Tuesday, May 18, 2010

सत्ता की नीति कहती शर्म छोड़ मुँह मोड़ो...

बहुत दिनों बाद तुकबंदी जोड़ने बैठा तो करीब पचास ग्राम मिलावटी तुकबंदी जुड़ गई. मिलावटी इसलिए कि हिंदी में अंग्रेजी के शब्द मढ़ दिए गए हैं. अब इसके लिए कोई हिंदी-द्रोही कह कर चैन से न बैठे तो कोई बात नहीं. मैं हिंदी की आधी सेवा करता हूँ....:-)

खैर, आप तुकबंदी झेलिये.

.....................................................................................


एक वर्ष का समय बहुत है
प्रजा यही दोहराती
शर्मराज क्या करूँ बहाना
बुद्धि समझ न पाती

प्रजा रो रही रोटी खातिर
मिले कहाँ से रोटी
जनता करे शिकायत; मेरी
खाल हो गई मोटी

बढ़ा हुआ है दाम अभी तक
सब्जी और फलों का
रोज झेलते तीखा हमला
जनता और दलों का

मंत्री-संत्री, चेले-चमचे
रोज काण्ड रचते हैं
इनलोगों के कर्म देख हम
खुद से ही बचते हैं

उधर पड़ोसी अड़ा हुआ है
नहीं कान देता है
उसको कितना भी समझा दूँ
कहाँ मान देता है?

कूटनीति में उसका पलड़ा
सदा पड़ा है भारी
हर मोर्चे पर बस हम हारें
हँसती दुनियाँ सारी

एक पड़ोसी जब भी चाहे
अन्दर आ जाता है
कभी जमीं पर कब्ज़ा करता
कभी टोह पाता है

जिन्हें मिली है जिम्मेदारी
करें प्रजा की रक्षा
वही नहीं अब कर पाते हैं
खुद की ज़रा सुरक्षा

एक वर्ष पहले ज्यों तुमने
मान दिया था हमको
कैसे लड़ूँ चुनाव यहाँ पर
ज्ञान दिया था हमको

वैसे ही हे शर्मराज कुछ
सबक आज सिखला दो
बाँट लो अपने अनुभव; औ
रास्ता हमें दिखला दो

शर्मराज ने नज़र उठाई
और शांत-मुख लेकर
बोले सुन लो भ्रात आज फिर
चित्त-कान सब देकर

प्रजा कभी संतुष्ट न होगी
तुम बस इतना सुन लो
जो भी ज्ञान सुनाता हूँ बस
चित्त-ध्यान दे गुन लो


सत्ता की नीति कहती शर्म छोड़ मुँह मोड़ो
.................बातों पर न कान दो तो नाम हो जाएगा
कोई दे उलाहना या जितना भी धिक्कारे
.................उसको बुरा बता दो बदनाम हो जाएगा
थोड़ी रेवड़ी मीडिया को थोड़ी बुद्धिजीवियों को
.................अगर बाँट दो तो फिर काम हो जाएगा
मीडिया की हेल्प लेकर फैलाओ हंगामा, गर
.................शोर-शराबे में केला आम हो जाएगा


मंहगाई के मुद्दे पर तुम खेलों की बात करो
.................विदेशी मुद्दों पर करो वीमेन रिजर्वेशन की
भ्रष्टचार के मुद्दे पर नक्सलियों की बात करो
.................आतंरिक सुरक्षा पर करो फ़ारेन-रिलेशन की
कृषि की समस्या पर बात कर नरेगा की; और
.................बेरोजगारी पर करो हायर एजुकेशन की
सूखे की स्थिति पर बात करो रेल की; और
.................पानी की कमी पर करो फ़ूड इन्फ्लेशन की


राजधर्म की बात पर जो शोर करे जनता तो
.................अपनी ईमानदारी का प्रक्षेपास्त्र छोड़ देना
उसका भी असर न हो बुद्धिहीन प्रजा पर; तो
.................बातों को घुमाकर एक धाँसू मोड़ देना
अगर जनता बात करे भ्रष्टाचारी मंत्री की; तो
.................सबूतों के अभाव वाला दांव जोड़ देना
इतना सब करने पर भी लोग अगर बोलें; तो
.................सीधा पुलिस वालों को भेज टांग तोड़ देना


नक्सलियों की बात अगर मीडिया उठाये तो
.................सख्ती से निबटने का करना प्रचार तुम
उसके बाद भी नक्सली मारें सैनिकों को; तो
.................उनकी घोर निंदा पर करना विचार तुम
अगर घोर निंदा से भी बात न जमती हो
.................बुलाना फिर मंत्रियों की मीटिंग बार-बार तुम
उसके बाद भी अगर ठोस कदम की बात हो; तो
.................मानवाधिकार वालों को भेजना धिक्कार तुम


टेलिकॉम घोटाले की बात कहीं उठ जाए
.................धज्जी उड़ाना वहीँ सीधे उस सवाल का
मंत्री जी के इस्तीफे की अगर कभी मांग उट्ठे
.................तुरंत बात छेंड देना क्रिकेट के बवाल का
सी बी आई और प्रवर्तन निदेशालय को लगा
.................पीछा करो मोदी और उसके जंजाल का
इसका फायदा होगा कि दबेंगे साथी दल वाले
.................उनके ऊपर रहेगा फिर कंट्रोल कमाल का


इतने दांव-पेंच से भी काम न बने अगर; तो
.................धर्मनिरपेक्षता का हथियार तुम चलाना
तुष्टिवादी दलों और नेताओं को साथ लेना
.................फिर भी अगर काम न हो डुगडुगी बजाना
डुगडुगी की आवाज़ सुन भी साथ कोई न दे तो
.................सी बी आई को लगवा कर केस खुलवाना
दूर बैठे नेताओं को संतरी भेज बुलवाकर
.................पास बैठा कर उनकी औकात बतलाना


"धन्य हुआ हे शर्मराज मैं पाकर ऐसा मान
आशा है कि देंगे मुझको आगे भी यूं ज्ञान"

17 comments:

  1. भोत ज्ञान ले लिया. भार ज्यादा हो गया. हल्का करना पड़ेगा. इत्ती मारक बातें एक साथ सहना हँसी खेल है क्या?
    ***
    [टीवी पर देखा जनता कह रही थी, मँहगाई बढ़ी है, खाने को रोटी नहीं. मगर वोट कॉंग्रेस को ही देंगे. थोड़ा ताजूब हुआ.]

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  2. बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |

    बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
    अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर

    सनसनाते पेड़
    झुरझुराती टहनियां
    सरसराते पत्ते
    घने, कुंआरे जंगल,
    पेड़, वृक्ष, पत्तियां
    टहनियां सब जड़ हैं,
    सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |

    बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से
    पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,
    पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,
    तड़तड़ाहट से बंदूकों की
    चिड़ियों की चहचहाट
    कौओं की कांव कांव,
    मुर्गों की बांग,
    शेर की पदचाप,
    बंदरों की उछलकूद
    हिरणों की कुलांचे,
    कोयल की कूह-कूह
    मौन-मौन और सब मौन है
    निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,
    और अनचाहे सन्नाटे से !

    आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,
    महुए से पकती, मस्त जिंदगी
    लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,
    पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,
    जंगल का भोलापन
    मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,
    कहां है सब

    केवल बारूद की गंध,
    पेड़ पत्ती टहनियाँ
    सब बारूद के,
    बारूद से, बारूद के लिए
    भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,
    भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।

    फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    बस एक बेहद खामोश धमाका,
    पेड़ों पर फलो की तरह
    लटके मानव मांस के लोथड़े
    पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ
    टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल
    सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर
    मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर
    वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी
    ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह
    निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा
    दर्द से लिपटी मौत,
    ना दोस्त ना दुश्मन
    बस देश-सेवा की लगन।

    विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई,
    अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,
    बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर
    अपने कोयल होने पर,
    अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम से

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  3. अब मास्टर जी आप सांइंस नहीं अंग्रेजी(आधी ही सही) पढ़ाने लगे।

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  4. क्या कहूँ.....लाजवाब लाजवाब लाजवाब.....इसके आगे और कोई शब्द सूझ ही नहीं रे भाई....
    बस इतना ही कहूँगी, तुकबंदी कह ऐसे कृतियों का अपमान न किया करो...

    कवि संजीव ठाकुर की रचना ने बोझिल मन को और भी बोझिल कर दिया....

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  5. वैसे सेवा में आपने कोई कसर नहीं छोड़ी है. जम कर हिंदी सेवा कीजिये... बुजुर्ग हिंदी सेवा वालों के लिए कह गए है 'चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम' .
    बाकी शर्मराजजी के बारे में हम क्या कहें... हम तो आपकी सेवा देख ही अभिभूत हो लिए...

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  6. कृपया पूरी सेवा करें....यही ब्लॉगर धर्म है :)

    आप ने यहां जो हिदी की आधी सेवा की है वह जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है :)

    कानून आपसे अपने आप में सुधार लाने की उम्मीद करता है ( उम्मीद ही कर सकता है केवल :)

    बढिया तुकबंदी है।

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  7. दादा, आप तो आधी अधूरी सेवा करते रहें(ऐसी ऐसी), क्योंकि बहुत से ड्योढ़ी दुगुनी सेवा करने वाले कर्मवीर पहले से ही सेवारत हैं :)

    शर्मराज जी द्वारा प्रदत्त ज्ञान गीता ज्ञान से कतई कम नहीं है, जिसने इसका आधा भी ग्रहण कर लिया तो बेड़ा पार हो जायेगा।

    बहुत बढ़िया लगा।

    आभार स्वीकार करें।

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  8. आपसे पहले ही मन्नू भईया इसे पढ़ चुके हैं.. आपको लगता है कि इस ज्ञान की आवश्यकता उन्हें है??/

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  9. हिन्दी में अंग्रेजी ठेलने का काण्ट्रेक्ट मेरे पास था। आपने लोअर रेट कोट कर कांट्रेक्ट हथियाने का जो काम किया है; उस पर मैं अभिभूत होने के सिवाय क्या कर सकता हूं! :(

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  10. तुकबन्दी में सारे बेतुके कारनामों को समेट दिया । अंग्रेजी में देशी दुविधायें कह दीं ।

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  11. @शिव कुमार मिश्र
    @प्रवीण पाण्डेय
    *देशी में अंग्रेज़ी नहीं मिलानी चाहिए। चढ़ती जल्दी है मगर ज़हर बन जाने का ख़तरा बना रहता है।*
    अब डिस्क्लेमर के बाद बधाई स्वीकार करें, उत्तम उत्पाद और सही तौल के लिए। गो ग्रीन। रिसाइकल करते रहें।
    *अधिक प्रशंसा स्वास्थ्य (मानसिक) के लिए ख़तरनाक हो सकती है।*
    बहुत मज़ेदार शर्मराज आख्यान।

    @अभिषेक ओझा
    ये चत्वारि तो ठीक हैं चार हुए पर ये बलम का नाम साफ़-साफ़ लिखिए-कौन हैं।

    @ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
    आप अभिभूत होने के सिवाय थोड़ा कम अभिभूत हो सकते हैं। बस। होइए।

    सतीश पंचम
    @मो सम कौन ?
    @भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    दो बार आधी-आधी सेवा करने से पूरी सेवा का फल मिलता है। अतएव जिसको लगे कि लेखक ने सेवा अधूरी की है वो दो बार पढ़े।

    बहुत मज़ेदार लेखन - बधाई!

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  12. सेवा में श्रीमान मान्यवर महोदय आपकी तथाकथिक तुक बंदी पढ़ी अगर ये तुक बंदी है तो क्षमा करें राम चरित मानस क्या है....??? हनुमान चालीसा क्या है...??? नीरज जी की ग़ज़लें क्या हैं? नीरज जी से मेरा अभिप्राय नीरज गोस्वामी जी से है...गोपाल दास जी वाले नीरज जी से नहीं...बच्चन जी की मधुशाला क्या है...??? श्रीमान आप से कर बद्ध प्रार्थना है के आप ऐसी विलक्षण रचना को तुकबंदी कह कर मेरे द्वारा बताये लेखकों की रचनाओं का अपमान न करें...आप की ये रचना शाश्वत सच पर आधारित है और सच्ची रचना तुकबंदी नहीं होती...अपना संशय दूर करें...और मेरी बधाई स्वीकार करें...हमें इतना ही कहना है बस...
    नीरज

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  13. खाल जनता की भी मोटी है ...बार बार चुनने में धोखा खाती है या फिर कुँए में ही भंग घुली है ...सत्ता आते ही सब बदल जाते हैं ...!!

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  14. Simply Superb! No other way to describe this.Simply Superb

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  15. गान्हीं महात्मा की पार्टी का अशुभ सोचते हैं आप । जे अच्छी बात नहीं है ।
    जनता का क्या है । आज तक कोई क्या भुखी जनता का पेट भर पाया है । नहीं न । तब फिर । इत्ती लंबी कविता महात्मा शरदपवार जी पढ़ लेगें तो डाइबिटिक हो जायेंगे बेचारे । किसी तरह मंहागाई बढ़ा कर वे भारत की जनता का हाजमा ठीक कर रहे हैं (भुक्खड़ जनता सस्ती चीजें खाने को मिली तो ठूंस लिया पेट भर कर) । लेकिन मीडिया वालों ने नाक में दम करके रख दिया है । ऊपर से आपकी ये कलेजा दहलाऊ कविता ।

    जरा सांस लेने दीजिये । एक सरकार है कि मंहगाई बढ़ा कर भूखा मार रही है दूसरे आप हैं कि भूखों को हंसा हंसा कर मारे डाल रहे हैं । हा हा हा हू हो ही ही हं हः ।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय