अपने देश में दो तरह के नेता होते हैं. एक वे जो डिमांड में रहते हैं और दूसरे वे जो रिमांड में रहते हैं. जैसे अमर सिंह जी आजकल डिमांड में हैं. 'न्यू-क्लीयर डील' को पास कराने का बीड़ा उठाकर राष्ट्रहित में काम करने का जो साहस उन्होंने किया है वैसा बिरले ही कर पायेंगे. पिछले पन्द्रह दिनों से हर टीवी चैनल पर वही दिखाई दे रहे हैं. एक पत्रकार ने उनक इंटरव्यू लिया था लेकिन वो इंटरव्यू प्रसारित नहीं हो सका. प्रस्तुत है वही इंटरव्यू. टीवी पर नहीं प्रसारित हो सका तो क्या हुआ, ब्लॉग पर ही सही.
पत्रकार: "स्वागत है आपका अमर सिंह जी. हमारे कार्यक्रम में आपका बहुत-बहुत स्वागत है."
अमर सिंह: "देखिये, फालतू की बातों के लिए समय नहीं है हमारे पास. आप जल्दी से अपने सवाल पूछिए. हमें आधे घंटे बाद बीबीसी पर इंटरव्यू देना है. उसके बाद सीएनएन पर जाना है. उसके बाद हमें रेडियो अफ्रीका के लिए..."
पत्रकार: " नहीं-नहीं, ऐसा मत कहिये. ये तो हम तो औपचारिकता निभा रहे थे."
अमर सिंह: "आप पत्रकार भी क्या-क्या निभा जाते हैं. नेताओं से दोस्ती निभाने के लिए कहते हैं और ख़ुद केवल औपचारिकता निभाते हैं. खैर, कोई बात नहीं. आप सवाल दागिए."
पत्रकार: "सवाल दागना नहीं है. मैं तो सवाल पूछूंगा."
अमर सिंह: "वो तो देखिये ऐसे ही मुंह से निकल आया. जब से 'न्यू-क्लीयर' डील में उलझा हूँ, दागना, फोड़ना जैसे शब्द जबान पर आ ही जाते हैं. वैसे, आप सवाल पूछिए."
पत्रकार: "मेरा सवाल आपसे यह है कि आपने कैसे फ़ैसला किया कि न्यूक्लीयर डील राष्ट्रहित में है?"
अमर सिंह: "आप किस तरह के पत्रकार हैं? आपको पता नहीं है कि हमने सबसे पहले न्यूक्लीयर डील को लेकर डाऊट किया, तब जाकर जान पाये कि ये डील राष्ट्रहित में है."
पत्रकार: "अच्छा, अच्छा. हाँ, वो मैंने पढ़ा था. आपके डाऊट के बारे में. वैसे एक बात ये बताईये, आपके वामपंथी साथियों ने न्यूक्लीयर डील को राष्ट्रहित में क्यों नहीं माना?"
अमर सिंह: "डाऊट नहीं किया न. डाऊट किया होता तो उन्हें भी पता चलता कि ये डील राष्ट्रहित में है."
पत्रकार: "लेकिन उनके डाऊट नहीं करने के पीछे क्या कारण हो सकता है? मतलब, आपको क्या लगता है?"
अमर सिंह: "मैंने पूछा था. मैंने कामरेड करात से पूछा था. मैंने पूछा कि 'आपने डाऊट क्यों नहीं किया?' वे बोले 'हम तो साढ़े चार साल से डाऊट कर के राष्ट्रहित में काफी कुछ कर चुके हैं. अब आपको मौका देते हैं कि न्यूक्लीयर डील पर डाऊट करके आप भी राष्ट्रहित में कुछ कीजिये."
पत्रकार: "ओह, तो ये बात है. लेकिन आपने समझाया नहीं कि आपदोनों मिलकर भी तो राष्ट्रहित में कुछ कर सकते हैं?"
अमर सिंह: "हमने तो कहा था. हमने कहा कि आधा डाऊट हम कर लेते हैं, आधा आपलोग कर लीजिये. हम अपने डाऊट का समाधान डॉक्टर कलाम से करवा लेंगे. आपलोगों को डॉक्टर कलाम पसंद नहीं हैं तो आप ऐसा कीजिये कि अपने डाऊट का समाधान किसी चीन के वैज्ञानिक से करवा लीजियेगा."
पत्रकार: "क्या जवाब था उनका?"
अमर सिंह: "कुछ साफ़ नहीं पता चला. वे कुछ बुदबुदा रहे थे. मुझे लगा जैसे कह रहे थे 'चीन के कारण ही तो सारा झमेला है.'"
पत्रकार: "वैसे आप ये बताईये कि डॉक्टर कलाम से मिलने के बाद आपके सारे डाऊट क्लीयर हो गए?"
अमर सिंह: "बहुत अच्छी तरह से. उनसे मैंने और राम गोपाल यादव जी ने इतनी शिक्षा ले ली है कि हम दोनों न्यू-क्लीयरोलोजी में मास्टर बन गए हैं. अब तो हम भारत ही नहीं बल्कि ईरान, पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया जैसे देशों का न्यूक्लीयर डील पास करवा सकते हैं."
पत्रकार: "माफ़ कीजियेगा, लेकिन न्यू-क्लीयरोलोजी नहीं बल्कि उस विषय को न्यूक्लीयर फिजिक्स कहते हैं."
अमर सिंह: "हा हा हा हा. वैसे आपकी गलती नहीं है. मैं साइंस की नहीं बल्कि आर्ट की बात कर रहा था. न्यू-क्लीयरोलोजी का मतलब वो कला जिसमें न्यू-क्लीयर डील पास कराने की पढाई होती है."
पत्रकार: "अच्छा, अब जरा इस डील से उपजी राजनैतिक परिस्थितियों पर बात हो जाए. अफवाह है कि आपने केन्द्र सरकार को इस मुद्दे पर समर्थन इस शर्त के साथ दिया है कि वो मायावती जी के ख़िलाफ़ सीबीआई से कार्यवाई करने को कहे. क्या यह सच है?"
अमर सिंह: "यह बात बिल्कुल ग़लत है. देखिये सुश्री मायावती के ख़िलाफ़ सीबीआई के पास सुबूत तो पिछले तीन सालों से थे. लेकिन सीबीआई के लिए काम करने वाले पंडितों और ज्योतिषियों ने सीबीआई को सुबूत अदालत में दाखिल करने से रोक रखा था. पंडितों ने कहा था कि अगर ये सुबूत साल २००८ के जुलाई महीने में अदालत को दिए जाय, तो ये सीबीआई के लिए शुभ होगा. पंडित लोग तो मनुवादी हैं न. वे तो शुरू से मायावती जी के पीछे पड़े हैं."
पत्रकार: "अच्छा, अच्छा. तो ये बात है. लेकिन अमर सिंह जी, आपको नहीं लगता कि अब आप उसी सरकार को समर्थन दे रहे हैं, जिस सरकार से आप लड़े."
अमर सिंह: "देखिये, हमारा ऐसा मानना है कि राजनीति में लड़ाई नहीं होती है. विरोध करना एक बात है और फिर उन्ही विरोधियों के साथ मिल जाना सर्वथा दूसरी. हम पहले विरोध करते हैं. जब देखते हैं कि विरोध से कुछ नहीं होनेवाला तो हम मिल जाते हैं. अभी हम और कांग्रेस मायावती जी के विरोध में हैं. लेकिन कल को मायावती जी केन्द्र में आ जायेंगी तो हम साथ भी हो सकते हैं."
पत्रकार: "लेकिन आप उनलोगों के साथ कैसे रह सकते हैं जिनसे आप झगड़ चुके हैं? आपने ख़ुद एक बार लालू जी को भांड कह दिया था."
अमर सिंह: "देखिये इस मामले में मुझे यही कहना है कि आई हैव बीन मिसकोटेड. भांड शब्द का मतलब यहाँ कुछ और ही था. देखिये मैं कलकत्ते में पला बढ़ा हूँ. और कलकत्ते में कुल्हड़ को भांड कहा जाता है. मैंने तो केवल ये कहा था कि लालू जी कितने प्यारे हैं. बिल्कुल कुल्हड़ की तरह. और दूसरी बात ये कि कुल्हड़ मिटटी से बनता है और लालू जी मिट्टी से जुड़े नेता हैं. मैंने तो उनकी तारीफ़ की थी."
पत्रकार: "तो आपको क्या लगता है, आप संसद में सरकार का बहुमत साबित कर पायेंगे?"
