशक में भारती एयरटेल को प्राइवेट इक्विटी के जरिये फिनांस किया था. कहते हैं अपने शेयर बेंचकर उन्होंने जितना पैसा कमाया उतना भारती एयरटेल का अभी तक का प्रोफिट नहीं है. हमलोग कई बार मज़ाक में कहते हैं भारती एयरटेल के अफसरों ने जब प्रोजेक्ट फिनांस के लिए अपना प्रजेंटेशन दिया होगा उस समय उन्हें यही बताया होगा कि; "हमारे देश में जिन्हें सेलफ़ोन की ज़रुरत है, आप उनकी संख्या पर मत जाइए. आप उनकी संख्या पर जाइए जिन्हें उसकी ज़रुरत नहीं है. हम सबसे ज्यादा रेवेन्यू उनलोगों से एक्स्पेक्ट कर रहे हैं."

इतना विकट इस्तेमाल...इतनी बुदबुदाहट...इतनी बातें. फिर भी लोगों को शिकायत है कि दूरियां बढ़ती जा रही हैं.

Tuesday, March 9, 2010

और रत्नाकर का ह्रदय परिवर्तन हो गया.




कई दिनों से रत्नाकर बहुत टेंशनग्रस्त थे. एक साल से ज्यादा का समय बीत गया था लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक उनके ह्रदय परिवर्तन का काम पेंडिंग था. ह्रदय परिवर्तन की आस में वे अब तक कुल बहत्तर डकैती, चालीस मर्डर और अस्सी राहजनी की वारदात परफार्म कर चुके थे परन्तु इतना सबकुछ करने के बावजूद अभी तक वह घडी नहीं आई थी जब उन्हें लगता कि ह्रदय परिवर्तन के दिन सामने ही हैं.

कलियुग में जन्म लेकर उन्होंने अपने त्रेता युग वाले अवतार के बारे में खूब सुन रखा था. तमाम कथाओं में वर्णित त्रेता युग में हुए अपने ह्रदय परिवर्तन की घटना से वे वाकिफ थे. अब इसे विधि का विधान कहें या संयोग की कमी जिसकी वजह से कलियुग में अब तक उनका ह्रदय परिवर्तन नहीं हुआ था. शायद इसकी वजह से वे अपने ऊपर बहुत प्रेशर फील कर रहे थे. इस प्रेशर का ही असर था कि उन्होंने राहजनी वगैरह की घटनाओं में पिछले पंद्रह दिनों में करीब बीस परसेंट की बढ़ोतरी कर ली थी.

अभी पिछले हफ्ते की ही बात है. रात नौ बजे अपने आफिस से लौट रहे एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर को अकेला पाकर रत्नाकर ने उसकी पीठ पर चाकू टिका दिया. बोले; "जो कुछ भी हो, मेरे हवाले कर दो. अगर नहीं दिया तो चाकू घुसा दूंगा."

सॉफ्टवेयर इंजिनियर बहुत सॉफ्ट निकला. बड़े आराम से उसने अपना पर्स, घड़ी, और सिगरेट का पैकेट रत्नाकर जी के हवाले करते हुए बोला; "जो कुछ है, बस यही है. ले लो. मैं कल अपने लिए नया पर्स और नई घड़ी ले लूंगा. सिगरेट न रहने की वजह से रात में परेशानी तो होगी लेकिन काम चला लूंगा."

सॉफ्टवेयर इंजिनियर के चले जाने के बाद रत्नाकर ने अपना माथा ठोक लिया. कहाँ वे सोच रहे थे कि शायद आज वह घड़ी आ गई है जब ये आदमी उन्हें धिक्कारेगा. पूछेगा कि; "यह पाप जो तुम कर रहे हो, उसके लिए केवल तुम्हीं जिम्मेदार रहोगे या तुम्हारे घर वाले भी? तुम पाप अकेले भोगोगे या साथ में तुम्हारे घर वाले भी इस पाप के भागीदार होंगे?"

लेकिन जब ऐसा कुछ नहीं हुआ तो मुंह लटकाए घर चले गए. एक बार मन में आया कि अपना दुःख अपनी अम्मा से कह दें. उन्हें बता दें कि; "अम्मा आज भी बड़ी आशा थी कि जिसे लूटूँगा वह मुझे धिक्कारेगा लेकिन आज भी ऐसा नहीं हुआ."

उनके मन में आया कि अगर वे ऐसा कह देंगे तो अम्मा उन्हें कलेजे से लगा कर कहेगी; "मेरे बेटे, मेरे लाल, तू चिंता मत कर. केवल अपना कर्म करता जा, कोई न कोई एक दिन ज़रूर मिलेगा जो तुझे धिक्कारेगा और उस दिन तेरा ह्रदय परिवर्तन होकर रहेगा."

