ब्लॉगर की प्रोफाइल बड़ी मारक चीज होती है. उसके ऊपर ब्लॉगर अगर अपनी हिन्दी का हो तो प्रोफाइल के मार करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाने का चांस रहता है. ब्लॉगर ने बीए, एमए में भले ही इतिहास, भूगोल, अंग्रेज़ी, हिन्दी जैसे विषयों की पढाई की पढाई की हो लेकिन जब प्रोफाइल लिखने की बात आती है तो जिस विषय पर सबसे पहले हाथ फेरता हैं वह है दर्शनशास्त्र. कोशिश रहती है कि अपने बारे में कुछ ऐसा लिख दिया जाय कि पढने वाले को लगे कि उसकी आँखें अचानक जेठ की दुपहरिया के सूरज से टकरा गई हैं. ऐसा कुछ लिख देने की ललक रहती है जिससे पढ़नेवाले को पता चल जाए कि आदमी ऊंची सोच वाला है. ऊंची सोच मतलब माडर्न आर्ट समझता है, सत्यजीत रे की फिल्में न केवल देखता है बल्कि समझता भी है और बचपन से ही ऋत्विक घटक जैसे लोगों के संपर्क में था.
हुआ ऐसा कि कल लालमुकुंद जी मिल गए. बता रहे थे कि हाल ही में उनकी मुलाक़ात ऐसे ही एक ब्लॉगर प्रोफाइल से हो गई. लालमुकुंद थोड़े तैश में थे. मुझसे कहने लगे; " अब क्या बताऊँ तुम्हें, कि क्या लिखा था. लिखा था 'मैं ख़ुद को खोजने निकल पड़ा हूँ. कितना खोज पाया हूँ, यह तो नहीं पता लेकिन कोशिश जारी है. यह खोजने की, कि ख़ुद को किस हद तक खोज पाया." आगे बोले; " आँख रगड़-रगड़ कर पढा मैंने. लगा कि बीच-बीच में पानी भी मार लूँ तो शायद समझ में आ जाए. लेकिन इस खोज नामक शब्द की भूल-भुलैया में ऐसा फंसा है कि निकलने की कोई तरकीब समझ नहीं आ रही थी."
इतना उखड़े हुए थे कि पूछिए मत. आगे मुझसे बोले; " इच्छा तो हुई कि ब्लॉगर जी सामने मिलते तो पूछ लेता कि प्रभु, ख़ुद को क्यों खोज रहे हैं? कितने दिनों से खोये हैं? और अगर आपको पूरा यकीन हो ही गया है कि आप खो गए हैं तो चिंता न करें. अभी तक तो आपके घर वालों ने आपके गायब होने की रपट किसी थाने में लिखा ही दी होगी. अब आप ख़ुद न खोजें, पुलिस आपको खोजकर आपके घरवालों के हवाले कर देगी......हम तो आए थे आपके बारे में जानने के लिए. यह जानने के लिए कि आप कहाँ रहते हैं? आप क्या करते हैं? आपकी पसंद क्या है? लेकिन अब तो हमें लग रहा है कि हमारा आना ही व्यर्थ हुआ. आप जब ख़ुद ही ख़ुद को खोज रहे हैं तो अपने बारे में बताएँगे भी क्या?"
हम लालमुकुंद जी की शिकायत वैसे ही सुन रहे थे जैसे गृहस्थगति को प्राप्त कोई व्यक्ति शाम को घर पहुंचकर टीवी देखते-देखते पत्नी से घर की समस्याओं के बारे में सुनता है. लालमुकुंद थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. एक और ब्लॉगर प्रोफाइल के बारे में शुरू हो गए. बोले; "तुम्हें क्या बताऊं? एक और ब्लॉगर प्रोफाइल देखी मैंने. देखकर लगा जैसे गुलज़ार साहब और जद्दू कृष्णमूर्ति ने मिलकर लिखा है."
मैंने कहा; "क्यों, ऐसा क्या लिखा था उसमें?"
मेरी बात सुनकर और उत्तेजित हो गए. अचानक शर्ट की जेब में हाथ डालते हुए बोले; "सुनोगे? रुको मैं लिखकर ले आया हूँ. हाँ, तो सुनो. इसमें लिखा है; 'बचपन से ही बिखरे शब्दों को बटोरने का प्रयास कर रहा हूँ. शब्द हैं कि पकड़ में ही नहीं आते. कभी हवा के झोंके के साथ उड़ चलते हैं तो कभी कागज़ की नाव में बैठे बरसात में जमें पानी पर तैरते निकल जाते हैं. कई बार तो शब्दों को आसमान से गिरते देखा. जब भी बाँधने का प्रयत्न किया, हाथ से फिसल गए. दूर पहुँच मुझे चिढ़ाते हैं. फिर एक दिन दादी ने बताया कि आसान नहीं है शब्दों को बाँधना. कठिन ही सही लेकिन शब्दों को पकड़ने की कवायद अभी तक जारी है. दो-चार एक साथ पकड़ पाता हूँ तो उन्हें मिलकर वाक्य बनाने की कोशिश करता हूँ."
इस ब्लॉगर की प्रोफाइल पढ़कर मुझे हंसी आ गयी. मुझे हँसता देख लालमुकुंद बिदक गए. बोले; "तुम्हें हंसी आ रही है! तुम बताओ, ये प्रोफाइल है? न तो ब्लॉगर के शहर का पता चलता है. न ही ये पता चलता है कि करते क्या हैं?"
मैंने कहा; "ऐसा हो ही सकता है. ये ब्लॉगर शायद कवि हैं. शब्दों के बारे में इस तरह से कोई कवि ही लिख सकता है."
बोले; " हाँ, ठीक पहचाना तुमने ये कवि ही हैं."
मैंने कहा; "देखो कवि का ब्लॉग है. इस ब्लॉगर के पास कवि का ह्रदय है. तो ऐसा होगा ही कि ये प्रोफाइल में भी कविता ही लिखेगा."
मेरी बात सुनकर बोले; "अरे भाई कविता करने के लिए तो पूरा ब्लॉग पड़ा है. दिन में कम से कम तीन-चार कवितायें लिखते है ब्लॉगर कवि. इतनी कविता तो मैथिलीशरण और दिनकर जी भी एक दिन में लिखते होंगे, इस बात पर डाऊट है. और फिर कविता तो रोज ही लिखते हैं. प्रोफाइल तो एक बार लिखा जाता है. तो भइया प्रोफाइल में तो अपने बारे में लिखे."
मैंने कहा; "ऐसा एक-दो केस में दिखा होगा आपको. हर केस में थोड़े न मिलेगा."
मेरी बात सुनकर भड़क गए. बोले; "एक-दो केस? मुझे तो सब जगह ऐसा ही लिखा मिला. एक और ब्लॉगर- कवि का प्रोफाइल देखा. लिखा था; शब्द मेरे लिए आसमान हैं. शब्द मेरे लिए तारे हैं. शब्द मेरे लिए बादल हैं. मुझे इस बात का यकीन है कि दुनियाँ शब्दों से बनी है. शब्द न रहें तो कुछ भी न रहेगा. न तो ये आसमान, न बादल, न तारे और न ही सूरज. नहीं रहेंगे ये पेड़, ये पत्ते और ये झंझावात. कहाँ मिलेगी ज़मीन और कहाँ मिलेगी मिटटी? समुंदर नहीं मिलेगा और न ही मिलेगा अमृत. गरल को गले से नीचे उतरते देखेंगे और खोजेंगे जीवन के उस रास्ते को जो सीधा चाँद तक जाता है.क्योंकि शब्दों से बनी इस दुनियाँ में अगर कुछ जिन्दा रहेगा तो वह है एहसास. एक ऐसा एहसास जिसे शब्दों की तलाश रहती है. और अगर शब्द मर गए तो एहसास मर जायेगा."
इस ब्लॉगर-कवि की प्रोफाइल पढ़ते-पढ़ते बोले; "तुम्ही बताओ. ऐसे ब्लॉगर-कवि के बारे में जानना हो तो मुझ जैसा पाठक कहाँ जाए? अरे दिनकर, बच्चन और गुप्त जी की किताबों पर भी उनकी जीवनयात्रा के बारे में लिखा रहता है. यहाँ तक लिखा रहता है कि इनलोगों ने कहाँ-कहाँ की विदेश यात्राएं की. लेकिन ब्लॉगर-कवि के बारे में उन्ही की प्रोफाइल पर किसी दर्शनशास्त्र की किताब का आठवां अध्याय लिखा हुआ मिलता है. ये ठीक है क्या?"
मैंने कहा; "बात तो आपकी ठीक है. हमलोगों को प्रोफाइल के मामले में कुछ करना चाहिए."
