जय प्रकाश सिंह जी मेरे मित्र हैं. पिछले तीन-चार दिनों से परेशान हैं. कारण है उनके पुत्र चुन्नू सिंह का पढ़ाई-लिखाई पर से विश्वास उठ जाना. चुन्नू सिंह जी ने अपने पिताश्री को अपना फैसला सुना दिया है कि वे इंजीनीयर नहीं बनना चाहते. चुन्नू सिंह जी ने अपने भविष्य के प्लान के बारे में सबको सूचना देते हुए साफ़ कर दिया है कि वे दलाल बनना चाहते हैं.
मैंने जब चुन्नू सिंह के फैसले के कारणों का पता करना चाहा तो जय प्रकाश जी ने मुझे एक निबंध थमा दिया. ये निबंध पुराणिक जी के उसी छात्र ने लिखा था, जिसकी अपनी एक निबंध लेखन की कंपनी है और जो विदेशी छात्रों और अध्यापकों को 'भारतीय मुद्दों' पर केपीओ की सर्विस देता है. आप निबंध पढ़े.
दलाल - एक निबंध
भारतीय समाज में दलालों और दलाली का बहुत बड़ा महत्व है. वैसे तो देश में दलाली के पेशे का महत्व आदिकाल से है लेकिन पिछले दो-तीन सौ सालों से इस पेशे की गिनती सबसे महत्वपूर्ण पेशे के रूप में की जाती है. दलाल शब्द मूलतः दो शब्दों के मिलने से बना है. दल और लाल. मतलब यह है कि जो भी व्यक्ति किसी दल के साथ जुड़कर लाल हो जाए, उसे दलाल कहते हैं. यहाँ मैं यह क्लीयर कर देना चाहता हूँ कि दल का मतलब केवल राजनैतिक दल से नहीं है. दलाल शब्द के बारे में मेरी जानकारी इतनी ही है. इस शब्द के व्युत्पत्ति और सफर के बारे में पूरी जानकारी के लिए पाठकों को अग्रिम अर्जी देने की जरूरत है ताकि प्रसिद्ध शब्द-शास्त्री श्री अजित वडनेरकर की सेवा ली जा सके. ऐसी सेवा की फीस एक्स्ट्रा ली जायेगी.
जब भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी तब देश के कई राज्यों के शासक और उनके दाएं-बायें बैठने वाले लोग अंग्रेजों की दलाली का काम करते थे. ऐसी दलाली से इन शासकों को पैसा तो मिलता ही था, कभी-कभी कोई पदवी वगैरह भी मिल जाती थी. ऐसे दलालों के लिए ये पदवी बड़े काम की चीज होती थी क्योंकि इस तरह की पदवी कई बार पड़ोसी राज्य के शासकों और नागरिकों को डराने के काम आती थी. देश की आजादी के बाद दलाली के पेशे में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिला. जहाँ एक और अंग्रेजी हुकूमत में केवल राजाओं और शासकों को दलाल बनने का मौका मिलता था, वहीँ आज़ादी के बाद दलाली के पेशे को खोल दिया गया. चूंकि लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी थी, लिहाजा दलाल बनने का मौका देश के हर नागरिक को दिया गया.
साठ के दशक में देश में बहुत से आर्थिक फायदे के क्षेत्रों को दलालों के लिए खोल दिया गया. उद्योग धंधों के लाइसेंस और उनकी स्थापना से लेकर हथियारों की खरीद-फरोख्त, आयात-निर्यात के लाइसेंस और सरकारी नौकरियों जैसे क्षेत्रों को दलाली के लिए खोला गया. नतीजा यह हुआ कि दलालों की डिमांड बढ़ गई. इस दशक में अपनी मेहनत और पहुँच के बल पर कई लोग दलाल बने. नेताओं और अधिकारियों के मित्रों से लेकर उनके रिश्तेदारों ने अचानक आई दलालों की डिमांड का भरपूर फायदा उठाते हुए दलाली में नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए. ये दशक देश के इतिहास में राजनैतिक विचारधारा को ढोने वाले दलालों के लिए भी याद किया जाता है. कई पार्टियों ने विदेशी राजनैतिक विचारधारा को देश में फैलाने की दलाली बड़ी तन्मयता के साथ की.
अस्सी के दशक में दलाली के तरीकों में कुछ महतवपूर्ण बदलाव देखने को मिले. इस दशक में सबसे ज्यादा दलाली उद्योग धंधों में दी जाने वाली छूट, उद्योग के लिए मुहैया कराई जाने वाली जमीन और हथियारों में खरीद-फरोख्त में दिखाई दी. जहाँ साठ और सत्तर के दशक में दलाली में लाखों रूपये का आदान-प्रदान होता था, वहीँ अस्सी के दशक में दलाली की मात्रा करोड़ों में पहुँच गई. हथियारों की खरीद-फरोख्त में कई मामले सामने आए, जिसमें करोड़ों रूपये दलाली में दिए और लिए गए. इस दशक में पहली बार भारतीय दलाल इंटरनेशनल हुआ.
नब्बे के दशक में जब आर्थिक सुधार किए गए और वैश्वीकरण को भारत ले आया गया तब अचानक लगने लगा कि उस समय तक देश में दलालों की संख्या आर्थिक सुधारों और वैश्वीकरण से पैदा होनेवाले मौकों के लिए काफी नहीं थी. लिहाजा विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी दलाली के धंधे में कूद पड़े. नतीजा ये हुआ कि दलालों की संख्या में अभूतपूर्व बढोतरी देखने को मिली. इस दशक में सरकार गिराने और उठाने का काम भी दलालों के हाथ में आ गया.
इक्कीसवीं सदी में भारत में दलाली उद्योग में सबसे बड़ा विकास देखने को मिला. दलाली में दी जाने वाली रकम भी अबतक करोड़ों से बढ़कर अरबों में पहुँच चुकी है. देश में कोई भी क्षेत्र नहीं बचा है जो बिना दलाली के चल सके. सरकार द्बारा किए गए सुधार की वजह से दलाली में नए-नए कीर्तिमान स्थापित हुए. नब्बे के दशक में दलाल के रूप में ख़ुद को स्थापित करने वाले कई लोग उभरे जिनका व्यक्तित्व और जीवन-दर्शन भविष्य के दलालों के लिए प्रेरणास्रोत बना. राजनीति से लेकर उद्योग तक और विदेशी व्यापार से लेकर क्लीयर और अनक्लीयर डील तक, दलाली के दायरे में आ चुके हैं. नब्बे के दशक में दलालों के लिए लायजनिंग आफिसर ओर डीलमेकर जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी शुरू हुआ.
जहाँ एक ओर राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाईसेंस बनवाने जैसे चिरकुट काम छोटे दलालों के हाथ में हैं, वहीँ जमीन दिलाना, हथियारों की डील फाईनल करना, विदेशी जासूसों के लिए सरकारी कागजात निकलना, सरकारों को बचाना और गिराना, विदेशी सप्लायर के लिए कांट्रेक्ट दिलाना जैसे बड़े ओर औकाती काम बड़े दलालों के हाथ में हैं. ये बड़े दलाल लगभग हर क्षेत्र में काम करनेवाले हैं. जैसे पत्रकारों से लेकर इवेंट मैनेजमेंट और उद्योगपति भी दलाली में अपना कैरिएर आजमाने लगे.
एक रिपोर्ट के अनुसार आनेवाले सालों में भारतीय लोकतंत्र पूरी तरह से दलालों की परफार्मेंस पर निर्भर करेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि लोकतंत्र के स्टेटस को मेन्टेन करने के लिए कराये गए चुनाव में जनता ओर नेता का रोल केवल वोट देने ओर लेने तक सीमित रहेगा. वोटिंग के बाद का सारा काम जैसे सरकार बनाना ओर उसे गिराना, बिना दलालों के पूरा हो पाना असंभव रहेगा. एक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्था द्बारा कराये गए सर्वेक्षण के अनुसार साल २०२० तक भारत में दलाली उद्योग का कारोबार करीब एक सौ सत्तर लाख करोड़ तक हो जाने की संभावना है.
कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि फोर्ब्स मैगजीन साल २०१० से अपनी तमाम लिस्ट में दलालों की रैकिंग और उनकी कमाई का व्यौरा भी छापने का प्लान बना रही है. वैसे कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि फोर्ब्स जैसी मैगजीन पहले से ही प्राइवेट सर्कुलेशन के लिए ऐसी लिस्ट कई सालों से छाप रही है. अफवाह तो यह भी है कि ऐसी लिस्ट में एक से लेकर पचास रैंक तक सभी नाम भारतीयों के हैं. दलाली उद्योग के भविष्य को देखते हुए कुछ शिक्षा संस्थानों ने अपने करीकुलम में दलाली की पढ़ाई को भी शामिल करने का फैसला कर लिया है. अफवाह है कि कुछ प्रसिद्द और औकाती दलालों ने विदेशी प्रकाशकों के लिए दलाली के ऊपर किताब लिखने के लिए हाँ कर दिया है. कुल मिलकर कहा जा सकता है कि भारतवर्ष में दलाली का भविष्य उज्जवल है.
नोट:
जय प्रकाश जी के द्बारा दिए गए इस निबंध को पढ़कर मुझे लगा कि चुन्नू सिंह ने बड़ा व्यावहारिक फैसला लिया है. आपका क्या कहना है?
Monday, July 7, 2008
चुन्नू सिंह दलाल बनना चाहते हैं
@mishrashiv I'm reading: चुन्नू सिंह दलाल बनना चाहते हैंTweet this (ट्वीट करें)!
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MAIN TO SAHMAT HUN.
ReplyDeleteAUR CHUNU SE JARA BAAT KARKE APNI BHI GOTI FIT KAR DI JAAY.
HAM BHI DALAL BAN NA CHAHATE HAIN.
विकट पंगा है जी आज फ़िर छाप दिया हमारा लिखा निबंध , पुराने के पैसे दिये नही आज तक :)
ReplyDeleteगन्दा है पर .....धंधा है ...courtsy.ramgopal varma.
ReplyDeleteभारतवर्ष में दलाली का भविष्य उज्जवल है.
ReplyDeleteभारतीय महासंघ (यूरोपियन यूनियन की तर्ज पर एक देश समूह) ने बैतूल सम्मेलन में यह घोषणा की है कि स्वतन्त्रता की ७५वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में सन २०२२ को दलाल-वर्ष घोषित किया जाता है!
जय हो दल के लालों के दलालों की :-)
ReplyDeleteआज दलों के लालों का कल्याण कर दिया.बहुत बढ़िया........लगे रहो ....
ReplyDeleteउत्तम. निम्बन्ध लेखन कम्पनी खूब आगे जायेगी. उक्त कम्पनी ने कितनी दलाली दी :)
ReplyDeleteबूरा न माने जब सब जगह यही हो रहा है तो ... :) छात्र भी अपनी कम्पनी का प्रमोशन करने के लिए दलाली क्यों नहीं दे सकता? :)
दलाली और दलालों के महत्व को परिधि से उठाकर चर्चा के केन्द्र में लाने के लिए अखिल भारतीय दल्ला महासभा आपका शुक्रिया अदा करती है .
ReplyDeleteअरे वाह यहा तो दल्ला महासभा से द्ल्ला महासंघ के भविष्य के अध्यक्ष ( २०२२ के )भी पधार चुके है , महानुभावो हमने आपके बिना दखल के अपना लेख बेचा माफ़ी चाहते है , आपका कमीशन पक्का , पर हमे हमारे पैसे दिलवा दीजीये :)
ReplyDeleteBandhu
ReplyDeleteSarvpratham pranaam aadarniye Chunuu Ji ki ko jinko bina hamse mile hi ye gyan prapt ho gaya ki engineering men koi bhavishya nahin hai.Hota to koi engineer blogger naa banta.apar harsh hua ye jaan kar ki ab bhi dhara par aise teekshn buddhi ke balak maujood hain.
Doosra pranaam Bhai Alok Puranik ji ko jinhone dalalon ke bare men itna shod purn lekh likha, jise padh kar hamare gyan chakshu jo barson se band the achanak khul gaye.
Hamara teesra aur antim pranaam aap ko jisne meri tarah doosron ke lekh kavita ityadi daal kar apne blog ki T.R.P. badhane ka achhok nuskha apnaya.
Bandhu aanand aa gaya khopoli men...Aap to ab tak aaye nahin yahan.
Neeraj
थोडी सी काउंसलिंग की जरूरत है जय प्रकाश जी को. चुन्नू सिंह जैसे होनहार की प्रतिभा को आंक नहीं पा रहे हैं. कुछ समझाइश दीजिये ना आप.
ReplyDeleteBandhu
ReplyDeleteAaj hamare yahan google sewa prapt nahin ho rahi isliye bahut intezar karne ke baad jhak mar kar roman men comment karna padha, iska arth ye nahin hai ki hamari english sudhar gayii hai.
Neeraj
भारत में दलाली का उज्ज्वल भविष्य ?
ReplyDeleteयहाँ तो पूर भारतवर्ष ही दलाली के बल पर चंद दलालों द्वारा चलाया जा रहा है !
चुन्नू सिंह निःसंदेह ही होनहार हैं,
और, उनसे मिलवाने वाले का तो कहना ही क्या ?
सदैव की तरह उत्कृष्ट !
bharat mein dalali ka bhavishy sachmuch ujjwal hai...kai logo ko career chunne mein mada milegi is likh se.
ReplyDeleteदलाली का भूत भी चमकदार था, वर्तमान तो है ही और भविष्य निस्संदेह ही है।
ReplyDeleteअति प्रेरणादायक निबंध. अप्रवासी भारतीय वाली क्लाफीकेशन भी है, अब इसी फील्ड में एक्सपान्ड करुँगा. बहुत उज्जवल भविष्य नज़र आ रहा है. फ्रेन्चाईजी चाहिये तो जल्दी लिख भेजिये. :)
ReplyDeleteदलाल दो पार्टियों के बीच् माध्यम् बनता है। दो अपरिचितों की जरूरतें पूरी करता है। क्या-क्या नहीं करता। यह् निबंध भी एक् तरह का दलाल् ही है। हमको और् आपको मिला रहा है। बदले में चंद् टिप्पणियां पा रहा है।
ReplyDeleteभूत चमकदार था , भविष्य उज्ज्वल है !
ReplyDeleteआपकी निबन्ध कम्पनी भी अच्छी चल निकलेगी और चुन्नू सिंह का भी फ्यूचर ब्राइट है जी !
चुन्नू सिंह ने बहुत बढ़िया फैसला लिया है... बाकी कुछ भी हो बिना दलालों के दुनिया नहीं चलनी. :-)
ReplyDeleteचुन्नु जी बड़े समझदार हैं । आप की लेखनी दिन ब दिन पैनी होती जा रही है जी , गुड
ReplyDeleteएकदम सही है चुन्नूसिहजी का फैसला और आपका भी ।
ReplyDeletedalali ka faisala bura nahi hai . bharat me dalalo ka bhavishy ujjawal hai .
ReplyDeleteचुन्नू सिंह को किसी तरह अमर सिंह तक पहुंचा सकें तो, बड़ा भला होगा।
ReplyDeleteइस निबंध ने मेरी एन आर आई विचारधारा पर गहरा प्रभाव छोड़ा है, उस हेतु आपके द्वारा की गई निबंध चोरी के लिए साधुवाद देना चाहूँगा.
ReplyDeleteइसी दलाली परंपरा में एक स्वर्णिम युग ऐसा भी आया था जिसमें बाबा, स्वामी एवं तांत्रिकों ने अपनी भर शाक्ति योगदान किया था..बस एक धुँधला सा स्मरण हो रहा है. आप शायद ज्यादा साफ देख पायें-इसलिए नहीं कि जवान हो तो आँख अच्छी होगी ही बल्कि इसलिए कि मुहाने के करीब बैठे हो. :)
पुनः एक बार चुन्नू सिंह वल्द श्री जय प्रकाश साकिन कलकत्ता को उनके इस क्रान्तिकारी फैसले के लिए हृदय से बधाई देता हूँ और असीम शुभकामनाऐं.
आप भी कृप्या अब उनके बाप का साथ छोड़ बच्चे का साथ करें, उसी में समझदारी है. जय प्रकाश जी की उम्र तो अब निबंध पढ़ते ही कटेगी. :)
उजव्वल है भविष्य और अब इसकी पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है
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