यही सोचते-सोचते उन्हें नींद आ गई. सुबह जब सोकर उठे तो एक बार फिर नए दिन की शुरुआत के साथ नया संकल्प लिया. संकल्प लिया कि; आज फिर से रात में किसी को लूट लेना है. शायद आज कोई मिल जाए जो मुझे धिक्कारेगा. उसकी धिक्कार सुनकर मैं अम्मा के पास जाऊंगा. अम्मा मेरी बात सुनकर पाप का भागीदार होने से मना कर देगी. उसके ऐसा करने से मेरा ह्रदय परिवर्तन होने का चांस रहेगा.

दिन भर रत्नाकर बाबू रात में राहजनी करने के बारे में सोचते रहे.

शाम को चाकू-छुरे से लैस घर से निकल गए. चलते-चलते सोचा आज बाज़ार की तरफ जाने वाले रास्ते पर किसी को लूट लेना है. करीब साढ़े नौ बजे सामने झाड़ियों की ओट से उन्होंने देखा कि कोई मोटा आदमी चला आ रहा है. जैसे ही वह आदमी झाड़ियों के पास आया, रत्नाकर झाड़ी के पीछे से कूद कर निकले और छुरा उस आदमी के पीठ पर टिकाते हुए अपना डायलाग दे मारा. बोले; "जो कुछ भी हो, मेरे हवाले कर दो. अगर नहीं दिया तो चाकू घुसा दूंगा."

उनका इतना कहना था कि वह आदमी बोला; "अरे रत्नाकर तुम हो?"

आवाज़ सुनकर उन्हें पता चल चुका था कि ये तो सेठ जीवन लाल हैं. नगर के प्रसिद्द सोना-चाँदी व्यापारी.

रत्नाकर से सेठ जीवन लाल की पुरानी जान-पहचान थी. असल में सेठ जी के यहाँ ही रत्नाकर बाबू लूटा हुआ माल वगैरह बेंचा करते थे. सेठ जी आधे दाम में गहने वगैरह खरीद लिया करते थे. जिन चीजों में वे डील नहीं करते थे, उसे भी सेवेंटी परसेंट डिस्काउंट में खरीद लेते थे.

रत्नाकर को जैसे ही लगा कि सेठ जी ने उसे पहचान लिया, बेचारा दुखी हो गया. सोचने लगा कि ये सेठ तो खुद मुझसे चोरी का माल खरीदता है. ये मुझे क्या धिक्कारेगा? अभी वह सोच ही रहा था कि सेठ जी बोले; "हा हा हा अरे भैया मुझे ही मार दोगे तो डकैती का माल कहाँ बेचोगे?"

इतना कहकर सेठ जी वहां से चल दिए.

हताश रत्नाकर दोनों हाथों से सिर पकड़कर वहीँ बैठ गया. एक बार के लिए उसे लगा कि कलियुग में शायद उसका ह्रदय परिवर्तन नहीं होनेवाला. इतनी कोशिश कर ली लेकिन एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला जो उसे धिक्कारे. जो उससे पूछे कि जो पाप वो कर रहा है उसका भागीदार उसके परिवार वाले भी होंगे या नहीं? सोचते-सोचते अचानक वह उठ खड़ा हुआ. उसने निश्चय किया कि वो एक बार फिर से ट्राई करेगा. आखिर कोई न कोई तो मिलेगा ही जो उसे धिक्कारेगा.

कहते हैं दृढ़ निश्चय से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं. जिसने भी यह कहा है, उसे शायद मालूम नहीं कि कभी-कभी दृढ़ निश्चय से हताशा की बेड़ियाँ भी कटती हैं. रत्नाकर खड़ा हुआ और फिर से किसी पथिक का इंतज़ार करने लगा. करीब साढ़े दस बजे उसे अँधेरे में एक पथिक आता हुआ दिखाई दिया. बड़ी आशा से भरे रत्नाकर ने पास आते ही उसपर छुरा तान दिया. छुरा लगाकर जैसे ही वह अपना डायलाग बोलने वाला था, उसे पता चला कि ये तो मास्टर मोतीराम थे.

उसे पक्का विश्वास हो गया कि ये मास्टर जरूर उसे धिक्कारेगा. अपनी सोच पर विश्वास किये और आस लगाये वह कुछ कहने ही वाला था कि मास्टर मोतीराम बोल पड़े; "जो तुम कर रहे हो, वह पाप है. एक बात बताओ, ये जो तुम करते हो, इससे घर वालों का भी खर्चा चलाते हो क्या? और अगर ऐसा है तो फिर पाप की सजा केवल तुम्हें मिलेगी या घर वाले भी इस पाप के भागीदार होंगे?"

मास्टर जी की बात सुनकर रत्नाकर की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. मास्टर मोतीराम को छोड़कर वो दौड़ता हुआ सीधा अपने घर पहुंचा. घर के बाहर से ही अपनी अम्मा को आवाज़ देता घर में घुसा.

उसकी आवाज़ सुनकर जैसे ही अम्मा जी उसके पास आईं उसने सवाल दाग दिया. बोला; "अम्मा एक बात बताओ. ये लूट-पाट करके मैं जो घर में ले आता हूँ और उसकी वजह से जो पाप मेरे ऊपर चढ़ता है, उसके भागीदार तुमलोग भी होवोगे या सारा का सारा पाप मैं खुद ही झेलूँगा?"

उसकी बात सुनकर अम्मा बोलीं; "कैसी बात करता है पगले? आफकोर्स इस लूट-पाट से उपजे पाप के भागीदार हमलोग भी होंगे. जब सजा मिलेगी तो हम भी तुम्हारे साथ जेल जायेंगे. अरे बेटा, तू ये क्यों सोचता है कि हम तुम्हारा साथ नहीं देंगे? तैरेंगे तो एक साथ और डूबेंगे तो एक साथ. तुझे पता नहीं लेकिन यही माडर्न सिद्धांत है."

अम्मा जी की बात सुनकर रत्नाकर के होश उड़ गए.

सोचने लगा कि बाहर वालों की वजह से ह्रदय परिवर्तन का काम ठप पड़ा था लेकिन अब घर वालों की वजह से भी नहीं हो सकेगा? आज इतने महीनों की तपस्या के बाद किसी ने धिक्कारा भी तो भी कुछ नहीं हुआ. ये अम्मा जी ने सबकुछ चौपट कर दिया.

उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? उसे ह्रदय परिवर्तन की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही थी. इतना दुखी हो गया कि रात का भोजन भी नहीं किया. बिस्तर पर लेट तो गया लेकिन आँखों में नींद का नाम-ओ-निशान न था.

सुबह मुंह लटका कर उठा. हाथ-मुंह धोकर चाय पीते-पीते अखबार देखने लगा. अचानक उसकी नज़र एक पुलिस अफसर से सम्बंधित खबर पर पड़ी. दरअसल पुलिस अफसर के ऊपर आरोप था कि उसने एक स्कूली छात्रा के साथ छेड़-छाड़ की जिसकी वजह से उस छात्रा ने आत्महत्या कर ली. कई वर्षों बाद कुछ लोगों के प्रयास की वजह से मामला वापस कोर्ट में खुला था. लेकिन आज जो खबर छपी थी उसके हिसाब से पुलिस अफसर ने खुद ही कोर्ट से दरखास्त की थी कि उसका नार्को टेस्ट किया जाय.

रत्नाकर इस खबर को पढ़कर हतप्रभ था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जहाँ लोग नार्को टेस्ट होने नहीं देना चाहते वहां यह पुलिस अफसर खुद ही नार्को टेस्ट के लिए अर्जी दे रहा है. इस खबर ने रत्नाकर को संबल दिया. उसे लगा कि अगर इस पुलिस अफसर का ह्रदय परिवर्तन हो सकता है तो एक न एक दिन ज़रूर ऐसा कुछ होगा जिससे रत्नाकर को अपने ह्रदय परिवर्तन का चांस मिलेगा.

यही सोचते हुए उसने फिर संकल्प लिया कि आज रात फिर वो किसी को लूट लेगा.

रात को फिर से छुरे से लैस घर से निकला. एक जगह उसे कोई आता दिखाई दिया. जैसे ही वो आदमी पास पहुंचा रत्नाकर ने अपना छुरा उस आदमी की कमर पर रख दिया. जैसे ही उस आदमी को एहसास हुआ कि किसी ने उसे चाकू की नोंक पर ले लिया है वैसे ही वो बोल पड़ा; " इतना हट्टा-कट्टा होकर राहजनी करता है? हाँ? अरे देश के लिए कुछ करो. दलितों के लिए कुछ करो. गरीब के लिए कुछ करो. देखता नै है कैसे हमारा आदवासी भाई सब, अल्पसंख्यक भाई सब पिछड़ा रह गया. उनके लिए तुम जैसा हट्टा-कट्टा कुछ नै करेगा त कौन करेगा? तुम्हरा देश के परति कुछ कर्त्तव्य है कि नहीं? आ सुनो, ये काम सब छोड़ो और देश सेवा करो."

रत्नाकर को लगा जैसे उस आदमी की बातें सीधा उसके दिल में घुस गईं. उसके दिल में कुछ-कुछ होने लगा. उसे लगने लगा कि उसके ह्रदय परिवर्तन का समय आ गया है.

अचानक रत्नाकर उस आदमी के चरणों पर गिर गया. बोला; "मुझे विश्वास था एक दिन मेरा ह्रदय परिवर्तन ज़रूर होगा. आपने मुझे दर्शन देकर वैसे ही तार दिया जैसे श्राप-ग्रस्त पत्थर बनी अहिल्या को छूकर श्रीराम ने तार दिया था. हे दयानिधान, आप मुझे रास्ता दिखायें. मुझे अपनी शरण में लें और बताएं कि मुझे क्या करना है? मैं आपके साथ मिलकर इस देश की सेवा करना चाहता हूँ.अपने आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के भाइयों की सेवा....आपके मार्गदर्शन में मैं समाज के दबे-कुचले वर्ग की...."

रात के सन्नाटे में रत्नाकर देश-सेवक के साथ उसके घर की तरफ चला जा रहा था. उसका ह्रदय परिवर्तन हो चुका था.