अमर सिंह: "बिल्कुल, पूरी तरह से. हमारे साथ ३०० सांसद हैं."
पत्रकार: "लेकिन अफवाह है कि सांसद खरीदे जा रहे हैं. कल बर्धन साहब ने कहा कि पच्चीस करोड़ में एक बिक रहा है."
अमर सिंह: "मैं इस पर कुछ कमेन्ट नहीं करना चाहता. बर्धन साहब का तो कोई सांसद बिका नहीं है. उन्हें कैसे पता क्या रेट चल रहा है."
पत्रकार: "अच्छा ये बताईये कि ये बात कहाँ तक जायज है कि आप अपने उद्योगपति मित्रों का एजेंडा राजनीति में ले आयें?"
अमर सिंह: "देखिये मैंने माननीय प्रधानमंत्री के सामने कुछ मांगे रखी हैं. लेकिन ये सभी मांगे राष्ट्रहित में हैं. हाँ, अब इन मांगों से अगर हमारे मित्रों का भला हो जाए, तो वो तो संयोग की बात है. हमारे मित्रो के लिए इस तरह का फायदा केवल एक बायप्रोडक्ट है. ठीक वैसे ही जैसे हम साम्प्रदायिकता की समस्या को दूर करने के लिए कांग्रेस के साथ आए हैं. अब ऐसे में अगर न्यूक्लीयर डील पास हो जाए, तो वो महज एक संयोग समझा जाय."
पत्रकार: "वैसे आपने प्रधानमंत्री से अम्बानी भाईयों के झगडे को सुलझाने की बात कही. क्या यह सच है?"
अमर सिंह: "हाँ. यह बात सच है. मैंने प्रधानमंत्री से कहा है कि दोनों भाईयों का झगडा अगर सुलझ जाता है तो वो राष्ट्रहित में होगा."
पत्रकार: "मतलब ये कि दोनों भाईयों का हित ही असली राष्ट्रहित है."
ये सवाल सुनकर अमर सिंह जी कुछ बुदबुदाए. लगा जैसे कह रहे थे, ' दोनों का झगडा सुलझ जाए तो मैं दोनों के नज़दीक रहूँगा. असल में तो मेरा हित होगा. मेरा हित मतलब राष्ट्रहित है.'
उनकी बुदबुदाहट बंद होने के बाद पत्रकार भी कुछ बुदबुदाया. मानो कहा रहा हो; 'हम बेशर्मी के स्वर्णकाल में जी रहे हैं.'
Tuesday, July 15, 2008
'हम बेशर्मी के स्वर्णकाल में जी रहे हैं.
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अगर अमर सिंह ने ये इंटरव्यु पढ़ लिया तो आपकी खैर नहीं। और अगर ये बेशर्मी का स्वर्णकाल है तो अमर सिंह इस युग के राम होंगे।
ReplyDeleteअमर सिंह जैसे मौकापरस्त ,छिछोरी भाषा बोलने वाले इन्सान से आप ओर क्या उम्मीद कर सकते है ?
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteबेशर्मी का स्वर्ण काल....वाह क्या बात कही है...चलिए सोना कहीं से तो आया...हमारा देश फ़िर से सोने की चिडिया कहलायेगा...चिडिया बेशर्मी की हो इस से क्या फरक पढता है...
अमर सिंह को लगता है आप अमर करके ही रहेंगे...
नीरज
पता नही कहा ले जाएगा यह बेशर्मी का स्वर्णकाल!!
ReplyDeleteयह अमरबेल है राजनीति की.
ReplyDeleteऔर गुप्त डायरी, साक्षात्कार कहाँ से उड़ा लेते है? :)
Aap baja farmate hain,
ReplyDeleteAachchhe fantesy hai.
http://tasliim.blogspot.com
बेशर्मी का स्वर्णकाल... अमर सिंह की तरह आपने भी स्टिंग ऑपरेशन करके ये इंटरव्यू जुगाडा है क्या? बच के रहिएगा :-)
ReplyDeleteशिव भाई आपको मसाजवादी पार्टी के लोग ढूंढने निकल पडे है :)
ReplyDeleteभला हो इस ब्लॉग जगत का जो यह इन्टरव्यू छप गया वर्ना इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वालों ने तो ‘मसाजपार्टी’(अरुण जी से साभार) के लठैतों के डर से इसे ‘एयर’ करने से मना कर दिया होता। अमर सिंह जी का मीडिया-मैनेजमेण्ट लगता है यहाँ फेल कर गया।
ReplyDeleteऐतिहासिक परिवर्तन बड़े विचित्र तरीके से होते हैं। कभी कल्पना भी न की थी कि समाजवादी पार्टी निमित्त बनेगी साम्यवादियों के चंगुल से देश मुक्त कराने में।
ReplyDeleteपर आगे कौन मुक्त करता है या कौन मुक्त होता है - समय ही बतायेगा। अमरसिंह जी ने अन्तिम सत्य तो बयान किया नहीं है। आगे भी इस प्रकार के इण्टरव्यू बनने की गुंजाइश रहेगी। केलिडोस्कोप टूटा नहीं है। नये कॉम्बिनेशन बनाता रहेगा! :-)
न्यू-क्लीयरोलोजी का मतलब वो कला जिसमें न्यू-क्लीयर डील पास कराने की पढाई होती है
ReplyDeletehaa haa!!!!!
बडे भइया अमित की बात नहीं उठाई..कैसन पत्रकार हैं जी!! तनिको राष्ट्रहित का ख्याल नहीँ.
अमर सिंह जी का नाम देश के महान वीरों जैसे सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं से भी ऊपर स्वर्णाक्षरों में लिखा जाने वाला है। क्यों कि वे देश को अपने ही देश के साम्यवादियों के चंगुल से आजाद कराने जा रहे हैं।
ReplyDeleteसरदार मनमोहन सिंह का नाम भी इतिहास में लिखा ही जाएगा कि उन्होंने ऊर्जा के लिए अमरीका के नाम देश का पट्टा लिख दिया। मनमोहन जी! आप इस समझौते से बाहर आ ही नहीं सकते, जनाब। जिस दिन आ जाएंगे उसी दिन देश की सारी बत्तियाँ बुझ जाएंगी, पहिए थम जाएँगे। अब करते रहिए अमरीका की हाँ में हाँ।
हाँ एक रास्ता है। कुछ बरस तकलीफ उठाना कबूल करवाइए देश से, और अपने ऊर्जा साधन विकसित करवाइए। पर इतनी कूवत कहाँ बची है किसी में? हमें तो लोगों को आपस में लड़ा कर राज करना आ गया है। वे यही सिखा गए थे जाते जाते।
ज्ञानजी और दिनेशजी दोनों की ही टिप्पणियां जोरदार हैं।
ReplyDeleteशिवजी , धांसू लेखन है । जारी रहिये ।
1.अपने देश में दो तरह के नेता होते हैं. एक वे जो डिमांड में रहते हैं और दूसरे वे जो रिमांड में रहते हैं.
ReplyDelete2.आधा डाऊट हम कर लेते हैं, आधा आपलोग कर लीजिये
बहुत खूब!
कोनो डील-ऊल की बात इहाँ होय रही का ?
ReplyDeleteभइया हमरो कमीशन का ध्यान रखना । ई काँख-रेस वाले बड़े चोट्टे हैं, ऊ तो मार लेंगे अउर
हम गाते रह जायेंगे, " मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं ...घूर रहे हैं ऎसे कि जानते नहीं "
अमर सिंह जी के जवाब के क्या कहने!
ReplyDeleteदेश इनका ऋणी रहेगा. बहुत जोर से रहेगा.
और एक बात. ख़ुद भी कुछ लिखा करो.
दूसरों की डायरी और दूसरों का चोरी किया हुआ
इंटरव्यू कितने दिन तक छापते रहोगे.
हा हा हा! वाह शिव भाई, बिल्कुल यही सीन है। अमरसिंह अगर राजनीति में नहीं होते तो यकीनन किसी काॅमेडी शो में तरक्की कर रहे होते।
ReplyDeleteअपने देश के इन होनहार नेताओं की जै जै...
हा हा हा! वाह शिव भाई, बिल्कुल यही सीन है। अमरसिंह अगर राजनीति में नहीं होते तो यकीनन किसी काॅमेडी शो में तरक्की कर रहे होते।
ReplyDeleteअपने देश के इन होनहार नेताओं की जै जै...