Monday, December 6, 2010

ठेकेदार की कहानी

इलाके के बड़े ठेकेदार हैं अपनी कहानी सुना रहे थे. सफलता की कहानी. बोले; "सब भगवान की कृपा है चाचाजी. सब उन्ही का आशीर्वाद है. कभी नहीं सोचा था कि बी एच यू के सामने डेढ़ करोड़ में ज़मीन खरीदेंगे. स्कॉर्पियो में चलेंगे. और इस्कूल की ही बात ले लीजिये. सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा इस्कूल खोलेंगे. लेकिन सब भगवान का आशीर्वाद है. आज किसी चीज की कमी नहीं है. अब समझ लीजिये कि एक ठेका जो पचास लाख का होता है उसमें नेट प्रोफिट करीब चालीस का बैठता है. सब आपलोगों का आशीर्वाद है....."

लीजिये भगवान को अपनी सफलता का श्रेय कितनी बार देते? शायद यही सोचते हुए थोड़ा सा श्रेय लगे हाथ हमारे पिताजी के आशीर्वाद को भी दे डाला. सुनकर लगा जैसे कोई बड़ा पैसेवाला सेठ श्रेय बांटने निकला है और आज उसके रस्ते में जो भी आएगा, बच नहीं पायेगा. हर एक को ज्यादा नहीं तो ढाई सौ ग्राम श्रेय तो लेना ही पड़ेगा.

अपने विनय की बात ऐसे कर रहे थे कि पूछिए मत. बोले; "इतना सब होने के बावजूद आज भी न तो मेरे अन्दर और न ही छोटे भाई के अन्दर जरा भी घमंड है. आज भी चाचाजी, मंगलवार को इंडिया में कहीं भी रहूं लेकिन विन्ध्याचल की देवी के दरबार में ज़रूर पहुँचता हूँ. छोटे भी कुछ कम धार्मिक नहीं हैं. कम से कम तीन घंटा पूजा करते हैं. कुछ भी हो जाए...."

उनकी बात को कोरोबोरेट करने के लिए पास बैठे उनके दांयें बोल पड़े; "एकदम सही कह रहे हैं. रंजीत को आप देखेंगे तो लगेगा ही नहीं कि यही रंजीत हैं. जरा भी घमंड नहीं."

सुनकर अनुमान लगा सका कि इस आदमी के विनय का अहंकार कितना बड़ा है.

सफलता की कहानी बताते-बताते अपने बिजनेस मॉडल पर पहुंचे. बोले; "खर्चा निकाल कर इतना बच जाता है कि क्या कहें? सोनभद्र है भी तो नक्सली इलाका. अब समझ लीजिये कि एक करोड़ का ठेका है तो कम से कम सत्तर लाख तक का प्रोफिट है. साटिफिकेट ही तो लेना है."

यह बिजनेस का सरकारी मॉडल है. प्रोफिट मार्जिन इतनी कि बड़ी-बड़ी अमेरिकेन कंपनियों के सी ई ओ को शर्म आ जाए और वे तीन दिन तक यह सोचते हुए पेप्सी न पीयें कि; "पढाई-लिखाई करके हमने क्या किया?" कुछ सी ई ओ के तो डिप्रेशन में चले जाने का चांस बना रहेगा.

मैं तो कहता हूँ कि भारतीय ठेकेदारों के बिजनेस मॉडल को दुनियाँ भर की बड़ी कंपनियों के सी ई ओ को एक बार ज़रूर देखना चाहिए. उन्हें यह विचार करने की ज़रुरत है कि केलोग्स और एम आई टी में पढ़कर उन्होंने क्या किया? ऐसी पढाई करके क्या फायदा अगर वे भारतीय ठेकेदारों की एफिसिएंसी तक नहीं पंहुच सकते?

वे आगे बोले; "लेकिन बड़ी मेहनत भी की है चाचाजी."

मेहनत वाली उनकी बात सुनकर विचार मन में आया कि बन्दे ने इतना बड़ा बिजनेस खड़ा किया तो मेहनत तो किया ही होगा. लेकिन अगले ही क्षण जब उन्होंने अपनी मेहनत की कहानी सुनाई तो मेरा विचार धराशायी हो गया. वे बोले; "पास में पैसा नहीं था उस समय. किसी का क्रेडिट कार्ड लेकर, किसी से उधार लेकर, इधर से उधर से करके आठ लाख रुपया जुटाया. एक एक्जक्यूटिव इंजिनियर को दे दिया. बात यह हुई थी कि वह ठेका दिलवाएगा. पैसा लेकर स्साला बैठ गया. समझ में यही आया कि अब पीछे जाने का कोई रास्ता नहीं है. अब या तो हम मर जायेंगे या फिर वो मरेगा. एक दिन शाम को बाज़ार में निकला. पुलिसवाले साथ थे. छोटे भाई ने गोली चला कर वहीँ पर ढकेल दिया. (ढकेल दिया से उनका मतलब जान से मार दिया.)

आगे बोले; "तीसरे दिन छोटे ने कोर्ट में सलिंडर कर दिया. जेल में गए तो वहाँ नक्सली नेता गिरजा से मुलाकात हुई. वो बोला कि जितना काम करना हो करो. जितना ठेका लेना हो लो. बस दस परसेंट मुझे चाहिए. वो दिन है और आज का दिन है एक बार भी तकलीफ नहीं हुई. उसका हिस्सा उसके पास पहुँचा देते हैं.... बाद में जज को साधा गया. वो मुकदमा अभी भी चल रहा है लेकिन उसके बाद छोटे मर्डर के और किसी केस में नहीं फँसा. अब तो...."

मैंने कहा; "यह बढ़िया है. एक मर्डर कर दिया और धाक जमा ली."

बोले; "ऐसी बात नहीं है गुरूजी. ऐसा नहीं कि उसके बाद मर्डर नहीं किये. हाँ, लेकिन फंसे नहीं."

आगे बोले; "और अब पैसा भी तो दुसरे-दुसरे धंधे में लगा रहे हैं. एक इस्कूल खोल दिए हैं और अब दूसरे की तैयारी है. बड़ा पैसा है शिक्षा में......"

सफलता की उनकी कहानी सब बड़े ध्यान से सुन रहे थे. उनमें कुछ ऐसे भी थे जो न जाने कितनी बार सत्यनारायण भगवान की कथा की तरह वह कहानी सुन चुके होंगे लेकिन चेहरे पर भाव ऐसे कि पहली बार सुन रहे थे. ठेकेदार के श्रोता बने हुए हैं. समय बीतते उनमें कुछ और जुड़ जाते हैं. उनकी कहानी भी उनके बिजनेस की तरह चली जा रही है.

18 comments:

  1. सब भगवान की कृपा है जी. सब उन्ही का आशीर्वाद है - आपके मशहूर ब्लॉग पर फर्स्टमफर्स्ट टिप्पणी कर पा रहे हैं. सब आपकी कृपा है! :)

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  2. सत्यनारायण की ये कथा घर घर में पूजी जाती है | कथा समाप्त करने के उपरांत पंडित जी सबको प्रसाद बांटते हैं, इसमें वो तबका भी शामिल होता है जिसे आम आदमी कहकर पांच पांच साल बाद सर पे बिठाया जाता था | अब टी वी वाले तो खैर इन्हें खड़े होने ही नहीं देते, बिठाकर ही रखते हैं | सभी श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसकी सामग्री का इन्हें कोई पता नहीं होता |

    'बोल सत्यनारायण भगवान की!!!'
    'जय!!!'

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  3. `सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना बड़ा इस्कूल खोलेंगे. लेकिन सब भगवान का आशीर्वाद है'

    इसी को तो कहते हैं - अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान :)

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  4. ओह, अब समझ में आया, इसी कहानी पर तो सब फिल्‍में बन रही हैं.

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  5. विनयव्यक्त अहंकार बड़ा धाँस कर लगता है।

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  6. भगवान् का दिया सबकुछ है उनके पास. फिर विनय का अहंकार उन्हें नहीं तो और किसे होगा.
    आपको प्रणाम.

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  7. एक नया पद मिला- विनय का अहंकार।

    वाह, हमेशा की तरह बेहतरीन...
    जैजै

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  8. हम भी ये सब सुनते और पढ़ते रहे हैं परंतु आपने परिभाषित कर दिया "विनय का अहंकार"। अब हम भी इसका उपयोग करेंगे ।

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  9. इश्वर सब ब्लोगर्स को ऐसा ही ठेकेदार बनाये...विनय शील...ईमानदार...भक्त...दयालु...मददगार...माँ सरस्वती का उपासक...आमीन...

    नीरज

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  10. कथा तो सुना दी ! श्रद्धालुओं को परसाद तो बांटो ....
    जय हो !

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  11. अब भगवान भी ऐसे ‘मेहनती’ लोगों को ही आशीर्वाद देता है।

    शिक्षा में बड़ा पैसा है, मुझे भी इसका इलहाम हुआ है।

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  12. अज भगवान का आशीर्वाद हम पर भी हो गया। इस ब्लाग को लिस्ट मे डाल लिया। क्या है न ब्लागवाणी जाने से सब अस्त व्यस्त हो गया था। ऐसे ही मेहनती की आज एक और कहानी कही पडः रही थी बाल्टी धन्धा। मतलव 300 बाल्टियाँ शनिवार को शहर के विभिन्न स्थानों पर रख देते और शाम को टेम्पू मे ले जाते तेल से भरी हुयी। श्रद्धालु लोगों के कमी नही हर विजनेस सफ्ल । धन्यवाद।

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  13. aise vinyashil-ahankari se kabhi balakon ko bhi milbayen dev.....

    ek hi mulakat me sare pending hisab-kitab advance me convert ho jayega..


    pranam.

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  14. बस

    " परनाम "

    कह सकते हैं....

    और का कहें...

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  15. जेल जाने और जाकर काम फिट करने का आइडिया बेजोड़ लगा...

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  16. Luccha! Sabsey ooncha.

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  17. इस आदमी के विनय का अहंकार कितना बड़ा है
    वाह।

    कहानी भी गजबै है जी।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय