दिवाली आई और चली गई. साल भर जिस त्यौहार का इंतज़ार रहता है उसके आने में तो देर लगती है लेकिन जाने में बिलकुल नहीं. अब दिवाली के चले जाने से हम वैसे ही हलकान हैं जैसे कुछ लोग इस बात से हलकान हुए जा रहे हैं कि श्री बराक ओबामा ने मुंबई में भाषण तो झाड़ा लेकिन वे अपने भाषण में पाकिस्तान नामक शब्द डलवाना भूल गए. यह तो वैसा ही हो गया कि सब्जी तो बहुत बढ़िया बनी बस समस्या एक रह गई कि मास्टर शेफ अमेरिका नमक डालना भूल गए.
ओह, दिवाली की बात हो रही थी और कहाँ हम फिसल कर ओबामा पर जा पहुंचे.
हाँ तो मैं कह रहा था कि दिवाली आई और चली गई. दीये जले. लक्ष्मी और गणेश ज़ी का पूजन हुआ. एस एम एस लेन-देन का कार्यक्रम हुआ. इनोवेटिव एस एम एस लिखने के कीर्तिमान स्थापित हुए. जो नहीं हो सका वह था मिठाई भक्षण कार्यक्रम. मिठाई भक्षण की बात पर हम इस बार निरीह साबित हुए. कारण था, मिठाई टेस्ट करने के लिए हम घर में प्रयोगशाला नहीं बना सके. मिठाई की दूकान के आस-पास हमें परखनली और टिंक्चर आयोडीन की दूकान नहीं मिली लिहाजा हम ये चीजें नहीं ला सके. ऐसे में मिठाई परीक्षण नहीं हो सका. अब चूंकि सरकार हमको बार-बार बता रही थी कि जागो ग्राहक जागो और मिठाई टेस्ट करके खाओ, हमें बिना परीक्षण वाली मिठाई खाने में शर्म महसूस हुई. नतीजा यह हुआ कि हमने मिठाई नहीं खाई.
इससे पहले कि आप पूछें कि परखनली क्या लफड़ा है, हम आपको बता देते हैं कि परखनली भारतवर्ष में टेस्ट-ट्यूब के नाम से विख्यात हैं.
प्रगति में लिप्त देश के पास तमाम बातों के लिए आप्शन कम हो जाते हैं और वह निरीह हो जाता है. अब देखिये न, हम जब केवल चार प्रतिशत से ग्रो कर रहे थे तब जमकर मिठाई खाते थे. बाद में पता चला कि भारतवर्ष की कुंडली में प्रगति लिखी हुई है. अब जिसकी कुंडली में प्रगति लिखी हुई है उसे प्रगति करने से कौन रोक सकता है? ऐसे में प्रगति योग का असर यह हुआ कि हम नौ-दस परतिशत से ग्रो करने लगे. अब इतनी तेजी से ग्रो करेंगे तो सबकुछ अद्भुत ही होगा न.
और सबकुछ अद्भुत ही हो रहा है.
एक ज़माना था जब सिंथेटिक शब्द की बात होती थी तो उसके साथ केवल एक शब्द जुडा होता था और वह था साड़ी. लगता था जैसे सिंथेटिक शब्द साड़ी शब्द के साथ फेविकोल लगाकर चिपका हुआ था. बाद में हम प्रगति के ऐसे शिकार हुए कि हमने तमाम और चीजों से सिंथेटिक को जोड़ डाला जिनमें सिंथेटिक मावा, सिंथेटिक मैदा, सिंथेटिक दूध, सिंथेटिक दही. अब तो कई बार तो लोग़ सिंथेटिक शुभकामनाओं के साथ बरामद होते हैं.
बस अब केवल सिंथेटिक प्रगति का हल्ला होना बाकी है.
