घर पहुँचते ही उन्होंने फेसबुक स्टेटस में लिख मारा; "रीच्ड होम."
दस मिनट के भीतर ही सात आ कर लाइक कर गए. देखकर लगा जैसे कहना चाहते हों कि; "तुम्हारे घर पहुँचने पर तुम्हें ख़ुशी हो या नहीं, हमें तो इतनी ख़ुशी है कि मन में समा नहीं रही. क्या कल्लोगे?
एक और मित्र ने लिखा; "आज दाँत की डॉक्टर ने बहुत डाटा."
आधे घंटे के अन्दर सात-आठ आकर उसे लाइक कर गए. देखकर लगा जैसे महीनों से इंतज़ार कर रहे थे कि इसे दांत की डॉक्टर डाटे तो मुझे खुश होने का मौका मिले.
मार्क जुकरबर्ग से अगर अमिताभ बच्चन भी पूछें कि; "और ये रहा तेरहवां सवाल. आपने क्या सोचकर फेसबुक का निर्माण किया ? सही जवाब आपको पूरे एक करोड़ दिला सकता है " तो भी वे निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकेंगे.
नहीं बता पायेंगे कि फेसबुक बनाते समय उन्होंने क्या सोचा होगा? यह बताने में उन्हें उतनी ही तकलीफ होगी जितनी प्रणब मुखर्जी को मंहगाई रोकने में हो रही है. फेसबुक पर इतना कुछ देखने के बाद जब हम आसानी से नहीं कह सकते कि यह क्यों बनाया गया तो मार्क जुकरबर्ग की क्या औकात? उन्होंने तो केवल इसे बनाया है. हम तो इस्तेमाल कर रहे हैं.
मैं अकेला नहीं हूँ. दुनियाँ भर के बहुत से लोगों का घर-दुआर अब फेसबुक पर ही है. अब हमारी सारी कलाओं ने यहीं डेरा जमा लिया है. इतना समय बिताने लगे हैं कि लोगों के ऊपर परफार्म करने का प्रेशर बढ़ गया है. एक स्टेटस मेसेज अगर हिट हो जाता है तो यह चिंता सताने लगती है कि कल क्या मेसेज लिखा जाय कि वह भी हिट हो जाए? मुझे पूरा विश्वास है इस चिंता में लोग़ रात में सोते-सोते अचानक उठकर बैठ जाते होंगे. वह दिन दूर नहीं जब हमलोगों का यह टेंशन समाजशास्त्रियों को एक नए सिंड्रोम को ईजाद करने का चांस देगा.
वैसे कुछ लोगों को इस मामले में सुविधा भी है. जैसे अगर कोई ट्विटर और फेसबुक दोनों जगह है तो वह अपनी हिट ट्वीट को दूसरे दिन री-साइकिल करके फेसबुक के स्टेटस में कन्वर्ट कर सकता है. ट्वीट की यही खासियत है कि वह री-साइकिल हो जाती है. जरा भी बुरा नहीं मानती. वह पोलिथीन की तरह नहीं है. वैसे भी अगर आप ऐसा नहीं करते तो कोई गारंटी नहीं कि आपकी ट्वीट वैसे ही पड़ी रहेगी. कोई दूसरा उसे री-साइकिल करके अपना फेसबुक स्टेटस बना सकता है.
इतने केस सामने आ चुके हैं कि अब तक केस-स्टडी की एक पूरी किताब तैयार हो सकती है.
मुझे अभी तक समझ में नहीं आया कि हमारे प्रोस्पेक्टिव एम्प्लोयेर्स रिक्र्यूटमेंट के विज्ञापन में यह क्यों नहीं लिखते कि; "कैंडिडेट्स विद मोर दैन वन थाउजेंड फालोवर्स ऑन ट्विटर विल बी प्रेफर्ड." या फिर "कैंडिडेट्स विद मोर देन थ्री हंड्रेड फिफ्टी फ्रेंड्स ऑन फेसबुक...."
वैसे यह लिखते समय मुझे विश्वास भी है कि एक दिन ऐसा अवश्य होगा.
वह दिन भी दूर नहीं जब शादी-ब्याह के लिए माँ-बाप अपने होने वाले संबंधी से मिलेंगे तो यह कहते हुए बरामद होंगे; "भाई साहब बुरा मत मानियेगा लेकिन इतना तो पूछना ही पड़ता है कि आपकी बेटी के ट्विटर पर फालोवर्स कितने हैं? कितने? इक्कीस सौ आठ? राजेश के तो सात सौ पैसठ ही हैं. इस मामले में आपकी बेटी मेरे बेटे से आगे है. अब क्या कहें भाई साहब, मेरा बेटा वैसे तो ट्विटर पर तीन सालों से है लेकिन फालोवर्स नहीं बढ़ रहे."
