जब सीडी चलन में नहीं आया था और कई लोग़ उसे शक की निगाह से देखते हुए यह सोचते थे कि अद्भुत दिखने वाली इस चीज को ही यूएफओ कहते हैं, तब अल्ताफ रज़ा और अताउल्लाह खान ज़ी के फैन्स उनके कालजयी गाने सुनने के लिए कैसेट खरीदते थे. खरीदने के बाद उस कैसेट को इतना चलाया जाता था कि जब कभी तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे नामक महान गीत बजता तो आने-जाने वाले लोग़ यही सोचते कि परदेसी कहकर उन्हें ही संबोधित किया जा रहा है. और जब कैसा सिला दिया तूने मेरे प्यार का जैसा प्रोटेस्ट-सूचक, पीड़ा-प्रेषक गीत बजता तो आने-जाने वाली लड़कियां टेपरेकॉर्डर बजानेवाले को आश्चर्य से देखती और मन ही मन सोचती कि; "यह चिरकुट भी मुझे प्यार करता था? मैंने तो केवल रमेश, पप्पू और राजू का नाम सुना था.
उन दिनों फी कैसेट चालीस रूपये खर्च करने वाला कैसेट स्वामी इन गानों को इतना बजाता कि लोगों के मन में संदेह पैदा होने लगता कि इन गानों का कॉपीराइट्स इसी महापुरुष के पास है और अगले घंटे से ही यह पूरे मोहल्ले से पेटेंट फी की वसूली शुरू कर देगा. ये गाने इतना बजते कि कैसेट करीब साढ़े सत्रह दिन के भित्तर ही शहीद हो जाता और उनका स्वामी बड़े दुःख के साथ अलविदा दोस्त कहते हुए उन्हें आते-जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पर फेंक आता. लेकिन कैसेट स्वामी के इस कर्म से कैसेट की मौत नहीं होती थी. दरअसल कैसेट थ्रो नामक जिस खेल में वह बिना किसी गोल्ड मेडल की आकांक्षा के उत्कृष्ट प्रदर्शन करता, उसी खेल से कैसेट को एक नया जीवन मिल जाता था और नया जीवन पाकर कैसेट यह कहते हुए धन्य हो लेता था कि बड़े भाग कैसेट तन पावा.
अपने नए जीवन के पहले चरण में ये वह कैसेट मोहल्ले के किसी कैसेट-प्रेमी बच्चे के हाथों में अठखेलियाँ करते नहीं थकता था. बच्चा उस कैसेट को हाथ में लेता और एक आँख बंद करके दूसरी से उसके आर-पार देखने की कोशिश करता. जब कुछ दिखाई न देने के कारण बोर हो जाता तो बड़े प्यार से उँगलियों के समूह से तर्जनी नामक उंगली का सेलेक्शन कर उसे कैसेट की चकरी में घुसेड़ देता और उसे इस तरह से घुमाता जैसे महाभारत सीरियल में श्रीकृष्ण बने नितीश भारद्वाज तथाकथित सुदर्शन चक्र घुमाया करते थे.
कुछ बच्चे तो इस कला में इतने माहिर होते थे कि अगर एशियन गेम्स में इस प्रतियोगिता को शामिल कर लिया जाता तो नोवी कपाडिया को इस बात की चिंता न सताती कि गोल्ड मेडल्स की टैली को दो अंकों में पंहुचाने के लिए किस प्रतियोगिता पर डिपेंड किया जाय. शर्त लगाकर कह सकता हूँ कि नाइन आउट ऑफ टेन बार गोल्ड मेडल भारत की झोली में होता और भारत की गोल्ड मेडल टैली डबल डिजिट में पहुँच जाती.
