कितने ही ज्ञानी टाइप लोग हैं, जो समाज की समझ का दावा करते हैं. उठते-बैठते बताते रहते हैं कि मनुष्य की नब्ज़ को टटोलकर मनुष्य को पढ़ चुके हैं. देश का नाम पढ़कर बता सकते हैं कि फला देश के लोग सीधे होते हैं और फलाने देश के टेढ़े. अभी हाल ही में याहू पर एक सर्वे का रिजल्ट देख रहा था. लिखा था भारतीय बड़े बदतमीज होते हैं. भारतीयों के जितना बदतमीज दुनियाँ में बहुत कम देशों के लोग हैं. ऐसे ही एक सर्वे के रिजल्ट में लिखा था कि भारतीय लोग रिस्क नहीं लेना चाहते. नाक की सीध में चलते जिंदगी गुजार देते हैं. वहीं पश्चिमी देशों के लोग रिस्क वगैरह लेना बखूबी जानते हैं.
पता नहीं किन लोगों ने इस तरह का सर्वे किया. पता नहीं कहाँ किया और कैसे किया. मुझे तो अपने देश के लोग बड़े रिस्की सॉरी, रिस्क लेने वाले लगते हैं. हाल ही में टीवी पर एक रिपोर्ट देख रहा था. रिपोर्ट थी एक पायलट बनाने वाले अमेरिकी संस्थान के बारे में. रिपोर्ट देखकर पता चला कि अमेरिका के एक शहर में यह संस्थान पायलट बनाने का काम करता है. इस संस्थान में ढेर सारे भारतीय छात्र फंसे बैठे हैं. कारण यह है कि संस्थान दिवालिया होते हुए बंद हो चुका है. बैंकों का लोन वगैरह बाकी है इस संस्थान के ऊपर. पायलट बनने का सपना संजोये जो छात्र फंसे बैठे हैं, उनके पास पैसा नहीं बचा है. माना कि संस्थान ने बड़ी रिस्क लेकर बैंक से लोन लिया होगा लेकिन हमारे देश के छात्रों ने भी कुछ कम रिस्क नहीं लिया.
टीवी पर इन छात्रों के माँ-बाप का इंटरव्यू देखा. देखकर कन्फर्म हो लिया कि इन छात्रों से ज्यादा बड़ा रिस्क तो इनके माँ-बाप ने लिया. लगभग सारे छात्र बंगलौर के हैं. माँ-बाप ने इन्हें पायलट बनाने के लिए कितना हिसाब बैठाया. कितने जुगाड़मेंट किए. किसी ने पीऍफ़ से लोन लिया है. किसी ने बैंक से लोन लिया है. किसी ने मकान गिरवी रख दिया है. पचास साल की उम्र वाले माँ-बाप इतना रिस्किया सकते हैं कि बेटे को पायलट बनाने के लिए अपना घर-बार गिरवी रख सकते हैं. ऊपर से इन सर्वे करने वालों की हिम्मत देखिये कि भारतीयों को रिस्क लेने वाला नहीं मानते.
एक और रिपोर्ट देख रहा था. न्यूजीलैंड में पंजाब के ढेर सारे लोग फंसे पड़े हैं. वहां पंहुचने के बाद वही पता चला जो हमेशा चलता है. ट्रेवल एजेंट ने बदमाशी कर दी है. वीसा नकली थमा दिया. न्यूजीलैंड की पुलिस ने इनलोगों को अरेस्ट कर रखा है. कुछ लोग भाग चुके हैं. पुलिस उन्हें खोज रही है. सालों से होता आया है कि ट्रेवल एजेंट ऐसे लोगों को बेवकूफ बनाते रहे हैं. लेकिन ये लोग भी हार मानने वाले नहीं हैं. लगता है जैसे कसम खाकर निकलते हैं कि "बेटा तू थक जायेगा हमें बेवकूफ बनाते-बनाते लेकिन हम नहीं थकेंगे बेवकूफ बनते. तुझे मेरी बात पर विश्वास न हो, तो ट्राई मार के देख ले."