मुझे लगा मेरी इस बात पर कुछ ठंडा होंगे लेकिन वे तो और तैश में आ गए. मुझसे बोले; " तुम क्या करोगे? तुम करोगे भला. दूसरों की क्यों, ख़ुद अपनी प्रोफाइल के बारे में सोचो. क्या लिखा है ये; कविता - हिन्दी और उर्दू में रूचि. परसाई और दिनकर के भीषण प्रशंसक....तुम्हें क्या लगता है? दिनकर और परसाई का नाम लेकर दूसरों को इम्प्रेस कर लोगे क्या? पढ़कर लगता है जैसे किसी कस्बे के छुटभैया नेता ने किसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष के साथ खिचाई अपनी तस्वीर को ड्राईंग रूम में लगा रखा है जिससे सबको इम्प्रेस कर सके."
उन्होंने अपने कमेन्ट से मुझे भी ढेर कर दिया. लालमुकुंद जी के साथ ब्लॉगर प्रोफाइल के और हिस्से पर चर्चा शुरू हुई. मुझसे बोले; "जिसे देखो उसी ने प्रोफाइल में लिख दिया है पसंदीदा फ़िल्म दो आँखें बारह हाथ, दो बीघा ज़मीन और नवरंग. इन लोगों में से किसी से भी पूछ लो कि आपने पिछले तीन सालों में इन फिल्मों के दर्शन कितनी बार किए? कोई अगर ये कह दे कि उसने दो बार भी देखा तो मैं मान जाऊंगा.........
खैर, लालमुकुंद जी के साथ ब्लॉगर प्रोफाइल ही नहीं, ब्लॉगर की ब्लागिंग के किस्से हम फिर सुनायेंगे.....
Monday, August 11, 2008
ब्लॉगर प्रोफाइल - लालमुकुंद जी के विचार
@mishrashiv I'm reading: ब्लॉगर प्रोफाइल - लालमुकुंद जी के विचारTweet this (ट्वीट करें)!
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padhte hi sabse pehle dekha aapne apni profile mein kya likha hai.. waise abhi tak ispe gaur nahi kiya tha.. ab dekhenge..
ReplyDeleteबढ़िया और मजेदार. समीर लाल उड़न तश्तरी ने भी मार्च 2007 में चिट्ठों के अजीबोग़रीब टैगलाइन व चिट्ठाकारों के अपरिचय किस्म के परिचय पर बढ़िया दर्शन लिखा था. अत्यंत व अवश्य पठनीय.
ReplyDeleteऐसा पकड़े भइया,कि अभी सारे ब्लॉगर अपनी अपनी प्रोफाइल पढ़ रहे होंगे.तुम भी न........किसी को नही छोड़ोगे नही???
ReplyDeleteजबरदस्त लिखा है.बड़ी पैनी नजर है तुम्हारी.
बंधू
ReplyDeleteआप का कलकत्ता या आस पास का परिवेश या दोनों ही, ख़राब है जिसमें सुदामा, बाल मुकुंद, लाल मुकुंद ,निंदक जी, रतिराम जैसे ना ना विध प्रकार के विचित्र किंतु सत्य प्रकार के मानव स्वछन्द विचरण करते हैं...और आप भी क्षमा करें...(हालाँकि क्षमा बडन को चाहिए...) कम उत्पाती नहीं हैं जो नित नए इनसे पंगे लेते हैं या देते हैं...जिसके फलस्वरूप ब्लॉग जगत में सुनामी आ जाता है...जिसे देखो वो ही इसके लपेटे में नजर आता है...(ताजा उधाहरण सुदामा का है, जो कमबख्त हमारे ब्लॉग पे भी कमेन्ट कर गया है)
लाल मुकुंद जी से कहिये की अपना मुहं लाल करें और दूसरों के प्रोफाइल पे नाराज होने की बजाय अपना प्रोफाइल लिख कर बताएं तब जाने उनको...अरे प्रोफाइल लिखने में कितनी ऊर्जा खर्च होती है क्या वो जानते हैं? ये कोई पोस्ट थोड़े ना है जिसमें जो चाहो जितना चाहो लिख दो...बहुत सोच विचार के लिखना पढता है...ये उस सी.वी. की तरह है जिसको पढ़ कर ही किसी को नौकरी के लिए या शादी के लिए बुलावा आता है...