जब मैं छोटा था तब मिठाई में इस्तेमाल होनेवाले मावे और खोये में आलू की मिलावट होती थी. दूध में मूंगफली की. प्रगति के साथ-साथ इक्वेशन चेंज हो गया. अब मावे में सफ़ेद पेंट और टॉयलेट पेपर की मिलावट होती है और दूध में यूरिया की. टॉयलेट पेपर वाली जानकारी मेरे लिए ताज़ा है और परसों ही एक टीवी चैनल ने दी है. पत्रकार बता रहा था कि टॉयलेट पेपर मिलाने से मावा असली लगता है. इस जानकारी के बाद मुझे लगा कि पिछले चार-पाँच महीनों में देश में टॉयलेट पेपर को अभूतपूर्व इज्ज़त मिली है. ऐसी इज्ज़त जो इस पेपर को शायद ही किसी और देश में मिले.
एक मित्र से बात हो रही थी. मैंने कहा; "ये भी कोई बात है? हम मिठाई खरीदने बाज़ार जायें तो साथ में टेस्ट-ट्यूब और केमिकल भी ले आयें ताकि उसे टेस्ट कर सकें?"
मित्र बोले; "अरे ये सब ढकोसला है. मुझे तो लगता है किसी मंत्री के दूर के रिश्तेदार जैसे सास-ससुर या फिर साले-सालियों ने टेस्ट-ट्यूब और मिठाई टेस्टिंग केमिकल्स का धंधा कर लिया है. इसीलिए सरकार ने इतना बड़ा विज्ञापन अभियान चला रखा है."
आगे बोले; "और मैं पूछता हूँ कि क्या गारंटी है कि जिस केमिकल से टेस्ट होना है वह मिलावटी नहीं होगा? उसे टेस्ट करने के लिए क्या एक और चीज खरीदनी पड़ेगी?"
मेरे पास कोई जवाब नहीं था.
आज बैठे-बैठे सोच रहा था कि आनेवाले दिनों में क्या-क्या दिखाई पड़ेगा? मुझे लगा कि हो सकता है पेंट बनानेवाली कोई कंपनी इस बात का प्रचार करे कि प्रसिद्द मिठाई निर्माता अपनी मिठाइयों में हमारी कंपनी के पेंट का इस्तेमाल करते हैं. मिठाई बनानेवाले सेठ ज़ी इस विज्ञापन के लिए मॉडलिंग करेंगे. कोई फर्टीलाइजर कंपनी अपने विज्ञापन में इस बात को बड़े गर्व के साथ प्रचारित करेगी कि दूध बेचने वाली फलाने कंपनी दूध सफ़ेद बनाने के लिए हमारी कंपनी के यूरिया का इस्तेमाल करती है. टॉयलेट पेपर बनानेवाली कंपनी बड़े ताम-झाम के साथ विज्ञापन बनाये कि; "ज़ी हाँ, बहनों और भाइयों, कॉमनवेल्थ गेम्स में अपार सफलता के बाद अब हमारी कंपनी के टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल प्रसिद्द मिठाई निर्माता सखाराम सूरजमल अपनी मिठाई के मावे में करते हैं.....
नकली मावे की फैक्टरी में छापा मारने वाले फ़ूड इंस्पेक्टर टीवी चैनल वालों को लेकर जाते हैं ताकि उनकी सफलता से भारतवर्ष में फ़ूड इंस्पेक्शन का इतिहास लिखा जा सके. कल कहीं ऐसा न हो कि मिठाई टेस्ट करने के लिए केमिकल्स बनानेवाली कम्पनियाँ डिमांड पूरा करने के लिए नकली केमिकल्स बनना शुरू कर दें और इन्ही इंस्पेक्टर ज़ी लोगों को उनकी फैक्टरी पर छापा मारना पड़े.......
नोट: मेरी यह पोस्ट पहले न्यूज दैट मैटर्स नॉट पर प्रकाशित हो चुकी है.
वाह वाह बहुत सुन्दर (सिंथेटिक टिप्पणी ! )
ReplyDeleteसेंथेटिक टिप्पणियाँ भी ली/दी जाती है. देश की तरह हिन्दी ब्लॉगजगत भी प्रगति-पथ पर है.
ReplyDeleteटॉयलेट पेपर?!!! वल्लाह...
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट है भाई जी ! लगता है देश सही तरक्की कर रहा है !
दूसरे विकसित देशों में शायद ही इतनी रिसर्च हुई हो जो यहाँ हमारे अनपढ़ दूधियों और हलवाइयों ने कर ली ! अगर समय रहते पेटेंट नहीं कराई तो अन्य देश हमसे यह राज सीख लेंगे कि चार सूखी भैंसों से रोज १०० किलो दही और २० किलो मावा कैसे बनता है ! !
