सचिव दौड़ते हुए आया. हाँफते-हाँफते मैडम से बोला; "मैडम, सब गड़बड़ हो गया. लखनऊ एयरपोर्ट का नाम बदल कर चौधरी साहेब के नाम पर रखने के बावजूद अजीत सिंह जी ने मायावती जी को सपोर्ट कर दिया. ऐसा तो सोचा नहीं था, मैडम. अब क्या होगा?"
"अरे! अजीत सिंह तो कल तक हमारे साथ थे. ऐसा कैसे किया उन्होंने? क्या कह रहे थे?"; मैडम ने पूछा.
सचिव ने अजीत सिंह की कही गयी बात सुना दी. बोला; "मैडम, वे कह रहे थे कि न्यूक्लीयर डील किसानों के हित में नहीं है. सरकार अगर ईरान से गैस की पाइपलाइन बैठाती तो वो किसानों के हित में रहती."
"ओफ्फो, ऐसा कहा उन्होंने? क्या हो रहा है? कोई कहता है न्यूक्लीयर डील मुसलमानों के ख़िलाफ़ है, कोई कहता है किसानों के ख़िलाफ़ है. ठीक है, वे कह ही सकते हैं. किसानों की समस्याओं पर उन्होंने पी एचडी की है"; मैडम ने झुझलाते हुए कहा.
मैडम की बात सुनकर सचिव बोला; "मैडम, वैसे तो छोटा मुंह और बड़ी बात होगी, लेकिन जब आपको मालूम था कि अजीत सिंह जी ने किसानों की समस्याओं पर पी एचडी की हुई है, तो आपको कोई और जुगत लगानी चाहिए थी. जैसे किसानों की किसी मंडी का नाम चौधरी चरण सिंह के नाम पर रख देना चाहिए था. या फिर गेंहूं या गन्ने की किसी प्रजाति का नाम चौधरी जी के नाम पर कर देना चाहिए था."
"अरे, इस बात के बारे में हमने सोचा था. फिर हमें लगा कि गेंहूं और धान जैसी छोटी चीज का नाम अपने पिताजी के नाम पर रखने से वे बिदक सकते थे. हमने सोचा, अजीत सिंह भले ही किसान हों, लेकिन यात्रा वगैरह तो प्लेन से ही करते हैं, तो चलो एयरपोर्ट का नाम ही उनके पिताजी के नाम से रख देते हैं"; मैडम ने अन्दर की बात बताते हुए कहा.
उनकी बात सुनकर सचिव को पक्का विश्वास हो चुका था कि मैडम का दिमाग बहुत तेज चलता है. खैर, कुछ देर सोचने के बाद उसने पूछा; "लेकिन मैडम, अब क्या किया जाय. एयरपोर्ट का नाम भी बदल गया और अजीत सिंह जी का वोट भी नहीं मिला."
सचिव की बात सुनकर मैडम ने कुछ देर सोचने का उपक्रम किया. उसके बाद बोलीं; "ठीक है - ठीक है. एक बार विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हो जाने दो. हम जीत जायेंगे. उसके बाद एयरपोर्ट का नाम फिर से बदल देंगे. अब की बार एयरपोर्ट का नाम मुलायम सिंह जी के पिताजी के नाम से रख देंगे."
उनकी बात सुनकर सचिव ने कुछ सोचा. उसके बाद बोला; "लेकिन मैडम, ये बात मुलायम सिंह जी को बुरी भी तो लग सकती है. वे ये भी तो कह सकते हैं कि एयरपोर्ट का नाम उनके पिताजी के नाम पर रखना ही था तो पहले रखना चाहिए था. मैडम, क्या होगा, अगर उन्होंने इस 'रिजेक्टेड एयरपोर्ट' का नाम अपने पिताजी के नाम पर रखने से इनकार कर दिया तो?"
"उसका हल मैंने पहले से सोच कर रखा है. तुम चिंता मत करो. हम आगरा में ताजमहल के सामने यमुना नदी पर एक बंदरगाह बनवा देंगे और उसका नाम मुलायम सिंह जी के पिताजी के नाम पर रख देंगे"; मैडम ने अपने प्लान की जानकारी देते हुए बताया.
"और इस एयरपोर्ट का नाम क्या होगा, मैडम?"; सचिव ने पूछा.