अपना नया सुदर्शन चक्र घुमाकर भगवान, (मेरी बात पर नाराज़ मत होइएगा, बच्चे भगवान का रूप होते हैं.इधर आप नाराज़ हुए और उधर आपको पाप लगा), जब बोर हो जाता तब वह कैसेट को आधे में चीर डालता और उसके भीतर के टेप को खींच डालता. बच्चे का यह कर्म कुछ समय के लिए उसे दुशासन के रूप में प्रस्तुत करता. अंतर केवल इतना रहता कि अटेंडेंस रजिस्टर में सुदर्शनचक्र धारी भगवान श्रीकृष्ण के नाम के आगे कैपिटल ए लिखा रहता. इसका परिणाम यह होता कि अगल-बगल खड़े लोग़ इस टेप-हरण काण्ड का जम कर लुफ्त उठाते. बाद में टेप को उड़ाया जाता. फैलाया जाता. लपेटा जाता. टांगा जाता. कहीं बांधकर लाँघा जाता. बच्चों के ये कर्म उन्हें और साथ में खड़े तमाम लोगों को अद्भुत आनंद वाले रोलरकोस्टर राइड्स पर ले जाते. उन्हें लगता कि टेप हरण में ही जीवन का लुत्फ़ छिपा हुआ है. कुछ दिनों बाद जब वे बोर हो जाते तो नए कैसेट की तलाश में निकल पड़ते. मोहल्ले में कैसेटों की कमी भी नहीं थी. लगभग हर दिन किसी न किसी घिसे-पिटे कैसेट को नया जीवन मिल ही जाता.
यह बात अलग थी कि कुछ टैलेंटेड बच्चे यह सोचते हुए समाज को गाली देते थे कि सभी कैसेट ही फेंकते हैं. स्साला कभी कोई टेप रेकॉर्डर नहीं फेंकता.
धत्त तेरे की. मैंने सोचा था कि आज बहुत दिनों बाद चर्चा में चल रहे टेप्स के बारे में कुछ लिखूंगा और शुरू किया तो घिसे-पिटे कैसेट के बारे में लिख दिया. खैर, अब लिख दिया है तो पब्लिश कर ही देता हूँ. टेप्स के बारे में फिर कभी लिखूँगा.
आंय? आप टी-सीरीज के पुराने टेप घिसे जा रहे हैं?
ReplyDeleteराडिया सीरीज के नये टेप आ गये हैं। बी दत्ता का संगीत है उनमें।
मंहगे जरूर हैं। पर उसमें गाने की वैराइटी है।
उसकी समीक्षा करें न।
` इधर आप नाराज़ हुए और उधर आपको पाप लगा'
ReplyDeleteशायद आप ‘पाप’ नहीं ‘पॉप’ कहना चाहते थे :) आखिर टेप में पॉप ही तो होता है.......
मांग के सादे कैसेट में रिकॉर्ड भी तो करते थे. ये रिकॉर्ड कर कैसेट बनाने वाली दुकाने भी होती थी. और किसी किसी गाने के बीच में कोई बच्चा कुछ बोल के रिकॉर्ड भी कर देता था. और चीरहरण के पश्चात् बिजली के तारो से लटके टेप...
ReplyDeleteऔर बेस्ट गाने तो आपने सेलेक्ट कर ही लिए हैं.
रादिया,संघवी,बरखा जी के टेप चर्चा में हैं, ये किस चर्चा को ले बैठे जनाब...
ReplyDeleteमान गए गुरु
ReplyDeletemaja aa gaya .....
ReplyDeletepranam.
जब हम भगवान थे तो हम भी यही किया करते थे जो आपने लिखा
ReplyDeleteदुःख के साथ अलविदा दोस्त कहते हुए उन्हें आते-जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पर फेंक आता.
ऊपर वाली लाईन को सौ नंबर
कैसटिया अनुराग इतना जबरजस्त था कि एक छुटका टेप और बीस कैसेट परमानेन्ट पड़े रहते थे। उफ, वह भी समय था।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट...इतना मजा तो हमें अपनी चीन यात्रा में भी नहीं आया जितना आपकी पोस्ट पढ़ कर आया है...एक एक शब्द चुन चुन कर प्रयोग किया है आपने...यक़ीनन आप आज के युग के परसाई हैं...
ReplyDeleteमेरे पास ऐसे केसट्स का खज़ाना पद है जयपुर में लेकिन उसे बजने का यन्त्र खराब हो गया है...दुकानदार बोलता है इसे ठीक करने से अच्छा है आप एक सी.डी. प्लेयर लेलें सस्ता भी पड़ेगा और चलेगा भी खूब...इन केसट्स को रद्दी में फैंक दें...लेकिन मैं ऐसा कर नहीं पा रहा हूँ...जगजीत सिंह की आवाज़ में ये गज़ल का ये मिसरा सुन कर उम्मीद में हूँ..."तारीक(इतिहास)हमेशा अपने को दोहराती है...फलित हो और फिर से केसट्स का युग आये...
नीरज
नीरज
बहुत बहुत लाजवाब !!!!
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