हार्दिक शुभकामनायें !
`मिठाई खरीदने बाज़ार जायें तो साथ में टेस्ट-ट्यूब और केमिकल भी ले आयें'
ReplyDeleteअरे भाया, ये बिज़नेस टैक्टिस है, अब तो दो कफ़न खरीदने पर तीसरा फ़्री का ज़माना है :)
मौज करो...मिठाई की मिठाई और बाद में मौथ वाश फ़्री :) :)
यह हमारे देश के न्यूटन, आईन्स्टीन हैं, जिनकी कोई पूछ नहीं हो रही है. ऐसा बेगानापन. ऐसी बेरुखी. यूरिया से दूध, अमरीकन और जापानी ईजाद नहीं कर सके. ऐसी महान ईजाद करने वाली प्रतिभा (प्रेसीडेन्ट महोदया नहीं) के साथ यह अन्याय..
ReplyDeleteबहुते अपार-चुनिटी दिख रही है इस क्षेत्र में... सिंथेटिक में ही फ्यूचर है. वैसे कल कोई कह रहा था कि वामपंथ में फ्यूचर है :)
ReplyDelete"और मैं पूछता हूँ कि क्या गारंटी है कि जिस केमिकल से टेस्ट होना है वह मिलावटी नहीं होगा? उसे टेस्ट करने के लिए क्या एक और चीज खरीदनी पड़ेगी?"
ReplyDelete{अगर एक और चीज़ खरीदनी पड़ी भी तो क्या गारंटी है के वो एक और चीज़ में मिलावट नहीं होगी...किस में मिलावट है का पता लगाने में उम्र बीत जायेगी...याने बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी...लोग बेवजह मिलावट का सबब पूछेंगे...ये भी पूछेंगे के इसमें भी मिलावट क्यूँ है...}
आपने ऐसा प्रश्न पूछ लिया है जिसका जवाब दुनिया में शायद ही किसी के पास हो...ये प्रश्न पहले मुर्गी हुई या अंडा वाले प्रश्न से भी अधिक पेचीदा है...ब्लोगर्स को ऐसे पेचीदा सवालों में उलझाना आपको शोभा नहीं देता.
नीरज
बहुत सुन्दर प्रयास
ReplyDeleteनोट : आपकी इस पोस्ट की चर्चा इस बार सिंथेटिक चिठ्ठा चर्चा में हुई है
ऐसे तो देश की मिठाईयाँ लुप्त हो जायेंगी। एक नया लेख लिखा जाये, मिलावट और मिठाईयों का सर्वनाश।
ReplyDeleteआप खाने की वस्तुओं की बात कर रहे हैं अब तो दिल गुर्दे खून तक सिन्थेटिक मिलेंगे। और किसी दिन पूरा अदमी सिन्थेटिक बन जायेगा न रहेंगी संवेदनायें और न इन्सानियत। जिसमे जो मर्जी मिलावट किये जाओ कोई असर नही होगा। वही युग आने वाला है शायद। अच्छा लगा व्यंग। ज्ञान दत्त पाण्डेय जी को हमारी तरफ से जन्मदिन की बधाई दीजियेगा। मिठाई जरूर खायेंगे भले सिन्थेटिक हो। शुभकामनायें।
ReplyDeleteकिस ज़माने के हो भाई ?????
ReplyDeleteआज के इस नए भारत में मिठाई की बात करते हो...अरे आज मिठाई माने चाकलेट और केक होता है...उसमे शुद्धता की पूरी गारंटी अंगरेजी भाषा में लिख मल्टीनेशनल कम्पनियाँ देती हैं....
प्रगती का जमाना है तो केक चॉकलेट खाइये कहां मावा टॉयलेट पेपर टिंचर आयडीन के चक्करों में पडें । बहर हाल दिवाली तो शुभ ही गुजरी लगता है मिठाई नही खाई तो शुगर भी कंट्रोल्ड रही होगी । जबरदस्त आलेख, वह भी खालिस सिंथेटिक नही ।
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