बहुत दिन बाद कल रतिराम जी की दूकान पर जाना हुआ. करीब डेढ़ महीने के बाद. पिछले महीने आफिस से किसी को भेजकर पान मंगवा लेते थे. मैंने सोचा मार्च महीने में जाऊँगा तो रतिराम जी मन ही मन बहुत कुछ सोच लेंगे. मन में खुद से बात भी कर सकते हैं कि; "कैसा बैठा-ठाला मनई है कि इसको मार्च का महीना में भी कोई काम नहीं है. जब पूरा देश मार्च मना रहा है और देश का जीडीपी बढ़ा रहा है ता ई मनई आफिस से चलकर पान खाने आया है."
यही सब सोचकर नहीं गया मैं.
खैर, कल गया तो मुझे देखकर बोले; "अरे आइये-आइये. केतना दिन बाद लौके हैं. अब तो तबियत पहिले से ठीक-ठाक लग रहा है. बाकी चलने में अभी भी दिक्कत है. का कहता है डाक्टर?"
मैंने कहा; "डॉक्टर कहते हैं ठीक हो जाएगा."
मेरी बात सुनकर बोले; "ठीक हो जाएगा, ई बात त आठ महिना से कह रहे हैं. कोई नया बात नहीं बोले?"
मैंने कहा; "अब फिजियोथैरेपिस्ट आते हैं घर पर. पहले से काफी ठीक है. सच कहें तो अब डॉक्टर के पास जाना छोड़ दिया है मैंने."
मेरी बात सुनकर बोले; "अखीर में करना पड़ा ना वोही काम? आपके त हम नवंबरे में कहे थे कि ऊ डॉक्टर फंसा लिया है आपको. आ फायदा-ओयदा कुछ नहीं होगा. केतना का धक्का लगाया?"
मैंने कहा; "नहीं ऐसी बात नहीं है. मैंने तो इसलिए जाना छोड़ दिया कि उनका काम हो गया था. कोई इलाज नहीं समझ पाए होंगे. ऐसा होता है."
मेरी बात सुनकर उन्होंने एक तीखी सी मुस्कान छोड़ दी. देखकर लगा जैसे कह रहे हों 'हमको का समझाइएगा आप? बहुत दुनियां देखे हैं हम.' फिर मेरी तरफ देखकर बोले; " आप भी ना. कबूल थोड़े ना करेंगे हम ऊ समय जो कहे रहे, वोही सच था. ई डाक्टर सब को आप भी जानते हैं बाकी बोलेंगे नहीं. ई देखिये, इनको देखिये...देखिये-देखिये..देसाई साहेब हैं ई. ऊ का नाम है संस्था का? हां कौंसिल ...मेडिकल कौंसिल का सर्वेसर्वा. का करते हुए पकड़े गए? देखिये पेपर..खुदे देखिये."
मैंने कहा; "हर प्रोफेशन में कोई ना कोई खराब निकलता ही है. इसका मतलब सब खराब हैं, यह थोड़ी ना है."
मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए. बोले; "आप महाराज...आप कूटनीतिज्ञ काहे नहीं हुए? आप होते त बहुत देश से अपना देश का सम्बन्ध ठीक हो जाता."
मैंने कहा; "क्या रतिराम जी? आप मेरी टांग खींच रहे हैं? खैर छोडिये ई सब. अपनी कहिये? का नया हो रहा है?"
बोले; "हाँ, आप त बहुत दिन से आये नहीं ना. आप बता नहीं पाए. एगो सीजनल बिजिनेस कर लिए इस साल."
मैंने सोचा ये सीजनल बिजनेस क्या करेंगे? गर्मी बढ़ गई है. ऐसे में शायद लस्सी की दूकान खोल लिया होगा इन्होने. यही सोचते हुए मैंने पूछा; " लस्सी और कोल्ड-ड्रिंक्स की दूकान कर लिए क्या?"
मेरी बात सुनकर हंस दिए. बोले; "अरे नहीं. कोल्ड-ड्रिंक्स त हम एही पान के दुकाने पर रखते हैं. असल में एक काम मिला था प्रिंटिंग का. वोही कर लिए."
उनकी बात सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. प्रिंटिंग के बिजनेस को कोई सीजनल बिजनेस क्यों कहेंगा भला? फिर मैंने सोचा कि शादी का मौसम है. ऐसे में रतिराम जी ने शायद विवाह के कार्ड छापने का काम शुरू कर दिया होगा. मैंने कहा; "समझ गया. विवाह का कार्ड छापने का धंधा शुरू कर दिया क्या आपने?"
वे बोले; "अरे नहीं-नहीं. असल में हमको प्रिंटिंग का एगो कांट्रेक्ट आई पी एल के चलते मिल गया था."
उनकी बात सुनकर लगा कि रतिराम जी ने निश्चित तौर पर कोई लम्बा हिसाब बैठा लिया है. मैंने कहा; "क्या बात है? कोलकाता नाईट राइडर्स के मैचेज के टिकेट प्रिंट करने का ठेका आपको ही मिला था क्या? इस बात पर तो पार्टी बनती है. कैसे बैठाए ये हिसाब?"
मेरी बात सुनकर बोले; "आप भी केतना दूर चले जाते हैं? अरे ऊ बात नहीं है. ई सब छापने के लिए हमीं हैं का? सौरव गांगुली के ससुर जी का छपाई का एतना बड़ा बिजनेस है आ आप हमरा नाम ले रहे हैं. असल में बात ई है कि हमको तीन-चार कंपनी से चौका-छक्का छापने का कांट्रेक्ट मिल गया था."
उनकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई. चौका-छक्का छापने का कांट्रेक्ट? ये कैसा कांट्रेक्ट है? यही सोचते हुए मैंने उनसे पूछा;" क्या बात करते हैं आप भी? चौका-छक्का भी कोई छापने की चीज है? आप क्या कहना चाहते हैं?"
मेरी बात सुनकर बोले; "हमको मालूम था कि आपको नहीं बुझाएगा. बताइए आप किरकेट के दीवाने बताते हैं खुद को अउर एही नहीं बुझाया आपको. अरे चौका-छक्का छापने का मतलब होता है ऊ सब पम्फलेट जो दर्शक सब हाथ में लेकर बैठा रहता है अउर चौका या फिर छक्का लगते ही हाथ उठा-उठाकर देखाता है. ओही सब छापने का कांट्रेक्ट मिल गया था. कमीशन पर छपवा दिए."
मैंने कहा; "क्या बात करते हैं आप भी महाराज? इस काम को आप सीजनल बिजनेस बता रहे हैं."
वे बोले; "त अउर का बताएं? ई सीजनल बिजनेस नहीं है? आप का समझते हैं? अब आई पी एल का खाली क्रिकेट टोनामेंट है? नहीं, अब ई उद्योग है. उद्योग तो उद्योग अब आई पी एल खुद एक सीजन है. जैसे जाड़ा, गर्मी, बरसात का सीजन होता है, ओइसे ही आई पी एल का भी सीजन होता है."
उनकी बात सुनकर लगा कि सही बात तो कह रहे हैं. मैंने पूछा; "तो आपको ये कांट्रेक्ट मिला कैसे?"
बोले; "अरे ऊ लेकरोड वाले राय बाबू हैं ना. अरे वोही जिनसे आपको मिलाये थे एकबार. उनका अब लम्बा हिसाब बैठ गया है आई पी एल में. मालूम नहीं आपको?"
मैंने कहा; "नहीं तो मुझे नहीं मालूम था.'
वे बोले; "अरे नहीं. अब ओंक हिसाब लम्बा हो गया है. अभी दू दिन पहिले ही त उनसे भी पूछताछ किया है इनकम टैक्स वाला सब. कल आये थे दूकान पर. बहुत खुश थे. कह रहे थे इनकम-टैक्स वाला सब एक बार पूछताछ कर लिया त अब नाम हो गया है."
मैंने कहा; "तब तो आपसे भी इनकम-टैक्स वाले पूछताछ कर सकते हैं. आखिर आप भी तो आई पी एल टीम खरीदने का कोशिश किये थे."
मेरी बात सुनकर बोले; "अरे कहाँ हमरा भाग्य ऐसा है? हम त भगवान् से बोले कि हे भगवान् हमरे दूकान पर भी अगर इनकम-टैक्स आई पी एल का कनेक्शन में रेड मार देता त केतना बढ़िया होता. बाकी कहाँ भाग्य में इनकम-टैक्स का रेड लिखा है. एक बार के लिए सोचे कि हमरे दूकान से ही मोदी जी के लिए तीन दिन पान गया था. ओही का रिलेशन में इनकम-टैक्स वाले कुछ पूछ लेते. बाकी हुआ नहीं ऐसा."
मैंने कहा; " मोदी जी माने ललित मोदी? वे पान भी खाते हैं?"
मेरी बात सुनकर हंस दिए. बोले; "अरे मिसिर बाबा, ई बड़े लोग का खाने के लिए अगर चार चीज ऐसा जाता जो ऊ लोग खाता है त साथ में बारह चीज ऐसा जाएगा जो ऊ लोग नहीं खाता है. पान भी ओही में से एक होगा."
मैंने कहा; "सही कह रहे हैं. वैसे मोदी जी अब बेचारे फंसे हुए हैं.'
मेरी बात सुनकर रतिराम जी बोले; "का बात करते हैं आप भी? फंसे-ओंसे कुछ नहीं हैं. सब ठीक हो जाएगा. समय थोड़ा खराब चल रहा है. बाकी किसी का कुछ होगा नाही."
मैंने उनसे पान लेते हुए कहा; "अच्छा चलता हूँ. और कुछ नया होगा तो बताइयेगा."
वे बोले; "अरे कहाँ हो रहा है नया कुछ? एक रात त सपना आया कि सरकार हमरा भी फ़ोन टैप कर लिया है. ऊ पत्रिका ..का कहते हैं उसको? हाँ, आऊटलुक में हमरा नाम भी छपा है फोटू के साथ. सपना में एतना ख़ुशी हुए कि कहिये मत. बाद में नींद खुला त बहुत दुःख हुआ. का करें, हम तो इतने गए-गुजरे हैं कि हमरा त फ़ोन भी टैप नहीं होता. एक बार इनकम-टैक्स का छापा या चाहे फ़ोन टैप हो जाता त जीवन सफल हो जाता..."
पान मुंह में दबाये मैं उनकी दूकान से चल.................
रतिरामजी के बारे में हम हू एक ठो सपना देखे थे. हमारे बीच हुई बातचीत "भूल" से तेप हो गई, सरकार ने सफाई दी कि देशहित में ऐसा करना भी पड़ता है मगर फोन टेप किये नहीं है.
ReplyDeleteसपना की बात पर रतिरामजी खूश हो लिए और पान में ज्यादती गुलकोंद डाले. अब अगली बार आई.टी. के छापे का सपना देखेंगे और बताएंगे. भेद ना खोल दियो, वरना चुना ज्यादा डाल देंगे. :)
तेप = टेप
ReplyDeleteहर एक बदनसीबी आने वाले कल की खुशनसीबी का बीज लेकर आती है .
ReplyDeleteमजेदार किस्सा/संवाद।
ReplyDeleteबढिया किस्सा\\
ReplyDeleteमजेदार लगा !बात कहने की शैली अच्छी है....
ReplyDeleteका मिसिर बाबा, एतना काम तो आपहूं करवा सकत थे बेचारे रतिराम के खातिर।
ReplyDeleteआनंद आ गया।
आभार।
'केतना का धक्का लगाया?'
ReplyDelete'साथ में बारह चीज ऐसा जाएगा जो ऊ लोग नहीं खाता है.'
ये है हिट लाइन... परीक्षा लेना होता तो पूछ लेता कि इन लाइनों की सप्रसंग व्याख्या करें :)
ब्लौगर मित्र, आपको यह जानकार प्रसन्नता होगी कि आपके इस उत्तम ब्लौग को हिंदीब्लॉगजगत में स्थान दिया गया है. ब्लॉगजगत ऐसा उपयोगी मंच है जहाँ हिंदी के सबसे अच्छे ब्लौगों और ब्लौगरों को ही प्रवेश दिया गया है, यह आप स्वयं ही देखकर जान जायेंगे.
ReplyDeleteआप इसी प्रकार रचनाधर्मिता को बनाये रखें. धन्यवाद.
पहले जब डकैत लूटमार करते थे तो वहाँ अपना छुटका ध्वज गाड़ आते थे । अब इनकम टैक्स वाले रेड मार कर काला धन पायें न पायें पर 'यशस्वी भव' का गिफ्ट बाउचर छोड़कर अवश्य आते हैं ।
ReplyDeleteपर इनकैस कराना आपको आना चाहिये ।
वाह वाह पंडितजी। का कहना है आपका !
ReplyDeleteघुमाए फिराए खूब, औ मारै सही ठिकाने पै।
मजा आय गवा सच्ची बात ई अंदाज मैं पढ़ कै।
"बहुत दुःख हुआ. का करें, हम तो इतने गए-गुजरे हैं कि हमरा त फ़ोन भी टैप नहीं होता. एक बार इनकम-टैक्स का छापा या चाहे फ़ोन टैप हो जाता त जीवन सफल हो जाता..."
ReplyDeleteपढ़ कर लगा कहीं रति राम जी हमारे कुम्भ में बिछुड़े भाई तो नहीं...एक सा सोच है हमारा और उनका...एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं हम...सच्ची...अगली बार उनकी दूकान पर जाएँ तो पूछें क्या वो कभी कुम्भ मेले में गए हैं या क्या उनके बाएं हाथ की हथेली में अंगूठे के नीचे काले तिल का निशान है...अगर जवाब हाँ है तो हम अगली ही फ्लाईट से कलकत्ता आ रहे हैं उन्हें भैय्या कह कर गले लगाने...
नीरज
काश कोई हमारा भी फोन टेप कर... बिल देख कर पता तो चले की काल हमारी है.. या फर्जी बिल बना कर दे दिया...
ReplyDeleteबस इहै कह सकते हैं ई पढ़ कर....
ReplyDeleteलाजवाब...लाजवाब ....लाजवाब....
पढ़कर आनन्द आया । धन्यवाद ।
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