Saturday, October 1, 2011

अमन की बात करे जब, करे तकरार के साथ....

कट्टा कानपुरी की तथाकथित ग़ज़ल बांचिये. पूरे डेढ़ सौ ग्राम शुद्ध तुकबंदी है.



अमन की बात करे जब, करे तकरार के साथ,
मिला करे है गले भी, मगर तलवार के साथ.

बताये मार्क्स, माओ, लेनिन को अपना रहबर
दौड़ता रहता है वो भी, इसी बाज़ार के साथ.

वक़्त के साथ पैमाना भी खाली,महफ़िल भी
लिपटकर रोयेगा फिर वो किसी दीवार के साथ

मिटाकर चंद गरीबों को हुकूमत समझे
मुल्क अब दौड़ेगा तेजी से इस संसार के साथ

न समझा है, न समझेगा वो खामोशी की ताक़त
पड़ोसी फिर मिलेगा झूठी इक ललकार के साथ

हमें उम्मीद थी जिससे कि, उठाएगा सवाल
दिखाई रोज देता है वही सरकार के साथ

समझते हैं सभी 'कट्टा' को सितमगर लेकिन
खड़ा मिलेगा हमेशा किसी हकदार के साथ

7 comments:

  1. "खड़ा मिलेगा हमेशा किसी हकदार के साथ"
    कट्टा कानपूरी में पूरी आस्था व्यक्त करते है.
    कालजयी गजल हो गई. कैलाश खेर के शब्दों में स्वयं ईश्वर(!!) ने शब्दों को उतारा है, जिसे हम गजल कह रहे है. पढ़ते ही समाधी सी लग गई...

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  2. अमन के लिये भी तो लड़ाई लड़नी पड़ेगी।

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  3. अमन की बात करे जब, करे तकरार के साथ,
    मिला करे है गले भी, मगर तलवार के साथ.

    भाई वाह...छा गए कट्टा साहब...क्या शायरी है आपकी...सुभान अल्लाह...कहाँ छुपे बैठे थे अब तक हुज़ूर...आज के हालात की क्या तस्वीर उतारी है आपने...भाई मान गए...भाई के नाम पे याद आया आपके एक भाई भी तो हैं हट्टा कानपुरी वो कहाँ हैं आजकल...याद है जब हम आप दोनों को हट्टा -कट्टा कहा करते थे...सुना है आज कल वो भी शायरी करने लगे हैं...शिव से कहिये उनके अशआर की भी कभी बानगी पेश करें...

    तो इस शुद्ध तुकबंदी के लिए दिली दाद तो बनती है...क़ुबूल कर लें...करलें ना...प्लीज़...क्या कहा एक शायर दूसरे शायर से दाद नहीं लेता ? ठीक वैसे ही जैसे "नाइ से न नाइ लेत धोबी से ना धोबी लेत..." उसी तरह शायर से ना शायर लेत...Chhodiye...Chhodiye...एक शायर ही दूसरे शायर को दाद देता है कट्टा जी गैर शायराना लोग दाद देना क्या जाने...?? रख भी लो...हम किसी से कहेंगे नहीं...धन्यवाद. किसी दिन आप भी इसी तरह हमारी तुकबंदी पर ...समझ गए ना...हां.

    नीरज

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  4. संजय बेंगाणी से पूरा पचहत्तर ग्राम सहमत! :)

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  5. न समझा है न समझेगा कट्टा मेरी बात
    ला और भी झाडू कट्टा लाकर थमा मेरे हाथ :)

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  6. gazal nikle hain jab se 'kanpuri-katta'......

    irshad karne lage hain 'akhare-ka-pattha'.....


    pranam.

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  7. गज़ल अच्छी है मगर कट्टा को सब सितमगार क्यों समझते हैं? :-\

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय