Monday, January 23, 2012

"रतीराम का पान" ज़रा लाइक कर दीजियेगा.

बहुत दिनों बाद कल रतिराम जी की दूकान पर जाना हुआ. बहुत दिनों बाद इसलिए क्योंकि करीब ढाई साल हो गए, हमने पान खाना छोड़ दिया है. जाने का प्रयोजन यह कि पान के शौक़ीन हमारे मित्र तारकेश्वर मिसिर 'ढेर' दिन बाद मिले. पता नहीं कब और क्यों शुरू हुआ लेकिन पिछले करीब पंद्रह सालों से तारकेश्वर हमें और हम उन्हें बाबा कहकर संबोधित करते रहे हैं. खैर, बाबा से मेल-मिलाप हुआ. दोनों ने मिलकर देश की हालत पर चिंता व्यक्त की. कई दिनों से हम अकेले ही चिंता व्यक्त कर रहे थे. तारकेश्वर मिले तो मन में आया कि ढेर दिन बाद मिले हैं आज तो देश की हालत और खराब होते ज़माने पर चिंता व्यक्त करके मज़ा ही आ जाएगा. दोस्तों के साथ मिलकर चिंता व्यक्त करने का मज़ा और ही है. और फिर अभी तो छब्बीस जनवरी का मौसम चल रहा है. अब देश के बारे में चिंता व्यक्त नहीं करेंगे तो इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा.

एक बार चिंता व्यक्त कर देते हैं तो करीब दस दिन तक लगता है कि देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभती जा रही है.

खैर, बात शुरू हुई; "क्या लगता है? यूपी में क्या होगा?" और ख़त्म हुई इस बात पर कि; "बताइए ई लोग़ हरी कुंज़रू को जयपुर फेस्टिवल से जाने के लिए बोल दिया?" और ये कि; "आमिर खान टीवी पर बताते नहीं थकते कि अतिथि देवो भव"

चिंता वगैरह व्यक्त करके बोर हो लिए तो तारकेश्वर बोले; "अच्छा बाबा, रतिराम जी का हाल कैसा है?"

मैंने कहा; "ठीक ही होंगे. बहुत दिन से उनके दूकान पर नहीं गए. जायें भी कैसे, अब तो पान खाना ही छोड़ दिए."

तारकेश्वर बोले; "चलिए आज हुयें चलते हैं. हुयें चाय-पान हो जाएगा और रतिराम से मुलकात भी हो जाएगा."

दोनों गए. देखा रतिराम जी हमेशा की तरह व्यस्त थे. देखकर बोले; "अरे, आज सूरज पच्छु से कैसे उग गया? दुन्नो मिसिर महराज एक्के साथ? का हाल है?"

मैंने कहा; "ऐसा मत कहिये. आपके दूकान पर इतना दिन बाद नहीं आये कि सूरज का उदाहरण दें. क्या हाल है? एतना कपड़ा काहे लादे हैं?"

वे बोले; "कहिये मत. आ ई कलकत्ता का मौसम भी आपके सेंसेक्स के माफिक हो गया है. पिछला पचीस दिन में चार पर गर्मी आयी और चार बार जाड़ा. आ कभी-कभी त ऊ हाल हो जाता है. ऊ का कहते हैं आपलोग?"

मैंने कहा; "क्या कहते हैं हमलोग?"

वे बोले; "अरे ओही भाई जो आपलोगों का बिजनेस में है न. अरे ओही पर तो सारा दिन जगत बोस ज्ञान देते हैं."

मैंने कहा; "जगत बोस, माने वो टीवी पर जो आते हैं? वो स्टॉक अनालिस्ट?"

रतिराम राम जी सिर खुजलाते हुए याद करने की कोशिश करते हुए बोले; "अरे भाई ओही जो ऊ टीविया पर बताता है. आ केतना बार त एहीं पान खाते-खाते बोला है. हाँ, ऊ कहता है न इंट्रा-डे फ्लक्चुएशन. माने एक दिन में बाज़ार बहुत भोलेटाइल रहता है त उप्पर-नीचे करता है न, ओइसे ही ई मौसम भी हो गया है."

मैंने कहा; "हाँ, सही कहा आपने. बिलकुल वोलेटाइल मौसम हो गया है. अच्छा चाय पिलाइए."

उन्होंने चाय दूकान पर बैठे 'कारीगर' से दो चाय बनाने के लिए कहा.

मैंने कहा; "और बताइए, धंधा कैसा चल रहा है?"

वे बोले; "आ हमें कौन सा अपना पान अमेरिका एस्पोर्ट करना है? हमरा ग्राहक सब त एही है. ओइसे भी देश का कंडीशन जेतना भोलेटाइल रहेगा हमरा धंधा ओतना बढ़ेगा. जानते ही हैं बिना चाय-पान का न त कौनो डिस्कशन ठीक से होता है आ न ही कौनो चिंता पूरा तरह से व्यक्त हो पाता है."

मैंने बात आगे बढ़ाते हुए पूछा; "और आपका बेटा कैसा है?"

मेरा सवाल सुनकर लगा जैसे उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगा. बोले; "जाने दीजिये. उसका बारे में नहीं पूछिए ओही अच्छा है."

मैंने कहा; "क्या हुआ? कुछ गड़बड़ कर दिया क्या?"

वे बोले; "गड़बड़? आ छोटा-मोटा गड़बड़? आप त जानते ही हैं कि पढ़ाई-लिखाई का बारह त पहिले ही बजा ही हुआ था. हम सोचे कि पढ़ेगा-लिखेगा नहीं त घर का बिजनेस में लग जाएगा लेकिन उसका बास्ते भी तैयार नहीं है."

मैंने कहा; "लेकिन वो तो दसवीं में तो पढ़ ही रहा है."

वे बोले; "अब मत बोलावाइये. पढ़ त का रहा है हमरा कलेजा पर मूंग दल रहा है."

मैंने कहा; "बताइए भी तो क्या हुआ?"

वे बोले; "ई मलंचा सनीमा के पास में में ऊ ए गो डांस इस्कूल खुला था न."

मैने कहा; "अच्छा, वो गणेश आचार्य का. वो मुंबई वाले?"

वे बोले; "अरे हा, ओही. छौड़ा दू साल उहाँ डांस सीखा. तीन-चार बार ट्राई किया रियल्टी शो में. कहीं नहीं हुआ. अब उसका उप्पर ऊ का कहते हैं रोडी बनने का भूत सवार हुआ है. अब लोफरवा सब के साथ मोटरसाइकिल दौडाने का प्रेक्टिस करता है. कहता है रोडी बनेगा. केतना समझाये कि बारह क्लास तक भी पढ़ लेगा त बिहारे में नीतीश बाबू का नया वाला जो प्लान है उसमें टीचरे बन जाएगा बाकी सुने तब न. आ कहता है कि बाबू, एक बार सलिक्शन हो गया त सीधा करोड़ों में खेलूंगा. अब इसको कौन समझाये कि ससुर तुम्हरे जईसा लाखों ट्राई मार रहा होगा. केतना रोडी बनेगा उसमें से? "

मैंने कहा; "एक ही दिन में सब नाम कमा लेना चाहता है जवान लोग़."

मेरी बात सुनकर हल्के से मुस्कुरा दिए. बोले; "आ देखिये ई जो इंस्टेंट फेम का चक्कर है ऊ खाली जवान सब के माथा में नहीं घुसा है. का जवान, का लड़िका और का बूढ़ा, सब का हाल एक्के है. रश्दी जी को ही ले लीजिये. मनई जयपुर आया नहीं बाकी इंस्टेंट फेम कईसे मिला, देखिये? जो ससुर नाम भी नहीं सुना था ऊ भी पेपर में उनका जीवनी बांच रहा है."

मैंने कहा; "हाँ, सही कह रहे हैं.

वे बोले; "अब आप ही बताइए कि प्रचार का अईसा सुबिधा कहाँ मिलेगा? जौन लेखक का किताब सब भूल गए थे, ओही लेखक का न सिर्फ ओही किताब लेकिन बाकी सब किताब का भी बिक्री बढ़ गया होगा. आ आज का पेपर में निकला है कि पिछला पाँच दिन से इन्टरनेट पर अभी खाली रश्दी ही छाये हुए हैं. पूरा दुनियाँ ओनही के बारे में बात कर रहा है. बाकी उसका भी गलती नहीं है. जब उसको फिरी में एतना प्रचार मिल रहा है त उ भी थोड़ा कुछ इधर-उधर बोल के मामला आगे बढ़ा दे रहा है."

मैंने कहा; "ऐसा ही तो हो रहा है."