लड़की के पिताजी कहेंगे; "देखिये मेरी बेटी इस मामले में बहुत कुशल है. उसके फालोवर्स बढ़ते ही जा रहे हैं. अभी तो उसे केवल आठ महीने ही हुए ट्विटर पर लेकिन आज भगवान के आशीर्वाद से दो हज़ार से ज्यादा फालोवर्स हो गए हैं."
अब लड़की के पिताजी को क्या पता कि केवल ब्लॉगर पर ही नहीं, ट्विटर पर भी बहुत से महापुरुष ऐसे हैं जिनका इस दर्शन में विश्वास है कि; "दिल का हाल सुने दिलवाली."
अद्भुत जगह है यह ट्विटर भी. पूरा जीवन ही हंड्रेड फोर्टी करेक्टर्स में समेट दिया है इसने. कुछ भी कहो, एक सौ चालीस से ज्यादा अक्षर नहीं मिलेंगे. क्या कल्लोगे?
एवन विलियम्स ने तो ट्विटर बनाया लेकिन जिसने ट्विटर का आविष्कार किया यानि श्री राकेश झुनझुनवाला को भी नहीं पता होगा कि उन्होंने ऐसा क्या सोचकर किया? मुझे तो लगता है कि उन्होंने ट्विटर का अविष्कार रविन्द्र जडेजा को प्रेज करने के लिए किया होगा. हाँ उन्हें यह नहीं पता होगा कि लोग़ एक दिन ट्विटर को न जाने और कितने तरह से इस्तेमाल करेंगे.
कुछ लोग़ ट्विटर का असली इस्तेमाल इस बात में समझते हैं कि उसपर दोस्ती करने में सुभीता रहता है. जिस दिन ट्विटर पर आये, किसी लड़की के नाम ट्वीट कूरियर कर दिया;"कैन वी बी फ्रेंड्स."
लड़की को पता नहीं कैसे पहले से ही पता है कि ये बन्दा कल शाम आठ चालीस की लोकल पकड़कर ऑरकुट से ट्विटर पर आया है. उसने वहीँ लताड़ दिया; "डोंट बिहैव लाइक ओर्कुटिया. गिव अप दिस और्कुटिस हैबिट ऑर गेट लॉस्ट"
भाई साहब को लगता होगा कि फालतू में ट्वीट किया.
ट्विटर पर जो जमे हुए हैं उन्होंने अपनी-अपनी तरह से अपने मोक्ष का अलग-अलग रास्ता खोज लिया है. कुछ लोगों ने अंग्रेजी भाषा के फोर-लेटर्स वर्ड्स का बिकट इस्तेमाल करके मोक्ष प्राप्ति का रास्ता पकड़ लिया है. बड़ी मेहनत करके ईमेज बनाई है. उनकी ट्वीट पढ़कर लगता है जैसे इन्होने ऐसे शब्द नहीं लिखे तो दुनियाँ भर के ट्वीटबाज उन्हें कोर्ट में घसीट ले जायेंगे. जैसे उनके फालोवर्स से उनका करार हुआ है कि हर ट्वीट में कम से कम एक अंग्रेजी गाली चाहिए ही चाहिए. अगर नहीं रही तो हम आपको फालो करना छोड़ देंगे.
कुछ ट्वीटबाज ऐसे हैं जिनका ट्वीट-दर्शन अमेरिका से प्रभावित हैं. जैसे युद्ध में अमेरिका कारपेट बांबिंग करता है वैसे ही ये ट्वीटबाज कारपेट ट्वीटिंग करते हैं. लॉग-इन करते ही शुरू हो गए. इनके की-बोर्ड से एक क्षण अगर अफगानिस्तान में हो रहे वार के सम्बन्ध में जनरल मैक्रिस्टल के बयान वाला लिंक निकलेगा तो दूसरे ही क्षण चिली की इकॉनोमी के सॉफ्ट-लैंडिंग के चांसेज की समाचार वाले लिंक के साथ एक ट्वीट प्रकट हो जायेगी. तीसरे क्षण अजमेर शरीफ ब्लास्ट में इन्द्रेश कुमार के फंसने की बात की लिंक लिए हुए ट्वीट होगी तो चौथे क्षण २०११ में सोने के भाव के प्रोजेक्शन्स वाले समाचार की लिंक के साथ एक ट्वीट अवतरित होगी.
