मनोहर भैया सोच में बैठे थे. मैंने पूछा; "क्या हुआ भैया? इतने चिंतित क्यों हैं?"
बोले; "लगता है बाबूजी का सपना सपना ही रह जायेगा शिव. क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है."
उनकी बात सुनकर मैं भी सोचने लग गया.
पहले मनोहर भैया के बारे में बता दूँ. भैया का पूरा नाम राम मनोहर है. उनका यह नाम उनके बाबूजी ने रखा था. बाबूजी राम मनोहर लोहिया के अनन्य भक्त थे. अशोक मेहता, लोहिया जी और जयप्रकाश बाबू के बाद ख़ुद को भारत का सबसे बड़ा समाजवादी मानते थे. ये बात और है कि उनकी तरह की सोच रखने वाले हजारों, लाखों लोग थे. इन समाजवादियों में मुलायम सिंह जी भी थे.
बाबूजी जब तक रहे, समाजवाद लाने में जीवन गुजार दिया. लेकिन समाजवाद भी अपनी जिद पर अड़ा रहा. बहुत कोशिश की गई लेकिन आने की बात तो दूर, अपनी जगह से हिला भी नहीं कि भारत तक पहुँच सके.
नेहरू का विरोध, कांग्रेस का विरोध, सत्ता का विरोध, स्थापित मान्यताओं का विरोध, कोई विरोध छूटा नहीं. कविता का सहारा लिया गया. मंच बनाए गए. निराला हों या धूमिल, नागार्जुन हों या त्रिलोचन, सबकी कविताओं का सामूहिक पाठ चला. सेमिनार आयोजित किए गए. खद्दर के कुर्तों से ढंके नेता दिखते, लेकिन समाजवाद अपनी जिद पर अड़ा रहा.
सारी कोशिश करने के बाद भी जब नहीं आया तो बाबूजी दुखी रहने लगे. सत्तर के दशक में जय प्रकाशबाबू की कोशिशों से एक सरकार बनी भी तो उसे बड़े समाजवादियों की करतूतों की वजह से जाना पडा. सरकार की दुर्गति देखकर जयप्रकाश बाबू दुखी रहने लगे. उनकी देखा-देखी मनोहर भैया के बाबूजी ने भी दुःख का सहारा लिया. उन्हें शायद लगा कि पर्याप्त मात्रा में दुःख न होने की वजह से समाजवाद नहीं आ रहा.
बाद में बाबूजी नहीं रहे. जाते वक्त मनोहर भैया से वचन लिया. भैया ने भी बाबूजी को निराश नहीं किया. बताते हैं कि अन्तिम क्षणों में भैया ने बाबूजी को वचन दिया कि समाजवाद लाकर ही रहेंगे.
कालांतर में भैया ने समाजवाद लाने की कोशिश शुरू कर दी. खादी धारण कर लिया. सरकार के ख़िलाफ़ नारे लिखने लगे. काफी हाऊस में समय गुजारने लगे. बाज़ार में में चाय-पान की दुकानों पर दिखने लगे. महीने में एक बार दिल्ली का दौरा करते. सेमिनारों में तकरीरों की झड़ी लगाते. स्थानीय स्तर पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका में लिखते. महीने में पन्द्रह दिन अखबारों में वक्तव्य देते कि विकास की बात बेमानी है. कोई विकास नहीं हो रहा है. सरकारी आंकडे ग़लत हैं. दोस्तों के साथ मिलकर प्रकाशकों की 'दुकानों' के चक्कर लगाते. लेकिन समाजवाद भी अपनी जिद पर अड़ा रहा. टस से मस नहीं हुआ. अपने नाम के आगे खोजकर एक उपनाम तक लगा लिया. लेकिन कुछ भी नहीं हुआ.
यही बात उन्हें खाए जा रही थी. यही कारण था कि चिंतित बैठे थे. मैंने कहा; "मनोहर भैया, बाबूजी का सपना आपको पूरा करना ही है. आख़िर आपने उन्हें वचन दिया था."
बोले; "हाँ, मैं भी तो वही सोच रहा हूँ. तुम्हें क्या लगता है? ऐसा क्या किया जाय कि बाबूजी का सपना पूरा कर सकूं."
मैंने कहा; "भैया, मैं क्या बताऊं. लेकिन आप चिंता न करें. मुझे पूरा विश्वास है कि आप जरूर कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगे."
अचानक मनोहर भैया उछल पड़े. उनकी आंखों में रोशनी चमकी. बोले; "अच्छा, तुम्हारा तो अपना ब्लॉग है. मुझे एक बात बताओ अगर मैं एक ब्लॉग बना लूँ तो कैसा रहेगा?"
मैंने कहा; "भैया मैं क्या कह सकता हूँ. लेकिन एक बात जरूर कहूँगा कि इंटरनेट पर ब्लॉग खोलने से आप अपने विचार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकते हैं."
मनोहर भैया बोले; "तुम्हारा कहना एकदम ठीक है. मैं अपना एक ब्लॉग बनाऊँगा. मुझे लगता है कि समाजवाद अब ब्लॉग से ही आयेगा."
मैंने कहा; "लेकिन भैया, समाजवादी तो वैश्वीकरण का विरोध करते हैं. और ये इंटरनेट से वैश्वीकरण फैला है. ब्लॉग बनाना तो समाजवादी नीतियों के ख़िलाफ़ होगा."
मनोहर भैया ने कुछ देर सोचकर कहा; "मुझे अपने बाबूजी का सपना पूरा करना है. इसके लिए अगर वैश्वीकरण के टूल की मदद लेनी पड़े तो भी मुझे कोई ऐतराज नहीं है. मुझे समाजवाद लाना ही है चाहे वो इंटरनेट के जरिये से आए."
दूसरे दिन ही मनोहर भैया ने अपना एक ब्लॉग बनाया. ब्लॉग पोस्ट पर सबसे पहले उन्होंने अन्य ब्लॉगर की बुराई की. सबसे पहले ये बताया कि बाकी के ब्लॉगर जो कुछ भी लिखते हैं वो सब कचरा है. उनकी पहली पोस्ट देखकर मैंने कहा; "भैया, आपने तो समाजवाद लाने के लिए ब्लॉग शुरू किया था. लेकिन आपने तो बाकी के ब्लॉगर की बुराई शुरू कर दी."
मनोहर भैया ने मेरे कान के पास मुंह लाते हुए धीरे से कहा; "यही तो समाजवाद लाने की कवायद की शुरुआत है. समाजवाद लाने की कोशिश दूसरों की बुराई करने से शुरू होती है. और फिर ये भी तो देखो कि मेरी पोस्ट पर इतने सारे कमेंट आये हैं."
आनेवाले दिनों में पता चलेगा कि मनोहर भैया का समाजवाद ब्लागिंग से आता है या फिर भैया को कोई और रास्ता खोजने की जरूरत पड़ेगी.
matlab samajwadi jiddi hote hain...
ReplyDelete................ dukhi ............
................ dusron ko ........
ohhohhh....kuchho samajh nahi aa raha
hai.....jaoon puranikji ka nibandh
dekh aaoon phir kuch samajh pawoonga
......samajwadi ke bare me..........
pranam
` इन समाजवादियों में मुलायम सिंह जी भी थे. '
ReplyDeleteइब अमर सिंह जी का मुंह मत खुलाओ शिव बाबू :)
कहा जाता था कि समाजवाद ऐसी टोपी है जो सबके सिर पर फिट आती है. वैसे ही आपकी इस पोस्ट में समाजवाद को बदलकर दूसरे शब्द लगाकर देखा (थ्री ईडियट्स की तरह नहीं), ज्यादातार फिट ही आ रहे हैं.
ReplyDeleteसमाजवाद लाने की कोशिश दूसरों की बुराई करने से शुरू होती है.
ReplyDeleteकरारा ब्यंग ....बहुत ही विचारणीय लेख ...मजा आ गया पढ़कर
स्वागत के साथ vijayanama.blogspot.com
मनोहरवा इतना दिन से कहाँ था. तनी शोर्ट में मनोहर गाथा हो गयी थोडा और बताना था. चलिए आने वाले दिनों में देखते हैं.
ReplyDeleteआपको मनोहरी समाजवाद से परिचय कराने के लिए प्रणाम.
क्या कुछ के पिताओं ने भी उनको समाजवाद स्थापित करने की कसम धराई है, अन्य ब्लॉगों की बुराई करते समय तो यही लगता है।
ReplyDeleteसमाजवाद ब्लॉगिंग से आने लगेगा तो चीन में बनी बारूदी सुरंगे तो बेकार न हो जायेंगी - अरे हाँ, ई तो "मनोहर" समाजवाद है - ऊ वाला तो "प्राण-हर" समाजवाद होता है।
ReplyDeleteमनोहर भैय्या हमारी तरह ही भोले हैं हम भी समझे थे के ब्लॉग के माध्यम से क्रांति ला देंगे...लेकिन जब खोला तो मालूम हुआ के ब्लॉग खोलने से कुछ नहीं होता सिवाय टाइम पास होने के...जिसको वक्त काटने की समस्या हो वो ब्लॉग खोले ये निष्कर्ष निकाला है हमने और ये ही निष्कर्ष मनोहर भैय्या ब्लॉग खोलने के कुछ दिनों बाद निकालेंगे.आप देख लेना.
ReplyDeleteनीरज
मनोहर भैया से कहियेगा मासिक नहीं तो कम से कम हर तिमाही अपना अनुभव हमसे अवश्य बाँटें......
ReplyDeleteब्लॉग से आयेगा समाजवाद सही है लेकिन एक ठो एग्रीगेटर भी चाहिये होगा इसके लिये। देखिये सतीशजी लगे हैं इसे वापस बुलाने में।
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