गाने के रियलिटी-शो में दस साल के बच्चे ने हारमोनियम बजाते हुए एक ग़ज़ल इस तरह से गाई जैसे बड़े-बड़े उस्ताद गाते हैं. उसने मेंहदी हसन स्टाइल में ग़ज़ल के शेरों को सुर और मुर्कियों के बल पर पहले तो कंट्रोल में लिया फिर उन्हें पटका. उसके बाद उनका कॉलर पकड़ कर उनके ऊपर चढ़ बैठा. काफी देर तक वह उन्हें तरह-तरह से रगेदता रहा. कुछ मिनटों तक ग़ज़ल पर आवाज़ की ठनक, सरगम की सनक और राग का प्रहार होता रहा. जैसे-जैसे उसपर बच्चे का आक्रमण बढ़ता जा रहा था, ग़ज़ल के शेर कमज़ोर पड़ते जा रहे थे. दर्शक ताली बाजा रहे थे और जज-गुरु लोग़ बच्चे की आवाज़ के अनुसार अपना हाथ ऐसे ऊपर-नीचे कर रहे थे जैसे कोई बच्चा हवा में हाथों की गाड़ी बनाकर उसे उड़ाता है.
एक समय ऐसा आया जब लगा कि बेचारे शेर अब पूरी तरह से पस्त हो चुके हैं. उनमें अब कोई जान नहीं रही कि गायक बच्चा उन्हें और रगेदे. समय सीमा, समय का अभाव या फिर शायद ग़ज़ल के माफीनामे की वजह से बच्चे ने प्लेटफॉर्म पर धीरे-धीरे रुकने वाली रेलगाड़ी स्टाइल में अपना गाना रोका. स्टैंडिंग ओवेशन की बहार आ गई. ऐंकर ने बच्चे को दोनों हाथों से उठा लिया. महागुरु आश्चर्यचकित होने की अपनी चिर-परिचित मुख मुद्रा लुटाने लगीं. कुल मिलाकर विकट रियलटीय टेलीविजन के दर्शन होने लगे.
कुछ देर तक बच्चे को अपनी गोद में रखने के बाद ऐंकर ने उसे नीचे उतारा और अपने ऐन्करीय धर्म का पालन करते हुए शुरू हो गया; "गुरु कैलाश? क्या कहना चाहेंगे आज आप?"
गुरु कैलाश चूल्हे पर रखे पानी के पहले उबाल की तरह शुरू होना ही चाहते थे लेकिन शब्दों की शॉर्ट-सप्लाई के कारण अदबदा गए. कुछ क्षणों तक अ ब स करने के बाद और काफी मशक्कत और खोजबीन के बाद जब कुछ शब्द उनके मुँह लगे तो वे शुरू हो गए; "आज~~~ मैं मेरे दाता से कहना चाहूँगा कि ऐ मेरे दाता, ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे भगवान इन्हें ऐसे ही रखना. इनके ऊपर कृपा करना. मैं तो कहूँगा कि आज मेरे दाता ने इन्हें अपना आशीर्वाद दिया...ये भटकने न पाए... आज इनका यश, इनका ऐश्वर्य पूरी दुनियाँ देख रही है. बच्चे तो भगवान की मूरत होते हैं. 'प्रथ्वी' पर आज इनका जो नाम हो गया है.... आज पूरा ब्रह्माण्ड इन्हें दुआएं दे रहा है. तो ऐ मेरे दाता.......महागुरु, आज तो इसने बावला कर दिया."