कुछ साल पहले तक सुनने में आता था कि पंजाब के लोग अपनी जमीन बेंच देते थे ताकि गायकत्व को प्राप्त हो सकें. जी हाँ, मैंने कई बार टीवी में रिपोर्ट देखा कि लोग जमीन बेंच कर गायक बन रहे हैं और गायक बनकर अलबम निकाल रहे हैं. बताईये, ये रिस्क लेने की पराकाष्ठा है कि नहीं? जमीन बेंचकर गाने का अलबम निकाल रहे हैं. कोई माई का लाल अमेरिकन ऐसा करके दिखा दे तो मान जाऊं कि हम भारतीय रिस्क लेना नहीं जानते.
आए दिन सड़क पर हजारों भारतीयों को रिस्क लेते हुए देखा जा सकता है. रेलवे क्रॉसिंग की तो बात ही छोड़ दीजिये. रेलवे वाले लाऊडस्पीकर पर बता रहे हैं; "भइया ट्रेन आने वाली है. इसलिए हम आपके सामने लोहे का पाइप गिरा दे रहे हैं ताकि आप रुक जाइये." लेकिन क्या औकात घोषणा की और क्या औकात लोहे के टुच्चे पाइप की? पाइप को कोर्नीस बजाते हुए हम निकल लेते हैं. पाइप बेचारा रेलवे क्रॉसिंग के उस गार्ड को घूरते हुए पूछ रहा होता है; "काहे इतनी मेहनत करके मुझे उठाते-गिराते रहते हो? ये लोग रिस्क लेते हुए जब निकल लेते हैं तो मुझे लगता है जैसे मेरा जीवन ही व्यर्थ है."
इसके अलावा हम रिस्क लेने की हर उस विधा में हाथ आजमाने को तैयार हैं जिनपर अब तक विकसित देशों के लोगों का एकाधिकार था. जहाँ एक तरफ़ हम क्रेडिट कार्ड स्पेंडिंग के रिस्क का मज़ा लेना सीख रहे हैं वहीं दूसरी तरफ़ शेयर बाज़ार में निवेश की रिस्क से उपजने वाले रोमांच को महसूस करने का मौका भी हाथ से नहीं जाने देना चाहते. सामाजिकता में रिस्क लेने के नए-नए आयाम स्थापित होने शुरू हो ही गए हैं. मुझे तो पक्का विश्वास है कि आनेवाले दिनों में हम रिस्क लेने के नए क्षेत्रों की खोज करते हुए विकसित देशों के लोगों को इस बारे कुछ पाठ पढ़ाने की कूवत रखने लगेंगे.
लेकिन एक ही बात है. इतना सब कुछ करने से पहले एक बार हमें 'रिस्क मैनेजमेंट' का पाठ भी पढ़ लेना चाहिए.
एक चार लाइन वाली बात....
एक शाम रवि के प्रति दैन्य भाव जागा
कि; डूबने को चढ़ता है व्योम में अभागा
नभ बोला; "और क्या फल होगा उसका जो
पूरब में जन्म लेकर पश्चिम को भागा"
----श्री उदय प्रताप सिंह
Saturday, July 26, 2008
हम भारतीय भी 'कुछ कम रिस्की नहीं है'
@mishrashiv I'm reading: हम भारतीय भी 'कुछ कम रिस्की नहीं है'Tweet this (ट्वीट करें)!
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बहुत प्रभावी लिखा है।
ReplyDeleteअच्छे विषय पर अच्छा व्यंग्य।
ReplyDeleteहा हा हा रेलवे क्रॉसिंग के पाइप के मान की बात सिर्फ़ आप ही लिख सकते है..
ReplyDeleteअजी सबसे बड़ी रिस्क तो आपने बताई ही नही.. सर्वे वाले एक बार संसद भवन का चक्कर लगा लेते तो पता चल जाता.. हिन्दुस्तान की जनता ने कितनी बड़ी रिस्क ले रखी है :)
यहां ब्लागर तक भयंकर रिस्क लेता है। जानता है शनिवार को कम लोग पढ़ते हैं फ़िर भी पोस्ट एन शनीचर के दिन ठेल देता है-बोल बजरंगबली की जै!
ReplyDeleteइतने बडे हिन्दुस्तान में रिस्क के अलावा रास्ता भी क्या बचता है।
ReplyDeleteमेरी नजर में सबसे बड़े रिस्कर तो शिवकुमार मिश्र हैं - जो कई खूंखार छाप ब्लॉगों पर भी कमेण्ट कर आते हैं। :-)
ReplyDeletepura padhne ke baad laga risk lene se fayda hi hota hai
ReplyDeleteपढने के बाद पहले सोच लिया. कमेन्ट करने में कोई रिस्क तो नहीं है.
ReplyDeleteकोई रिस्क नहीं है जी. जब लिखने में कोई रिस्क नहीं तो कमेन्ट करने में काहे का रिस्क.
बड़े रिस्की विषय पर लिखा है. अनूप जी की बात पर भी ध्यान दो.
शनिवार को पोस्ट ठेलने से बचो. कमेन्ट न पाने का रिस्क बना रहेगा..:-)
अनूप जी की बात सही मानते हुए हम आप को ब्लोग्गर समाज का "रिस्क रत्न" सम्मान देना चाहते हैं...शनीवार को कमेन्ट की परवाह किए बिना पोस्ट ढेलने से बड़ी रिस्क कोई लेके तो दिखाए...ये तो एवरेस्ट पर बिना ऑक्सीजन साथ लिए चढ़ने वाली बात हुई...और ऐसी रिस्क इतिहास गवाह है बहुत कम लोगों ने ली है....
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद राजनीती के विषय के इतर भी आप ने लिखा है जो हमारी भी समझ में आसानी से आगया...ये भी रिस्क लेने वाली बात है...की आप का लिखा आम जन की समझ में आ जाए.
नीरज
सचमुच काफी रिस्की लेख है। देखिए हम भी पढने का रिस्क उठा लिए है।
ReplyDeleteरेलवे फ़ाटक,गार्ड और पाइप वाली बात अच्छी लगी।
एकदम सही सटीक झक्कास लिखा. मुझे याद आया पटना में कई जगह तो रेलवे ट्रैक पर बाकायदा सब्जी बाजार लगता है और ट्रेन जब आती है तो उसके गुजरने तक में सब ट्रैक पर से हट जाते हैं और गुजरते ही हाट फ़िर पूर्ववत सज जाता है.
ReplyDeleteभाई,राजनीति की सुन देख कर अब घिना घिना कर ऊब चुके हैं.कितना खून जलाएं.?इसलिए कुछ दिन राजनीति को भूल पाने लायक ऐसे ही परोसो.
सर्वे मुझे भी जमा नहीं। रिस्क लेने के मामले में तो अव्वल ही हैं। जो, काम जानते नहीं वही करते हैं। जो, लड़की या लड़का देखते भी नहीं उसी से शादी कर उसके साथ जिंदगी गुजार देते हैं। और, ये सर्वे वाले बेवकूफ कहते हैं हम रिस्क नहीं लेते।
ReplyDeleteहमको कम रिस्की कहने का रिस्क किसने लिया.. (दहाड)
ReplyDeleteहम कुश जी बात से भी सहमत है ,बाल किशन जी की भी ओर नीरज जी की भी.....पहले तो सोच रहे थे सबसे ऊपर वालो की तरह दो शब्द की टिपण्णी लिख्कर कोई रिस्क न ले फ़िर इन सब को पढ़ा तो रिस्क ले ही लिया ....
ReplyDeleteभरात मे पेदा होना ही सब से बडा रिस्क हे, वाकी तो आदत पड जाती हे, धन्यवाद इस रिस्की लेख का
ReplyDeleteबहुत रिस्क लेते हुए डरे सहमे कमेंट कर रहा हूँ..काहे कि हम को तो अंतिम चार में सिमटा हुआ सब पायेंगे..वैसे यह चार पंक्तियां कुछ और कहती हैं और आलेख कुछ और. क्या करें:
ReplyDeleteएक शाम रवि के प्रति दैन्य भाव जागा
कि; डूबने को चढ़ता है व्योम में अभागा
नभ बोला; "और क्या फल होगा उसका जो
पूरब में जन्म लेकर पश्चिम को भागा"
----श्री उदय प्रताप सिंह
-चुपचाप चले जाते हैं. हांलाकि किसी भी सर्वे में हम सम्मलित नहीं थे. ;(
भारत में पैदा होना फिर जीना दुनिया का सबसे रिस्की काम है। ऐसे पानी, ऐसी बिजली,दवाएं नकली नकली, असली सिर्फ भ्रष्टाचार है खालिस है सौ टके वाला नहीं, पच्चीस करोड़ वाला।
ReplyDeleteससुरा कौन है कहता कि हम भारतीय रिस्की नही हैं कनाडा में रहने वाले समीर जी जब इतने रिस्की हो सकते हैं फ़िर तो हम संसद भवन से बमुश्किल १० किमी दूर रहते हैं..... और कभी भी भारत कि ट्रैफिक कोई देख ले.... रिस्क का बाप है इंडियन ट्रैफिक
ReplyDeleteहम तो बच्चे भी खेल-खेल में पैदा कर देते हैं। मैं तो किस्मत वाला था कि खेत में पैदा नहीं हुआ वरना मेरे कुछ जानकार लोग तो खेतों में भी पैदा होने से नहीं हिचकिचाए। रिस्क तो माँ-बाप ने भी लिया और इन लोगों ने भी। है न पराकाष्ठा? अंतर सिर्फ़ इतना है कि पश्चिमी लोग जान-बूझकर रिस्क लेते हैं और हमारे लिये यह आम बात होती है।
ReplyDeleteअभी इंग्लैंड के हाईवे पर गाड़ी चला रहा था। एक टर्न पर दाएं-बाएं मुड़ने के चक्कर में non-traffic lane पर चला गया। पीछे से आने वाली गाड़ी जो 300 feet पीछे थी उसने डिपर मारना शुरु कर दिया और मुझे ओवरटेक करके उस महिला ने middle finger दिखा दी। हद है डर की। भारत में तो अपन 3feet की दूरी से निकल जाते हैं तब भी कुछ रिस्क जैसा नहीं लगता। ;-)
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ReplyDelete.
ReplyDeleteक्या मेरा कमेन्ट करना उचित रहेगा ?
क्योंकि मेरे को जो है न..जो है न,
वो ..इस कमीने रिस्क से ही इश्क है
है..तो है, अब इश्क गया चूल्हे भाड़ में..
शिव भईय्या, जो हमारे टिप्पणी बैंक के वरिष्ठ भागीदार की बात है, तो..
अपना रिस्कमीटर फेंकफाँक..
हम तो कमेन्ट करेगा..रिस्किया से नहीं डरेगा
चार बेहतरीन पंक्तियों के संग..
एक गुड..बल्कि गुड्डमगुड पोस्ट शिव भैय्या !
अरे गोली मारिये इन सर्वे वालों को. हम भारतीय तो रिस्क ही खाते, पीते और पहनते हैं. रंजना जी ने रेल पटरी पर सब्जी बाज़ार की बात की, लखनऊ में तो पटरियों पर पूरा उर्स समारोह ही हो जाता है. कोलकाता में तो प्लेटफोर्म व पटरी के बीच की एक फ़ुट जगह में पूरी एक बस्ती बसी हुई है. मगर सबसे बड़ा रिस्क तो हम इन गुंडों को संसद में भेजकर लेते हैं - है कोई देश जो इतनी हिम्मत कर सके?
ReplyDeleteरिस्क उठाकर भेजते, क्यों संसद में चोर।
ReplyDeleteसर्वे शायद कह रहा, ये दिल मांगे मोर॥
बढ़िया है.
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