कई दिनों से रत्नाकर बहुत टेंशनग्रस्त थे. एक साल से ज्यादा का समय बीत गया था लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक उनके ह्रदय परिवर्तन का काम पेंडिंग था. ह्रदय परिवर्तन की आस में वे अब तक कुल बहत्तर डकैती, चालीस मर्डर और अस्सी राहजनी की वारदात परफार्म कर चुके थे परन्तु इतना सबकुछ करने के बावजूद अभी तक वह घडी नहीं आई थी जब उन्हें लगता कि ह्रदय परिवर्तन के दिन सामने ही हैं.
कलियुग में जन्म लेकर उन्होंने अपने त्रेता युग वाले अवतार के बारे में खूब सुन रखा था. तमाम कथाओं में वर्णित त्रेता युग में हुए अपने ह्रदय परिवर्तन की घटना से वे वाकिफ थे. अब इसे विधि का विधान कहें या संयोग की कमी जिसकी वजह से कलियुग में अब तक उनका ह्रदय परिवर्तन नहीं हुआ था. शायद इसकी वजह से वे अपने ऊपर बहुत प्रेशर फील कर रहे थे. इस प्रेशर का ही असर था कि उन्होंने राहजनी वगैरह की घटनाओं में पिछले पंद्रह दिनों में करीब बीस परसेंट की बढ़ोतरी कर ली थी.
अभी पिछले हफ्ते की ही बात है. रात नौ बजे अपने आफिस से लौट रहे एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर को अकेला पाकर रत्नाकर ने उसकी पीठ पर चाकू टिका दिया. बोले; "जो कुछ भी हो, मेरे हवाले कर दो. अगर नहीं दिया तो चाकू घुसा दूंगा."
सॉफ्टवेयर इंजिनियर बहुत सॉफ्ट निकला. बड़े आराम से उसने अपना पर्स, घड़ी, और सिगरेट का पैकेट रत्नाकर जी के हवाले करते हुए बोला; "जो कुछ है, बस यही है. ले लो. मैं कल अपने लिए नया पर्स और नई घड़ी ले लूंगा. सिगरेट न रहने की वजह से रात में परेशानी तो होगी लेकिन काम चला लूंगा."
सॉफ्टवेयर इंजिनियर के चले जाने के बाद रत्नाकर ने अपना माथा ठोक लिया. कहाँ वे सोच रहे थे कि शायद आज वह घड़ी आ गई है जब ये आदमी उन्हें धिक्कारेगा. पूछेगा कि; "यह पाप जो तुम कर रहे हो, उसके लिए केवल तुम्हीं जिम्मेदार रहोगे या तुम्हारे घर वाले भी? तुम पाप अकेले भोगोगे या साथ में तुम्हारे घर वाले भी इस पाप के भागीदार होंगे?"
लेकिन जब ऐसा कुछ नहीं हुआ तो मुंह लटकाए घर चले गए. एक बार मन में आया कि अपना दुःख अपनी अम्मा से कह दें. उन्हें बता दें कि; "अम्मा आज भी बड़ी आशा थी कि जिसे लूटूँगा वह मुझे धिक्कारेगा लेकिन आज भी ऐसा नहीं हुआ."
उनके मन में आया कि अगर वे ऐसा कह देंगे तो अम्मा उन्हें कलेजे से लगा कर कहेगी; "मेरे बेटे, मेरे लाल, तू चिंता मत कर. केवल अपना कर्म करता जा, कोई न कोई एक दिन ज़रूर मिलेगा जो तुझे धिक्कारेगा और उस दिन तेरा ह्रदय परिवर्तन होकर रहेगा."
यही सोचते-सोचते उन्हें नींद आ गई. सुबह जब सोकर उठे तो एक बार फिर नए दिन की शुरुआत के साथ नया संकल्प लिया. संकल्प लिया कि; आज फिर से रात में किसी को लूट लेना है. शायद आज कोई मिल जाए जो मुझे धिक्कारेगा. उसकी धिक्कार सुनकर मैं अम्मा के पास जाऊंगा. अम्मा मेरी बात सुनकर पाप का भागीदार होने से मना कर देगी. उसके ऐसा करने से मेरा ह्रदय परिवर्तन होने का चांस रहेगा.
दिन भर रत्नाकर बाबू रात में राहजनी करने के बारे में सोचते रहे.
शाम को चाकू-छुरे से लैस घर से निकल गए. चलते-चलते सोचा आज बाज़ार की तरफ जाने वाले रास्ते पर किसी को लूट लेना है. करीब साढ़े नौ बजे सामने झाड़ियों की ओट से उन्होंने देखा कि कोई मोटा आदमी चला आ रहा है. जैसे ही वह आदमी झाड़ियों के पास आया, रत्नाकर झाड़ी के पीछे से कूद कर निकले और छुरा उस आदमी के पीठ पर टिकाते हुए अपना डायलाग दे मारा. बोले; "जो कुछ भी हो, मेरे हवाले कर दो. अगर नहीं दिया तो चाकू घुसा दूंगा."
उनका इतना कहना था कि वह आदमी बोला; "अरे रत्नाकर तुम हो?"
आवाज़ सुनकर उन्हें पता चल चुका था कि ये तो सेठ जीवन लाल हैं. नगर के प्रसिद्द सोना-चाँदी व्यापारी.
रत्नाकर से सेठ जीवन लाल की पुरानी जान-पहचान थी. असल में सेठ जी के यहाँ ही रत्नाकर बाबू लूटा हुआ माल वगैरह बेंचा करते थे. सेठ जी आधे दाम में गहने वगैरह खरीद लिया करते थे. जिन चीजों में वे डील नहीं करते थे, उसे भी सेवेंटी परसेंट डिस्काउंट में खरीद लेते थे.
रत्नाकर को जैसे ही लगा कि सेठ जी ने उसे पहचान लिया, बेचारा दुखी हो गया. सोचने लगा कि ये सेठ तो खुद मुझसे चोरी का माल खरीदता है. ये मुझे क्या धिक्कारेगा? अभी वह सोच ही रहा था कि सेठ जी बोले; "हा हा हा अरे भैया मुझे ही मार दोगे तो डकैती का माल कहाँ बेचोगे?"
इतना कहकर सेठ जी वहां से चल दिए.
हताश रत्नाकर दोनों हाथों से सिर पकड़कर वहीँ बैठ गया. एक बार के लिए उसे लगा कि कलियुग में शायद उसका ह्रदय परिवर्तन नहीं होनेवाला. इतनी कोशिश कर ली लेकिन एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला जो उसे धिक्कारे. जो उससे पूछे कि जो पाप वो कर रहा है उसका भागीदार उसके परिवार वाले भी होंगे या नहीं? सोचते-सोचते अचानक वह उठ खड़ा हुआ. उसने निश्चय किया कि वो एक बार फिर से ट्राई करेगा. आखिर कोई न कोई तो मिलेगा ही जो उसे धिक्कारेगा.
कहते हैं दृढ़ निश्चय से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं. जिसने भी यह कहा है, उसे शायद मालूम नहीं कि कभी-कभी दृढ़ निश्चय से हताशा की बेड़ियाँ भी कटती हैं. रत्नाकर खड़ा हुआ और फिर से किसी पथिक का इंतज़ार करने लगा. करीब साढ़े दस बजे उसे अँधेरे में एक पथिक आता हुआ दिखाई दिया. बड़ी आशा से भरे रत्नाकर ने पास आते ही उसपर छुरा तान दिया. छुरा लगाकर जैसे ही वह अपना डायलाग बोलने वाला था, उसे पता चला कि ये तो मास्टर मोतीराम थे.
उसे पक्का विश्वास हो गया कि ये मास्टर जरूर उसे धिक्कारेगा. अपनी सोच पर विश्वास किये और आस लगाये वह कुछ कहने ही वाला था कि मास्टर मोतीराम बोल पड़े; "जो तुम कर रहे हो, वह पाप है. एक बात बताओ, ये जो तुम करते हो, इससे घर वालों का भी खर्चा चलाते हो क्या? और अगर ऐसा है तो फिर पाप की सजा केवल तुम्हें मिलेगी या घर वाले भी इस पाप के भागीदार होंगे?"
मास्टर जी की बात सुनकर रत्नाकर की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. मास्टर मोतीराम को छोड़कर वो दौड़ता हुआ सीधा अपने घर पहुंचा. घर के बाहर से ही अपनी अम्मा को आवाज़ देता घर में घुसा.
उसकी आवाज़ सुनकर जैसे ही अम्मा जी उसके पास आईं उसने सवाल दाग दिया. बोला; "अम्मा एक बात बताओ. ये लूट-पाट करके मैं जो घर में ले आता हूँ और उसकी वजह से जो पाप मेरे ऊपर चढ़ता है, उसके भागीदार तुमलोग भी होवोगे या सारा का सारा पाप मैं खुद ही झेलूँगा?"
उसकी बात सुनकर अम्मा बोलीं; "कैसी बात करता है पगले? आफकोर्स इस लूट-पाट से उपजे पाप के भागीदार हमलोग भी होंगे. जब सजा मिलेगी तो हम भी तुम्हारे साथ जेल जायेंगे. अरे बेटा, तू ये क्यों सोचता है कि हम तुम्हारा साथ नहीं देंगे? तैरेंगे तो एक साथ और डूबेंगे तो एक साथ. तुझे पता नहीं लेकिन यही माडर्न सिद्धांत है."
अम्मा जी की बात सुनकर रत्नाकर के होश उड़ गए.
सोचने लगा कि बाहर वालों की वजह से ह्रदय परिवर्तन का काम ठप पड़ा था लेकिन अब घर वालों की वजह से भी नहीं हो सकेगा? आज इतने महीनों की तपस्या के बाद किसी ने धिक्कारा भी तो भी कुछ नहीं हुआ. ये अम्मा जी ने सबकुछ चौपट कर दिया.
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे? उसे ह्रदय परिवर्तन की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही थी. इतना दुखी हो गया कि रात का भोजन भी नहीं किया. बिस्तर पर लेट तो गया लेकिन आँखों में नींद का नाम-ओ-निशान न था.
सुबह मुंह लटका कर उठा. हाथ-मुंह धोकर चाय पीते-पीते अखबार देखने लगा. अचानक उसकी नज़र एक पुलिस अफसर से सम्बंधित खबर पर पड़ी. दरअसल पुलिस अफसर के ऊपर आरोप था कि उसने एक स्कूली छात्रा के साथ छेड़-छाड़ की जिसकी वजह से उस छात्रा ने आत्महत्या कर ली. कई वर्षों बाद कुछ लोगों के प्रयास की वजह से मामला वापस कोर्ट में खुला था. लेकिन आज जो खबर छपी थी उसके हिसाब से पुलिस अफसर ने खुद ही कोर्ट से दरखास्त की थी कि उसका नार्को टेस्ट किया जाय.
रत्नाकर इस खबर को पढ़कर हतप्रभ था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जहाँ लोग नार्को टेस्ट होने नहीं देना चाहते वहां यह पुलिस अफसर खुद ही नार्को टेस्ट के लिए अर्जी दे रहा है. इस खबर ने रत्नाकर को संबल दिया. उसे लगा कि अगर इस पुलिस अफसर का ह्रदय परिवर्तन हो सकता है तो एक न एक दिन ज़रूर ऐसा कुछ होगा जिससे रत्नाकर को अपने ह्रदय परिवर्तन का चांस मिलेगा.
यही सोचते हुए उसने फिर संकल्प लिया कि आज रात फिर वो किसी को लूट लेगा.
रात को फिर से छुरे से लैस घर से निकला. एक जगह उसे कोई आता दिखाई दिया. जैसे ही वो आदमी पास पहुंचा रत्नाकर ने अपना छुरा उस आदमी की कमर पर रख दिया. जैसे ही उस आदमी को एहसास हुआ कि किसी ने उसे चाकू की नोंक पर ले लिया है वैसे ही वो बोल पड़ा; " इतना हट्टा-कट्टा होकर राहजनी करता है? हाँ? अरे देश के लिए कुछ करो. दलितों के लिए कुछ करो. गरीब के लिए कुछ करो. देखता नै है कैसे हमारा आदवासी भाई सब, अल्पसंख्यक भाई सब पिछड़ा रह गया. उनके लिए तुम जैसा हट्टा-कट्टा कुछ नै करेगा त कौन करेगा? तुम्हरा देश के परति कुछ कर्त्तव्य है कि नहीं? आ सुनो, ये काम सब छोड़ो और देश सेवा करो."
रत्नाकर को लगा जैसे उस आदमी की बातें सीधा उसके दिल में घुस गईं. उसके दिल में कुछ-कुछ होने लगा. उसे लगने लगा कि उसके ह्रदय परिवर्तन का समय आ गया है.
अचानक रत्नाकर उस आदमी के चरणों पर गिर गया. बोला; "मुझे विश्वास था एक दिन मेरा ह्रदय परिवर्तन ज़रूर होगा. आपने मुझे दर्शन देकर वैसे ही तार दिया जैसे श्राप-ग्रस्त पत्थर बनी अहिल्या को छूकर श्रीराम ने तार दिया था. हे दयानिधान, आप मुझे रास्ता दिखायें. मुझे अपनी शरण में लें और बताएं कि मुझे क्या करना है? मैं आपके साथ मिलकर इस देश की सेवा करना चाहता हूँ.अपने आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के भाइयों की सेवा....आपके मार्गदर्शन में मैं समाज के दबे-कुचले वर्ग की...."
रात के सन्नाटे में रत्नाकर देश-सेवक के साथ उसके घर की तरफ चला जा रहा था. उसका ह्रदय परिवर्तन हो चुका था.
ऐ महराज, आप तो एकदम्मे सेंटिया दिये.. सोच रहे हैं हमहूँ अपना हृदय परिवर्तन कर लें.. नहीं पीएम की कुर्सी तो एकाध तमगा ही पा लेंगे..
ReplyDeleteआप दलितोद्धार संघ के अध्यच्छ बालमीकी परसाद जी की बायोग्राफी लिख रहे हैं। बहुत प्रेरक है।
ReplyDeleteबालमीकी परसाद जी सन २०२५ में सिवान से सांसद बने और अगली बार सन २०३० में अखिल भारतीय जनता दल की अगुआई में बारह दिन प्रधान मन्त्री रहे।
आप को उनके बारे में अगर और जानकारी चाहिये हो तो निसंकोच पूछ लीजियेगा। इस पुनीत काम में हमारा भी चवन्निया सहयोग रहेगा!
ये बताइये कि उन्हें विधायकी-सांसदी का टिकट मिला या नहीं. इनसे बड़ा योग्य कौन हो सकता है?
ReplyDeleteअंततः सुखांत हुआ... वर्ना तो बड़ा मुश्किल हो चला था ह्रदय परिवर्तन. ये अँधेरे वाले देश भक्त कहाँ मिलेंगे?
ReplyDeleteबहुत दिन तड़पे है, अब हर दिन हिरदय परिवरतन होगा. हिरदय की अवाज सुन कर हर दिन वफादारी बदलेगी. तमाम पिछड़े वर्गों की सेवा के लिए पार्टी, देश तक बदल देंगे. वैसे ईनाम मिलने से भी हिरदय परिवरतन होता है. कोई तमगा ही दिलवा देते.
ReplyDeleteमजा आया. एक साँस में पढ़ गए....इंतेजार रहता अहि भाई नई पोस्ट का.
अंत भला तो सब भला...एक न एक दिन दुख का निदान होना ही था.
ReplyDeleteआपके और हमारे रत्नाकर की कहानी में अंतर है...वो ये के जहाँ आपके रत्नाकर को देश सेवक मिला वहीँ हमारे रत्नाकर को लोक सेवक मिल गया...कैसे सुनिए...
ReplyDeleteरात के सन्नाटे में जब कुत्ते राग हूहारी( हूहारी राग दरबारी जैसा ही है इसे अक्सर कुत्ते एक साथ किसी के दरबार में हाजरी लगाने के लिए एक के बाद एक हू हू हू करके गाते हैं) अलाप रहे थे तब रत्नाकर ने देखा एक इंसान एक कन्या के साथ सड़क पर आनंद से चला जा रहा है...रौशनी का खम्बा आये उस से पहले ही रत्नाकर झाडी से प्रकट हुआ और चाकू उस व्यक्ति पर तान दिया...व्यक्ति जिसने गेरुए वस्त्र धारण किये हुए थे बाल और दाढ़ी बढ़ा कर कोई दिव्य पुरुष लग रहा था ने कोमल स्वर में रत्नाकर से कहा...धिक्कार है वत्स...जीवन यापन के लिए ऐसा घृणित कार्य कर रहे हो...राहगीरों को लूट रहे हो...अरे लोक सेवा करो लोक सेवा...रत्नाकर बावलों सा स्वामीजी नुमा व्यक्ति को देखने लगा और आँखों ही आँखों में पूछा कैसे? लोक सेवा से पेट भरण का काम कैसे चलेगा? मुक्ति कैसे मिलेगी?? कलयुग का ये रत्नाकर त्रेता युग का रामेश्वर कैसे बनेगा?...स्वामी जी भांप गए और मुस्कुराते हुए बोले चिंता मत करो वत्स सिर्फ अपना ह्रदय परिवर्तन करो...आज से बल्कि अभी से अपनी नहीं लोक सेवा करो...
रत्नाकर के संशय का निवारण करते हुए उन्होंने रत्नाकर के कंधे पर हाथ रक्खा और कहा...देखो वत्स हमारे सभी भक्त लोक सेवा के लिए अभी प्रस्थान किये हुए हैं इसी बीच हमारे एक अनुरागी ने हमें सहायता के लिए पुकारा तो हम स्वयं लोक सेवा हेतु चल दिए...तुमको अपनी और आने वाली कई पीढियां संवारनी हैं तो ह्रदय परिवर्तन कर हमारी शरण में आ जाओ...रत्नाकर को मानो भगवान मिल गए...बोला क्या करना होगा प्रभु? वो बोले कुछ विशेष नहीं इस कन्या को सेठ जीवन लाल के घर पहुंचा दो...वो इसके पचास हज़ार रुपये देगा उसमें से पांच इस कन्या को और पांच स्वयं रख कर शेष राशी हमें दे देना...बस...ये काम करो और समझो स्वर्ग के दरवाज़े तुम्हारे लिए खुल गए... इतना सरल काम प्रतिदिन करोगे तो कितना कमा लोगे वत्स...सोचो...
रत्नाकर ने जैसे ही राशी का हिसाब लगाया उसे चक्कर आ गए...ह्रदय परिवर्तन करते ही कमाई और स्वर्ग में सीट पक्की होती देख भला कौन अपना आपा न खो बैठेगा...रत्नाकर ने भी खो दिया...शीघ्र ही उसने कन्या का हाथ पकड़ा स्वामी जी को प्रणाम किया और जीवन लाल सेठ के घर की और चल दिया...रत्नाकर का ह्रदय परिवर्तन हो चुका था...लेकिन...हत भाग्य...
अभी उसने लोक सेवा में पारंगत होने के गुण सीखने शुरू ही किये थे की स्वामी जी के दुष्ट दुश्मनों ने, जिनका नाश बस अब हुआ के हुआ समझो, उन पर लांछन लगा कर उन्हें इस लोक सेवा जैसे नेक काम को ना जाने किन निकृष्ट संबोधनों से पुकार कर जेल भेजने का आयोजन कर दिया...लोक्स्व्वा का अर्थ समझे बिना ही उन्होंने स्वामी जी रत्नाकर को मीडिया के सामने प्रताड़ित किया...स्वामी जी अब जेल में हैं ,रत्नाकर भी उनके पीछे पीछे जेल में है और सोच रहा है के स्वामी जी के इन दुश्मनों का ह्रदय परिवर्तन कब होगा...होगा ये निश्चित है लेकिन कब ये पता नहीं...लेकिन उसे यकीन है इन सबका ह्रदय परिवर्तन होगा और ये सब शीघ्र ही स्वामी जी द्वारा किये जाने वाले कार्य को लोक सेवा मान कर उनके चरणों में गिडगिडा कर क्षमा मांगेंगे...
नीरज
कमेन्ट लम्बा हो गया तो क्या...सच्चाई छुपनी नहीं चाहिए हमारी ये मान्यता है...
वाह वाह! इस हृदय परिवर्तन के दौर से गुजरने की प्रतीक्षा मुझे भी है। कोई धिक्कारो न भाई...:)
ReplyDeleteरोज नये-नये शब्द आ जाते हैं दुनिया में। हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है अब लगता है। पहले हृदय परिवर्तन को अंग्रेजी में पेस मेकर लगना कहते थे।
ReplyDeleteमां की कोख से पैदा हो जाना मात्र जन्म नहीं, अपने अस्तित्व का बोध हो जाना (हृदय परिवर्तन) वास्तविक जन्म।
ReplyDeleteपता नहीं रत्नाकरों ने पुनः अवतार लेकर कितने रूप रख लिये हैं । एक आत्मा कितनी आत्माओं में बटकर एक साथ अवतरित हो सकती है, कृष्ण से पूछना पड़ेगा । सारे के सारे मॉर्डेन युगीन रत्नाकरों का मेमोरी फंक्शन डिलीट हो गया है । मेमोरी पुनः स्थापित करने के बाद ही धिक्कारना होगा । और पता नहीं कितने समझेंगे ।
ReplyDeleteनेताजी मिल जाएँ,जनसेवा के लिए संसद का गेट खुल जाए........ऐसे ह्रदय परिवर्तन और प्रवर्तक के लिए तो सहस्त्रों कोटि रत्नाकर व्याकुल हैं....
ReplyDeleteरत्नाकर भाईसाहब की कहानी सुनकर हमारी तो आँखों में आंसू आ गए..
ReplyDeleteवैसे मान के डायलोग 'आफकोर्स' के लिए आपको पचास नंबर दिए जाते है.. और बाकी के पचास नीरज जी को दे रहा हूँ.. उन्होंने तो पांच चाँद लगा दिए..
रत्नाकर सोच रहा है की ह्रदय परिवर्तन हो गया....बेचारा नेता बन गया! उसे क्या पता की सिर्फ वस्त्रों में परिवर्तन हुआ है! लूटपाट तो पहले नंबर दो में चलती थी अब नंबर एक में चलेगी!
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