बड़ी हाय तौबा मची है. कुछ लोग कह रहे हैं कि राहुल गाँधी वाकई दलितों के सबसे बड़े मसीहा हैं. कुछ लोग कह रहे हैं; "अरे ये सब वोट लेने के हथकंडे हैं." कुछ तो यहाँ तक कह रहे हैं कि दलितों से मिलने के बाद कसकर साबुन लगाकर नहाते हैं. जिन्हें इस बात की शंका थी कि साबुन कसकर क्यों लगाते हैं, उनके शंका का भी समाधान कर दिया भाई लोगों ने. एक ने कहा; "दलितों को इतना तेल लगाना पड़ता है कि बिना कसकर साबुन लगाए काम नहीं चलने वाला."
जब से राहुल जी ने दलितों से 'संवाद' स्थापित किया, उनकी गिनती भावी प्रधानमंत्री के रूप में होने लगी है. राहुल जी ऐसा क्यों कर रहे हैं, ये अब राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन चुका हैं. ओलिम्पिक की मशाल आ गई थी तो मुद्दे पर छोटा सा ब्रेक लग गया था. दो दिन के लिए चर्चा में नहीं था. इन दो दिनों चर्चा में सैफ अली खान और आमिर खान की 'मशाल- दौड़' थी. लेकिन ओलिम्पिक की मशाल चली गई. ब्रेक के बाद मुद्दे पर चर्चा शुरू हुई.
महेश वोटर बोले; "सुना कि नहीं, आजकल राहुल गाँधी दलितों के घर में खाते-पीते हैं? वहीं खटिया पर सोते भी हैं."
सुरेश वोटर ने पूछा; "लेकिन उनको ऐसा करने का जरूरत क्यों पड़ गया?
महेश वोटर ने जवाब दिया; "ऊ दलितों का पीड़ा देखना चाहते हैं. देखना चाहते हैं कि झोपड़ा का होता है? दलित कैसा खाना खाते हैं? दलित खटिया पर कौन सा करवट लेकर सोते हैं? एही वास्ते आजकल मध्यप्रदेश के दलितीय दौरे पर हैं."
"लेकिन इतना पैसा है राहुल गाँधी का पास. काहे नहीं कुछ पैसा खर्च करके एगो झोपड़ा, खटिया वगैरह बनवा लेते? घर बैठे-बैठे सब पता चल जायेगा. कोई संदेह होगा त दस-पाँच दलित आई ए एस अफसर को बुला लें"; सुरेश वोटर ने सफाई मांगी.
महेश बोले; "अरे ई सब भोट का बात है. चुनाव चल चुके हैं. कुछ दिन में पहुँच जायेंगे. ओईसे ई पैंतरा नाना जी से सीखे हैं, राहुल बाबू."
सुरेश ने शंका जाहिर की; "का बोले? तुम्हरे कहने का मतलब, इटली में भी दलित रहते हैं? मतलब राहुल के नाना भी दलितों के घर जाकर खाना खाते थे?"
महेश बोला; "अरे धत्. रह गए बकलोल का बकलोल. नाना का मतलब नेहरू जी से है."
"कौन नेहरू? जवाहर लाल? ऊ राहुल का नाना कब से बन गए?"; सुरेश जी आश्चर्य के साथ पूछा.
"अरे धत्त तेरी ना. अपना नाना के बारे में बतियाएंगे त वोटर थोड़े न लउकेगा. समझो न. सत्ता का मामला है, इसलिए नेहरू जी ही उनके नाना है"; महेश जी ने समझाया.
"अच्छा अच्छा, ई हाल है. लेकिन का नेहरू जी भी ऐसेही थे?"; सुरेश ने जानना चाहा.
"अईसे ही थे माने? इनसे भी बड़े थे. उनको भी फोटो-सोटो खिचाने का बहुत शौक था. हम ख़ुद एक रेलवई स्टेशन पर देखे रहे. ढेर सारा फोटो चिपका था. नेहरू जी रक्तदान करते हुए. नेहरू जी फावड़ा उठाते हुए. नेहरू जी हेलमेट पहनकर निरीक्षण करते हुए. त इहे पैंतरा राहुल बाबू भी लगा रहे हैं"; महेश वोटर ने समझाया.
"त तुमको का लगता है? ई करने भोट मिल जायेगा?"; सुरेश जी ने जानना चाहा.
महेश जी मुंह बिचकाते हुए कहा; "अरे बकलोल, ई जनता है. गाना नहीं सुना; 'पब्लिक है, ई सब जानती है'. कौन कहाँ केके भोट दे दे, कोई नहीं जानता. अच्छा तुम्ही सोचो, एक गाँव में एक दलित के यहाँ सोयेंगे, त बाकी नाराज नहीं हो जायेगा कि हमरे इहाँ काहे नहीं सोये. हमरा भी त चूल्हा खाना देखने के लिए इंतजार कर रहा था. हमरे इहाँ भी त खटिया था. हमरे इहाँ सोते त कम से कम दस दिन का भोजन और खटिया पर बिछाने का बिस्तर तो दिल्ली से मिल जाता. भोट इतना सस्ता नहीं है. जेंके इहाँ सोये उनका भोट पक्का और बाकी का?"
सुरेश वोटर महेश जी की बात सुनकर प्रभावित हो चुका था. सोच रहा था, 'अब जब तक राहुल बाबू हमारे घर नहीं आते, तब तक हमरे घर का भोट कांग्रेस को नहीं जायेगा.'
Saturday, April 19, 2008
तब तक हमरे घर का भोट कांग्रेस को नहीं जायेगा
@mishrashiv I'm reading: तब तक हमरे घर का भोट कांग्रेस को नहीं जायेगाTweet this (ट्वीट करें)!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आ जाएंगे त पहुँच जाएगा का?
ReplyDeleteBandhu
ReplyDeleteJald bazi men comment likh raha hoon,isliye seedhe muddey pe aata hoon.Bhai kahe Rahul ke peechhe pade hain abhi to babua ke khelne khane ke din hain tanik dair to khelne dijiye.Abhi se lagdi na lagayiiye.Bachchey shuru shuru main aise hi majak majak men bahut se ootpatang kaam karte hain jinko vo bade hone par logon ko suna suna ke khoob hanste hain.
Roman men tipiya rahe hain kya karen tanik jaldi men hain.Jaldi men aap dekhen hindustaniyon ka moh angrezi bhasha se kutch jayada hi ho jata hai.Ab hum apvaad thode hi hain.
Neeraj
अजी ये वोट का चक्कर ही ऐसा है, अच्छे-अच्छे लोगों से न जाने क्या-क्या करवा देता है।
ReplyDeleteमाया महा ठगनी मैं का जानी?
त तुमको का लगता है? ई करने भोट मिल जायेगा?
ReplyDeleteबस यही लाइन सब कुछ कह देती है।
लपक के!!!!
ReplyDeleteधांसू!!
समीरलालजी भी रूठे बैठें है, परदेस से चला कर आये थे और राहुलजी रोटी खाने इनके घर नहीं आये. अब वापस जा रहें है, कहते है वोट होने तक नहीं रूकेंगे. :)
ReplyDeleteदेश को राहुल गाँधी की जरूरत है.आप क्या चाहते हैं भावी प्रधानमंत्री दलितों के बारे में नहीं सोचे.
ReplyDeleteएक युवा की हौसला आफजाई करो.
देश का भविष्य हैं राहुल गाँधी. तुम्हारे घर नहीं आए, इसीलिए ये सब लिख रहे हो क्या?
अरे इतने बडे त्यागी लोगन के बारे केसिन बात करते हो जि,सोचो ना यह सब किस लिये,अपने बारे तो सभी सोचत हे ना फ़िर एक कुर्सी की बात हे ना , ओर एक बोट की, काहे दिल छोटा करते हॊ,
ReplyDeleteसच आप ने अपने लेख मे सारा सच बता दिया,धन्यवाद
बहुत बहुत बढ़िया भाई,
ReplyDeleteखड़े खड़े खटिया रोटी खिसका दिए? हालांकि इसकी सम्भावना नही है,पर भगवान् से मना रही हूँ कि ये सारे लोकसेवक तेरा लेख पढ़ें और केवल एक पल को अंतस से महसूस करें... तो शायद सचमुच ही इन्हे जनता के दुःख दर्द से कोई मतलब रखने की जरुरत महसूस हो.क्या करें अच्छे की आशा नही छोड़ पा रहें,मरी लाख दुनिया देखे तो भी उम्मीद नही मरती..
सदा खुश रहो.
मै तो नीरज जी से ११०% सहमत हूं। अभी तो खेल शुरू हुआ है। अभी तो लंगी न मारिये!
ReplyDeleteलगता है राहुल बाबा लोगो को बहुत कष्ट दे रहे है ,बेचारे जाए तो मुश्किल न जाए तो मुश्किल....लोग जरूर अपने भाषणों मे उन्हें डाल कर उनकी यात्रा की मुफ्त पुबिलिसिटी करे दे रहे है ...प्रियंका की निजी यात्रा जो उन्होंने नलिनी से मिलने को की ,लोगो ने हल्ला मचा दिया....अरे भाई ओर भी मुद्दे है....न घबराये ,उन्होंने अभी मन कर दिया है pm का पद लेने को.......
ReplyDeleteहमारी कहानी तो संजय भाई कह गये तो हम चलते हैं अब-केहु को बोट न देब..!! :)
ReplyDeleteठीक फ़ैसला किया आपने.
ReplyDelete