जज-गुरु की गलती नहीं है. वे और क्या करेंगे जब ऐसे बिकट टैलेंटेड बच्चे प्रतियोगी बनकर स्टेज पर उतर जायेंगे और सुरों के चौके-छक्के जड़ने लगेंगे? टैलेंटेड, मेहनती और इतने परफेक्ट कि सुनकर मन में आता है जैसे इनका गला बाकायदा ऑर्डर देकर बनवाया गया है. पॉवर-पॉइंट प्रजेंटेशन के बाद. बिलकुल परफेक्ट. कहीं कोई दोष नहीं. हाँ, परफेक्ट होने के चक्कर में इन बच्चों ने अपना बचपना कहाँ और किसके पास गिरवी रख छोड़ा है वह शोध और जांच, दोनों का विषय है. अगर शोध या जांच के बाद यह पता चल भी जाए कि कहाँ और किसके पास रखा गया है तो भी उस बचपने को वापस पाने का कोई अर्थ नहीं क्योंकि तबतक ये इतने उस्ताद हो चुके होते हैं कि इन्हें बचपने और मासूमियत के तीर-कमान की ज़रुरत ही नहीं रहती.
गुरु, महागुरु, गेस्ट गुरु, बैंड वाले, दर्शक, संगीत प्रेमी वगैरह इन बच्चों को देखकर दाँतों तले ऊँगली दबाते हैं. और फिर ऐसा क्यों न हो? दस साल के बच्चे के मुँह से राहत फ़तेह अली खान की आवाज़ इस तरह से निकलती है कि अगर वे सुन लें तो सोचने लग जायें कि; 'ये बच्चा मुझसे मेरी आवाज़ कब चुरा ले गया?' सुनने वालों को यह भी लग सकता है कि 'दो-तीन महीने के लिए ये बच्चा राहत बाबू का गला उधार मांग लाया है.'
न तो इन बच्चों की आवाज में कोई कमी है और न ही हुनर में. अगर किसी ऑड-डे पर ख़ुदा न खास्ता इनसे कोई गलती हो जाती है तो जज साहब उन्हें बताते हैं कि; "ये जो हरकत-उल-आवाज़ तुमने ऐसे ली थी, उसे गाने में रफ़ी साहब ने वैसे लिया है", या फिर; "तुमने गाने को चार से उठाया. अगर तीन से उठाया होता तो जो ऊंची आवाज़ में तुम्हारा सुर गया, वह नहीं जाता."
सब तरह के नुक्श निकाल कर भी जज-गुरु यह कहना नहीं भूलते कि; "फिर भी तुमने कमाल का गाया."
गेस्ट-गुरु के रूप में आया कोई संगीतकार बच्चे को बताना नहीं भूलता कि उसकी आवाज़ रेकॉर्डिंग स्टूडियो के लिए ही बनी है. साथ ही वादा भी कर डालता है कि दो साल बाद वह अपने सारे गाने उसी बच्चों से गवायेगा. पूरे सेट पर ख़ुशी का मौसम आ जाता है. कई-कई बार तो इतनी ख़ुशी आ जाती है कि डर लगता है कि सेट की दीवारें फट न पड़ें. जितना खुश वह बच्चा नहीं होता उससे ज्यादा उसके माँ-बाप खुश होते हैं. ठीक वैसे ही एलिमिनेशन पर बच्चा जितना दुखी नहीं रहता उससे ज्यादा उसके माँ-बाप दुखी होते हैं. उन्हें देखकर लगता है जैसे अब इनका जीवन व्यर्थ हो गया. इनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है और अब ये इससे कैसे उबरेंगे?
इन बच्चों में परफेक्शन, गुण, मेहनत, कला वगैरह वगैरह कूट-कूट कर भर गए है.
लेकिन जो चीज इन्हें छोड़कर चली गई है उसकी बात?
जब से हमने तय किया है कि हम अपने देश को इकॉनोमिक सुपर पॉवर और सामरिक दृष्टि से भी महाशक्ति बनायेंगे तबसे देश में रियलिटी शो की संख्या में दिन दूनी नहीं तो रात में चौगुनी वृद्धि तो ज़रूर हुई है. तरह-तरह के विषयों पर रियलिटी शो बनाये जा रहे हैं. यहाँ तक कि अच्छे-खासे घर-दुआर वाले लोग़ जंगलों में जाकर वास कर रहे हैं ताकि रियलिटी शो बन सके. कई लोग़ सांप-छछूंदर, केकड़े-अजगर के साथ खुद को कांच के डब्बे में कैद कर ले रहे हैं और उन जानवरों को सता रहे हैं ताकि जानवरों को तंग करने वाली उनकी हरकतों को कैमरे में कैद करके उसे रियलिटी शो में बदला जा सके.
कई बार मन में आता है कि अच्छा हुआ जो श्री राम ने त्रेता युग में जन्म लेकर खुद को उसी युग में सरयू नदी के हवाले कर दिया. सोचिये अगर आज श्री राम खुद को सरयू नदी के हवाले करते तो क्या होता? उनके जल समाधि को लाइव टेलीकास्ट करने के लिए चैनलों में होड़ लग जाती. ये चैनल वाले एक कांख में अपनी पूरी बेशर्मी दबाये और दूसरी में रूपये की थैली लिए उनके पास एक्सक्ल्यूसिव राइट्स के लिए पहुँच जाते. गारंटी तो नहीं डे सकता लेकिन फिर भी ऐसा ज़रूर लगता है कि अगर वे आज होते तो ये रियलिटी शो वाले उनके वनवास की खबर पर उनके पास भीड़ लगा लेते और उनके वनवास को रियलिटी शो में बदल देने के लिए उन्हें पक्का लालच देते. जनक भले ही विदेह होंगे लेकिन सीता स्वयंवर के अवसर पर कोई न कोई चैनल वाला स्वयंवर के लाइव टेलीकास्ट की एक्स्क्यूसिव राइट्स के लिए पैसे लेकर रोज उनके राजमहल के चक्कर लगाता.
आज इन शो बनाने वालों को परफेक्ट सिंगर और परफेक्ट डांसर वगैरह की तलाश है लेकिन इस परफेक्शन से ये दर्शकों को कितने वर्षों तक चमत्कृत या फिर बोर कर पायेंगे? मुझे तो पक्का विश्वास है कि एक समय ऐसा भी आएगा जब शो बनाने वाले ये लोग़ ऐसे बच्चों को ढूढेंगे जिनके पास मासूमियत होगी. जिनमें बचपना होगा. जिनमें परफेक्शन नहीं होगा. जो बच्चे 'कम्प्लीट' सिंगर या 'कम्प्लीट' डांसर नहीं होंगे. और फिर ये लोग़ उन बच्चों की मासूमियत, तुतलाहट वगैरह पर रियलिटी शो बनायेंगे.
और तब हमें जज-गुरु द्वारा सुनने को मिलेगा; "आज~~ मैं मेरे दाता से कहूँगा कि ऐ मेरे दाता, ऐ मेरे ईश्वर, ऐ मेरे मालिक, इनको हमेशा मासूम बनाये रखो....ये जो इनकी तुतलाहट है वो हमेशा ऐसे ही बनी रही. ऐ मेरे दाता इनकी नाक ऐसे ही बहती रहे जिससे ये बच्चे लगें....आज पूरी 'प्रथ्वी' में इनकी मासूमियत की चर्चा हो रही होगी........................."
समस्या एक ही है. आज रियलिटी शो है...कल भी रियलिटी शो ही रहेगा. बिक्री के लिए केवल कमोडिटी बदल जायेगी.
केवल एक विद्या या कला में पारंगत होने से जीवन में बहुत कुछ छूट जाता है। जब वहाँ कार्य नहीं मिलता तो नैराश्य का भाव जागृत होता है और इसके परिणाम कभी बहुत दुखद भी होते हैं। इसलिए हर चीज उम्र के साथ हो, सम्पूर्ण जीवन जीया जाए तो मानसिक विकास चौतरफा होता है। आपने सहजता से बहुत ही मौलिक बिन्दु उठाया है, बधाई।
ReplyDeleteबिग बॉस सीजन -5 के बारे में सोचकर अभी से हलकान हुए जा रहे हैं। कितनों की मासूमियत तार-तार होगी।
ReplyDeleteआपका लेखन भी उन बच्चों की तरह चमत्कृत करता है।
अद्भुत शिव भैया ... सत्य में, जिस सरलता से आपने इस गंभीर विषय को प्रस्तुत किया है वह प्रशंशनीय है| जब मैं देखता हूँ छोटे छोटे बच्चों को भागम भाग में लगे हुए तो बड़ी पीड़ा होती है, और इसके उत्तरदायी माता पिता ही हैं| वे अपने को दिलासा देने के लिए "आजकल ये सब ज़रुरी है" की फिलोसोफी पर चलते हुए बच्चों का बचपन छीन लेते है ... बहुत अच्छा लगा पढ़ के
ReplyDeleteशैलेश
अब पता चलता है भारत में कितनी भीषण प्रतिभाएं छिपी हुई थी और कितने भंयकर गुरूओ से भरा हुआ है भारत.
ReplyDeleteअति-उत्तम सर;
ReplyDeleteइन रिएलिटी कार्यक्रमों ने लोगो का रियल लाइफ छीन लिया है, मैं मेरे दाता से कहूँगा कि ऐ मेरे दाता हमें फिर से राम-राज्य में पहुंचा दे....
हमारे यहाँ रिअलिटी प्रोडक्ट (शो) की आजकल भरमार है सो चैनल वाले उससे अपनी जेब भर रहे है :), रही बात इन नन्हे वीरो की तो ,इनके लिए शब्द ही नहीं बयां करने के लिए इतने कम उम्र कितने अदभुत टलेंट सजोये हुए है . माता-पिता से यही आशा करते है की उनका ध्यान रखे.
ReplyDeleteबहुत गंभीर मुद्दा उठाया है ....
ReplyDeleteइतने छोटे उम्र में कला की प्रतिस्पर्धा मुझे तो लगता है बिलकुल ही नहीं होना चाहिए...शीर्ष पर स्थान तो केवल एक ही होता है किसी भी प्रतिस्पर्धा में, तो एक के अलावे बाकियों की मनः स्थिति किसी ने देखी है,मंच के पीछे जाकर...
क्या गज़ब की तृष्णा है,दौड़ है, अतृप्त भूख है..पैसा प्रसिद्धि की यह अंधी दौड़ कहाँ लिए जा रही है...कुछ नहीं दिखाई देता किसी को...
हर कुछ अच्छी दिखने या सुनने वाली वस्तु को जो गला फाड़ फाड़ कर प्रसारित किया जा रहा है कि आलौकिक अनुभूति होती जा रही है।
ReplyDeleteकमाल की पोस्ट है.
ReplyDeleteहमारे भूगोल के टीचर कहा करते थे कि झारखण्ड के एक सुदूर गाँव में जब पहले पहल गाडी आई थी तो हरे-भरे गाँव के लोगों को फूलों की खुशबू के बीच गाडी में जला पेट्रोल-डीजल का धुंआ बहुत अच्छा लगता था और वो पास जा-जाकर सूंघते... और अब तो...
मनुष्य तो बार्न टैलेंटड है फिर यह फिकर क्यूं?
ReplyDeleteबच्चा आदमी का बाप होता है. और बाप की कमाई पर सबका हक है, चैनल वालों का भी.
ReplyDeleteजो मारे सो मीर, जो बेचे सो वीर.
बचपने के ये उदग्र प्रॉडीगल कुछ ही सालों में चुक चुका जाते हैं। :(
ReplyDeleteअच्छा हुआ कि हम गुरुडम से बच गए वर्ना रियलटी की पलटी हो जाती:)
ReplyDeleteबहुत की सटीक व्यंग्य किया है, शिव-ज्ञान द्वय ने..रियलिटी शो आजकल बचपन चुरा कर उसकी जगह क्षणिक शोहरत बाँट रहे हैं - जो भले ही टीवी चेनल्स को मालामाल कर रहा हो, बच्चो के लिए बड़ा ही घाटे का सौदा है.
ReplyDeleteकाफी समय से शिव-ज्ञान का प्रशंसक रहा हूँ - परसाई जी के सही उत्तराधिकारी आप दोनों ही नज़र आते हैं मुझे. साधुवाद.
हाँ, परफेक्ट होने के चक्कर में इन बच्चों ने अपना बचपना कहाँ और किसके पास गिरवी रख छोड़ा है वह शोध और जांच, दोनों का विषय है. अगर शोध या जांच के बाद यह पता चल भी जाए कि कहाँ और किसके पास रखा गया है तो भी उस बचपने को वापस पाने का कोई अर्थ नहीं क्योंकि तबतक ये इतने उस्ताद हो चुके होते हैं कि इन्हें बचपने और मासूमियत के तीर-कमान की ज़रुरत ही नहीं रहती.
ReplyDeleteबहुत जोर लिखें हैं बंधू...रियलिटी शो की धज्जियाँ बिखेर के रख दी हैं आपने...भाई वाह...आपकी पैनी नज़र को सलाम...
मुझे अपना एक पुराना शेर याद आ गया:
मंजिल को पहले छूने की कोशिश में देखिये
बच्चों ने अपना बचपना कुर्बान कर दिया
नीरज
सत्यवचन!! For the same reasons I don't like watching circuses that have animal shows!
ReplyDeleteसुंदर बात! ये रियलिटी शो सही में बड़ा बवाल काटे हैं।
ReplyDeleteआपने करारा और मजबूत प्रहार किया है, हालाँकि अब कई महीनो से टेलीविजन देखना सम्पूर्ण बंद हो गया है ..इस तरह के अनगिनत कार्यक्रम देखे याद नहीं आ रहा है किंतने विजेता को गवाया गया हो ( बच्चो के आलावा भी ) | सख्त सेंसरशिप की जरुरत है |
ReplyDeleteबचपन अगर हम दे नहीं पा रहे है तो उसे छिनने का हमें कोई अधिकार नहीं है | यह सारे
कार्यक्रम मदारी की तरह और लोगो को शामिल करने का षड़यंत्र कर रहे है | माता पिता
को संज्ञान लेने की आवश्यकता है बचपन को गर्त में डालने के होड़ में जाने की कोई जरुरत
नहीं है |
सच कहा । छोटे छोटे बच्चों को अपने उम्र से आगे के गीत और विक्षिप्त हाव भावों वाले नृत्य (?) करते देख कर क्षोभ होता है और मां बाप की सोच पर आश्चर्य कि क्यूं ये इन कच्चे फलों को दबा दबा कर पक्व बनाने के लिये उद्युक्त हैं ? उनका बचपन गिरवी नही रखा बेच खा गये ये लोग ।
ReplyDeleteआदरणीय, आप वाकई महान हो इतना ज्वलंत विषय बिना किसी व्यावसायिकता के उठाने के लिए आपको कोटिश धन्यवाद.....
ReplyDeleteगज़ब गुरुदेव !
ReplyDeleteकमाल का व्यंग्य लेखन और एकाग्रता है आपकी !
आभार आनंद दिलाने के लिए !
गुरुदेव, सच कह रहे हैं - आपका यह लेख पढ़कर हमारी आँखें खुल गयी.
ReplyDeleteकुछ साल पहले जो एक बच्ची इसी तरह के रियलिटी शो के बाद डिप्रेशन में चली गयी थी (जिस पर आपने पहले भी लेख लिखा था). तबसे हमने ऐसे शो देखने बंद कर दिए थे. पर इस बार ऐसा लगा की बच्चों पर कोई प्रेशर नहीं है, और वे बढे खुश भी लगते थे, सो हम स-परिवार इस कार्यक्रम का मनोरंजन उठाते थे.
परन्तु यह लेख पढ़ कर समझ आ गया की बच्चों की तुतलाहट और मासूमियत ही उन्हें बच्चा बनाते हैं. वही इम्पेर्फेक्शन अनमोल है. परफेक्शन के लिए जीवन पढ़ा है. और भी बहुत कुछ. इनके लिए धन्यवाद करते हैं.
पी.एस. - कैलाश जी की दाता-पुकारों का अर्थ भी समझ आ गया :)