शायद मंत्री जी ने सचिव जी से कहा होगा; "बहुत हो गया अब. अब तो नक्सलियों की घोर निंदा कर ही दो."
सचिव जी ने शाम को पत्रकारों के बीच दंतेवाड़ा नरसंहार की निंदा कर डाली. बोले; "वी स्ट्रांगली कंडेम्न द इंसिडेंट."
हिंदी में बोले तो; "हम इस घटना की तीव्र निंदा करते हैं."
खैर, इतना कहकर वे पत्रकारों की तरफ देखने लगे. चेहरा देखकर लगा जैसे उनके मन में आशा थी कि उनकी बात सुनकर पत्रकार हाथ उठाकर नारा 'गाने' लगेंगे. यह कहते हुए कि; "सचिव जी तुम कंडेम्न करो, हम तुम्हारे साथ हैं."
लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
शाम को एक मित्र ने ट्वीट किया. उन्होंने लिखा; "टू कंडेम्न इज ह्यूमन एंड टू स्ट्रांगली कंडेम्न इज डिवाइन."
गजब है. पता नहीं निंदा का कितना बड़ा भण्डार है सरकार के पास जो ख़त्म ही नहीं होता. ये निंदा करना एक तरह का पॉलिसी स्टेटमेंट है. नक्सलियों ने हमला किया, निंदा कर डालो. रेल-लाइन उड़ा दी, निंदा कर डालो. अगर केवल नक्सलियों की निंदा से मन न भरे तो राज्य सरकारों की निंदा कर डालो. आतंकवादी हमला करें, उनकी निंदा कर डालो. मंहगाई बढ़ गई है, जमाखोरों की निंदा कर दो. देसी निंदा से बोर हो जाओ तो विदेशी निंदा करते हुए पकिस्तान की निंदा कर डालो. विदेशी निंदा को और व्यापक बनाना चाहो तो तो नॉर्थ कोरिया की निंदा कर डालो.
भ्रष्टाचार से लेकर मंहगाई तक और नक्सल समस्या से लेकर पाकिस्तानी आतंकवाद तक, सब के लिए एक ही हथियार है, निंदा. चाहे जितना दागते जाओ, लेकिन यह हथियार ऐसा है कि इसका गोला ख़त्म ही नहीं होगा. बाहर से खरीदने का भी लोचा नहीं है. जितना चाहो, अपने यहाँ प्रोड्यूस कर लो. जिसको चाहे उसको प्रोडक्शन फ्लोर पर लगा दो. प्रधानमंत्री निंदा कर लें तो गृहमंत्री को भिड़ा दो. उसके बाद भी लगे कि और ज़रुरत है तो राष्ट्रपति से निंदा करवा दो. राष्ट्रीय स्तर पर निंदा करके फारिग हो लो तो राज्य स्तर पर निंदा करवा डालो. इतना सब करने के बाद भी अगर लगे कि पूरी निंदा नहीं हुई तो जिला स्तर पर करवा डालो. दस लोगों का एक जुलूस निकालो और एक जगह इकठ्ठा होकर किसी सयाने आदमी को एक मंच पर खड़ाकर मोहल्ला स्तर पर भी निंदा करवा दो.
इतनी निंदा करवा दो कि पूरे देश में निंदा की आंधी आ जाए. एक बार आंधी चल गई तो देश की सारी समस्याओं को अपने साथ उड़ा ले जायेगी.
निंदा का इतना बड़ा उपयोग देखते हुए मैं तो मांग रखता हूँ कि केंद्र सरकार का अपना एक निंदा मंत्रालय होना चाहिए. उस मंत्रालय का काम ही होगा कि वह समस्याओं की एक लिस्ट बनाये और प्रियोरिटी के हिसाब से लोगों को सेलेक्ट करके उनकी निंदा करने का प्लान बनाये. किस मुद्दे पर सबसे पहले किसे निंदा करनी है और बाद में किसे करनी है, उसके लिए साफ़-साफ़ एक नीति की घोषणा करे. जैसे अगर नक्सलियों द्वारा किये गए नरसंहार में पचीस से ज्यादा लोग मारे गए हैं तो गृह सचिव उसकी निंदा करें. पचास से ज्यादा मारे जाएँ तो गृह मंत्री और अगर सौ से ज्यादा मारे जाएँ तो निंदा का काम प्रधानमन्त्री के जिम्मे रहे. अगर पचीस से कम लोग मारें जाएँ तो उसके लिए केवल निंदा की जाए लेकिन अगर पचीस से ज्यादा मारे जाएँ तो फिर घोर निंदा की जाए.
निंदा करके भी लगे कि कुछ और करने की ज़रुरत है तो फिर राष्ट्रपति से यह बयान जारी करवा देना चाहिए कि; "देश में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है." देखिये कैसे समस्याएं ख़त्म होंगी.
निंदा मंत्रालय में कम से कम दो निंदा राज्य मंत्री हों. राज्य मंत्रियों का काम होगा कि वे डेली अपनी सलाह दूसरे मंत्रालयों को भेजें, यह बताने के लिए कि किस समस्या पर किसकी निंदा की जा सकती है. जैसे अगर मंहगाई कम नहीं हो रही तो व्यापारियों और जमाखोरों की निंदा करने के लिए सलाह की एक कॉपी वित्त मंत्री को भेजी जानी चाहिए. उसी सलाह की एक कॉपी कृषि मंत्री के पास और दूसरी कॉपी वाणिज्य मंत्री को भेजी जानी चाहिए. मेरा विश्वास है कि अगर शाम तक तीन-तीन मंत्री जमाखोरों की निंदा कर देंगे तो देश के सारे जमाखोर शर्म के मारे आत्महत्या कर लेंगे और मंहगाई की समस्या पूरे देश से ख़त्म हो जायेगी.
वैसे ही अगर सीमा पर पाकिस्तानी रेंजेर्स फायरिंग करें तो तुरंत एक सलाह रक्षा मंत्रालय में भेजकर एक घंटे के भीतर रक्षा मंत्री से निंदा करवा देनी चाहिए. रक्षा मंत्री एक बार निंदा कर लें तो फिर रक्षा राज्य मंत्री को चांस दिया जाय ताकि वे जब निंदा करें तो इतनी मात्रा में निंदा का प्रोडक्शन हो जाए कि जिन पाकिस्तानी रेजरों ने गोलीबारी की हो वे अपने ही रायफल से खुद को गोली मार लें.
कोई ज़रूरी नहीं कि केवल मनुष्यों की निंदा की जाए. देशों की निंदा भी की जा सकती है. अगर ज़रुरत हो तो सड़कों की निंदा पर भी विचार किया जा सकता है. जैसे केंद्र सरकार से चला हुआ एक रुपया अगर आम आदमी तक पहुचते-पहुचते पंद्रह पैसा रह जाए तो सिस्टम की निंदा कर डालो. उससे भी अगर न हो तो बिचौलियों की निंदा कर डालो. कहीं कुछ भी मिले, उसकी निंदा कर डालो. मंत्री कहीं फंस जाएँ तो किसी स्पोर्ट्स अशोशियेसन की निंदा की जानी चाहिए.
हर मुद्दे पर निंदा रिपोर्ट बननी चाहिए. रिपोर्ट की कॉपी हर महीने प्रधानमंत्री को मिलनी चाहिए. कौन से मंत्री ने एक महीने में किसकी कितनी बार निंदा की उसकी रिपोर्ट प्रधानमन्त्री को मिलनी ज़रूरी भी है. एक कैबिनेट कमिटी ऑन कंडेम्नेशन रहनी चाहिए जो मंत्रालयों के बीच निंदा का को-आर्डिनेशन देखेगी. कैबिनेट कमिटी की बैठक हर तीन महीने पर होनी चाहिए.
मैं तो कहूँगा कि निंदा को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री जी को हर वर्ष निंदा पुरस्कारों की घोषणा करनी चाहिए. पुरस्कार मंत्रियों को भरपूर निंदा करने के लिए प्रेरित करेंगे. जिस मंत्री ने पूरे वर्ष में सबसे ज्यादा निंदा की हो उसे गोल्ड मेडल मिलना चाहिए. दूसरे और तीसरे नंबर पर आने वाले मंत्री को सिल्वर और ब्रोंज मेडल मिलना चाहिए. लिस्ट में चौथे और पांचवें स्थान पर आने वाले मंत्रियों सांत्वना पुरस्कार में ताम्र पत्र और शाल मिलनी चाहिए.
अगर चिंता करके देश की समस्याएं नहीं दूर हो सकीं तो हताश होने की ज़रुरत नहीं है. एक बार निंदा को चांस दिया जाना चाहिए.
मेरी भी
ReplyDeleteसुबह-शाम-दिन-रात, हर चैनल पर, हर अखबार में,
कड़ी
कठोर शब्दों में
कटु शब्दों में
निंदा ही निंदा दर्ज की जाये…
मैंने आज के अखबार देखे । घटनायें अधिक थीं और निन्दायें कम । समाज के द्वारा इस कृत्य की निन्दा न किये जाने की निन्दा करना आवश्यक है । निन्दा मन्त्रालय रेफर कीजिये, नहीं तो आपकी निन्दा करवा दी जायेगी ।
ReplyDeleteमहाबुलेट पोस्ट । दस तोपों की सलामी ।
ReplyDeleteहमारा सुझाव त्यागमूर्ति आशिर्वाद प्राप्त स्वच्छ छवि धारक परम विनम्र श्री 1008 प्र.म. मनमोहनकर्ता तक पहुँचे....
ReplyDeleteनिंदा के भी चेतावनी टाइप स्तर तय करें. जैसे पीली चेतावनी, ऑरेंज चेतावनी, ज्यादा हो तो लाल चेतावनी. वैसे ही लाल, अतिलाल निंदा....इससे गम्भिरता (कृतिम ही सही) के स्तर का पता चलेगा....
dhansu, kash ise sab matri ji aur unke sachiv jee bhi padhein ;)
ReplyDeleteबेशक !
ReplyDeleteअगर मंत्रीजी ने यह पोस्ट पढ़ा तो आपकी बहुत निंदा होगी, उससे मान नहीं भरा तो समूचे bloggers समाज की निंदा होगी. बहुत ही बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteहद करते हो....प्रधानमंत्री जी अगर अलग से एक निंदा मंत्रालय बनवाएंगे तो फिर, रक्षा मत्री ,गृह मंत्री,कृषि मंत्री आदि आदि और स्वयं प्रधान मंत्री क्या करेंगे....
ReplyDeleteतुम्हे पता है कि नहीं यह कितना महवपूर्ण कार्य है देशहित के लिए , बल्कि यही तो एकमात्र कार्य है,जो समस्त मंत्रालय करते हैं,जिसे हेड प्रधानमंत्री करते हैं..
अब यह एकमात्र कार्य भी नहीं करने देना चाहते तुम इन राष्ट्रनायकों को...
भाई हम हिंदवासी परम सौभाग्य शाली हैं,कि आज इस घोर कलयुग में भी हमारे राष्ट्र के रक्षक संरक्षक कम से कम गलत बातों की निंदा तो कर दिया करते हैं,मैं तो उस दिन की सोच रही हूँ जब बड़े बड़े कुकृत्य भी खुलेआम हुआ करेंगे और किसी भी निंदनीय कार्य की निंदा न की जायेगी...
भाई साहब, अब आउटसोर्सिंग का जमाना है। बहुत से बेरोजगारों को इस काम में लगाया जा सकता है। “विशेष निन्दक छात्रवृत्ति” शुरू की जा सकती है, निन्दा प्रशिक्षण विद्यालय खोले जाने चाहिए ताकि भविष्य में कुशल और मेधावी निन्दक तैयार किए जा सकें। देश की बेरोजगारी भी मिटेगी और तमाम समस्याओं का निपटारा भी हो जाएगा।
ReplyDeleteइस मौलिक चिन्तन के लिए बधाई स्वीकारें।
इतनी जल्दी जल्दी निन्दा करनी पडती है तो दन्तेवाड़ा को दिल्ली शिफ्ट क्यों न कर देते?
