कट्टा कानपुरी की ताज़ी ग़ज़ल पढी जाय.
अगर आप को लगे कि इस मीटर की ग़ज़ल आपने पहले कहीं पढ़ी है तो यह समझें कि वो महज एक संयोग है और संयोग से बढ़कर और कुछ नहीं. कट्टा कानपुरी केवल ओरिजिनल गज़लें लिखते हैं. वैसे कानपुर से लखनऊ ज्यादा दूर नहीं है:-)
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जो उसका है वो तेरा भी अफसाना हुआ तो,
कल को तेरा भी घर जेलखाना हुआ तो?
तू आज तो बचने की जुगत खूब करो हो,
मज़मून नोट वाला कातिलाना हुआ तो?
तुझको भी ठेल देगा वो इक सेल देखकर,
पकड़ेगा जो तुझे वो दीवाना हुआ तो?
जेलों की जियारत का सफ़र कल को करोगे,
जेलों के रास्ते में गर मयखाना हुआ तो?
तेरे तो आस-पास वैसे हैं सभी हलकट,
उनमें भी अगर कोई शरीफाना हुआ तो?
देगी तेरा वो साथ कहे दोस्तों की फौज
लेकिन कोई गर उनमें भी बेगाना हुआ तो?
सालों से खाते आया है तू मालपुआ-खीर
खाने को मिले कल जो रामदाना हुआ तो?
'कट्टा' को आज समझे है तू दुश्मन-ए-जानी,
लेकिन उसी से कल को याराना हुआ तो?
यह तो कट्टा चल गया।
ReplyDeleteखूब मज़े होंगे जेल खाने में कट्टा कानपुरी
ReplyDeleteकानी की बगल में अपना की कमरा हुआ तो :)
खूब गुज़रेगी जेलखाने में कट्टा कानपुरी
ReplyDeleteकानी की बगल में अपना कमरा हुआ तो:)
कट्टा कानपुरी को फर्शी सलाम...शायरे आजाम कट्टा साहब की ये ग़ज़ल बिलकुल ओरिजिनल है ये दीगर बात है के उस्ताद शायर बेकल उत्साही जी ने इसी ज़मीन पर ग़ज़ल लिखी है लेकिन मुझे यकीन है के उन्होंने वो ग़ज़ल जरूर कट्टा साहब की ग़ज़ल पढने के बाद ही कही होगी...कट्टा साहब भविष्य दृष्टा रहे होंगे,तभी तो ये ग़ज़ल उन्होंने बेकल साहब की ग़ज़ल से बरसों पहले लिख डाली...आज के हालात की क्या खूब तर्जुमानी की है उन्होंने अपनी इस ग़ज़ल में...एक एक शेर दहाड़ता हुआ है...इसे कहते हैं शायरी...हम जैसे तो उनके सामने घसियारे हैं...उनके किसी एक शेर की तारीफ़ करना बाकी शेरों के साथ नाइंसाफी होगी...वैसे भी हर दहाड़ते हुए शेर की तारीफ़ न करना अपनी मौत को दावत देने से कम नहीं होता है... उन तक मेरी दाद जरूर पहुंचा देवें वर्ना मुझे ऐसी खाज़ और खुजली हो जाएगी...जिसका इलाज़ जर्मस कटर के पास भी नहीं है...
ReplyDeleteनीरज
भड़ाssssम!!!
ReplyDeleteकट्टा कभी फ़ुस्स नहीं होते. :o)
shandar sachmuch :-)
ReplyDeleteचकाचक है ’कट्टा कानपुरी’ का कलाम! शानदार गजल को देखकर नये शाइरों को गजल लिखने का सलीका हासिल होगा।
ReplyDeleteऔर जहां तक मीटर का ’स्वाल’ है तो कहा जाता है कि जब बात किलोमीटर में हो रही हो तो एकाध मीटर इधर-उधर हो जाने से कौनौ फ़रक नहीं पड़ता जी। :)
ReplyDeleteकट्टा कानपुरी की तारीफ अनूप शुक्ल भी कर रहे हैं! खुलेआम...!! अमा ई कट्टा कानपुरी कौनो नवा आई गवा है का ?
ReplyDeleteतेरे तो आस-पास वैसे हैं सभी हलकट,
ReplyDeleteउनमें भी अगर कोई शरीफाना हुआ तो?
वाह...वाह...वाह....
एक से बढ़कर एक, क्या शेर काढें हैं कट्टा जी ने....
तालियाँ....!!!!!
कट्टा-कानपुरी काफी खतरनाक लगे मगर बात साफ़ करते हैं.
ReplyDeleteहमें यकीन है अभी और बहुत कुछ कहेंगे. हम सुनेंगे और वाह वाह भी कहेंगे.
ये तो लाजमी है.
Wonderful!! जब सडकों पे कातिल घुमते हैं तो शरीफ लोग अपने अपने घरों में कैदी बन कर जीते हैं.
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