अपने देश में ढेर सारी चीजों की प्रधानता बढ़ती जा रही है. कह सकते हैं प्रधानता की कसौटी पर भारत का विकास बहुत चौचक हो रहा है. अब वो ज़माना नहीं रहा जब "भारत एक कृषि प्रधान देश" हुआ करता था. अब तो भारत में तमाम और चीजों की प्रधानता बढ़ गई है. अब भारत एक नेता-प्रधान देश भी है और एसएमएस प्रधान देश भी. चुनाव-प्रधान देश है और दलाल-प्रधान भी. अब तो हम यह भी कह सकते हैं कि भारत मंहगाई प्रधान देश भी है.
कुल मिलाकर बढ़ती प्रधानता को आगे रखकर यह साबित किया जा सकता है कि देश विकास के रस्ते पर बिना ब्रेक वाली गाड़ी की तरह दौड़ रहा है.
पहले प्रधानता केवल कृषि तक सीमित थी. रहे भी न कैसे? तब के नारा-प्रधान देश में किसी ने लिख दिया था कि; "भारत एक कृषि प्रधान देश है."
अब जिसने भी यह लिखा होगा उसने तो शिक्षक से लेकर विद्यार्थी और नेता से लेकर जनता तक को कन्विंश कर दिया कि कृषि की प्रधानता बनी रहेगी. युगों तक यह प्रधानता बनी भी रही. सदियों तक स्कूल की कक्षाओं में मास्टर जी पढ़ाते रहे कि; "भारत एक कृषि प्रधान देश है." मास्टर जी के विद्यार्थी भी लिखते रहे कि; "भारत एक कृषि प्रधान देश है." मास्टर जी पढ़ाकर मन बहलाते रहे और विद्यार्थीगण पढ़ और लिखकर.
उधर नेता लोग भी जनता से बोलते रहे कि; "भारत एक कृषि प्रधान देश है."
अब चूंकि रिकार्ड बताते हैं कि जनता को नेता की बात समझ में आ जाती है तो वह भी नेता जी की बात समझता रहा. इधर नेता-जनता, मास्टर जी-विद्यार्थीगण आपस में एक दूसरे को बताते रहे कि; "भारत एक कृषि प्रधान देश है" और उधर भारत में तमाम और चीजों की प्रधानता बढ़ती गई. इन्हें कानो-कान खबर नहीं हुई.
इन्हें थोड़े न पता होगा कि कृषि की प्रधानता की नक़ल करके लोग भारत को तमाम और बातों का प्रधान बता देंगे. देश में जिस चीज की प्रधानता बढ़ानी हो, कृषि को उस चीज से रिप्लेस कर दीजिये. इतना काफी है. हर चीज की प्रधानता बढ़ती जायेगी. प्रधानता में बदलाव होते-होते मामला यहाँ पहुँच गया है जब लोगों ने कहना शुरू किया है कि; "भारत ज्योतिषी प्रधान देश है."
जिधर देखिये ज्योतिषी ही ज्योतिषी. शनि, वृहस्पति वगैरह के आवन-जावन से इंसान का वर्तमान और भविष्य तो तय होता ही था, अब तो चीनी, चावल, दाल वगैरह का भविष्य भी तय होने लगा है.
चीनी के भाव बढ़ गए और किसी ने कृषि मंत्री पवार साहब से उसके बारे में पूछा तो उन्होंने सीधा-सीधा कह दिया कि; "मैं ज्योतिषी थोड़े न हूँ जो बता सकूँ कि चीनी के भाव कब कम होंगे?"
उनका यह कहना था कि चीनी उड़कर और ऊपर. पचास रूपये किलो. शायद चीनी भी आश्वस्त हो गई होगी कि कृषिमंत्री ज्योतिषी तो हैं नहीं ऐसे में क्या डरना? चलो उड़ जाओ और पचास रूपये पर जाकर बैठ जाओ. मतलब ज्योतिषी से इंसान तो क्या चीनी भी डरती है.
पवार साहब ने कहा होता कि वे ज्योतिषी हैं तो मजाल है कि चीनी पचास रूपये पर जाकर बैठती.
पवार साहब ने अपने वक्तव्य से साबित कर दिया कि डिमांड, सप्लाई, अर्थशास्त्र, पैदावार वगैरह के बारे में बात करना परम चिरकुटई है. चीनी की कीमत घटेगी या बढ़ेगी, इसके बारे में ज्योतिषी ही बता सकता है.
उनकी इस बात को मानकर टीवी चैनल ने ज्योतिषियों की शरण ली. उनके ऐसा करने से पूरे देश के ज्ञान में विकट वृद्धि हुई. किसे पता था कि शुक्र चीनी के देवता हैं? किसे पता था कि शुक्र की पूजा की जाय तो चीनी के दाम कम हो जायेंगे? एक ज्योतिषी ने तो अपने अध्ययन से बताया कि चूंकि चन्द्रमा की सींग दक्षिण दिशा की ओर है इसलिए चीनी की कीमतें आसमान छू रही हैं. ९ फरवरी से चन्द्रमा की सींग उत्तर हो जायेगी तो चीनी की कीमतें घट जायेंगी.
लेकिन एक बात पर अभी शंका बनी हुई है. चन्द्रमा की सींग आसमान की तरफ क्यों नहीं हुई? क्यों दक्षिण दिशा की ओर है? अगर चीनी के दाम ऊपर जा रहे हैं तो सींग तो ऊपर होनी चाहिए न?
बताइए, हम यहाँ सोच रहे थे कि गन्ने की पैदावार कम होने की वजह से चीनी का प्रोडक्शन कम हुआ है इसलिए चीनी के दाम बढ़ रहे हैं. या फिर यह कि जमाखोरी हो रही है. या फिर यह कि चीनी लाबी ने कुछ किया होगा. हमें क्या पता था कि चीनी के दाम उस चन्द्रमा की सींग की वजह से बढे हैं जिसपर हमनें हाल ही में पानी खोज निकाला है. हमें क्या पता कि जिस चन्द्रमा पर ज़मीन, पहाड़ और पानी है उस चन्द्रमा की सींगें भी हैं वो भी ऐसी जो उत्तर और दक्षिण की तरफ घूमती रहती हैं.
खैर, ज्योतिषी ने बताया कि ९ फरवरी से पहले दाम कम नहीं होंगे तो हम आश्वस्त हो गए कि अब चीनी की मंहगाई के बारे में बात करना फ़िज़ूल है. कम से कम ९ फरवरी तक.
लेकिन यह क्या? आज खबर मिली कि चीनी के होलसेल भाव कम हो गए हैं. आज टीवी चैनल ने बताया कि चीनी के होलसेल भाव कम होंगे इसके बारे में पवार साहब ने चार-पांच दिन पहले ही बता दिया.
मतलब यह कि पवार साहब ज्योतिषी हैं. जब उन्होंने घोषणा की कि वे ज्योतिषी नहीं है तब चीनी के भाव फट से बढ़ गए. लेकिन जब उन्होंने घोषणा कर दी कि चीनी के भाव चार दिन में गिर जायेंगे तो भाव गिर गए. मतलब चीनी पवार साहब के ज्योतिषी रूप को देककर डर गई और फट से नीचे.
अब तो पवार साहब ने कह दिया है कि एक सप्ताह के अन्दर रिटेल भाव भी कम हो जायेंगे. अब हम आश्वस्त हैं कि हमारे देश को मिनिस्टर की नहीं बल्कि ज्योतिषियों की ज़रुरत है जो चीनी, दाल, चावल, आटा वगैरह को समय-समय पर हड़का सके.
nice
ReplyDeleteबहुत सामयिक सटीक व्यंग्य...... व्यवस्था की कहानी कहती हुई पोस्ट. आभार
ReplyDeleteआपके इस लेख से भारत की चौर्य-कला का ह्रास हुआ है, काहे कि आपने बिना चुराए लिख मारा है. प्रतिभावान पनवाड़ी से लेकर दूर्योधन तक की पेट पर लात मारी है आपने. कोई बात नहीं जब आदमी अत्यंत भावुक हो जाता है तब ऐसी गलती कर बैठता है. चीनी के भाव कम होने की उम्मीद से बड़े बड़े बौरा जाते है, भाई.
ReplyDeleteआज हर क्षेत्र में ज्योतिषज्ञाताओं की जरूरत है. बड़ा निराश सा महसुस कर रहा हूँ. सारी जिन्दगी खपा दी अर्थशास्त्र को समझने में और मुए फार्मूले छूपे है ज्योतिष में.
कृषि उत्पाद की तरह गृह-मामलों में भी कोई ज्योतिषी आश्वस्त कर दे कि पाकिस्तान से फिलहाल कोई कसाब नहीं आने वाला, बड़ी राहत होगी.
सस्ते में चीनी बेच कर अब महंगे में विदेश से खरीदना भी ज्योतिषी की सलाह से ही हुआ होगा.
ReplyDeleteसॉरी, कोई न कोई बात छूट जाती है. गुजरात में उत्तम गुणवत्ता वाला गेहूँ इस बार छह गुना कम बोया जा सका है. ज्योतिषी ग्रहों के सिंग सेट कर ले. पसन्द के ग्रह पर दोष डाल दे.
ReplyDeleteअगली बार, बारामती के मतदाता कुण्डली देखकर / दिखाकर ही वोट डालें… ऐसा कोलकाता के ज्योतिषी शिवबाबू कह रहे हैं… :)
ReplyDeleteज्योतिषी की बात नहीं माननी तो मत मानिए। डॉक्टर या आँकड़ों की मानिए और चीनी खाना छोड़ दीजिए। फिर देखिए हमारी तरह चीनी की कीमतों से सदा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
जे गर मनमोहन जी को पता होता तो आज गणेशी राम के गल्ले पे हंगामा न मचा होता ...चीनी को पंखो की सप्लाई किसने की ये भी जांच की जाए .बहुत उड़ानमारती है इन दिनों....
ReplyDeleteज्योतिषों के भरोसे तो पूरी सरकार दौड़ रही है फिर बेचारी अकेली चीनी का क्या दोष!!!..मस्त कटाक्ष!!
ReplyDeleteआपके इस लेख को पढकर आनेवाले समय में अपने महत्व के बढने के प्रति आश्वस्त हो गयी हूं !!
ReplyDeleteचीनी के भा बढ़ने के लिए चन्द्रमा के सिंग जिम्मेदार हैं तो तुअर की दाल, गेहूं, चावल आदि के कौन कौन से ग्रह है?
ReplyDeleteकाश यह भी कोई ज्योतिष बता सकता.... तो चन्द्रमा पर पानी खोजने के अभियान में नाहक करोडो़ (अरबों-खरबों) व्यर्थ करने की बजाय ग्रहों के सींग तोड़ो मिशन चालू करने में आसानी होती।
मजेदार लेख... लेकिन अब मुस्कान आने की बजाय ज्योतिष सम्राट शरद पवार जी पर खीज आती है।
बहुत अच्छा व्यंग्य!
ReplyDeleteअगर सरकार एक "ज्योतिष मंत्रालय" बना दे तो फिर तो हम भी राजनीति में उतरने के बारे में सोच सकते हैं :)
ReplyDeleteदरअसल ज्योतिषी कौन है यह अधिक महत्वपूर्ण है बजाय इसके कि चंद्रमा का सींग किस तरफ है। छोटे मोटे ज्योतिषी को इसी में उलझे रहेंगे कि चंद्रमा के सींग है कि नहीं है तो कैसा दिखता है नहीं दिखता है तो क्यों नहीं दिखता है और दिखता है तो क्यों दिखता है लेकिन
ReplyDeleteबड़े ज्योतिषी सींग के महीने रेशों में कोंणों के नए कोण निकालकर भविष्यवाणी कर देते हैं और चीनी नीचे आ जाती है। जब पर्याप्त खरीदी कर चुके होते हैं तो रेशों को फिर से छेड़ देते हैं। सींग टेढ़ा का टेढ़ा और भाव फिर से ऊपर।
चीनी के भाव अभी कम हुए हैं लेकिन मेरी कॉमर्स रिपोर्टरी कहती है कि ये भाव एक सीमा तक नीचे जाकर फिर से चढ़ेंगे। इन्हें रोकना मुश्किल है। जब चीनी को बाहर भेजा जा रहा हो तो यहां दाम कैसे रोके जा सकेंगे। दूसरी बात अंतरराष्ट्रीय ट्रेड से जुड़ी किसी भी कमोडिटी को स्थानीय स्तर पर तब तक कंट्रोल नहीं किया जा सकता जब तक उसे एशेंशियल कमोडिटी बनाकर एक्टिव ट्रेडिंग से बाहर नहीं कर देते।
लेकिन ऐसा करना खुद पंवार के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। उनकी कांग्रेस इसी चीनी और दूसरी एशेंशियल कमोडिटी के भरोसे तो चल रही है...
तो सींग हो सिंग हो या बिना सिंग सांग हो चीनी तो ऊपर ही जानी है्...
चाँद की सींग का कुछ तो करना पड़ेगा. नासा वाले बमबारी किये थे तो कुछ हुआ क्या? कहीं उसीसे तो नहीं भाव गड़बड़ा गए? यहाँ विज्ञान को जिम्मेवार ठहराया जा सकता है चीनी केभाव के लिए. अगला चाँद मिशन रोकने में ही भलाई है.
ReplyDeleteचाणक्य ने कहा था राजा को वेपारी नहीं बनना चाहिए, यहाँ वेपारी राजनेता है. तो भूगतना तो पड़ेगा ही.
ReplyDeleteएक से काम चल जायेगा क्या?
ReplyDelete@ भारतीय नागरिक
ReplyDeleteएक से काम नहीं चलेगा. गृह मंत्रालय के लिए एक. वित्त मंत्रालय के लिए एक. नागरिक उड्डयन मंत्रालय के लिए.........प्रधान मंत्रालय के लिए दो. एक मंत्रालय के लिए और दूसरा दस जनपथ के लिए.....:-)
बहुत सही कहा...मुझे तो लगता है,इस देश को ऐसे राजनेताओं की नहीं जो ,यह भी नहीं जान समझ पाते कि देश को कैसे सम्हाला चलाया जा सकता है,चाहे आर्थिक सामजिक,राजनितिक मूल्य हों, या विधि व्यवस्था,जब कुछ भी नियंत्रित करना नहीं जानते तो,ऐसे में सबसे उपयुक्त होगा कि देश को ज्योतिषियों के हवाले कर दिया जाय...कम से क्रम वे तो ग्रहों को पढ़कर या उन्हें पकड़कर व्यवस्था सुचारू रखेंगे...
ReplyDeleteबहुत अच्छा व्यंग्य!
ReplyDeleteऐसा नहीं है जनाब। पवार साब ने आपको गच्चा दे दिया है, यही लगता है। इसका कारण यह है कि चीनी के दाम बढ़ने की भविष्यवाणी उन्होंने की। गेहूं चावल के दाम बढ़ने की भविष्यवाणी उन्होंने की। आज उन्होंने दूध के दाम बढ़ने की भी भविष्यवाणी भी कर दी है। उनकी सभी भविष्यवाणी सटीक बैठती है, इसलिए उम्मीद है कि दूध भी कुछ दिनों या महीनों में दुर्लभ हो जाएगा। हां, उन्होंने कहा कि अगर कीमतें कम होने के बारे में जानना है तो किसी दूसरे ज्योतिषी से संपर्क किया जाए, उस क्षेत्र में उनके ग्यान का विस्तार नहीं है।
ReplyDeleteThe lines that had me in splits were"किसे पता था कि शुक्र चीनी के देवता हैं? किसे पता था कि शुक्र की पूजा की जाय तो चीनी के दाम कम हो जायेंगे? एक ज्योतिषी ने तो अपने अध्ययन से बताया कि चूंकि चन्द्रमा की सींग दक्षिण दिशा की ओर है इसलिए चीनी की कीमतें आसमान छू रही हैं. ९ फरवरी से चन्द्रमा की सींग उत्तर हो जायेगी तो चीनी की कीमतें घट जायेंगी.".The Govt.should form a "Ministry of Astrology".Superbly wtitten!!!
ReplyDeleteहे ब्लॉग जगत में व्यंग लेखन के कर्णधार अगर कहीं कोई ज्योतिष मिले तो हमें भी पता बतईयेगा...बहुत सी समस्याएं हैं जिनका निराकरण करवाना है...जोरदार पोस्ट...सच्ची...अधिक नहीं लिख सकते क्यूँ की मिष्टी कह रही है दादा कहाँ समय ख़राब कर रहे हो...
ReplyDeleteनीरज