इन्हें फॉलो करने वाले की त्रासदी यह कि इनकी ट्वीट्स देखकर वह डिप्रेशन में चला जाए. उसे समझ में नहीं आता कि कैसा पढ़ाकू ट्वीटबाज है ये? तीस सेकंड्स में एक आर्टिकिल पढ़कर उसे ट्वीट भी कर दे रहा है. यह सोचते हुए कि; "भक्तजनों, हमने अपना ज्ञान अपडेट कर लिया है लो अब तुम न सिर्फ अपना ज्ञान अपडेट करो बल्कि इस चिंता में मरना शुरू कर दो कि मैं कितना ज्ञानी हूँ."
ये ट्वीटबाज इतने बिकट होते हैं कि अगर आप रात के ढाई बजे भी ट्विटर पर जाएँ तो आपका स्वागत इन्ही की ट्वीट से होगा और आपको यह पढ़ने को मिलेगा इथियोपिया में गेंहू का पर-कैपिटा कन्जम्पशन पिछले सात महीने में ढाई परसेंट बढ़ गया है. ऐसे ट्वीटबाजों की ट्वीट पढ़कर लगता है जैसे इन्हें सुबह-शाम मलावी की अर्थव्यवस्था में बढ़ रहा इन्फ्लेशन सता रहा होता है.
इन ट्वीटबाजों के फालोवर्स यह सोचते हुए हलकान हुए जाते हैं कि बन्दे का इंटरेस्ट किस किस फील्ड में है? एनीथिंग अंडर द सन? ये ट्वीटबाज युद्ध, शांति, इकॉनोमी, जर्नलिज्म, शेयर मार्केट्स, पॉलीटिक्स, पकिस्तान, अफगानिस्तान, चिली, ब्राज़ील, अफ्रीकी अर्थव्यवस्था, फ़ूड इन्फ्लेशन, फ़ूड प्रॉब्लम, फिल्म्स, साइंस, कामर्स, आर्ट्स, शेरी रहमान, रहमान मालिक, डी आर डी ओ, इसरो से लेकर खुसरो तक पर बात कर सकता है. ट्वीट कर सकता है. बहस कर सकता है. ऐसे ट्वीटबाजों के दो-तिहाई फालोवर्स इनकी कारपेट ट्वीटिंग देखकर हीन भावना से ग्रस्त रहते होंगे.
उधर हमारे सेलेब्रिटी फ़िल्मी हीरो ट्वीटबाजी पर उतर आयें तो क्या कहने. सिंगापुर पहुंचे नहीं एक ट्वीट खिसका दिया; "इन सिंगापुर फोर ढेमका अवार्ड्स. नाईस वेदर."
इनके भक्तों को इनकी ट्वीट के दर्शन हुए नहीं कि उन्होंने री-ट्वीट करना शुरू किया. देखकर लगता है कि सिंगापुर के वेदर डिपार्टमेंट को वेदर के बारे में स्टडी करके सूचना देने की ज़रुरत नहीं. वो हमारे हलकान खान की ट्वीट पढ़ डाले और वेदर के बारे में बोल डाले.
उधर हमारे पत्रकार......
खैर, जो भी हो, प्लेटफार्म्स हैं मस्त. अभी हाल ही में एक प्रसिद्द ट्वीटबाज की ट्वीट पढ़ने को मिली. लिखा था; "ऐज आई हैव सेड इट अर्लियर टू, ट्विटर इज अ ग्रेट प्लेस तो इंस्पायर एंड कन्स्पायर..."
और मुझे उनकी ये बात पसंद आई.
ट्विटर पर लिखी गई एक और पोस्ट जो मैंने एक वर्ष पहले लिखी थी...नन्हूमल बुद्धिराज साहू
नोट: इस पोस्ट में लिखी गई बातों को पढ़कर इस निष्कर्ष पर न पहुँचा जाय कि मैं फेसबुक और ट्विटर पर मेरे मित्रों से कुछ अलग हूँ. मैं भी वही सबकुछ करता हूँ जो मेरे मित्र करते हैं. मैंने अपने दो मित्रों के फेसबुक स्टेटस के बारे में लिखा है. आशा है वे बुरा नहीं मानेंगे.