पोस्ट छपने और किताब छपने में अन्तर है इसीलिए दोनों जगह लेखक का अलग ढंग से प्रोफाइल लिखा जाता है...पोस्ट से सूखी टिप्पणी हाथ आती है और किताब से धन...समझे आप?
नीरज
shiv ji. ye gulzar vala..kahin hamara profile to nahi padhliye? :)
ReplyDeletehua yun ki ham bhi bhage pahle apni profile ki or aur apna about me padh ke hasi aa gayi. kya kare aakhir dil hi to hai. ab lal mukund ji thoda raham khayen
ReplyDeleteभालो आछे!
ReplyDeleteअच्छा और प्रभावी लिखा है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteमेरी प्रोफाइल: हर विषय में प्रश्न करने - उत्तर चाहे मिले या न मिले - की आदत रखते हैं.(इसी ब्लॉग के बायें बाजू से)।
ReplyDeleteमेरे आदतन प्रश्न:
लालमुकुन्द मुझे क्यों न मिले? इतनी बढ़िया पोस्ट मैने क्यों न लिखी?
हमें .... भी ललंुकंद आज टकरा गये तो हमने पूछा भाई क्या देख रहे हो तो बोले उर्दू मे कुछ अश्लील ढूँढ रहा हूँ ....हमने पूछा उर्दू मे क्यू ?तो वे बोले एक साहेब है कहते है हिन्दी ओर ओर अँग्रेज़ी मे अश्लील ना पढ़ने की कसम खा रखी है इसलिए उर्दू मे ढूँढ के लायो .....सुना है ये मंटो बहुत अश्लील लिखता था ..मैने कहा लालमुकुंद जी अगर मंटो को अश्लील कहा तो इस गली मे से सही सलामत नही जा पायोगे
ReplyDeleteमैंने पुछा तुम्हारे साहेब रुदिवादी किस्म के लगते है ..ऐसी कसमे कोई खाता है भला ?...वो बोला नही भाई साहब क्या बात करते हो ....वे विचारो से बड़े स्वतन्त्र आदमी है.
हमने कहा ये कलकत्ता वाले तो नही......बोला हा साहेब वही है ....हमने कहा ..फ़िर अंग्रेजी की किताब ले जायो बुरा नही मानेगे .विविधता के पक्षधर जो ठहरे ....
बालमुकंद तब से गायब है......
हम अभी छै पैग चढा चुके है , सुबह देखेगे कौन हमारी प्रोफ़ाईल से पंगा लेता है.
ReplyDeleteसही लिखा ..इसको पढ़ कर हमने अपनी प्रोफाइल दुबारा पढ़ी है :) वैसे सब प्रोफाइल मिला कर एक बढ़िया सीरियल का प्लाट बन सकता है .क्या विचार है आपका इस बारे में :)क्यूंकि हर प्रोफाइल कुछ कहती है :)
ReplyDeleteभइया तुम्हारी पोस्ट पढ़कर सबसे पहले अपनी प्रोफाइल देखी मैंने.
ReplyDeleteतुमने ठीक ही लिखा है. हमसब को प्रोफाइल पर कुछ काम करने
की जरूरत है. लेकिन लाल मुकुंद ने तुम्हें भी ढेर कर दिया...
बालमुकुंद को हम जानते हैँ. लालमुकुंद के बारे में अब कन्फ्यूजिया गये हैं-कोउन है भई ये?
ReplyDeleteआप तो अपनी प्रोफाइल में लिख दो-मैं सी ए हूँ कृप्या सोच समझ कर पढ़िये. :)
ज्ञान जी को इसमें बिजनेस आईडिया नहीं दिखा कि प्रोफाइल लिख कर नये ब्लागर को बेची जाये?
सेम्पल:(On sale for Rs.500/-, one time fees)
मेरा परिचय: बस इतना सा:
शब्द न हिन्दु होते हैं और न ही मुसलमान. वो न वाम पंथी होते हैं न कांग्रेसी. न अगड़े न पिछड़े!! शब्द एक मासूम बच्चे की तरह हैं जिसे जैसा ढालोगे, ढल जायेंगे. उसी ढालन प्रक्रिया में जुटा मैं- एक सिपाही!!
अनुराग जी का कमेंट तो बढ़िया रहा..
ReplyDeleteहमारी प्रोफ़ाइल तो ब्लॉग के साइड कालम में लग ही नहीं पा रही है। इसी लिए हमें लालमुकुन्द या सुदामा टाइप आत्मा से कोई खतरा नहीं है।
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावकारी और रोचकतापूर्ण लेख।
ReplyDeleteशिव - वो क्या कहते हैं - जे हुई न बात - जबरदस्त - आज जो भी खाया - नियमित रूप से खाईये - मज़ा आ गया - मनीष [पुनश्च - प्रांजल परिधियों के व्योम को फोड़कर प्रस्फुटित हुई इस ज्वलंत दैदीप्य आलोकित लेखनी की प्रखर नोक को शत शत नमन :-) - अद्भुत, उम्दा, बेहतरीन से भी तीन गुना ]
ReplyDeleteकविता - हिन्दी और उर्दू में रूचि. परसाई और दिनकर के भीषण प्रशंसक....तुम्हें क्या लगता है? दिनकर और परसाई का नाम लेकर दूसरों को इम्प्रेस कर लोगे क्या? पढ़कर लगता है जैसे किसी कस्बे के छुटभैया नेता ने किसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष के साथ खिचाई अपनी तस्वीर को ड्राईंग रूम में लगा रखा है जिससे सबको इम्प्रेस कर सके." हम इसी से इम्प्रेस हो गये।
ReplyDeleteअहाााााााााा.........
ReplyDeleteरायपुर के प्रेस क्लब से दौडते भागते सीधे दुर्ग अपने घर, फिर लेपटाप पर आपके पोस्ट पर आ रहे हैं, वहां चहुंओर चर्चा है कि शिव भईया नें हमारी प्रोफाईली टोपी उछाल दी है । अब सुकून है, हा हा हा ! हमारा नहीं है ।
अरे संजीव भैया प्रेस क्लब से आपको फुटा के अपन भी अपने घर आए और देखा कि कहीं हमरी ही प्रोफाईल का भांडाफोड़ तो नही है न यह।
ReplyDeleteअरे क्या शिव भैया, हमका तो छोड़ दिया करो जी इस टांग खींचाई से ;)
एकदम मस्त टॉपिक पे एकदम ही मस्त लिखा है आपने
लालमुकनदन की "लाली"
ReplyDeleteजित देखूँह तित "लाल "
:-)
- लावण्या
sanjeev aur sanjeet dono hi mujhse milkar gaye aur apna profile check kar ke khush ho gaye,magar dono ne mujhse nahi kaha ki aap bhi check kar lo,khair abhi dekh raha hun aur mujhe bhi aisa lagta hai ki main bhi bach gaya hun shaayad
ReplyDeleteसच कहा है लाल मुकुंद जी (?) अक्सर ब्लॉगर एसी ही प्रोफाइल लिकते हैं पर हमें तो ये लेक पढ कर बडा मजा़ आया ।
ReplyDeleteहमारी प्रोफाइल किसी लाल या नीले मुकुन्द को परेशान नहीं करती । वह तो मूक है। शायद हमें पता था कि एकदिन आप यह लेख लिखेंगे।
ReplyDeleteघुघूती बासूती.
.
ReplyDeleteआदरणीय भाई शिवकुमार जी,
आज अबहिन अपने प्रोफ़ाइल को संपादित करने ही जा रहा था
कि आपके प्रोफ़ाइल पोस्टमार्टमी पोस्ट पर दृष्टि पड़ गयी, पढ़ा
भी..अतएव उचित जान पड़ा कि अपने प्रोफ़ाइल का संशोधित
संस्करण निकालने की अनुमति दी जाये । अपने में नित्य ही
कुछ नया स्वतः ही अन्वेषित होता रहना है, मज़बूरी है क्योंकि
अंदर की छिपी प्रतिभा, विनम्रता की ज़ंज़ीरें तोड़ आज़ाद हुआ
चाहती हैं । श्रीमान जी से निवेदन है कि लालमुकुंद सर की ओर
से एक स्वीकृति संस्तुति जारी करवाने की महती कृपा करें ।
पोस्ट तो भईया एकदमै नाड़ाखोल लिखी है, लेकिन लेबलवा से
थोड़ा आपत्ति उत्पन्न होने का भान हो रहा है..
ई हम बाद में बतायेंगे !
Bahut accha likha hai
ReplyDelete:)अगर सब टिपियाने वाले कह रहे हैं कि बच गये हम नही थे तो ये लालचंद किसका प्रोफ़ाइल देख आये जनाब, मस्त पोस्ट और सटीक कटाक्ष, शिव भाई आज तो हमरा भी मन कह रहा है जमाये रहिए
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