मैडम ने कुछ देर सोचा और बोलीं; "उस एयरपोर्ट का नाम हम ब्रजभूषण सरण सिंह के पिताजी के नाम पर रख देंगे."
मैडम की बात सुनकर सचिव निश्चिंत हो गया. हाथ में कागज़ और कलम लिए, वो वहां से चला गया. उसे ब्रजभूषण सरण सिंह जी के पिताजी का नाम पूछकर नोट करना था.
पुनश्च:
आज पत्नी जी ने बड़ा अच्छा सवाल किया. उन्होंने मुझसे पूछा; "अच्छा, ये पार्लियामेन्ट में जो वोटिंग होती है, उसमें क्या कभी ऐसा हुआ है कि कोई एमपी वोट देने गया हो और वहां उसे पता चला हो कि उसका वोट तो पहले ही किसी ने डाल दिया है."
मैंने कहा; "क्या बात कर रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है? आजतक कभी नहीं हुआ ऐसा."
उनका जवाब था; " क्यों नहीं हो सकता? अरे बाबा वोट ही तो पड़ेंगे. हमारे साथ तो ऐसा दो बार हो चुका है कि बूथ में वोट देने गए और वहां जाकर पता चला कि किसी ने पहले ही मेरा वोट दे दिया है."
अब आप ही बताईये, भारत में ऐसा होने में कितने साल लग सकते हैं?
Monday, July 21, 2008
लोकतंत्र का भविष्य अब एयरपोर्ट के हाथ में है.....
@mishrashiv I'm reading: लोकतंत्र का भविष्य अब एयरपोर्ट के हाथ में है.....Tweet this (ट्वीट करें)!
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ये एयरपोर्ट का नाम कौन से मैडम ने रखा है.... बड़ी वाली मैडम ने या जो बड़ी बनने वाली हैं वो मैडम ने....???
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteवाह!
क्या जोरदार थापडीयाया है आपने जनाब. लेकिन ये लेख कुछ अधुरा सा लग रहा है केवल मैडम के बारे में ही बताया आपने बाकी जो लाल, दलाल, मुलायम, कठोर, अमर आदि-आदि बच गए है उनका क्या?
उनके बारे में भी जानने के लिए हम उत्सुक हैं.
जरा जल्दी पेश किया जाय.
चरण सिंह जी को एक मैडम ने प्रधानमंत्री बनवाया था। उसके बल पर वे स्वयम नया चुनाव जीतीं। यह दूसरी मैडम उसी तरह का कुछ करने के लिये चरण सिंह जी का नाम चमका रही हैं।
ReplyDeleteमैडम नें एयरपोर्ट का नामकरण कराने के पहले ज्योतिषियों से वेटिंग (vetting) जरूर कराई होगी! क्या ख्याल है?
माफ़ करना बंधू...मान ना पड़ेगा आप की पत्नी आप से ज्यादा दूर तक देख सकती हैं...इसे कहते हैं दूर दृष्टि...जो बिरलों के पास ही होती है. वो दिन दूर नहीं जब उनकी बात सच हो जाए...आज के दौर में जो हो जाए कम है...पोस्ट अच्छी लिख लेते हैं आप लेकिन कभी पत्नीश्री से टिप्स ले कर लिखें और भी धारदार हो सकती है...ऐसा अनुमान होने लगा है अब हमें.
ReplyDeleteनीरज
सुना है न्यूक्लियर डील ब्लोगागारों के हित में भी नहीं है बहुत समय ख़राब हो रहा है उनका इस चक्कर में :-)
ReplyDelete@ अभिषेख जी
ReplyDeleteअभी तक कुल ५७८० 'हिन्दी ब्लॉगर घंटे' बरबाद हुए हैं. वैसे ब्लॉगरगण इस बात से खुश हैं कि न्यूक्लीयर डील पर लिखने से सोचने का समय बच जाता है.....:-) किसी दूसरे विषय पर पोस्ट लिखते तो वहां सोचने के समय की बरबादी तय थी. ५७८० ब्लॉगर घंटे के अलावा सोचने के २४५० घंटे और लगते. अब आप ही बताईये, न्यूक्लीयर डील ब्लॉगरगण के लिए फायदे का सौदा है या नहीं.
आप नहीं बताएँगे तो सरकार को ज्ञापन देकर इस दावे की सत्यता के प्रमाण के लिए एक कमिटी का गठन करवाना पड़ेगा.
gazab kar diya maharaj.
ReplyDeleteसुबह से संसद में जूत- पतराम हो रही है मिश्रा जी....कभी गेंद इधर कभी उधर ....... बेचारे चैनल वाले हर दो मिनट बाद ब्रेकिंग न्यूज़ देते थक गए है...
ReplyDeleteब्लागर घंटे बरबाद हुए?? और भी कुछ काम आते हैं क्या यह? :)
ReplyDeleteझक्कास मरम्मत की गई है कि आनन्द आ गया भाई. नीरज भाई की सलाह मान लें.
फिर एक सिक्सर लगाया आपने
ReplyDeleteपोस्ट से शिव भाई -
भारतीय राजकरण की जानकारी
यूँही मिल रहीँ हैँ हमेँ तो
-लावण्या
@ उड़न तश्तरी और नीरज जी - आप लोग क्या समझते हैं; सारा लेखन बिना पत्नी की प्रेरणा/बैकिंग के करते हैं शिव? आप लोग बड़े नादान हैं! बावजूद इसके कि आप लोग खासी उम्र वाले हैं।
ReplyDeleteशिव श्रीमती पामेला जी की बैकिंग/प्रेरणा बिना उतने ही महत्वहीन हैं जितना मैं रीता जी के बिना।
अब नारीवादी तत्व हमें चाहे जितना गरियाते हों!
देख भाई, पोस्ट तो मैंने पढ़ी नहीं,
ReplyDeleteन्यूक्लियर डील का मामला सुलट जाये,
तभी रस ले लेकर, ले लेकर, ले लेकर, ले लेकर पढ़ूँगा ।
लेकिन भईय्या घर की बात घर में ही रखते, तो अडवनिया चुपाय जात कि नाहीं ?
अगर आपै अपनी मैडम को संभाल संभाल कर आगे बढ़ते हो, तो बेचारे मनमोहन जी मैडम को लेकर काहे ज़लील हो रहे हैं ?
अरे जब हम आये तो सारी टिपण्णीया ही खत्म हो गई,अब देखो करार होता हे य फ़िर हमारे मन मोहन की मेडम बेकरार होवे से...
ReplyDeleteधन्यवाद एक सुन्दर लेख के लिये
शिव भाइ आज की वोटिंग के बाद कल से आप और पत्रकार भाइ क्या करेंगे . हम इसी सोच मे लगे है कोई ह्ल निकल जाये फ़िर टिपियाने के बारे मे सोचेगे.
ReplyDeleteअजी गोली मारिए न्यूक्लियर डील को.. कुछ लिखना ही है तो हमारे बारे में लिख दीजिए.. हम भी किसी न्यूक्लियर से कम नही है.. जल्दी से डील फिक्स कर लीजिए ताकि फिर इस वाली न्यूक्लियर डील पे भी लिखने का मौका मिल जाए सबको..
ReplyDeleteबढ़िया रही ये पोस्ट भी, आपकी पोस्ट बिल्कुल गर्मागर्म चाय की तरह होती है. इधर सावधानी हटी, दुर्घटना घटी और उधर विचारों की सामग्री पटी. अब एक पुस्तक निकाल दीजिये ये जो ऊटपटांग लोग अपने आपको व्यंगकार कहने लगे हैं और किताब पे किताब निकाले पड़े हैं, उनको कुछ शिक्षा मिलेगी.
ReplyDeleteआपको शायद आश्चर्य हो पर जनेश्वर मिश्र जी का वोट नहीं बल्कि मंत्रिमंडल से इस्तीफा तक उनकी अनुपस्तिथि में राजनारायण जी नें भेज दिया था. मिश्र जी अपनी पथरी का इलाज करवा रहे थे दिल्ली के किसी अस्पताल में जब होश में आए तब उनको इसकी सूचना समाचार पत्र से मिली. खैर उनमें आपसी स्नेह इतना था की उन्होनें इसको स्वीकार कर लिया और इस कदम का समर्थन भी किया.
6 बरस बाद भी ये पोस्ट पढ्ने पर मज़ा आया।
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