Friday, December 11, 2009

एक और अधूरा इंटरव्यू

कल एक पत्रकार ने गृहमंत्री का एक इंटरव्यू लिया था. मैं छाप रहा हूँ. कृपया मत पूछियेगा कि मुझे कैसे मिला. पद और गोपनीयता...क्या कहा? समझ गए? गुड. इंटरव्यू बांचिये.

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पत्रकार: नमस्कार, मंत्री जी.

मंत्री जी: नमस्कार. एक मिनट...आप अपने जूते तो बाहर उतार कर आये हैं न...हाँ..ठीक है. देखिये, कई शहरों में आतंकवादियों के हमले का खतरा है.
हमारे पास स्पेसिफिक इन्फार्मेशन है कि चेन्नई और कोलकाता...

पत्रकार: नहीं. आप गलत समझ रहे हैं.

मंत्री जी: क्या गलत समझ रहा हूँ? आप पत्रकार नहीं हैं?

पत्रकार: नहीं मैं तो पत्रकार ही हूँ लेकिन मैं आतंकवाद के मुद्दे पर बात करने नहीं आया.

मंत्री जी: तो फिर? आतंकवाद के अलावा भी कोई मुद्दा है क्या हमारे मंत्रालय के पास?

पत्रकार: शायद आप भूल रहे हैं कि कल रात ही आपने तिलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने पर...वैसे देखा जाय तो आपके मंत्रालय के पास तो मुद्दे हैं ही. पुलिस रिफार्म्स का मुद्दा है. ऐडमिनिस्ट्रेटिव रिफार्म्स का मुद्दा है. नक्सल समस्या का मुद्दा है. उसके अलावा...

मंत्री जी: एक मिनट...एक मिनट. आपको क्या इन सारे मुद्दों पर बात करनी है?

पत्रकार: नहीं, मुझे अभी तो केवल तेलंगाना के मुद्दे पर आपसे बात करनी है.

मंत्री जी: तो कीजिये न. वैसे, कहीं आप यह पूछने तो नहीं आये हैं कि तेलंगाना से अगला राज्य कब निकलेगा?

पत्रकार: नहीं-नहीं. अभी तो आपने तेलंगाना बनाया है. कुछ दिन आप वहां राज करें. कुछ साल तो मिलने ही चाहिए आपको अपनी अकर्मण्यता साबित करने के लिए. जब वहां पर सरकार ठीक से काम-काज नहीं कर पाएगी तब जाकर तेलंगाना - २ की बात आएगी.

मंत्री जी: आपके कहने का मतलब हम काम नहीं करते?

पत्रकार: नहीं मैंने ऐसा नहीं कहा. वैसे भी अभी आपने तेलंगाना बनाकर साबित कर दिया है कि आप काम भी करते हैं.

मंत्री जी: अच्छा आगे सवाल पूछिए. क्या सवाल है आपका?

पत्रकार: जी, मेरा सवाल यह है कि तेलंगाना बनाकर आपने क्या नए राज्यों की मांग करने वालों को एक चारा नहीं दे दिया?

मंत्री जी: पांच साल हो गए उस बात को. मैं फायनांस मिनिस्टर से होम मिनिस्टर बन गया लेकिन आप चारा काण्ड पर प्रश्न पूछना नहीं भूलते.

पत्रकार: चारा काण्ड पर? लगता है आपको कोई गलतफहमी हो गई है. मैंने चारा काण्ड पर सवाल नहीं पूछा.

मंत्री जी: चारा काण्ड पर सवाल नहीं पूछा? अभी तो आपने चारा की बात की.

पत्रकार: अरे नहीं सर. मेरा कहना यह था कि आंध्र प्रदेश के दो टुकड़े करके आपने उन लोगों को सर उठाने का मौका दे दिया जो अलग राज्य की बात करते रहे हैं.

मंत्री जी: ओह! यह बात थी. मैंने सोचा कि फायनांस मिनिस्टर बनकर जब मैंने चारा वालों को स्पेशल ऑफिसर भेजकर....खैर जाने दीजिये. आप सवाल पूछिए.

पत्रकार: सवाल तो मैंने पूछा है सर. तेलंगाना की घोषणा के बाद लोग पश्चिम बंगाल से गोरखालैंड निकालने की बात करेंगे. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से बुंदेलखंड और हरित प्रदेश निकालने की बात करेंगे. बिहार से मिथिलांचल और...

मंत्री जी: देखिये वे तो नेता हैं. और नेता तो बात करेंगे ही. नेता बात नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे?

पत्रकार: नेता भूख हड़ताल भी तो कर सकते हैं. आखिर आपने तिलंगाना तो भूख हड़ताल के चलते ही तो बनाया.

मंत्री जी: हा हा..आप ही सबकुछ समझ जायेंगे तो हमारा क्या होगा?

पत्रकार: मतलब? आपने भूख हड़ताल की वजह से पैदा होने वाली परिस्थितियों की वजह से तेलंगाना नहीं बनाया?

मंत्री जी: नहीं-नहीं. भूख हड़ताल की वजह से नहीं बनाया. उसके पीछे और कारण था?

पत्रकार: जी? क्या कारण हो सकता है और?

मंत्री जी: आप जानना ही चाहते हैं? तो सुनिए. अब देखिये, आंध्र प्रदेश में आज की तारीख में हमारे पास एक से ज्यादा मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं. ऐसे में हमारे लिए यही श्रेयस्कर था कि हम एक और राज्य बनाकर एक से ज्यादा लोगों को मुख्यमंत्री बनने का मौका दे दें.

पत्रकार: ओह! तो अलग राज्य इसलिए बनाया गया ताकि जगनमोहन और रोसैय्या जी को...

मंत्री जी: हाँ. अब समझ में आयी बात आपके.

पत्रकार: लेकिन केवल मुख्यमंत्री बनाने के लिए एक अलग राज्य...

मंत्री जी: केवल मुख्यमंत्री ही क्यों? लोकतंत्र में नेता होता है तो उसका चमचा भी होता है. मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार होता है तो उसके साथ एम एल ए भी होंगे. जितने दावेदार उतने ग्रुप.लोग मंत्री भी तो बनेंगे. एमएलए खुश रहेंगे. उनके लोग खुश रहेंगे. जो एमएलए मंत्री नहीं बन सकेंगे उन्हें विकास बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया जाएगा. नई विधानसभा होगी. नया सचिवालय होगा. नए अफसर होंगे. नए चपरासी होंगे. सब कुछ नया-नया लगेगा. कितना मज़ा आएगा. आप कैसे समझेंगे?

पत्रकार: तो फिर आब बाकी प्रदेशों की डिमांड का क्या करेंगे?

मंत्री जी: अब देखिये. पश्चिम बंगाल में हमारी पार्टी राज नहीं कर रही है. उत्तर प्रदेश में भी नहीं कर रही. मध्य प्रदेश में भी नहीं है. बिहार में भी नहीं है. अब जब हमारी पार्टी इन राज्यों में है ही नहीं तो फिर मुख्यमंत्री पद के लिए झगड़े भी नहीं हैं. ऐसे में कोई ज़रुरत नहीं है कुछ प्रदेशों से नए प्रदेश निकालने की. अब इन प्रदेशों में से कुछ में चुनाव अगले साल होंगे. हम देखेंगे अगर हम इन प्रदेशों में जीत गए तो फिर विचार करेंगे. वो भी तभी विचार करेंगे जब मुख्यमंत्री पद के लिए झमेला होगा.

पत्रकार: तो अगर आप जीत भी जायेंगे तो क्या मुख्यमंत्री पद के लिए झमेला होने का चांस नहीं रहेगा?

मंत्री जी: अब देखिये. आप भी जानते हैं. इन प्रदेशों में हमारे पास उतने नेता नहीं हैं कि मुख्यमंत्री और मंत्री पद के लिए झमेला हो. ऐसे में
ज़रुरत नहीं पड़नी चाहिए.

तब तक फोन की घंटी बजती है. मंत्री जी फोन उठाकर हेलो करते हैं. पता चलता है कि हैदराबाद से फोन है...मंत्री जी पत्रकार से बाकी का इंटरव्यू बाद में लेने के लिए कहते हैं. पत्रकार वहां से चला आता है. न जाने कितने सवाल उसके दिमाग में ही रह जाते हैं.

25 comments:

  1. राजस्थान को अलग कंट्री बनायीं जाए.. वरना हम भूख हड़ताल पर बैठ जायेंगे..


    और ये हम अपने पुरे होशोहवास में कहा रहे है... कंट्री पीकर नहीं..

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  2. कुश की मांग का हम समर्थन करते है.. कुश तुम भुख हडताल शुरु करो!!

    वैसे क्या बुरा है कि हम सभी "जिला" शब्द को बदल कर "राज्य" कर दें.. भारत में ५०० से ज्यादा राज्य हो जायेगें.. सभी खुश..

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  3. इसका अर्थ ये हुआ की अगर इनकी सरकार सभी राज्यों में आ गयी तो हर राज्य के टुकड़े हो जायेंगे और हम अब से दुगने या तिगुने राज्यों वाला देश कहलायेंगे...याने "संयुक्त राज्य भारत" या आसान शब्दों में कहें तो "यूनाईटेड स्टेट्स ऑफ़ इंडिया" हुर्रे...याने अमेरिका बनने की तरफ एक विशाल कदम. ये तो हमने कभी सोचा भी नहीं था की एक छोटी सी तेलंगाना रुपी चिंगारी इस देश को अमेरिका के समतुल्य कर देगी...हम तो सोच सोच कर उत्तेजित हो रहे हैं...याने हम सब की काया कल्प हो जाएगी...हुर्रे...लोग हमें भी यू एस कहेंगे...कम पढ़े लिखे लोग शायद यू एस आई कहें....
    नीरज

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  4. @ नीरज जी अभी तो सिर्फ राज्यों के टुकड़े कर रहे है ये आगे-आगे देखिये ...

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  5. देश ना हुआ पिज्जा हो गया.
    जरुरत और भूख के हिसाब टुकड़ा काटा और दे दिया.

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  6. किर्तिशजी से सहमत.

    और यह डायरी, लेख, साक्षात्कार जैसी गुप्त-विस्फोटक सामग्री चुराना कब बन्द कर रहें हैं? :)

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  7. वाह, क्या अंदर की खबर लीक की है!
    घुघूती बासूती

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  8. एक व्यक्ति एक पद के नियम के साइड इफ़ेक्ट एक पद अनेक पद बनाकर ही दूर हो सकते हैं। :)

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  9. सब जगह यही चर्चा है..
    सब जुगत लगा रहे हैं की किसको, कब और कहाँ भूख हड़ताल पर जाना चाहिए अपनी मांगों को पूरा करने के लिए..
    अफ़सोस नेताओं के लिए नहीं.. अपने जैसे आम इंसानों के लिए जो सब झेल कर भी चुप बैठे हैं..

    आभार
    प्रतीक

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  10. क्या कहा जाये..इन्टरव्यू तो मस्त है मगर हालात पस्त हैं.

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  11. बहुत अच्छा साक्षात्कार।

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  12. Udan Tashtari said...
    क्या कहा जाये..इन्टरव्यू तो मस्त है मगर हालात पस्त हैं.

    इतनी जल्दी पस्त नहीं होते बबुआ। कहावत है न! सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है।

    मस्त रहो। पस्त रहने में बरक्कत नहीं है।

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  13. अन्दर की बात निकाल अलाए आप तो. हमें तो लगा कि इसमें भी नौ परसेंट ग्रो करने की बात आ जायेगी. वैसे अभी-अभी मुझे पता चला है कि पूर्वी और पश्चिमी हैदराबाद बनाया जाएगा :)

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  14. भैया जितनी मर्जी, उतने टुकड़े कर लो आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल.. आदि के।

    बस इतना ध्यान रखना कि हर टुकड़ा भारत में ही रहे..

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  15. टुकड़े करना असंतोष का इलाज नहीं हो सकता।

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  16. इसी महीनें अविभाजित आंध्र की खुशबू से सराबोर बगिया से होकर वापस आया हूं अबकी बार गुलदस्‍तों से भेंट होंगी.

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  17. "लोकतंत्र में नेता होता है तो उसका चमचा भी होता है"

    जितना बडा चमचा होगा उसे उतनी बडी पोस्ट तो देनी पडेगी वर्ना नेताजी गए काम से :)

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  18. हम तो ये सोच रहे हैं कि अगर उत्तर प्रदेश के टुकड़े करके हरित प्रदेश बनाया तो हम किधर जाएँगे. फ़िरोज़बाद वैसे भी बीच में पड़ता है :) :)
    हम तो अभी से घबरा रहे हैं

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  19. हा हा...लाजवाब साक्षात्कार!

    मिथिलांचल तो हमें भी चाहिये!!

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  20. कमाल का इंटरव्यू । अब नेता होगा तो चमचे होंगे.......कितना सही लिखा है । ईश्वर न करे कि ऐसा कुछ हो वरना तो देश का पैसा ये ही सब मिलबांट कर खा लेंगे और आम आदमी..........बेचारा और भी बेचारा हो जायेगा ।

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  21. नेताओं की डगर पे चमचों दिखाओ चल के यह देश है तुम्हारा खा जाओ इसको तल के.

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  22. Another fabulous one!!!A serious topic presented in a rib tickling way! !

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  23. भाई बहुते सजीव इन्टरव्यू छाप दिए हो. भाई नीतिगत रूप से यह नेतागण ज्यादा कुछ गलत नहीं कर रहे हैं.

    अरे इतिहाश इस बात का गवाह है की हर झगडे का निबटारा -सरल ढंग से बटवारे के द्वारा ही हुआ है, हाँ यह अलग बात है की बटवारें में लोग अपनी कमजोरी को छिपा कर सर्व कल्याण की बात कह देतें हैं. जो की नीतिगत रूप से ठीक और समाज और वस्तु स्थिथि पर आकें तो हमेसा धूर्तता का परिचायक रहा है. भाई बहुते गजब.

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  24. Is lajawaab aalekh ne to aisa jabardast chintan diya ki mujhe desh kee sabhi samasyaon ka hal isme dikhne laga....

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय