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Saturday, August 2, 2008

सरकार का चिंता कार्यक्रम


@mishrashiv I'm reading: सरकार का चिंता कार्यक्रमTweet this (ट्वीट करें)!

सरकार काम कर रही है, जब इस बात को साबित करना रहता है तो प्रधानमंत्री किसी समस्या का जिक्र करते हुए उसपर चिंतित हो लेते हैं. समस्या के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि वे बहुत चिंतित हैं. कल बारी थी अमेरिका में आए आर्थिक संकट पर चिंतित होने की. प्रधानमंत्री बता रहे थे कि वे बहुत चिंतित हैं. सारी चिंता इस बात को लेकर है कि अमेरिका में आए आर्थिक संकट का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. वाकई, चिंतित होने की बात ही है. वैसे तो प्रधानमंत्री लगभग सभी समस्याओं को लेकर चिंतित रहते हैं, लेकिन आर्थिक समस्याओं के लिए उन्होंने अपनी पूरी चिंता का सत्ताईस प्रतिशत आरक्षित रख छोड़ा है.

वे जहाँ भी जाते हैं, उस जगह के मुताबिक चिंतित हो लेते हैं. महाराष्ट्र गए तो विदर्भ के किसानों की समस्या पर चिंतित हो लेते हैं. आसाम जाते हैं तो वहाँ हो रही हिंसा पर चिंतित हो लेते हैं. विदेश जाते हैं तो पाकिस्तान की समस्याओं को लेकर चिंतित रहते हैं. जिस जगह पर चिंतित होते हैं, वहाँ के लोगों को विश्वास हो जाता है कि 'प्रधानमंत्री जब ख़ुद ही चिंतित हैं, तो इसका मतलब सरकार काम कर रही है.' लोग आपस में बातें करते हुए सुने जा सकते हैं कि; 'मान गए भाई. यह सरकार वाकई काम कर रही है. देखा नहीं किस तरह से प्रधानमंत्री चिंतित दिख रहे थे.'

प्रधानमंत्री की चिंता के बारे में सोचते हुए मुझे लगा कि उनके और उनके निजी सचिव के बीच में वार्तालाप कैसी होती होगी? शायद कुछ इस तरह;

प्रधानमंत्री: "भाई, कल मैंने जो नक्सली समस्या पर चिंता जाहिर की थी, उसकी रिपोर्टिंग किस तरह की हुई है मीडिया में?"

सचिव: " सर, बहुत बढ़िया रिपोर्टिंग हुई है. आपकी चिंता पर चार टीवी न्यूज चैनल्स पर पैनल डिस्कशन भी हुए."

प्रधानमंत्री: "अच्छा कल तो २० तारीख है, कल किस बात पर चिंतित होना है?"

सचिव:" सर, कल आपको किसानों के प्रतिनिधियों से मिलना है. तो मेरा सुझाव है कि कल आप किसानों की हालत पर चिंतित हो लें."

प्रधानमंत्री: "हाँ, बात तो आपकी ठीक ही है. बहुत दिन हुए, किसानों की समस्याओं पर चिंतित हुए."

सचिव: "हाँ सर, किसानों की समस्याओं पर पिछली बार आप १५ अगस्त को लाल किले पर चिंतित हुए थे."

प्रधानमंत्री: " और, उसके बाद वाले दिन का क्या प्रोग्राम है?"

सचिव: "सर, २१ तारीख को आपको न्यूक्लीयर डील के मामले पर एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मिलना है. सो, मेरा सुझाव है कि उनसे मिलने के पहले आप अगर मीडिया को संबोधित कर लेते तो सरकार को मिले 'फ्रैकचर्ड मैनडेट' पर चिंता जाहिर कर सकते थे."

प्रधानमंत्री: " हाँ, आपका सुझाव अच्छा है. ठीक है, मीडिया से मिल लेंगे. लेकिन उसके बाद वाले दिनों में क्या प्रोग्राम है."

सचिव: "सर, २३ तारीख को गुजरात चुनावों का रिजल्ट आएगा. उस दिन रिजल्ट के हिसाब से चिंतित होना पड़ेगा. बीजेपी जीत जाती है तो साम्प्रदायिकता पर चिंतित हो लेंगे. लेकिन अगर हार जाती है तो फिर चिंता जताने की जरूरत नहीं है. हाँ, असली चिंता की जरूरत पड़ सकती है. चिंता इस बात की होगी कि मुख्यमंत्री किसे बनाना है."

प्रधानमंत्री: "ठीक है. वैसा कर लेंगे."

सचिव: "सर, एक बात और बतानी थी आपको. उड़ती ख़बर सुनी है कि गृहमंत्री शिकायत कर रहे थे कि उन्हें चिंतित होने का मौका नहीं दिया जा रहा है. कह रहे थे कि देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति ख़राब है, बम विस्फोट हो रहे हैं लेकिन उन्हें चिंतित नहीं होने दिया जाता. और तो और, सर, वित्तमंत्री भी शायद ऐसा ही कुछ कह रहे थे. ख़बर है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर वे ख़ुद चिंतित होना चाहते थे, लेकिन आप के चिंतित होने से उनके हाथ से मौका जाता रहा."

प्रधानमंत्री: "एक तरह से इन लोगों का कहना ठीक ही है. मैं ख़ुद भी सोच रहा था कि चिंतित होने का काम मिल-बाँट कर कर लें तो अच्छा रहेगा. वैसे आपका क्या ख़याल है?"

सचिव: "सर, आपकी सोच बिल्कुल ठीक है. आर्थिक मामलों वित्तमंत्री को एक-दो बार चिंतित हो लेने दें. बहुत दिन हुए गृहमंत्री को कश्मीर की समस्या पर चिंतित हुए. उन्हें भी चिंतित होने का मौका मिलना चाहिए. लेकिन सर यहाँ एक समस्या है. शिक्षा की समस्या पर मानव संसाधन विकास मंत्री ख़ुद चिंतित नहीं होना चाहते. उनका मानना है कि उन्हें केवल आरक्षण के मुद्दे पर चिंतित होने का हक़ है."

प्रधानमंत्री: "देखिये, यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती. मैं उनको आरक्षण के मुद्दे पर चिंतित होने से नहीं रोकता. लेकिन उन्हें भी सोचना चाहिए कि शिक्षा का भी मुद्दा है. मैं ख़ुद महसूस कर रहा हूँ कि पिछले कई महीनों में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा की हालत पर कोई चिंता जाहिर नहीं की. और फिर उन्हें ही क्यों दोष देना. कानूनमंत्री को भी किसी ने चिंतित होते नहीं देखा."

सचिव: "सर, आपका कहना बिल्कुल ठीक है. लोगों का मानना है कि बहुत सारे पुराने कानून बदलने चाहिए. और फिर कानून बदलें या न बदलें, कम से कम चिंतित तो दिखें. पिछली बार वे तब चिंतित हुए थे जब क्वात्रोकी जी को अर्जेंटीना में गिरफ्तार किया गया था. करीब डेढ़ साल हो गए उन्हें चिंतित हुए."

प्रधानमंत्री: "मसला तो वाकई गंभीर है. आज आपसे बातें नहीं करता तो मुझे तो पता भी नहीं चलता कि कौन सा मंत्री कब से चिंतित नहीं हुआ. एक काम कीजिये, चिंता को बढ़ावा देने वाली कैबिनेट कमेटी की मीटिंग कल ही बुलवाईये. मुझे तमाम मंत्रियों के चिंता का लेखा-जोखा चाहिए."

निजी सचिव कैबिनेट कमेटी के सचिव को चिट्ठी टाइप करने में व्यस्त हो जायेगा. शनिवार को चिंता का लेखा-जोखा ख़ुद प्रधानमंत्री लेंगे, इस बात की जानकारी देने के लिए.

15 comments:

  1. अजी प्रधानमंत्री जी पर तो रहम कीजिए.. कल रात सुदामा का फोन आया था कहा की मिश्रा जी ने पता नही किस पंगे में फँसा दिया.. अजी अब क्यो पी एम साहब को पंगे में फँसा रहे है..

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  2. .

    शिवभाई, विगत एक महीनों में जितना कुछ मैंने पढ़ाहै, उनमें यह निःसंदेह सर्वोत्तम आलेख है । यह सराहना के हार्दिक उद्गार हैं, थोथी तारीफ़ नहीं है, यह !
    अब मुझसे भी बधाई व साधुवाद लोगे, यार ?
    ज़ानम समझा करो, बस्स.... इतना ही !

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  3. ठेल-ठेल-ठेल!
    और ठेल से थकने पर रीठेल!
    यह तो हम भी पहले कर चुके हैं , पर भूल गये थे यह भयभीत होते समय: "यह भय कि लिखने को कुछ न बचेगा"
    सही में जबरदस्त पोस्ट का जबरदस्त रीठेल! और रीठेलत्व का स्मरण कराने पर धन्यवाद भी !

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  4. वाह, बढ़िया लेख है। इसे यदि प्रधानमंत्री पढ़ लेते तो इनकी एक चिन्ता और खत्म हो जाती। बहुत समय से वे नए मंत्रालय बना नए मंत्री बनाने की चिन्ता में हैं। परन्तु उन्हें किसी नए मंत्रालय का नाम ही नहीं सूझ रहा था। इस लेख को पढ़ वे एक चिन्ता मंत्रालय बनाकर एक एम पी को खुश कर सकते हैं।
    घुघूती बासूती

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  5. बेहतरीन लेख। शानदार। बधाई। इसे आप कुछ दिन बाद एक बार फ़िर पोस्ट करेंगे तब भी अच्छा लगेगा।

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  6. शिवकुमार मिश्र जी आप का धन्यवाद आप ने मेरी एक समस्या का हल निकाल दिया, मे अक्सर सोचता था, यह पहला सरदार हे जो इतना पतला हे, क्यो ? आज मेरी क्यो का जबाब मिल गया, हमारे मन मोहन जी जब इतनी चिंता करे गे तो सेहत पर भी तो असर पडेगा ना

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  7. :)

    अच्‍छा सम्‍वाद स्‍थापित किया है, बधाई

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  8. काहे चिंतिताय रहे हो बाबू मौशाय, इंहा इत्ती गंभीर चिंता देश की चिता परहू नाय करते है जी .
    चिंता चिता से सौगुनी, टि आर पी ले जाये
    चिता से ज्यादा चिंता पर मिडिया भीड लगाये

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  9. ये लेख पढ़ कर हमारी भी एक चिंता दूर हो गई.
    अब आराम से री ठेल अस्त्र का प्रयोग कर सकेंगे.
    एक कालजयी व्यंग्य के ;लिए साधुवाद के हक़दार है आप.
    कुबूल करें.

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  10. बड़ी चिंतनीय पोस्ट है. ज्यादा चिंता न किया करें, चिंता लगी रहती है भाई.

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  11. री-ठेल की सेल ‘रिटेल’ जैसी ही दामदार है। माल जो चोखा है आपका। जमाए रहिए जी। हम तो हैं ही बार-बार पढ़ने के बाद ही समझने वाले। वह भी हर बार नये अर्थ में।

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  12. बंधू
    हम बहुत चिंतित हूँ.....पूछिये क्यूँ? मत पूछिए हम ख़ुद ही बता देते हैं...
    हम इसलिए चिंतित हूँ की यदि प्रधानमंत्री की चिंता से आप इतना चिंतित होयिगा तो हमारी चिंता कौन करेगा? हम सुने हैं की चिंता चिता समान है...आप भी सुने होंगे...जब हम और आप सुने हैं ये बात तो क्या प्रधान मंत्री नहीं सुने होने...और अगर नहीं सुने हैं तो उन्हें इस पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है...उनकी चिंता सार्वजनिक कर के आप जन मानस की चिंता मत बढ़ाइये ...
    नीरज

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  13. great sir... chinta ke upar chinta ho rahi hai yahan pe... it was really satirical of how the PM is more chintit about his chintas than our problems. some lines were really appreciable...

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय