आज अरुण भाई ने एक डॉक्टर साहब का प्रेमपत्र समझ में ना आने पर एक पोस्ट लिखी. उनकी पोस्ट पढ़ते हुए मुझे याद आया कि हमारे शहर में डॉक्टर विद्यासागर बटबयाल रहते हैं. डॉक्टर साहब करीब १०४ साल के हो गए हैं. अस्सी साल का होने पर उन्होंने डाक्टरी से संन्यास ले लिया और पिछले चौबीस सालों से वे डॉक्टरों के प्रेमपत्र का निशुल्क अनुवाद करके समाजसेवा कर रहे हैं. मैंने जब अरुण भाई की समस्या के बारे में डॉक्टर साहब को बताया तो उन्होंने तुंरत अरुण भाई के ब्लॉग पर जाकर कमेन्ट किया.
अरुण भाई ने उन्हें प्रेमपत्र स्कैन करके मेल में भेज दिया. डॉक्टर साहब ने तुंरत उसका अनुवाद करके अपने कम्पाऊन्डर के हाथों मेरे पास भेज दिया. उनके पास स्कैन करने की सुविधा नहीं है. और मेरे पास भी नहीं. मैं डॉक्टर साहब द्बारा किए गए अनुवाद को छाप रहा हूँ. आप भी पढिये.
प्रियतमे रजनी,
ये पत्र लिखने कुर्सी पर बैठा ही था कि पीठ में दर्द शुरू हो गया. तकलीफ इतनी बढ़ गई कि सहन नहीं हो रहा था. तब याद आया कि आज एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव आयोडेक्स की दस शीशी सैम्पल में थमा गया था. उठकर आलमारी से आयोडेक्स निकाला और पीठ पर मालिश की. फिर भी बैठा नहीं जा रहा है, इसलिए तुम्हें ये पत्र लेटे-लेटे लिख रहा हूँ. ऐसा हो सकता है कि तुम्हें लिखाई पूरी तरह से समझ में नहीं आए. अगर ऐसा हुआ (वैसे मुझे मालूम है कि ऐसा ही होगा. आख़िर तुमने मेरे साथ बगीचे में घूमने और आईसक्रीम खाने के सिवा किया ही क्या है? अपनी पढाई-लिखाई की वाट पहले ही लगा चुकी हो) तो फिर पहले ख़ुद से तीन-चार बार ट्राई मारना. उसके बाद भी समझ में न आए तो तुम्हारे मुहल्ले के दर्शन मेडिकल में चली जाना. वहां पप्पू सेल्समैन पत्र पढ़कर समझा देगा. लेकिन हाँ, उसके पास ज्यादा देर तक मत रहना. मतलब समझकर तुंरत घर वापस चली जाना.
आगे समाचार यह है कि पिताजी के दबाव में आकर मुझे ऍफ़आरसीएस करने अमेरिका जाना पड़ रहा है. लेकिन जब भी अमेरिका जाने की बात सोचता हूँ तो मुझे राजेन्द्र कुमार की फिल्में याद आ जाती हैं. वो फिल्में जिनमें राजेंद्र कुमार डाक्टरी की पढाई करने अमेरिका चले जाते थे और उनके जाने के बाद हिरोइन की शादी किसी और से हो जाती थी. उन फिल्मों की याद करके मेरे रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं. अभी थोडी देर पहले ही रोंगटे खड़े हुए थे. तीन एस्प्रिन और चार डिस्प्रिन खाकर मैं नार्मल हुआ हूँ.
एक बार तो मन में बात आई कि पिताजी के आदेश का पालन न करूं. फिर सोचा वे ख़ुद भी डॉक्टर हैं और उन्होंने जब इतना बड़ा नर्सिंगहोम बना ही लिया है तो उसे चलाना वाला भी तो कोई चाहिए. तुम्हें तो मालूम है कि मैं उनका इकलौता पुत्र हूँ. ऐसे में उनके धंधे को आगे बढ़ाने का काम मुझे ही करना पड़ेगा. माँ भी कह रही थी कि मैं अमेरिका जाकर डाक्टरी की पढाई करूं. मुझे समझा रही थी कि अगर मैं बड़ा डॉक्टर बन जाऊँगा तो कुछ पैसा लगाकर और कुछ बैंक से फाइनेंस लेकर एक और नर्सिंगहोम खोल लेंगे. दो नर्सिंगहोम देखकर पिताजी कितने खुश होंगे.
वैसे तुम्हें निराश होने की ज़रूरत नहीं है. तुम हमेशा मेरी यादों में रहोगी. मैं तुम्हें रोज मेल लिखूंगा. वहां अमेरिका में अगर घूमने-फिरने और डिस्को में जाने से टाइम मिला तो हमदोनों नेट पर चैट भी कर सकते हैं. तुम्हें याद है, मेरे पिछले जन्मदिन पर तुमने मुझे एक आला और एक थर्मामीटर दिया था. मैं जब अमेरिका जाऊँगा तो उन दोनों को अपने साथ लेकर जाऊंगा. जब भी कोई लड़की हॉस्पिटल में मरीज बनकर आएगी और मैं उसका चेकअप करूंगा तो मुझे लगेगा कि मैं तुम्हारा ही टेम्परेचर माप रहा हूँ और तुम्हारे ह्रदय की धड़कने ही सुन रहा हूँ.
मुझे पता है कि मेरे जाने के बाद तुम उदास रहने लगोगी. मैं वहां परदेश में और तुम यहाँ. तुम्हें तो बिरहिणी नायिका की भूमिका अदा करनी ही पड़ेगी. जब तुम दुखी रहने लगोगी तब तुम्हारे घरवाले समझ जायेंगे कि तुम किसी के प्यार में पड़ गई हो. तुम्हें तो मालूम है; 'इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते.' ऐसे में तुम्हारे पिताजी तुम्हरी शादी करवाने की कोशिश करेंगे. लेकिन तुम शादी मत करना. मैं तुम्हें सजेस्ट करता हूँ कि तुम अभी से तरह-तरह के बहाने बनाने की प्रैक्टिस शुरू कर दो. जब पिताजी शादी के लिए कहेंगे तब ये बहाने काम में लाना.
मेरे जाने के बाद जब भी पिक्चर देखने की इच्छा हो तो अपनी सहेली पारो को साथ लेकर पिक्चर देख आना. एक बात का ध्यान रखना पारो के बॉयफ्रेंड रामदास को साथ लेकर मत जाना. वो बहुत काइयां किस्म का इंसान है. वो तुम्हें इम्प्रेश करने की कोशिश करेगा. और पिक्चर हाल में ज्यादा आईसक्रीम मत खाना. तुम्हें तो मालूम ही है, तुम्हें हर तीसरे दिन जुकाम हो जाता है. हाँ, अगर जुकाम हो जायेगा तो सिक्स एक्शन ४०० लेना मत भूलना. वैसे बुखार हो जाए तो मेरे फ्रेंड डॉक्टर चिराग के पास जाना. ज्यादा बटर पॉपकॉर्न भी मत खाना. तुम्हारा वजन पहले से ही काफी बढ़ा हुआ है.
बाकी क्या लिखूं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है. वैसे लग रहा है कि कुछ और लिखना चाहिए लेकिन तय नहीं कर पा रहा हूँ कि क्या लिखूं. हाँ, अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना. हो सके तो एमए करने के बाद पी एचडी करने की कोशिश करना. ऐसे में शादी न करने का एक और बहाना मिल जायेगा. जब तक मैं नहीं आता, तबतक किसी और से शादी करने की सोचना भी मत. वैसे जब सारे बहाने फ़ेल हो जाएँ तो फिर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना. अपने पिताजी को ये बताना कि तुम जिससे प्यार करती हो, वो अपने माँ-बाप का इकलौता पुत्र है और उसके बाप के पास ढेर सारा पैसा है. मुझे विश्वास है कि वे यह सुनने के बाद फिर कभी तुम्हारी शादी की जिद नहीं करेंगे.
अभी तो मैं इतना ही लिख रहा हूँ. बाकी की बातें अमेरिका पहुँचकर मेल में लिखूंगा.
तुम्हारा
डॉक्टर सोमेश
पुनश्च:
अगर ये चिट्ठी समझ में न आए और पप्पू सेल्समैन के पास जाना ही पड़े तो चिट्ठी समझकर तुंरत घर वापस जाना.
Wednesday, July 23, 2008
अरुण भाई के डॉक्टर दोस्त के प्रेमपत्र का अनुवाद - डॉक्टर विद्यासागर बटबयाल द्बारा
@mishrashiv I'm reading: अरुण भाई के डॉक्टर दोस्त के प्रेमपत्र का अनुवाद - डॉक्टर विद्यासागर बटबयाल द्बाराTweet this (ट्वीट करें)!
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पुनःश्च का पुनःश्च -
ReplyDeleteबूहुहू..अब तो तुम्हारे पेट में हलचल होने लगी होगी ?
कैसा लगता है..ज़रूर ज़रूर से लिखना, काश मैं होता ।
मेरी अमानत का ख़्याल रखने में कोई अड़चन हो तो
लि्ख भेजना ।
तुम्हारे पिता जी ज़ि्यादा टें-पें करें, तो पे व प्रिगनेन्सी
रिपोरट दिखा देना । कहना कि इसकी बुकिंग डाकटर
सोमेसवा कर गया है । अच्छा तो एक ऊँहुँहु..हुँ !
अब शिव भाइ ये कौन बतायेगा कि रजनी किसके साथ है पप्पू के या डाक्टर पप्पू के . मेरठ के अगले फ़ेरे जानेगे हम लोग :)
ReplyDeleteहा हा हा बहुत सही है..
ReplyDeleteवैसे मैं भी पप्पू सेल्समेन के पास गया था साले ने मुझे आठ दस एंटीबायोटिक केपसूल दे दिए.. और कहा एक सुबह एक शाम ले लेना.. मगर आज पढ़कर खुशी हुई. की बटबयाल साहब पत्रो का अनुवाद करते है.. मैने सारे के सारे पत्र इकट्ठे कर रखे है. आप उनका अता पता बता दे तो भिजवा दु उन्हे..
पंगेबाज से खुब जुगलबन्दी हो रही है, कुछ लेते क्यों नहीं :)
ReplyDeleteसही है....कब से परेशान था की डॉक्टर ने क्या लिखा होगा, अब जा कर मन हल्का हुआ है :)
सिक्स एक्शन ४००; बड़े काम की दवा बताई। गले में खराश हो रही है। मंगवाता हूं।
ReplyDeleteअच्छी समाज (अनुवाद) सेवा हो रही है! :-)
पहले डायरी के पीछे पड़े रहे. उसके बाद किसी का चोरी किया इन्टरव्यू. अब प्रेमपत्रों के अनुवाद प्रकाशित कर रहे हो. तुम फिर से भटक गए. लगातार तीन पोस्ट तो ख़ुद का लिखा हुआ पब्लिश करो यार.
ReplyDeleteवैसे डाक्टर साहेब का प्रेमपत्र पढ़कर मज़ा आया. ये डाक्टर बटबयाल वही हैं क्या जो जगबंधू बोराल लेन में रहते हैं.
शिव भाइ ये तुम बालकिशन जी के प्रेम पत्र का आखिर करोगे ? क्या जो ना खुद छापते हो ना हमे छापने देते हो जब से आपने स्केन करवा कर भेजा है , पेट मे दर्द उठ रहा है, अब या तो तुम छाप दो वर्ना मुझे दोष मत देना
ReplyDeleteडॉ बट बयाल जी ने इस उम्र में इत्ता सारा अनुवाद तो कर दिया पर लगता है अनुवाद के चक्कर में अपनी कहानी भी साथ साथ चला दी ...अब चूँकि २४ साल से प्रक्टिस में नही है इसलिए कुछ भूल कर गये है .....
ReplyDeleteआयोडेक्स सैम्पल में नही मिलते
उस जमाने में मेल ??
बैक से फाइनेंस से उन दिनों ??
मिश्रा जी सारे अनुवाद को सच्चा न माने ओर पप्पू से ही पढ़वाले क्यूंकि केवल पप्पू ही पढ़ सकता है....उस अनुवाद की प्रतिलिपि का इंतज़ार रहेगा
भाई पप्पू की बड़ी मॉंग चल रही है, अखिर पप्पू है कहाँ ?
ReplyDeleteअनुराग जी अब ये पढ कर बट बयाल जी ने ये तो सिद्ध कर दिया कि उनके जमाने मे भी अंदाजे से ही काम चलता था. वैसे आपने सही ताड लिया की अनुवाद जबरदस्ती ठेला गया है. :)
ReplyDeleteब्रेकिंग न्यूज़ -
ReplyDeleteफिहाल पप्पू मियां के पोते बडकू मेडिकल स्टोर चला रहे है ओर सिवाय दवा के पर्चे के वे कुछ नही पढ़ पाते है पप्पू भइया की दोनों आँख का जबसे मोतिया बंद का जबसे असफल ऑपरेशन हुआ है वे काला चश्मा लगा कर सिर्फ़ पुरानी पिक्चरों को दूरदर्शन पर देखने की कोशिश करते है ......अब क्या होगा मिश्रा जी ?
भाई आप और पंगेबाज तो बहुत ही खतरनाक हो जी, फ़ट से दूसरों के खत पढ़ लेते हो, हमने तो अपने सब खतों की पोटली बना के बैंक के लॉकर में डाल दी है, आप से तो खतरा नहीं लेकिन टिप्पणियां देख कर लगता है कि लोगों को दूसरे के खत पढ़ने में बहुत मजा आता है तो भैया सावधान रहना चाहिए न …।:)
ReplyDeleteडा. बटबयाल ने ८० साल की बड़ी ही यंग ऐज में प्रोफेशन से सन्यास ले लिया?खैर, अखरा इसलिए नहीं कि इतनी बड़ी समाज सेवा में जुट गये-प्रेम पत्रों का अनुवाद. राज्य सभा में नामिनेट करना पडेगा इनको.
ReplyDeleteपप्पू सेल्समैन की योग्यता पर पूरा भरोसा..और चरित्र पर भरपूर खौफ.. :)
अनुवाद तो चौचक किया है. अनुभवी जो हैं.
-आप और आपके सारे मित्र बड़े ही प्रतिभाशाली हैं. वेरी इम्प्रेसिव.
सही अनुवाद किया है। कुछ गलतियां जानबूझकर छो़ड़ी जाती हैं ताकि असली पत्र की औकात बनी रहे। :)
ReplyDeleteबंधू
ReplyDelete"पप्पू कांट रीड साला..."
हम सोच रहा हूँ की जो डाक्टर असहनीय पीड़ा में लेट कर, इतना लंबा प्रेम पत्र लिख सकता है वो भला चंगा होने पर,बैठ कर, महाभारत टाइप लिखने की कुव्वत रखता होगा.कितनी फुर्सत में हुआ करते होंगे उन दिनों डाक्टर और छिप छिप कर पत्र पढ़कर मुस्कुराती षोडशी बालाएं...जाने कहाँ गए वो दिन.......
नीरज
ab anuvad sahi hai ya galat ke chakkar mein kaun pade...bas maza aaya. blog par aana vasool ho gaya.
ReplyDeleteदूसरों के फटे में टांग घुसेड़ने को भाई लोग चटखारें ले-लेकर पढ रहे हैं। बड़ी आफ़त है भाई...। बेचारे श़रीफ डॉक्टर की किस्मत ही खराब थी जो पंगेबाज जी के सामने डायरी खोल दी। ऊपर से शिवकुमार जी की दृष्टि भी पड़ गयी। इतना ही नहीं पेशेवर बटबयाल भी टपक पड़े...। हद्द है!
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