"मारे प्रोस्पेक्टिव एम्प्लोयेर्स रिक्र्यूटमेंट के विज्ञापन में यह क्यों नहीं लिखते कि; "कैंडिडेट्स विद मोर दैन वन थाउजेंड फालोवर्स ऑन ट्विटर विल बी प्रेफर्ड." या फिर "कैंडिडेट्स विद मोर देन थ्री हंड्रेड फिफ्टी फ्रेंड्स ऑन फेसबुक...."
ReplyDeleteवेस्टर्न मैंने सुना हैकुछ इसी तरह की प्रक्रिया already शुरु हो चुकी है और इसके परिणाम कुछ अच्छे आये तो किसीको अपनी नौकरी से हाथ धोनी पड़ी ! वैसे मुझे नींद से जगाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद . :)
बहुत ज्ञानवर्द्धक पोस्ट। हम टिवटयाते नहीं। फेसबुक पर भी केवल समर्थनों को कनफर्म ही करते हैं, बस।
ReplyDelete` कल क्या मेसेज लिखा जाय कि वह भी हिट हो जाए?
ReplyDeleteइसके लिए बस.... पत्नी से पिट जाए :)
"लाइक दिस आइटम" का बटन कहां है? हम तो जो कुछ करते हैं, लाइकै करते हैं! :)
ReplyDeleteआपने एक बहुत ही कचोटती समस्या पर ये लेख लिखा है ... फेसबुक तेज़ी से बढ़ती हुई एक महामारी है जो फायदा कुछ नहीं करती है ... कुछ खास नुकसान भी नहीं करती मगर मन झल्ला देती है ...
ReplyDeleteलेकिन मेरा ख्याल है कि यह जायदा दिनो तक नहीं चलने वाला ... कुछ दिन मे लोग ऊब जाएंगे ... मन कि उत्सुकता बने रहने के लिए नयापन होना चाहिए ... फेसबुक मे नयेपन का बहुत ज़्यादा scope नहीं है
मेरे एक शुभचिंतक जब मुझे समझा समझा कर थक गए कि मुझे फेसबुक एकाउंट खोल लेना चाहिए और मैं फिर भी इसके लिए सहमत न हुई ,तो उन्होंने ब्रह्मास्त्र मारा...
ReplyDeleteआप चाहती हैं न कि आपका व्यापार बढे ??
मैंने कहा ....बिलकुल. बेशक ..
तो मान लीजिये जबतक आपका फेसबुक प्रोफाइल और फोलोअर लिस्ट दमदार नहीं होगा, कोई आपको विश्वास के काबिल ही नहीं मानेगा...आपका परिचय लोग आपसे नहीं आपके फेसबुक से लेंना चाहेंगे...और दमदार क्या जब आपका कोई एकाउंट ही नहीं होगा,तो मतलब आप एग्झिस्ट ही नहीं करती इस कोर्पोरेट वर्ल्ड में....
चार महीने पहले यह विमर्श मिला था और तब जो चिंतन मोड में घुसी ,सो अभी तक बाहर नहीं आ पाई हूँ...
कि... क्या सचमुच ???
कभी कभी ब्लॉग्गिंग भी तो Social networking लगती है
ReplyDeleteहम फेसबुक और ट्वीट का आनन्द उठाने में असमर्थ हैं, बाहर जो आ गये।
ReplyDeleteमुला जो बात हम आपको बताना चाहते हैं कि मार्क जुकरबर्ग ने लड़कियों के सुन्दर चेहरों के लावण्य को मापने के लिए फेसबुक बनाया था ..फिर तो लोग आते गए और कारवाँ बढ़ता गया है ..हम भी हैं फेसबुक पर और कई बिना फेस वाले भी और फेसियल वाले भी !
ReplyDeleteबुरा कहीं वो ना मान जाएँ जिनके स्टेटस के बारे में आपने नहीं लिखा :) केवल दो के ही बारे में क्यों लिखा ? हमारे बारे में क्यों नहीं.
ReplyDeleteअब मैं तो सफाई देना चाहता था कुछ बातों पर लेकिन नहीं दे रहा डर है कि धर लिया जाऊँगा कि ये भी वैसा ही है. जैसे क्लास में सो रहा था और प्रोफ़ेसर ने किसी और को बोला क्यों सो रहे हो और मैं खड़ा हो गया.
वैसे सही सलामत घर लौटना भी किसी बड़े इवेन्ट से कम नहीं.
ReplyDeleteऊंची बात कही आपने इस पोस्ट में।
ReplyDeleteमैं तो कल्पना कर रहा हूं जब आबादकारी बाजार में सब्जियों के दाम के मोलभाव ट्विटर पर होंगे। दुकानदार फ़ेसबुक पर दाम का स्टेटस लगा देगा- आलू पांच रुपये किलो। इसके बाद ट्विटर पर मोलतोल शुरू होगा।
चार रुपये में हैं सब जगह!
साढ़े चार में ले लीजिये लेना हो तो।
अरे कैसे ले लें चार में दो।
एक दाम सवा चार!
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फ़िर न जाने क्या हो? क्या पता नेटवर्क व्यस्त हो जाये। सब्जी के दुकान के सामने खड़ा ग्राहक मुंह लटकाये घर की तरफ़ लौटने का मन बना ले तब तक फ़िर नेटवर्क आ जाये और भाव टूटकर सहमति स्तर पर आ जायें और ग्राहक घर लौटकर फ़ेसबुक पर लिखे- मैनेज्ड टु बारगेन सक्सेसफ़ुली एन्ड बाट हाफ़ केजी आलू एट द रेट रुपीस फ़ोर! :)
आपके विचारों से असहमत हूँ, फैसबुक के चलते मेरे सामाजिक सम्बन्ध सुन्दर हुए है, अब मैं पत्नि के "टच" में रहता हूँ और वो भी मेरे "स्टेटस" को लाइक करती रहती है. क्या समझे बाबू?
ReplyDelete:)
हा हा हा मजाक मजाक मे कितना कुछ बता गये। कम ही जाया जाता है फेस बुक पर लेकिन लगता है अब अपने फालोवर बनाने पडेंग कहीँ बेटी की सास ये न कहे कि बहु मेरे फालोवर तो तुम्हारी माँ से अधिक हो गये तब बेटी बेचारी कितनी मायूस होगी। कल्पना से परे है। आप भी कुछ मदद कीजियेन न भाई कब काम आयेंगे? शुभकामनायें।
ReplyDeleteदेखिए, आप रीच कर गए, हम अभी ले खीझाइये रहे हैं, जाने कब ले रीचेंगे (कि रीचायेंगे?). दुनिया अइसे काहे हो गई है जैसे हो गई है? कौनो दूसरे तरीके से नै हो सकती थी? रजवा ने सरकारी खजाने को बाइस हजार करोड़ का झटका दिया है, सिब्बल बोल रहे हैं चिन्ता के बात नै है, सरकार इतना झटका हंसते हुए सम्भाल सकती है. हलांकि एगो बिनायक बहरी छुट्टल घूमता है तो बहुतै डिस्टर्ब होवे लगती है. अऊर आप हैं कि कवनो के कार के नीचे बम्म चिपकाये की बजाय घर का पाला छूके मुदित हो रहे हैं? एशियाटिक पब्लिक घबराया भाग-भाग के सरक पे आ रहा है, आप सरक-सरक के घर रीच कै रहे हैं, क्यों?
ReplyDeleteहम अभी तक एक ठो ट्वीट नहीं किये यहाँ तक के ट्वीटर पर एकाउंट भी नहीं है...मारे शर्म के का करें? समझ नहीं पा रहे...अब समझे लोग हमारी पीठ पीछे काहे हँसते हैं...हम जैसे आउट डेटेड लोग अब हंसने लायक चीज ही रह गए हैं...हम इसी में खुश हैं...आज के गलाकाट प्रतियोगिता वाले समय में कोई हँसता तो है...चाहे हमें देख कर ही सही...ऐसे लोगों की हंसी के खातिर हम ट्वीटर पर नहीं जायेंगे ये सोच लिए हैं...आप कहेंगे तब भी नहीं...सच्ची...हम अपने ट्वीटर एकाउंट की कुर्बानी देने को तैयार हैं...कभी मानव इतिहास इस कुर्बानी के लिए हमें पूजेगा...(सोचने में क्या हर्ज़ है?)
ReplyDeleteनीरज
एक महोदया अपनी फेसबुकी मंडली में हैं और उनके एक स्टेटस "बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधे?" को देखकर मैं लज्जा के मारे अपने पैजामे में ही धंस गया!
ReplyDeleteबेबात जैसी बात पर 63 लाइक और 127 कमेंट्स देखकर मैंने भी सोचा है के मैं भी इसी तरह की उलटबासियों वाले प्रतीकात्मक एवं सरखुजाधात्मक स्टेटस बनाया करूंगा.
हमसे न झिला\झिली फ़ेसबुक, लौट के बुद्धू घर को आये;))
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