ReplyDeleteजस्ट एक सुझाव।
दर-असल हुआ ये कि संयम नाम के सुरक्षा कवच और इसी नाम के विस्फोटक का स्टाक खतम हो गया पाकिस्तान के चक्कर में. तो अब ये नया हथियार लाये हैं मन्नू भैया निन्दा नाम का.. चलिये हमारी ओर से भी निन्दा.... अर-अररे- आपकी नहीं...
ReplyDeleteघोर निंदा से मन न भरे तो घनघोर निंदा भी की जा सकती है. ;)
ReplyDeleteहाँ इसके लिए क्राइटेरिया क्या होगा यह तय करना होगा..
हम चीरो तरफ निन्दा ही निन्दा ही तो देख रहे हैं. रचनात्मकता की ओर ध्यान कम, निन्दा की ओर ध्यान अधिक है. समाज की यही स्थिति है. लेकिन अपने लिए मानक बदल जाते हैं.
ReplyDeleteआप अब लिख रहे हैं हमें तो बचपन से ही मास्टर अपनी बैंत मार मार कर रटवाते रहे " निंदक नियरे राखिये..." इसी चक्कर में शादी कर ली और निंदक सदा के लिए पास या नियरे आ गया...सुबह दोपहर शाम हो या आधी रात के बाद का समय निंदक सदा निंदा करता हाज़िर रहता...एक ही तरह की निंदा से हम बोर होने लगे निंदा में विविद्धता न हो तो निंदा का आनंद चला जाता है...अब क्या करें ये सोच ही रहे थे की किसी ने कहा ब्लॉग खोल लो...जो चाहिए वो हासिल सहज में ही हो गया...इतने सारे निंदर नियरे आ गए के अब उन्हें दूर कैसे करें इस सोच में पड़ गए हैं...
ReplyDeleteइस टिपण्णी का आपकी पोस्ट से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं बैठता लेकिन क्या फरक पड़ता है टिपण्णी कितनी आयीं ये ही सब देखते हैं क्या लिखा आया ये कौन देखता है..अतः आप भी मत देखें...लेकिन बिना देखे न रह पायें और यदि टिपण्णी पसंद ना आये तो हमारी निंदा कर दें...ये अमोघ अस्त्र तो आपके पास है ही...:))
नीरज
nice post
ReplyDeleteनिंदा की वैराइटी देखकर बांछे खिल गयीं। अब खोजा जा रहा है कहां खिली हैं! :)
ReplyDeleteबहुत सही कहा है आपने। पर इस सही कथन की कठोरता की घोर निंदा की जानी चाहिए!
ReplyDeleteनिंदा पर रिसर्च का संसथान भी खुलना चाहिए. और निंदा करने वालों को रिजर्वेशन भी मिलना चाहिए. और भी कई काम किये जा सकते हैं. बड़ा हॉट टोपिक चुना है आपने. पैनल डिस्कसन नहीं कराया इस पर? कहीं से रिकोर्डिंग मिले तो ले आइये.
ReplyDeleteपरसाई जी ने निंदारस लिखा था । वह जमाना दूसरा था । अब तो गान्ही जी की पार्टी ने परमाणु हथियार से भी बड़े हथियार की खोज की है । निंदास्त्र । जल्दी ही देश की रक्षा के लिये सैन्य हथियारों की जरूरत नहीं पड़ेगी । इसी एक मात्र शस्त्र से काम चलाया जायेगा ।
ReplyDeleteबड़ा ही सात्विक और अहिंसात्मक शस्त्र है । प्यारा सा । नन्हा से । जेबी शस्त्र । पिस्तौल के माफिक । प्रेस कान्फ्रेंस में जब मन किया निकाला और ढिचकें ढिचकें ।