आज समीर भाई की पोस्ट पर टिप्पणी कर रहा था. टिप्पणी का बक्शा खोलते ही तमाम तरह के वाक्य ठीक वैसे ही कूदते हुए सामने आए, जैसे किसी आलसी व्यक्ति की आलमारी खोलने पर कपड़े एक-एक करके कूदते हुए गिरने शुरू हो जाते हैं. अजब-अजब से वाक्य प्रकट हुए. कुछ का तो मतलब ही नहीं समझ आ रहा था.
एक जगह लिखा था; "टिप्पणियों को संकुचित करें". दो बार पढने के बाद भी निश्चित नहीं कर पाया कि; 'ये निर्देश है या सलाह.' और निर्देश या सलाह है भी तो इसका मतलब क्या है? टिप्पणियों को संकुचित करने का मतलब कहीं यह तो नहीं कि 'छोटी टिप्पणी ही करें.' मतलब ये कि अगर टिप्पणी दो लाइन से बड़ी होगी तो ठीक नहीं होगा टाइप. या फिर यह कि; 'संकुचित विचारों वाली टिप्पणी दें.'
खैर, एक लाइन की 'संकुचित' टिप्पणी लिखकर पोस्ट कर दिया. पोस्ट करते ही संदेश निकलकर सामने आ खड़ा हुआ. लिखा था; "आपकी टिप्पणी सहेज दी गई है और ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति के बाद दिखने लगेगा." पढ़कर हंसी आ गयी. टिप्पणियों का महत्व पहली बार पता चला. संदेश पढ़कर लगा जैसे इस मंहगाई के दौर में केवल आटा, चावल, दाल और तेल ही मंहगे नहीं हैं. इन चीजों के साथ टिप्पणी भी मंहगी हो गयी है. घर में चावल, दाल, तेल वगैरह सहेज कर रखे जाते हैं, और ब्लॉग पर टिप्पणियां. लगा कि कहीं ऐसा न हो कि सरकार अगले बजट में टिप्पणियों को भी इन्फ्लेशन नापने वाले होलसेल प्राईस इंडेक्स में बाकी के चीजों के साथ डाल दे.
और 'ब्लॉग स्वामी' शब्द भी बड़ा झकास टाइप लगा. पढ़कर लगा जैसे किसी चंद्रास्वामी या सुब्रामनियम स्वामी के भाई की बात हो रही है. खैर, इतना तो आईडिया लग चुका था कि ब्लॉग स्वामी का 'हिन्दी' पक्के तौर पर 'ब्लॉग ओनर' ही होगा. लेकिन एक बार ये विचार भी मन में आया कि; 'पुरूष ब्लॉगर के लिए ब्लॉग स्वामी शब्द का उपयोग होता है तो महिला ब्लॉगर के लिए ब्लॉग स्वामिनी लिखा जाता है या नहीं. खैर, ये बात तो आज किसी महिला ब्लॉगर का ब्लॉग देखकर ही पता चलेगा. वो भी कोई ऐसा ब्लॉग जहाँ 'टिप्पणी माडरेशन सक्षम किया हुआ हो.
फिर एक जगह लिखा था; 'आपकी टिप्पणियों से हमें लिखने की प्रेरणा मिलती है.' ये वाक्य पढ़कर लगा जैसे समीर भाई की सादगी के पहाड़ के नीचे दब गए. समीर भाई को आज भी प्रेरणा पाठकों की टिप्पणियों से मिलती है. हमारे बंगाल में इसे कहते हैं; विनोयेर ओहोंकार, मतलब 'विनय का अंहकार'. वैसे इसे पढ़कर मुझे अमिताभ बच्चन साहब के बोल याद आ गए. जब भी उन्हें इंटरव्यू में देखता हूँ, अक्सर ये कहते हुए सुने जाते हैं; "देखिये, हम तो मजदूर हैं. हम यहाँ आते हैं. कैमरे के सामने काम करते हैं और अपना पारिश्रमिक लेकर चले जाते हैं. हम कोई बड़े कलाकार नहीं हैं." ठीक समीर भाई की तरह, जिन्हें आज भी पाठकों की टिप्पणियों से प्रेरणा मिलती हैं.
आप कमेन्ट को टिप्पणियों के पर्यायवाची शब्द के रूप में जानते ही हैं. लेकिन इसका एक पर्यायवाची और है. सदुपदेश. जी हाँ, अभय जी के ब्लॉगपर टिप्पणियों को सदुपदेश कहा जाता है. हाल ही में पता चला कि हम ब्लॉगर टिपण्णी करते हुए लजाते भी हैं. प्रमोद जी ने साफ़-साफ़ कह दिया है; "लजाईये नहीं, टिपियाईये." ये अलग बात है कि लजाने के लिए मना करते हुए उन्होंने कमेन्ट माडरेशन लगा रखा है. अब ऐसे में टिप्पणी करने वाला तो यही सोचकर लजा उठेगा कि 'बिना लजाये की गई टिप्पणी को अगर 'ब्लॉग स्वामी' ने नहीं छापा तो? ये तो वैसी बात हो गई कि खाना सामने रख के किसी ने हाथ बाँध दिया हो. लेकिन कुछ बेनामी, अनामी, सुनामी जरा भी नहीं लजाते. टिपियाय देते हैं, जिसके कभी-कभी अद्भुत परिणाम होते हैं.
खैर, टिप्पणियों का किस्सा अनंत है. मैं पहला ब्लॉगर नहीं हूँ, जिसने टिप्पणियों के ऊपर चिंतन किया है. ऐसा पहले भी होता आया है और आगे भी होता रहेगा.
वैसे, टिप्पणियों पर इस चिरकुट चिंतन पर आप टिपण्णी जरूर दीजियेगा. प्लीज...
Friday, July 18, 2008
टिप्पणियों पर एक चिरकुट चिंतन
@mishrashiv I'm reading: टिप्पणियों पर एक चिरकुट चिंतनTweet this (ट्वीट करें)!
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ब्लागरी में मौज
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आपकी टिप्पणियों से हमें लिखने की प्रेरणा मिलती है.' ये वाक्य पढ़कर लगा जैसे समीर भाई की सादगी के पहाड़ के नीचे दब गए.
ReplyDeleteसौ टका सच! हम भी उसके नीचे दबे हैं। थोड़ा खिसक-सरक कर टिप्पणी कर लेते हैं! :-)
एकदम सही ,लजाते है, डेराते है ,समयाभाव भी जिसमे कभी कभी भानी भी टिपीया देती हैं मुझे मुझे कह कर पर आप के प्लीज का मान रखें बिना यहाँ से जाना सम्भव नही।
ReplyDeleteहम तो टीपियाते हुए ज़रा भी नही लजाते है और बस टीपयाते रहते है.. समीर जी को देखकर तो लगता है की वो 'स्वामी' ही होंगे.. स्वामिनी वाली बात पे हमने कभी गौर नही किया.. आज ही देखते है.. वैसे हमारी ब्लॉग पे आप कभी भूले भटके टिप्पणी करेंगे तो देखेंगे की वहा लिखा होगा 'ब्लॉग के चौकीदार की स्वीकृति के बाद' अजी हम तो ठहरे चौकीदार आदमी..
ReplyDeleteई तो टिप्पणी पुराण चालू हो गया... टिपण्णी का भुत, वर्तमान और भविष्य भी जांच और बांच दिया आपने.... वैसे मजेदार है
ReplyDeleteअग्रीम धन्यवाद ग्रहण करते हुए टिप्पया दिया है. चिंतन सही है.
ReplyDeleteढेरो ऐसे लोग भी जो कहते है उन्हें टिपण्णी से कोई फर्क नही पढता (हमें तो पड़ता है है जी )कौन लिखने वाला नही चाहता उसे ज्यादा से ज्यादा लोगो द्वारा पढ़ा जाये.....पर कई बार लोग भी सही टिपिया जाते है ..एक मोहतरमा ने एक गाना पोस्ट पर डाला ओर नीचे उसे लिख दिया एक सहेब ने लिखा "सुंदर रचना ' .जय हो टिपण्णी की......
ReplyDeleteभाई साब, टिपण्णी करते हुए हम नहीं देख पाये इतना कुछ.
ReplyDeleteआज ही समीर जी के ब्लॉग पर जाकर देखते हैं.
वैसे चिंतन ठीक है.
टिप्पणी पुराण ही पढ़ना अच्छा लगता है तो टिप्पणी अपनी पोस्ट पर पढ़ना किसे नहीं भायेगा :)चिंतन अच्छा लगा
ReplyDeleteभाई साहब,
ReplyDeleteइस चिरकुट चिन्तन की चाशनी चहकते-चमचमाते चिठेरों को भी चमत्कृत कर देगी। …अरे दौड़ो, देखो, क्या टिपियाया रे!
हम टिपियाते हैं बड़े आराम से कभी कभी गुस्सियाते भी हैं। पर आज तो कुछ भी टिपियाने का मसअला ही नहीं।
ReplyDeleteअहा!! क्या गहन चिन्तन में डूबे हैँ. अपने गहरे उतरे और हमें चने के पेड पर भेज दिया. गिरें तो लोक लेना भाई! हालाँकि लोकाये जाने लायक हमारा शरीर है तो नहीं. :)
ReplyDeleteकिस महान हस्ती से तुलना कर रहे हैं. वैसे सच कहूँ तो आपने तो मजाक में कह दिया मगर मुझे अच्छा बहुत लगा. हा हा!!
ऐसे ही मजाकियाते रहिये. अच्छा लगता है.
ज्यादा चिंतन तो नहीं किया हमने लेकिन मज़ा आया पढने में....
ReplyDeleteये लो जी। इस बारे में हम कुछ दिनों से चिंतन कर रहे थे, आपकी तरह पोस्ट नहीं डाल पाए, न ही इतने सारे विचार हमारे पास थे आपकी तरह। हमने 12-13 पन्नों की एक कहानी पोस्ट की और क्या देखते हैं कि दो मिनट में ही एक ब्लोगर ने टिप्पणी कर दी। हम चकरा गए कि ये चक्कर क्या है? इतना जल्दी कौन पढ़ सकता है 13 पन्ने। आज तक चकराए हुए हैं। कुछ लोग पूरी श्रद्वा से टिपियाते हैं।
ReplyDeleteहम इस बारे में सोच रहे थे लेकिन शायद आप जैसा रोचक न लिख पाते..
ReplyDeleteअद्भुत टिप्पणी चिंतन है मिसिर जी आपका ...
ReplyDeleteआनंदम् आनंदम् :)
सही चिंतन है। सही है तो उच्चकोटि का ही कहा जायेगा। चिरकुट भी ठीकै है। चिरकुटई भी उच्चकोटि में ही आती हैं। लेकिन भैया ई देखना भी जरूरी है कि ब्लाग स्वामी हमारी टिप्पणियों से कैसे बर्ताव करता है, उनको सहेजता है कि उठाके एक के पीछे एक लगा देता है या पटक देता है। यह भी कि कहीं उनके साथ कोई खराब बर्ताव तो नहीं करता। ई कैसे पता किया जा सकता है? क्या सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी प्राप्त की जा सकती है? बताइये भाई हम तो चिन्तित हो गये। हमारी मासूम टिप्पणियों के साथ न जाने कैसा बर्ताव किया हो इस मुये ब्लागस्वामी ने। :)
ReplyDeleteसर आँखों पा बैठा लिया है उस मुए ब्लागस्वामी ने आपकी टिप्पणी को, अनूप जी...ऐसी खबर आई है अंदर से. :)
ReplyDeleteनमस्कार।
ReplyDeleteगहरा और यथार्थ चिंतन।
जे टिपियाये पे अकदम फ़ुल्लै चर्चा के लिये एक ठौ अधिवेशनवा बुलवा लीजीये. इहा दिल्ली मे बहुतै नेता लोग बिलबिलाये रहे है एकै इंच नाली मे पांच सात निकस परे है. हमार भिचार जे है कि उतै कलकतवा मे या मुंबई मे कराया जाया. दिन ठहरा के टिकटवा भिजवाईयेगा .तबहू कछु कह पायेगे :)
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteकेवट ने राम से उनको नदी पार करवाने के बाद कहा था "नाई से न नाई लेत,धोबी से न धोबी लेत, देके मजूरी आप जाती को ना बिगाड़िये" वो था रामराज्य...शायद सतयुग....अहो...अहो...कैसे महान लोग थे उस वक्त..अब है ब्लोगर राज्य याने कलयुग यहाँ ये कहा जाता है.." ब्लोगर को ही ब्लोगर देत,ब्लोगर से ही ब्लोगर लेत,टिपण्णी दिए बिना आप कहीं मत पधारिये...आऊं जब तेरे ब्लॉग दूँ मैं टिप्पणी जनाब, आप मेरे ब्लॉग को दे टिप्पणी संवारिये..." तो बंधू ब्लॉग्गिंग शुद्ध व्यवसाय की तर्ज़ पर चलता है...इस हाथ दे उस हाथ ले...
बहुत समसामयिक बिषय पर पोस्ट दिए हैं आप...बहुत ही बढ़िया...सच्ची कह रहे हैं हम ...मख्खन नहीं लगा रहे. ऐसे ही लिखा करो जो हम जैसों की समझ में आ जाए...क्या राजनीती वाजनिती पर लिख कर अपना और दूसरों का टाइम खोटा करते हैं.
"पंगे बाज" और "अनूप जी" की टिप्पणी खूब जोर की लगी...
नीरज
शिव भाई साहब,
ReplyDeleteई ससुरी टिप्पणी करी करी न करी का
प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव ही है कि सारे दिन में
एक ठीक ठाक टिप्पणी करने का मन
बना, तो पापी मन में बेईमानी आ गयी
और टिप्पणी पोस्ट बन के कहीं और जा
चढ़ी । क्षमा करें, ऎसी चली है..आबो हवा ऽऽ
समीरलाल जी की टिप्पणी पढ़कर सन्न रहा गया मेरा मन। ऐसा व्यवहार किया जाता है हमारी प्यारी टिप्पणियों के साथ! उनको ब्लाग पर सहेजने की बजाय सर माथे पर रखा जाता है। यह दुर्दशा बेचारी टिप्पणियों की। माथे और सर को जरा सा झटका लगा बेचारी चू जायेंगी नीचे। ये नयी तरह की कबूतरबाजी है। टिप्पणी को ब्लाग स्वामी अगवा करके सर-माथे पर ले जाता है। अब सारा लफ़ड़ा साफ़ हो रहा है। उड़नतश्तरी का किस लिये उपयोग होता है यह भी पता चल रहा है। हमारी बेचारी टिप्पणियां न जाने किस हाल में हों? क्या करें कुच्छ समझ में न आ रहा है। हमें समीरलालजी ये उम्मीद न थी। :)
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