- जल्दी करो. पत्रकार आते ही होंगे.
- एक मिनट. अभी मैं शेरवानी चूज कर रहा हूँ.
- अरे, अभी कल ही तो बैंगलोर में विस्फोट हुआ था. नयी शेरवानी कल ही तो पहनी थी. उसी को पहन लो.
- नहीं-नहीं. वो ठीक नहीं रहेगी. उसका रंग थोड़ा डीप है. बैंगलोर में एक ही व्यक्ति मरा था, इसलिए चल गयी. अहमदाबाद में तो पचास मारे गए हैं. यहाँ वो शेरवानी नहीं चलेगी.
- तो कोई सफ़ेद शेरवानी धारण कर लो.
- हाँ, वही सोच रहा हूँ.
- लेकिन तुम्हारे बाल आज थोड़ा ज्यादा काले दिख रहे हैं.
- तीन दिन पहले ही कलर करवाया था.
- उसे थोड़ा सफ़ेद करने की ज़रूरत है. अहमदाबाद में ज्यादा लोग मरे हैं न.
- हाँ, मैं भी वही सोच रहा हूँ.
- लेकिन आज पत्रकारों के सामने क्या बोलोगे?
- क्या बोलना है. वही जो अब तक बोलते आया हूँ. अभी पांच मिनट में सीडी देख लूँगा कि जयपुर, हैदराबाद, मुम्बई, मालेगांव, बनारस वगैरह में क्या कहा था. उसी में कुछ जोड़ दूँगा.
- लेकिन देखना लोगों को शिकायत न हो कि एक ही बात बार-बार बोलते हो.
- वो मैं मैनेज कर लूँगा. और वैसे भी नया क्या बोलूँगा?
- नहीं, कुछ नया बोलने से इमेज ठीक-ठाक बनी रहती है.
- क्या नया बोलूँगा? और कर भी क्या सकता हूँ? आतंकवादियों को रोकने के लिए क्या हिमालय के ऊपर आठ हज़ार मीटर ऊंचा एक और पर्वत रखवा दूँ?
- नहीं वो तो पासिबिल नहीं है. लेकिन पुलिस तंत्र वगैरह को सुधारने के बारे में कुछ कह देने से बात बन जायेगी.
- उतना बताने की ज़रूरत नहीं है. मंत्री हूँ, उतना भी नहीं समझूंगा तो कैसे चलेगा.
- लेकिन कम से कम चार लाइन नया बोलने की कोशिश करना.
- वो मैं मैनेज कर लूँगा. तीन लाइन सौहार्द बनाये रखने के लिए, दो लाइन आतंकवादियों को चेतावनी, तीन लाइन खुफिया तंत्र को मज़बूत करने पर और दो लाइन मरे और घायल लोगों के परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करने के लिए. बस इतने में काम हो जायेगा.
- लेकिन यही सब तो हर बार बोलते हो. कुछ लाइन ऐड करने के बारे में सोचना.
- हर विस्फोट के बाद अगर ऐसे ही लाइन ऐड करना शुरू कर दूँगा तो एक साल के अन्दर मीडिया के लिए मेरा बाईट ही पचास लाइन का हो जायेगा.
- फिर भी, एसटीऍफ़ को कार्यवाई सौंपने की बात और एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाने के बारे में बोलने से अच्छा रहेगा.
- ठीक कहा. थैंक यू.
- अच्छा, जल्दी-जल्दी मत बोलना. धीरे-धीरे बोलना. इससे चेहरे पर गंभीरता कायम रहती है.
- ठीक कहा तुमने.
- शेरवानी पहन ली?
- हाँ.
- जेब में कंघी रख लिया?
- ठीक याद दिलाया तुमने. वो सफ़ेद वाली कंघी जरा भेजना.
- अच्छा, मैं तैयार हो गया. चलता हूँ अब.
- ओके. बेस्ट ऑफ़ लक.
- थैंक यू.
Monday, July 28, 2008
एक सीन 'उनके' घर का....
@mishrashiv I'm reading: एक सीन 'उनके' घर का....Tweet this (ट्वीट करें)!
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तुम तो बस तुम्ही हो...................खून खौलता हो,दिल रोता हो,तो एक अत्यन्त कुशल व्यंगकार ऐसे ही अभिव्यक्त कर शब्दों के मीठे मीठे जूते भींगा भींगा कर मारने की कुव्वत रखता है... ....
ReplyDeleteरो तो बहुत लिए भाई अब जुतियाने का कार्यक्राम शायद कुछ काम कर जाए..........
साधु...साधु ......ऐसे ही लिखते रहो.. दुखते दिल पर तुमने सुख का फाहा रख दिया....जियो.....
बिल्कुल सटीक व्यंग्य
ReplyDeleteवाह शिवकुमार जी आपने जो आज के समय में ये सभी नेता लोग छोटा हो या बडा बस इन्हें मामला मिलना चाहिए मौका चाहे कोई भी कोई हादसा हो या किसी के घर बच्चे की जन्म की पार्टी हो ये सब के सब सफेदपोश राजनीतिक गोटियां खेलने से बाज नहीं आते बहुत खूब कटाक्ष किया है आपने राजनीति के ऊपर । शुक्रिया इन सफेदपोशों का असली चेहरा दिखाने के लिए
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteऐसा व्यंग आज की तारिख में दो ही लोग लिख सकते थे एक डा. ज्ञान चतुर्वेदी और दूसरे आप...ज्ञान जी लगता है कहीं और बीजी हैं और आप ने बाजी मार ली पहले लिख कर. भाई कमाल कर दिया आपने...बधाई.
नीरज
सही है जी , शेरवानी जरूर बदलते रहनी चाहिये
ReplyDeleteखुबसूरत व्यंग्य
ReplyDeleteभाई साब 'उनके' मतलब किनके? ये शेरवानी तो हमारे गृहमंत्री धारण करते हैं.उनके घर की ख़बर भी ले आए. आप पत्रकारिता में होते तो अभी तक स्टिंग आपरेशन कर रहे होते. अब किसे पता कि यह काल्पनिक है या सचमुच उनके घर में घुसकर शूट कर
ReplyDeleteले आए हैं. अगर यह काल्पनिक है तो यही कहूँगा कि बढ़िया लिखा है.
खुबसूरत व्यंग्य बढ़िया लिखा है.
ReplyDeleteइनके पास हृदय नहीं, केवल गिद्ध दृष्टि है जो अपनी खुराक दूर से ही देख लेते हैं। उसपर पूरी चतुराई से टूट पड़ते हैं। नोचते खसोटते हैं ताकि इनका ‘वजन’ बढ़ता रहे। ज्यों-ज्यों भारी होते हैं, सत्ता की कुर्सी इन्हें और नजदीक दिखती जाती है। ...जब यह मिल जाती है तो भी इनकी क्षुधा शान्त नहीं होती है। बल्कि इनके पंजे और नुकीले हो जाते हैं।
ReplyDeleteअभी उमाशंकर सिंह के ब्लॉग पर टिपण्णी दी है वही लिख मार रहा हु....
ReplyDeleteये है नेपथ्य के पीछे का सच..... नेता केवल बाईट के भूखे होते हैं.... पार्टी का मुलाजिम सुबह सुबह अखबारों की कतरन कर के एक फाईल बनाता है.... कहा हमारे नेता जी की लीड स्टोरी है कहा सिंगल कालम..... और नेता जी टीवी पर टिकर देखते रहते हैं..... कि सबसे पहले बयान फला चैनल पर चल गया है......Rotten eggs!!
अच्छा व्यंग्य
ReplyDeleteacchhi kahi ...balki bahut acchhi kahi
ReplyDeleteसही व्यंग ...:)
ReplyDeleteकरारा कटाक्ष!! बहुत बेहतरीन बयाँ किया है इन नौटंकीबाजों का सच. बधाई.
ReplyDeletesateek.badhai aapko
ReplyDeleteachha hai , dhanyavad
ReplyDeleteतीखा और करारा व्यंग्य। अच्छा लगा।
ReplyDeleteये नेता कौम ही ऐसी है, देश को कुछ भी हो जाए, इनकी सेहत पर कोई फर्क नही पड़ता। हमेशा अपनी जिम्मेदारियों से भागते हुए, एक दूसरे पर दोषारोपण करते रहते है। इनके भत्ते का सौ रुपया भी कटने की बात चले, तो देखिए कैसे एकजुट हो जाते है। काश! देश को भी ये अपना समझते। वैसे सारे नेताओं को इकट्ठा करके, एक साथ अंडमान निकोबार और किसी दूसरे द्वीप पर छोड़ देना चाहिए, जहाँ पर कोई भयंकर बीमारी फैली हो। जैसे जैसे एक एक नेता के सिधारने की खबर आए, देशवासी खुशी मनाएंगे।
पं. शिवकुमार मिश्र के लिए साधु-साधु! और शेरवानी से इमेज सुधारने वाले नेता जी के लिए बादू! बादू !!
ReplyDelete( 'बादू' शब्द का अर्थ जानने के लिए सीताराम लालस का राजस्थानी शब्दकोश देखें )
बहुत ग़ज़ब का व्यंग्य। आपका क़ायल हूं शिवजी। ऐसे ही धारदार लेखन की प्रेरणा पाते रहें प्रतिकूलताओं से । हां, कभी कभी अनुकूलताओं में भी व्यंग्य खोज लेना सुखकारी होता है :)
ReplyDelete.
ReplyDeleteगैंडे की खाल की शेरवानी पहनने का ध्यान न रहा होगा, श्रीमान जी को !
याकि शेरवानी पहनते उतारते घिस कर खाल ही गैंडे सी हो चुकी है ।
ये तो टू गुड पोस्ट है, आपने तो हमारे कैमरा छिपाऊ पत्रकारों को भी मात कर दिया.
ReplyDeleteऐसा ईनाम मिला है ईमानदारी का,
एक कर्फ्यू है संभाले मेरा मस्तक प्यारे,
पहले ये खून खौलता था कुछ सवालों पर,
अब फड़कती ही नहीं एक भी नस तक प्यारे।
एक्दमै सटीक!
ReplyDeleteभैया आपके साथ रहने वाले कई बार तो त्रस्त हो जाते होंगे न आपकी इस व्यंग्य की आदत के चलते ;)
Waah!! bahut hi achchha kataaksh hai...ise kahte haiN "Kambal me lapel ke maarna"...
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