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Monday, July 28, 2008

एक सीन 'उनके' घर का....


@mishrashiv I'm reading: एक सीन 'उनके' घर का....Tweet this (ट्वीट करें)!

- जल्दी करो. पत्रकार आते ही होंगे.

- एक मिनट. अभी मैं शेरवानी चूज कर रहा हूँ.

- अरे, अभी कल ही तो बैंगलोर में विस्फोट हुआ था. नयी शेरवानी कल ही तो पहनी थी. उसी को पहन लो.

- नहीं-नहीं. वो ठीक नहीं रहेगी. उसका रंग थोड़ा डीप है. बैंगलोर में एक ही व्यक्ति मरा था, इसलिए चल गयी. अहमदाबाद में तो पचास मारे गए हैं. यहाँ वो शेरवानी नहीं चलेगी.

- तो कोई सफ़ेद शेरवानी धारण कर लो.

- हाँ, वही सोच रहा हूँ.

- लेकिन तुम्हारे बाल आज थोड़ा ज्यादा काले दिख रहे हैं.

- तीन दिन पहले ही कलर करवाया था.

- उसे थोड़ा सफ़ेद करने की ज़रूरत है. अहमदाबाद में ज्यादा लोग मरे हैं न.

- हाँ, मैं भी वही सोच रहा हूँ.

- लेकिन आज पत्रकारों के सामने क्या बोलोगे?

- क्या बोलना है. वही जो अब तक बोलते आया हूँ. अभी पांच मिनट में सीडी देख लूँगा कि जयपुर, हैदराबाद, मुम्बई, मालेगांव, बनारस वगैरह में क्या कहा था. उसी में कुछ जोड़ दूँगा.

- लेकिन देखना लोगों को शिकायत न हो कि एक ही बात बार-बार बोलते हो.

- वो मैं मैनेज कर लूँगा. और वैसे भी नया क्या बोलूँगा?

- नहीं, कुछ नया बोलने से इमेज ठीक-ठाक बनी रहती है.

- क्या नया बोलूँगा? और कर भी क्या सकता हूँ? आतंकवादियों को रोकने के लिए क्या हिमालय के ऊपर आठ हज़ार मीटर ऊंचा एक और पर्वत रखवा दूँ?

- नहीं वो तो पासिबिल नहीं है. लेकिन पुलिस तंत्र वगैरह को सुधारने के बारे में कुछ कह देने से बात बन जायेगी.

- उतना बताने की ज़रूरत नहीं है. मंत्री हूँ, उतना भी नहीं समझूंगा तो कैसे चलेगा.

- लेकिन कम से कम चार लाइन नया बोलने की कोशिश करना.

- वो मैं मैनेज कर लूँगा. तीन लाइन सौहार्द बनाये रखने के लिए, दो लाइन आतंकवादियों को चेतावनी, तीन लाइन खुफिया तंत्र को मज़बूत करने पर और दो लाइन मरे और घायल लोगों के परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करने के लिए. बस इतने में काम हो जायेगा.

- लेकिन यही सब तो हर बार बोलते हो. कुछ लाइन ऐड करने के बारे में सोचना.

- हर विस्फोट के बाद अगर ऐसे ही लाइन ऐड करना शुरू कर दूँगा तो एक साल के अन्दर मीडिया के लिए मेरा बाईट ही पचास लाइन का हो जायेगा.

- फिर भी, एसटीऍफ़ को कार्यवाई सौंपने की बात और एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाने के बारे में बोलने से अच्छा रहेगा.

- ठीक कहा. थैंक यू.

- अच्छा, जल्दी-जल्दी मत बोलना. धीरे-धीरे बोलना. इससे चेहरे पर गंभीरता कायम रहती है.

- ठीक कहा तुमने.

- शेरवानी पहन ली?

- हाँ.

- जेब में कंघी रख लिया?

- ठीक याद दिलाया तुमने. वो सफ़ेद वाली कंघी जरा भेजना.

- अच्छा, मैं तैयार हो गया. चलता हूँ अब.

- ओके. बेस्ट ऑफ़ लक.

- थैंक यू.

23 comments:

  1. तुम तो बस तुम्ही हो...................खून खौलता हो,दिल रोता हो,तो एक अत्यन्त कुशल व्यंगकार ऐसे ही अभिव्यक्त कर शब्दों के मीठे मीठे जूते भींगा भींगा कर मारने की कुव्वत रखता है... ....
    रो तो बहुत लिए भाई अब जुतियाने का कार्यक्राम शायद कुछ काम कर जाए..........
    साधु...साधु ......ऐसे ही लिखते रहो.. दुखते दिल पर तुमने सुख का फाहा रख दिया....जियो.....

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  2. बिल्कुल सटीक व्यंग्य

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  3. वाह शिवकुमार जी आपने जो आज के समय में ये सभी नेता लोग छोटा हो या बडा बस इन्‍हें मामला मिलना चाहिए मौका चाहे कोई भी कोई हादसा हो या किसी के घर बच्‍चे की जन्‍म की पार्टी हो ये सब के सब सफेदपोश राजनीतिक गोटियां खेलने से बाज नहीं आते बहुत खूब कटाक्ष किया है आपने राजनीति के ऊपर । शुक्रिया इन सफेदपोशों का असली चेहरा दिखाने के लिए

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  4. बंधू
    ऐसा व्यंग आज की तारिख में दो ही लोग लिख सकते थे एक डा. ज्ञान चतुर्वेदी और दूसरे आप...ज्ञान जी लगता है कहीं और बीजी हैं और आप ने बाजी मार ली पहले लिख कर. भाई कमाल कर दिया आपने...बधाई.
    नीरज

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  5. सही है जी , शेरवानी जरूर बदलते रहनी चाहिये

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  6. भाई साब 'उनके' मतलब किनके? ये शेरवानी तो हमारे गृहमंत्री धारण करते हैं.उनके घर की ख़बर भी ले आए. आप पत्रकारिता में होते तो अभी तक स्टिंग आपरेशन कर रहे होते. अब किसे पता कि यह काल्पनिक है या सचमुच उनके घर में घुसकर शूट कर
    ले आए हैं. अगर यह काल्पनिक है तो यही कहूँगा कि बढ़िया लिखा है.

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  7. खुबसूरत व्यंग्य बढ़िया लिखा है.

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  8. इनके पास हृदय नहीं, केवल गिद्ध दृष्टि है जो अपनी खुराक दूर से ही देख लेते हैं। उसपर पूरी चतुराई से टूट पड़ते हैं। नोचते खसोटते हैं ताकि इनका ‘वजन’ बढ़ता रहे। ज्यों-ज्यों भारी होते हैं, सत्ता की कुर्सी इन्हें और नजदीक दिखती जाती है। ...जब यह मिल जाती है तो भी इनकी क्षुधा शान्त नहीं होती है। बल्कि इनके पंजे और नुकीले हो जाते हैं।

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  9. अभी उमाशंकर सिंह के ब्लॉग पर टिपण्णी दी है वही लिख मार रहा हु....
    ये है नेपथ्य के पीछे का सच..... नेता केवल बाईट के भूखे होते हैं.... पार्टी का मुलाजिम सुबह सुबह अखबारों की कतरन कर के एक फाईल बनाता है.... कहा हमारे नेता जी की लीड स्टोरी है कहा सिंगल कालम..... और नेता जी टीवी पर टिकर देखते रहते हैं..... कि सबसे पहले बयान फला चैनल पर चल गया है......Rotten eggs!!

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  10. अच्छा व्यंग्य

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  11. करारा कटाक्ष!! बहुत बेहतरीन बयाँ किया है इन नौटंकीबाजों का सच. बधाई.

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  12. तीखा और करारा व्यंग्य। अच्छा लगा।

    ये नेता कौम ही ऐसी है, देश को कुछ भी हो जाए, इनकी सेहत पर कोई फर्क नही पड़ता। हमेशा अपनी जिम्मेदारियों से भागते हुए, एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहते है। इनके भत्ते का सौ रुपया भी कटने की बात चले, तो देखिए कैसे एकजुट हो जाते है। काश! देश को भी ये अपना समझते। वैसे सारे नेताओं को इकट्ठा करके, एक साथ अंडमान निकोबार और किसी दूसरे द्वीप पर छोड़ देना चाहिए, जहाँ पर कोई भयंकर बीमारी फैली हो। जैसे जैसे एक एक नेता के सिधारने की खबर आए, देशवासी खुशी मनाएंगे।

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  13. पं. शिवकुमार मिश्र के लिए साधु-साधु! और शेरवानी से इमेज सुधारने वाले नेता जी के लिए बादू! बादू !!
    ( 'बादू' शब्द का अर्थ जानने के लिए सीताराम लालस का राजस्थानी शब्दकोश देखें )

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  14. बहुत ग़ज़ब का व्यंग्य। आपका क़ायल हूं शिवजी। ऐसे ही धारदार लेखन की प्रेरणा पाते रहें प्रतिकूलताओं से । हां, कभी कभी अनुकूलताओं में भी व्यंग्य खोज लेना सुखकारी होता है :)

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  15. .

    गैंडे की खाल की शेरवानी पहनने का ध्यान न रहा होगा, श्रीमान जी को !
    याकि शेरवानी पहनते उतारते घिस कर खाल ही गैंडे सी हो चुकी है ।

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  16. ये तो टू गुड पोस्ट है, आपने तो हमारे कैमरा छिपाऊ पत्रकारों को भी मात कर दिया.


    ऐसा ईनाम मिला है ईमानदारी का,
    एक कर्फ्यू है संभाले मेरा मस्तक प्यारे,
    पहले ये खून खौलता था कुछ सवालों पर,
    अब फड़कती ही नहीं एक भी नस तक प्यारे।

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  17. एक्दमै सटीक!

    भैया आपके साथ रहने वाले कई बार तो त्रस्त हो जाते होंगे न आपकी इस व्यंग्य की आदत के चलते ;)

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  18. Waah!! bahut hi achchha kataaksh hai...ise kahte haiN "Kambal me lapel ke maarna"...

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय