दुर्योधन की डायरी - पेज २८८९
कल शाम को पार्टी में पता चला कि मंहगाई बढ़ गई है. अब ऐसी बातें अगर पार्टी में सुनने को मिलें तो बीयर का स्वाद ख़राब होगा ही. मुंह का स्वाद तो ऐसा ख़राब हुआ कि कबाब से भी नहीं सुधरा. हुआ ये कि पार्टी में खाना बनाने के लिए जिस कैटरर को बुलाया गया था उसने पार्टीबाज मेहमानों के खाने का दाम प्रति प्लेट बढ़ा दिया. अब बढ़ा दिया तो बढ़ा दिया. हमें क्या फरक पड़ता है? लेकिन दु:शासन ने नादानी कर दी. उसने उस कैटरर से झगड़ा कर लिया. वैसे कैटरर की भी क्या गलती है? बेचारा मंहगाई की मार कितनी सहेगा?
खैर, मैंने दु:शासन को समझाया. तब जाकर मामला शांत हुआ. उसे अलग तरीके से समझाना पडा. अब है तो नादान ही. एक बार भी उसने नहीं सोचा कि अगर ये बात बाहर चली गई कि हम राजघराने के लोग भी मंहगाई से पीड़ित हैं तो कितनी बेइज्जती होगी.
मामाश्री से मंहगाई का कारण पूछा तो पता चला कि स्वर्णमुद्रा की कीमत कम हो गई है. लेकिन यहाँ थोड़ा कन्फ्यूजन है. जहाँ एक तरफ़ तो स्वर्ण की कीमतें बढ़ गई हैं वहीं दूसरी तरफ़ मुद्रा की कीमत घट गई है. मामला कुछ समझ में नहीं आ रहा.
वैसे मेरी समझ में क्या आएगा जब अर्थशास्त्रियों की समझ से बाहर है. इतनी-इतनी तनख्वाह मिलती है इन अर्थशास्त्रियों को. लेकिन ये अपना काम ठीक से नहीं कर सकते. ये अर्थव्यवस्था के बारे में जो भी बोलते हैं, उसका उलटा होता है. इससे अच्छा होता कि मौसम वैज्ञानिकों के हाथ में ही अर्थव्यवस्था दे दी जाती. मौसम विज्ञानी भी मौसम के बारे में जो कुछ भी बोलते हैं, वो भी कभी नहीं होता. सोचता हूँ कुछ दिनों के लिए अर्थशास्त्रियों को मौसम विभाग में और मौसम वैज्ञानिकों को अर्थ विभाग में शिफ्ट कर दूँ. आख़िर बात तो एक ही है.
खैर, अगले साल विदुर चचा से कहकर ऐसा ही करवा दूँगा. कल अर्थशास्त्रियों की बैठक है. देखता हूँ क्या होता है.
दुर्योधन की डायरी - पेज २८९०
अभी-अभी अर्थशास्त्रियों की बैठक से आया हूँ. मंहगाई की समस्या तो वाकई बहुत बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है. लेकिन इससे भी बड़ी समस्या है अर्थशास्त्रियों को समझना. जितने अर्थशास्त्री आए थे सब मंहगाई का अलग-अलग कारण बता रहे थे. कुछ कह रहे थे कि ब्याज दरों के कम होने से ऐसा हो रहा है क्योंकि प्रजा के हाथ में बहुत ज्यादा पैसा आ गया है और वे मनमाने ढंग से चीजों के दाम दे रहे हैं. कुछ का कहना है कि ये समस्या केवल हस्तिनापुर की समस्या नहीं है. पड़ोसी राज्यों में भी ये समस्या है. कुछ कह रहे थे कि पड़ोसी राज्यों में तो क्या सारे ब्रह्माण्ड में यही समस्या है.
एक अर्थशास्त्री तो यहाँ तक कह रहा था कि केशव ने भी आजकल दूध का सेवन बंद कर दिया है क्योंकि दूध बहुत मंहगा हो गया है. कुछ का कहना था कि भगवान शिव ने भी आजकल फल खाना कम कर दिया है. पहले जब भगवान् शिव को चीजें मंहगी लगती थीं तो वे बीजिंग से सस्ती चीजें इंपोर्ट कर लेते थे लेकिन अब वहां भी चीजें सस्ती नहीं रही. लिहाजा भगवान शिव ने भी आजकल बीजिंग से चीजें मगनी बंद कर दी हैं.
मीटिंग तो क्या थी, सारे अर्थशास्त्री हंसने का उपक्रम कर रहे थे.
एक अर्थशास्त्री, जिसका चश्मा बहुत मोटे ग्लास का था, और जिसे देखने से लग रहा था कि उसने काफ़ी अध्ययन किया है, उसने बताया कि समस्या और कहीं है. चूंकि उसकी बातें ज्यादा नहीं सुनी जाती इसलिए उसकी बात पर किसी ने कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया. लेकिन मुझे लगा कि शायद इसके पास कोई ठोस कारण है, सो मैंने उससे पूछ लिया कि असली समस्या क्या है?
उसने बताया कि खाने के समान सही समय पर सही जगह नहीं पहुँच रहे हैं. सड़कों की हालत ठीक नहीं है. जो ट्रक खाने का समान लेकर अपने गंतव्य स्थल पर दो दिन में पहुंचता था उसी ट्रक को अब चार दिन लग रहे हैं. उसका कहना था कि बुनियादी सेवाओं को सुधारने के लिए राजमहल ने कुछ नहीं किया.
कुछ अर्थशास्त्रियों का अनुमान था कि अनाज और खाने के सामानों की भारी मात्रा में जमाखोरी हुई है. अब जमाखोरों के ख़िलाफ़ कार्यवाई भी तो नहीं कर सकते. मेरे ही कहने पर दु:शासन और जयद्रथ ने इन जमाखोर व्यापारियों से काफी मात्रा में पैसा वसूल कर रखा है. अब ऐसे में जमाखोर व्यापारियों के ख़िलाफ़ कार्यवाई करना तो ठीक नहीं होगा. उधर मंहगाई की मार से परेशान जनता रो रही है.
वैसे हमें मालूम है कि कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जनता को दिखाना तो पड़ेगा ही कि हम मंहगाई रोकने के लिए सबकुछ कर रहे हैं.
इसलिए मैंने तीन कदम उठाने का फैसला किया है.पहला, व्याज दरों में बढोतरी कर दी जायेगी. दूसरा प्रजा को सस्ते अनाज उपलब्ध कराने के तरीकों की खोज के बारे में सुझाव देने के लिए एक कमिटी का गठन किया जायेगा. तीसरा; कुछ जमाखोर व्यापारियों पर छापे की नौटंकी खेलनी पड़ेगी. छापे मारने का काम सबसे अंत में होगा. और तब तक नहीं होगा, जब तक इन व्यापारियों के पास ख़बर नहीं पहुँच जाती कि उनके गोदामों पर छापा पड़ने वाला है.
देखते हैं, मंहगाई रोकने के हमारे 'प्रयासों' का क्या होता है.
Wednesday, April 9, 2008
दुर्योधन की डायरी - पेज २८८९ और पेज २८९०
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आपके और सभी अनर्थ शास्त्रियों के प्रयास सफल हो हम भगवान् शिव से यही प्रार्थना करतें है.
ReplyDeleteवैसे बेचारे दुशाशन का कोई कसूर नही है.
महंगाई की मार ऐसी ही होती है.
हे राम, आपके तीनों कदमों के होने से पहले भगवान मुझे किसी दूसरे देश भेज दे :D,
ReplyDeleteजिस मोटे चश्में वाले अर्थशास्त्री के बारे में दूसरे पैराग्राफ़ में लिखा गया है वो मुझे बालकिशन भाई जैसे लग रहे हैं :,
खैर मुझे पहले शक होता था लेकिन अब बिल्कुल पक्का यकीन हो चला है कि आप यू.पी.ए. सरकार में बतौर सलाहकार एक अर्थशास्त्री के रूप में काम कर रहे हो यां वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम आपके क्पी रिश्तेदार हैं :D :@
ये दुर्योधन के प्रयास सफल न हुए तो पांडवों से हार जाएगा। महंगाई का इलाज उन के पास भी नहीं। कोई तीसरी पार्टी हैं नहीं।
ReplyDeleteमेरे ही कहने पर दु:शासन और जयद्रथ ने इन जमाखोर व्यापारियों से काफी मात्रा में पैसा वसूल कर रखा है|
ReplyDelete--------------------
अरे, क्या दुर्योधन को भी चुनाव लड़ने के फण्ड की जरूरत थी!:)
ज्ञान भइया; "अरे, क्या दुर्योधन को भी चुनाव लड़ने के फण्ड की जरूरत थी!:)"
ReplyDeleteनहीं भइया. ये पोस्ट स्क्रिप्ट में दुर्योधन जी ने लिखा था कि ये पैसा युद्ध की तैयारी करने के लिए वसूला गया था. और व्यापारियों को इस बात आ आश्व्वाशन दिया गया था कि युद्ध के दिनों में व्यापारियों को जरूरी सप्लाई का काम बिना टेंडर फ्लोट किए दे दिया जायेगा. पैसा इसी एवज में वसूल किया गया था. मेरी गलती थी जो प्रस्तुति में पोस्ट स्क्रिप्ट की बातें लिखना भूल गया....:-)
जमाये रहिये जी।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteमस्त है जी.
ReplyDeleteअभी आप आलोक जी की डायरी ढूंढिये कि इनकी डायरी की सुई "जमाये रहिये जी" पर क्यों अटक गई.
बढ़िया, आदरणीय परम पुनीत युवराज दुर्योधन की डायरी पढ़ कर प्रजाजन प्रसन्न हुए. (वैसे आजकल युवराज का प्रयोग करने पर कोई और ही सूरत आंखों के आगे डोल जाती है...)
ReplyDeleteमहंगाई पर सीरियसली कौन लिखेगा?
ReplyDeleteब्याज की दरों से प्याज की दरों में बढ़ोतरी होने की पूरी (और आलू ) संभावना है - [ :-)]
ReplyDeleteगलत बात है जी ये, सुयोधन भाई आपसे बहुत नाराज है जी,उनका कहना है कि वोह आपके पास मेरे कहने पर पूरे भरोसे के साथ रात मे रुके थे ,पर आपने उन्हे धौखा दिया है रात मे सोते समय जो बडबडाये वो आपने छाप कर उनके निद्रा बडबडान अधिकार का उलघंन किया है..
ReplyDeletediary पढ़कर लगा पुरी diary छीन लायु ओर फ़िर सारी की सारी पढ़ डालू.....उम्मीद है आगे के पन्ने पढने को मिलेगे
ReplyDeleteभाई, महंगाई कमे या बढ़े पर दुर्योधन की डाइरी घटने मत दीजिएगा ! मज़ा आ गया
ReplyDeleteaanad aa gaya padhkar kahna mushkil hai,kyonki padhkar manhgayi ki jooti se padi maar yaad aa gayi.
ReplyDeletepar tumhari diary ki jai ho.
मज़ेदार।
ReplyDeleteखैर,शिवकुमार जी आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया। हौंसला बढ़ाते रहें।