"अरे, ये तो फिर आ धमके" एक असिस्टेंट जनरल मैनेजर उदास होते हुए बोला.
"हाँ सर, अभी बीस दिन ही तो हुए थे, जब बाबू पिछली बार आए थे. फिर अचानक कैसे पधारे. कुछ प्राब्लम है क्या?" उनके पीए ने पूछा.
"अरे प्राब्लम-वाब्लम कुछ नहीं है. काम धंधा कोई है नहीं. घर वालों ने परेशान होने से मना कर दिया होगा तो इम्प्लाई लोगों को परेशान करने आ पहुंचे", असिस्टेंट जनरल मैनेजर ने कहा.
बात इतनी सी थी कि चेयरमैन एक ही महीने में दुबारा आ धमके थे. आस्सी साल उमर हो गई है. इनकी परेशानी ये है कि इन्हें कोई परेशानी नहीं है. सफारी पहनकर चंदन लगाकर जब-तब फैक्ट्री विजिट पर पहुँच जाते हैं. जब तक हेड आफिस में रहते हैं तो भी इन्हें कोई काम नहीं रहता. लेकिन सबको दिखाते हैं कि बहुत काम करते हैं. रात के आठ-आठ बजे तक आफिस में बैठे रहते हैं ताकि कोई कर्मचारी अपने घर ठीक समय पर नहीं जा सके. अब चेयरमैन आफिस में बैठा रहेगा तो कर्मचारी आफिस से निकलकर घर जायेगा भी कैसे.
आज फैक्ट्री विजिट पर आ धमके हैं. आते ही पाण्डेय जी को तलब किया. पाण्डेय जी सबेरे से ही साहब के साथ हैं. साहब इधर-उधर और न जाने किधर-किधर की बातों से पाण्डेय जी को बोर कर रहे हैं. पाण्डेय जी भी क्या करें कुछ नहीं कर सकते. साहब की बातें सुनकर अन्दर ही अन्दर खिसिया रहे हैं. साहब आए तो हैं फैक्ट्री विजिट पर लेकिन जायजा ले रहे हैं मन्दिर के खर्चे का.
"अच्छा पाण्डेय जी, मन्दिर में जो पूजा होती है उसमे एक दिन में कितना लड्डू लगता है?" चेयरमैन साहब ने पूछा.
"सर, तीन किलो लगता है एक दिन की पूजा पर", पाण्डेय जी ने बताया.
"लेकिन पिछले साल तो दो किलो में हो जाता था न. फिर ये तीन किलो?" चेयरमैन साहब लड्डू की मात्रा को लेकर चिंतित लग रहे हैं.
"सर, वो क्या है कि लोगों को जब पता चला कि पूजा में प्रसाद के लिए लड्डू का इस्तेमाल होता है तो ज्यादा लोग आने लगे"; पाण्डेय जी ने लड्डू के ज्यादा खपत होने का कारण बतात हुए कहा.
"लेकिन ये तो ठीक बात नहीं है. शेयरहोल्डर्स को एजीएम में जवाब तो मुझे देना पड़ता है न. ऊपर से ज्यादा लोग आते हैं पूजा में तो आफिस के काम का नुकसान भी होता होगा. एक काम कीजिये, कल से पूजा के प्रसाद में बताशा मंगाईये. इसके दो फायदे होंगे. एक तो खर्चा कम होगा और दूसरा लोग भी कम आयेंगे"; बाबू ने हिदायत दे डाली.
पाण्डेय जी ने उनकी बात सुनकर मन ही मन अपना माथा पीट लिया. ये सोचते हुए कि 'देखो कैसा इंसान है. जब परचेज का नकली बिल बनवाकर कम्पनी से कैश निकालता है तो शेयरहोल्डर्स की चिंता नहीं सताती इसे लेकिन प्रसाद में दो की जगह तीन किलो लड्डू आ जाए तो शेयरहोल्डर्स का बहाना करता है.'
अभी पाण्डेय जी सोच ही रहे थे कि बाबू ने कहा; " क्या सोच रहे हैं पाण्डेय जी? देखिये बूँद-बूँद से ही सागर बनता है. मुझे ही देखिये, इस उमर में भी बारह घंटे काम करता हूँ. आज मूंगफली भी खाता हूँ तो ख़ुद ही अपने हाथ से तोड़कर. आज भी रात के आठ बजे तक आफिस में बैठता हूँ. बोलिए, है कि नहीं?"
पाण्डेय जी क्या करते. हाँ करना ही पडा. भले ही मन में सोच रहे थे कि 'आफिस में बैठकर तुम करते ही क्या हो? माडर्न मैनेजमेंट की एक भी टेक्निक मालूम है तुम्हें? आफिस में बैठे-बैठे केवल कर्मचारियों को सताते हो तुम. मेरी ही हालत देखो न. इंजीनीयरिंग की पढाई की. बाद में एमबीए भी किया. दोनों कालेज में किसी गुरु ने यह नहीं पढ़ाया कि चेयरमैन जब फैक्ट्री विजिट पर आकर मन्दिर में होने वाले पूजा और प्रसाद के बारे में पूछेंगे तो उन्हें कैसे जवाब दिया जाय. मैं एक इंजिनियर. तुम्हारी कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट हूँ लेकिन दिन बुरे चल रहे हैं तो पूजा के खर्च पर बात करनी पड़ रही है.'
यह सोचते-सोचते पाण्डेय जी को अचानक ध्यान आया कि लंच का टाइम हो गया है. उन्होंने कहा; "सर लंच का समय हो गया है. चलिए लंच कर लीजिये."
पाण्डेय जी की बात सुनकर 'बाबू' बोले; "अरे, आपको तो बताना भूल ही गया. आजकल मैं लंच में केवल चना और गुड खाता हूँ. हमारे गुरुदेव ने खाना खाने से मना किया है."
उनकी बात सुनकर पाण्डेय जी का कलेजा मुंह को आ गया. सोचकर परेशान हो गए कि ऐसे वक्त में चना और गुड कहाँ से लायें? थोड़ी देर का समय लेकर फौरन गेस्ट हाऊस की तरफ़ दौड़े. पूछने पर पता चला कि चना मिलना तो बहुत मुश्किल है और गुड मिलना उससे भी कठिन. लेकिन पाण्डेय जी भी ठहरे मैनेजर. उन्हें मालूम था कि फैक्ट्री से थोड़ी दूर ही देसी शराब की दुकान है जहाँ फैक्ट्री के वर्कर्स थकान मिटाते हैं. वहाँ पर प्यून को भेजकर चना मंगवाया गया. लेकिन गुड का इंतजाम नहीं हो सका. चार प्यून दौडाये गए बाज़ार में गुड खोजने के लिए. करीब एक घंटे के बाद गुड भी मिल ही गया.
चेयरमैन साहब चना और गुड प्लेट में सजाये बैठे हैं. बात करते-करते एक चना मुंह रख लेते हैं.
पाण्डेय जी सोच रहे हैं; 'भगवान दया करो और इस आदमी को आज ही यहाँ से रवाना करो.'
आख़िर छोटे-मोटे पद का कोई कर्मचारी होता तो उसे पाण्डेय जी ख़ुद ही रवाना कर देते लेकिन ये तो ठहरे चेयरमैन. और चेयरमैन से बड़े केवल भगवान होते हैं.
नोट:
यह एक पुरानी पोस्ट का री-ठेल है.
ओह नौकरी ऐसी ही कुत्ती चीज होती है -कई अपने प्रसंग याद आ गये ......दुखी भीहूँ मगर गुदगुदी भी छूटी !
ReplyDeleteचने और गुड का आईडिया तो बढ़िया है ..... बड़े साहब का आईडिया है तो बढ़िया तो होना ही है ....
ReplyDeleteगुड़ और चना !! बहुत ही सादा जीवन है, ठीक वैसा ही जैसा बाबा लोग धान नहीं खाते केवल सुखे मेवे से काम चलाते है. :)
ReplyDeleteचेयरमेन है तो कुर्सी पर ही बैठा रहेगा ना जमकर। हमारे भाई एक कहावत बड़े चाव से सुनाते हैं कि चना और गुड-धानी, बाकी सब दगाबाजी।
ReplyDeleteबेचारे चेयरमैन साहब, घर पर पतोहू ने ठीक समय पर भोजन देने से इन्कार कर दिया होगा, कह रही होगी कि बैठे बैठे क्या करोगे, बच्चों को स्कूल छोड आइये.....शाम के समय बाजार से सब्जी लेते आईये.....यही सब से जान बचाने के लिये सुबह जल्दी चल देते होंगे कि बच्चों के झंझट से मुक्ति मिल जाय और साम को जल्दी न जाते होंगे कि सब्जी न लानी पड जाय।
ReplyDeleteअब भुगतें कर्मचारीगण।
अपने यहां तो जब चेयरमैंन का दौरा होता था तो जिस मशीन पर चेयरमैन साहब हाथ रख कर धूल वगैरह होने की ताकीद करते अपनी चुटकी साफ करते आगे बढ जाते थे, उस मशीन पर उसी हिस्से को छूते हुए पीछे चलने वाले वीपी वगैरह चलते थे और चेयरमैन की तरह भाव भंगिमा बना कर च च करते थे। शुरूवात चेयरमैन से होती थी और अंत सुपरवाईजर से।
मशीन का वह हिस्सा छूते छूते साफ हो जाता था। :)
उधर चेयरमैंन साहब अगली मशीन छू रहे होते हैं। च च च......
बहुत बढिया लिखा है। शानदार विजिट।
चेयरमैन जो खाये, वही सर्वोत्तम आहार । बाकी सोचना भी बेकार ।
ReplyDeleteचैयरमैन को आपके घर का पाता दे दिया है.. अब आप निपटिये उनसे हम डिनर लेते है.. गुड चना
ReplyDeleteक्या मिसरा जी उस दिन रात दारू के झोंक में आपको ये बात क्या बता दी आपने तो हमारी कंपनी का ससुरा आफिसियल सीक्रेट ही आउट कर दिया...ये तो अच्छा है की चेयरमैन चिरकुटों के ब्लॉग नहीं पढ़ते...(चिरकुटों के ब्लॉग क्या वो तो कुछ भी नहीं पढ़ते...सिर्फ पढ़ाते हैं) , वर्ना अपनी तो नौकरी गयी थी आज...आईंदा आपके साथ पीते समय होश कायम रखना पड़ेगा...पता नहीं कब मरवा दो यार...
ReplyDeleteपाण्डेय जी
@ नीरज गोस्वामी >...ये तो अच्छा है की चेयरमैन चिरकुटों के ब्लॉग नहीं पढ़ते...
ReplyDeleteबड़ा चिरकुट है आपका चैयरमैन!
अब साहब, अस्सी साल के चेयरमैन घर में रहकर भी क्या करेंगे? वैसे हैं बहुत सादे आपके चेयरमैन।
ReplyDeleteहमारे भी एक बहुत बड़े एक्सीक्यूटिव एक बार विज़िट पर आये तो चाय पीने से मना कर दिया था, कारण ये बताया कि उनके लिये चाय आयेगी तो पांच छ कप चाय औरों के लिये भी आयेगी(ये घटना बिल्कुल सत्य है)। हम तो जी कभी नहीं बनेंगे चेयरमैन।
आभार।
सुन्दर! आपकी यह पोस्ट पढ़कर लगा कि कह दें कि आपका हिन्दी के विकास में योगदान अप्रतिम है।
ReplyDeleteलेकिन नहीं कहा इस डर से कहीं मजाक में कही बात को आप सच मानकर बुरा न मान जायें।
आपको वैसे एक ठो डिस्कलेमर और लगा देना चाहिये कि यहां वर्णित और चिंतित पाण्डेयजी का ज्ञानदत्त पाण्डेय जी से कोई लेना-देना नहीं है। ज्ञानजी की टिप्पणी पढ़कर इसकी और आवश्यकता महसूस हो रही है। उनकी टिप्पणी से लगता है कि चेयरमैन महोदय के लिये गुड़-चना का इंतजाम उन्होंने ही किया था।
"जब परचेज का नकली बिल बनवाकर कम्पनी से कैश निकालता है तो शेयरहोल्डर्स की चिंता नहीं सताती इसे लेकिन प्रसाद में दो की जगह तीन किलो लड्डू आ जाए तो शेयरहोल्डर्स का बहाना करता है." ये जबरदस्त लाइन है.
ReplyDeleteध्यान रखना शिव..आजकल हम भी सिर्फ कचौड़ी आलू की सब्जी खा रहे हैं वो शर्मा वाली जो तुम खिलबाये थे कलकत्ता में..इन्तजाम पुख्ता रहे वरना कलेजा मूँह मे न आ जाये कि अब कहाँ से इन्तजाम हो!! :)
ReplyDeleteदो बातें पल्ले बांध ली हैं , चेयरमैन भी गुड से काम चला रहे हैं का करेंगे अब तो चीनी सिर्फ़ सोफ़ा वालों को नसीब हो रहा है और हिंदी सेवा भाव.... किसी भी पोस्ट ...किसी भी टीप... किसी भी ब्लोग्गर... चाहे वो एलियन हो या इंसान के प्रति उग सकता है ..और एक बार उगने के बाद ..उसे बरगद जैसा संपन्न होने से कोई माई का लाल नहीं रोक सकता ...वैसे हमेशा ही माई के लाल को ही क्यों चैलेंज किया जाता है ...माई के हरे ,पीले, नीले को कोई नहीं ललकारता ..रीठेलमेंट वो भी नए वित्तीय वर्ष में ..सब टैक्स बचाने का जुगाड है जी
ReplyDeleteअजय कुमार झा
भारत को ऐसे ही चेयरमैन चला रहे हैं..
ReplyDeleteसामने गुड़-चबेना,बाद में चिकन चबा रहे हैं..
हैं तो कुछ और, लेकिन कुछ और ही दिखा रहे हैं..
मर्ज बढ़ती रहे, ऐसे इंजेक्शन लगा रहे हैं...
:) हे हे
ReplyDeleteमै आपकी पोस्ट, फ़िर अनूप जी की टिप्पणी पढकर हस रहा हू..
मूंगफली भी खाता हूँ तो ख़ुद ही अपने हाथ से तोड़कर -
ReplyDeleteइत्ते कर्मठ आदमी को आप बेकार, ठेलुआ कह रहे हैं । खराब बात है ।
वो बेचारा 8 बजे तक बैठा रहता है । ये कोई काम नहीं है क्या ?
ऊफ्फ्फ....तनाव से तने तंत्रियों पर तुम्हारी यह पोस्ट ऐसी ठंडी लेप सी लगी कि दिमाग रहत पा गया...बस यूँ लगा जैसे ४४ डिग्री तापमान में तमतमाए शरीर पर बरखा फुहार पड़ गयी... आह आनंद आ गया...
ReplyDeleteतुम्हारे वर्णन ने सम्पूर्ण दृश्य आँखों से सम्मुख साक्षात् उपस्थित कर दिया.....
लाजवाब वर्णन है...लाजवाब !!!
gud one... a breath of fresh air.. reading Hindi!
ReplyDelete'चेअर'-मैन जब रात आठ बजे के बाद 'चेअर' छोड़ देते हैं, तब कितना 'मैन' रह पाते हैं ये जान पाते तो…
ReplyDeleteऔर पुरानी पोस्ट का रि-ठेल भी मेरा नाम जोकर की तरह हिट है जनाब।
ऐसे ही कुछ उदहारण मुझे भी देखने को मिली आखिर 'बिग बॉस' है भाई ! आब वो एम्प्लोयी के सामने 'Rassogoola ' तोह खा नहीं सकते नहीं तोह मंदिर का खर्चा और बढ़ जायेगा ......है जी ! :)
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