मेरी बात सुनकर बोले; "बाकी एक बात बताइए. ई अईसा फेस्टिबल सब भी हमको त पता ही नहीं चलता कि काहे होता है? हम ई बात इसलिए कह रहे हैं कि बड़ी पोलिटिक्स होता है इसमें. देखे हैं न कलकत्ता बुक फेयर. हम त सालों से दूकान लगा रहे हैं. केतना बार देखे हैं कि आयोजक लोग़ सब बड़ी बदमाशी करता है. आ आपको ए गो सच्चा घटना बताते हैं. कविता पाठ होने वाला था. एक आयोजक आया और एक्के साथ आठ पान ले गया. आ बिसबास नहीं कीजियेगा कि ओही सब कबी लोगों को खिला दिया पनवा सब, जिसका कबिता नहीं सुनना चाहता था लोग़. आ उहाँ थूकने का जगह नहीं. कबी सब का मुँह बंद. ऊ लोग़ कबिता ही नहीं सुना पाया. अईसा पोलिटिक्स भी देखे हैं हम."

मैंने कहा; "देखिये पोलिटिक्स तो हर जगह होती है."

वे बोले; "ऊ तो मानते हैं बाकी साहित्य वाला सब का पोलिटिक्स बड़ा अजूबा होता है. एक से एक सीन दिखाई देता है. हम त अनुभव किये हैं. केतना बार देखे हैं कि कोई लेखक अपना ही उपन्यास का दू पेज पढ़ के बईठ गया आ पता नहीं कहाँ खो गया. देख के लगता है जईसे अपना ही किताब पढ़ के शाक लग गया है औ एही सोच के चिंता कर रहा है कि ई का लिख दिए हम. केतना को त देखकर लगता है जईसे ई नहीं आया होता त फेस्टीबले नहीं होता. कोई-कोई त कागज़ पर सवाल लिख के लाता है. ई अलग बात है कि उसका नंबर भी नहीं आता है कि लेखकवा से सवाल पूछ सके."

मैंने कहा; "भीड़ भी तो बहुत रहती है."

वे बोले; "बस एक्के बात समझ में नहीं आता. ई एतना भीड़ होता है अईसा जगह बाकी साहित्त कोई पढ़ता नहीं है. केतना पब्लिक सब त एही बास्ते जाता है कि उसका चेहरा टीवी में दिखाई देगा. आ ई जयपुर फेस्टीबल को ही ले लीजिये. केतना त दिल्ली से गया है खाली इस बास्ते कि उहाँ जाएगा त फेसबुक पर फोटो छाप सकेगा. इस्टेटस लिख सकेगा."

मैंने कहा; "सब के केस में ऐसा नहीं है. ज्यादातर साहित्य प्रेमी ही जाते हैं."

वे बोले; "आ आप ई कह रहे हैं? आप? का आप नहीं जानते कि का सही है? अरे केतना सब को खाली देखा है कि मिनट-मिनट पर गुलज़ार साहेब का फोटो सटाए जा रहा है फेसबुक पर ताकि उसको सब साहित्त प्रेमी समझें."

मैंने कहा; "आप को कैसे पता? क्या आप भी फेसबुक पर हैं?"

वे बोले; "काहे, हमको फेसबुक पर जाने का मनाही है का? हम त बहुत दिन से फेसबुक पर हैं. आ हमको मालूम है आप भी वहाँ हैं. केतना बार आपका इस्टेटस में चिरकुट शेर सब पढ़े हैं हम. ओही सब घटिया शेर जो आप टांकते हैं वहाँ. हम सब पढ़े हैं."

मैंने कहा; "तो आप फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजे काहे नहीं?"

वे बोले; "हम आपको इमबरास नहीं करना चाहते थे. हम सोचे कि हम आपको फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देंगे त आप शरमा जायेंगे. ई सोच के कि आपका चिरकुट स्टेटस सब हम भी पढ़ते हैं."

मैंने कहा;"नहीं ऐसी बात नहीं है. शरमाना ही होता तो लगाते क्यों?"

वे बोले; "बस एही इस्पिरिट रहना चाहिए. ई न रहेगा त इस्टेटस नहीं डाल सकेंगे. चलिए हम भेज देंगे फ्रेंड रिक्वेस्ट. बाकी हमरा ए गो पेज है, रतीराम का पान के नाम से. उसको जरा लाइक कर दीजियेगा."

मैंने कहा; "आज ही कर देंगे. और आप फ्रेंड रिक्वेस्ट फेजिये. हम जल्दी से अपना फ्रेंड लिस्ट बढ़ाना चाहते हैं."

हम और तारकेश्वर चाय-पान करके चले आये. साथ में रतिराम जी का लिखा एक लेख ले आये हैं. जल्द ही ब्लॉग पर छापेंगे.

Friday, January 6, 2012

सगी मौसी हूँ, कोई सौतेली माँ नहीं..

मैंने अपनी एक पोस्ट में लिखा था;

वह दिन भी दूर नहीं जब शादी-ब्याह के लिए माँ-बाप अपने होने वाले संबंधी से मिलेंगे तो यह कहते हुए बरामद होंगे;

"भाई साहब बुरा मत मानियेगा लेकिन इतना तो पूछना ही पड़ता है कि आपकी बेटी के ट्विटर पर फालोवर्स कितने हैं? कितने? इक्कीस सौ आठ? राजेश के तो सात सौ पैसठ ही हैं. इस मामले में आपकी बेटी मेरे बेटे से आगे है. अब क्या कहें भाई साहब, मेरा बेटा वैसे तो ट्विटर पर तीन सालों से है लेकिन फालोवर्स नहीं बढ़ रहे."

लड़की के पिताजी कहेंगे; "देखिये मेरी बेटी इस मामले में बहुत कुशल है. उसके फालोवर्स बढ़ते ही जा रहे हैं. अभी तो उसे केवल आठ महीने ही हुए ट्विटर पर लेकिन आज भगवान के आशीर्वाद से दो हज़ार से ज्यादा फालोवर्स हो गए हैं."
अब लड़की के पिताजी को क्या पता कि केवल ब्लॉगर पर ही नहीं, ट्विटर पर भी बहुत से महापुरुष ऐसे हैं जिनका इस दर्शन में विश्वास है कि;"दिल का हाल सुने दिलवाली."

मैं पार्टी-वार्टी में नहीं जाता लेकिन मुझे इस बात का पक्का विश्वास है कि अब तक लोगों ने परिचय करवाते वक़्त कहना शुरू कर दिया होगा कि; "इनसे मिलिए, ये मिस्टर शुक्ला हैं.... ट्विटर और फेसबुक पर भी हैं. अरे ट्विटर पर इनके साढ़े चार हज़ार से ज्यादा फालोवर्स हैं भाई...."

कल कल विकास गोयल जी के साथ ट्विटर पर बात हो रही थी. बातचीत इस बात पर पहुँची कि अगर फिल्म शोले आज बने तो किस तरह के सीन होंगे? आज जब जीवन में हर तरफ सोशल मीडिया छाया हुआ है? शायद डायरेक्टर ज़रूर दिखाएगा कि फिल्म के पात्र न केवल सोशल मीडिया पर हैं बल्कि कहानी भी उसी के आस-पास घूमती है. जय, वीरू, ठाकुर, गब्बर...सभी ट्विटर पर हैं और फिर सीन कैसे-कैसे हो सकते हैं.

कुछ सीन देखिये;

सीन - १


शोले का पहला सीन. जेलर साहब ट्रेन पकड़कर ठाकुर साहब से मिलने आते हैं. स्टेशन से रामलाल जी जेलर साहब को घोड़े पर बैठाकर लाते हैं.

जेलर: ठाकुर साहब, आपका डी एम मिलते ही मैंने सोचा कि आपने मुझे याद किया है. मैं ट्वीट पकड़कर नहीं आ सकता था इसलिए पहली गाड़ी पकड़कर आप से मिलने चला आया.

ठाकुर: जेलर साहब, मैं आपको एक तकलीफ देना चाहता हूँ.

जेलर: हा-हाँ कहिये. क्या ब्लड नीडेड वाली ट्वीट को री-ट्वीट करना है? या फिर हाथ के ऑपरेशन के लिए आर्थिक मदद के लिए ट्विटर पर अपील करनी है?

ठाकुर: नहीं, दूसरा काम है. मुझे दो आदमियों की जरूरत है.

जेलर : दो आदमी?

ठाकुर: रामलाल

रामलाल जी आलमारी की दराज से दो डी पी निकालते हैं. जेलर साहब डी पी को हाथ में लेकर देखते हैं.

ठाकुर: इन्हें पहचानते हैं आप?

जेलर: ठाकुर साहब, शायद ही कोई सोशल मीडिया साईट हो जिसपर ये दोनों न हों. दोनों के दोनों एक नंबर के बदमाश, पक्के चोर और छठे हुए गुंडे हैं. दोनों ने न जाने कितनी बार बड़े-बड़े ट्वीटबाजों की ट्वीट चोरी की है. दूसरों के फेसबुक स्टेटस मेसेज चुराकर अपने नाम से लगाया है. ट्विटर पर तो कई बड़े ट्वीटबाजों का मानना है कि इनकी गिनती जल्द ही दुनियाँ के सबसे बड़े ट्रोल्स में होने लगेगी.

ठाकुर: जानता हूँ लेकिन काम ही ऐसा है कि मुझे ऐसे ही आदमियों की ज़रुरत है.

जेलर: ठाकुर साहब, मुझे ये तो नहीं मालूम कि आपको क्या काम है लेकिन इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि ये दोनों किसी काम के नहीं हैं. इनके पास तो बारह सौ से ज्यादा फालोवर्स भी नहीं हैं. ऊपर से जो फालोवर्स हैं वे जब-तब इन्हें अन-फालो कर देते हैं क्योंकि ये दोनों उनसे गाली-गलौच कर लेते हैं. वैसे भी ये पहले तो रीयल वर्ल्ड में चोरी करते थे लेकिन जबसे सोशल मीडिया साइट्स आयी हैं अब इनकी चोरियां भी केवल वर्चुवल होकर रह गई हैं. दोनों किसी काम के नहीं रहे. दिन भर ट्वीट करते रहते हैं. कभी अगर रीयल वर्ल्ड में चोरी करते भी हैं तो उसके बारे में ट्वीट पहले कर देते हैं और पकड़ लिए जाते हैं. वैसे ठाकुर साहब, आप भी तो ट्विटर पर हैं. आप इनदोनो को डी एम करके खुद भी तो अपने पास बुला सकते हैं.

ठाकुर: वो तो ठीक है जेलर साहब लेकिन मैं डी एम करूं तो इनका क्या भरोसा? उसको लेकर एक ट्वीट कर देंगे कि Tweetup with @BalDLion at Ramgarh. Tweeple around Ramgarh can also attend.

जेलर: तो मैं क्या कर सकता हूँ?

ठाकुर: अगली बार ये ट्वीट चोरी के इलज़ाम में आपकी जेल में आयें तो आप इन्हें मेरे पास लेकर आइये.

जेलर: लेकिन ठाकुर साहब, ये दोनों बड़े होशियार हैं. अपनी ट्वीट में अपना लोकेशन कभी नहीं दिखाते.


सीन - २

ठाकुर बलदेव सिंह ने जय और वीरू को डिस्ट्रिक्ट जमालपुर में ट्वीट चोरी के आरोप में पकड़ लिया है. दोनों को हथकड़ी पहना दी गई है. शाम तक ठाकुर साहब को इन दोनों को लेकर ताम्बली स्टेशन पहुंचना है. गुड्स-ट्रेन के डिब्बे में फर्श पर दोनों बैठे हैं. जय अधलेटा हो आंखें बंद किये है और और अपने चेहरे पर कैप रख ली है. सामने ठाकुर साहब एक कुर्सी पर बैठे हैं. वीरू ने थोड़ा सा उठकर ठाकुर साहब की वर्दी पर लगे बैज पर उनका नाम पढ़ा. ठाकुर बलदेव सिंह. फिर शुरू हो गया;

वीरू: थानेदार साहब आप क्या ट्विटर पर भी हैं?

ठाकुर: हाँ, हूँ. क्यों?

वीरू: हाँ, अब याद आया. तभी मैं कहूँ कि आपका नाम जाना-पहचाना लग रहा है. ये ट्विटर हैंडल @BalDLion कहीं आपका तो नहीं?

ठाकुर: हाँ, लेकिन तुम्हें कैसे पता?

वीरू जय को कोहनी मारता है.

वीरू: जय-जय, तुझे याद है जब हमने पिछली बार दौलतपुर के @LalBhaiBaniya की ट्वीट चोरी करने के प्लान की जानकारी देते हुए एडवांस में ट्वीट की थी, तो सात नम्बर पर जिसने री-ट्वीट किया था वे यही तो थे. फिर इन्होने बड़ी आसानी से हमें पकड़ लिया था. याद है वो ट्विटर हैंडल @BalDLion ? वह इन थादेदार साहब का ही हैंडल है.

जय: मुझे तो बिना रिक्वेस्ट के री-ट्वीट करने वाले हर ट्वीटर की शक्ल एक सी लगती है. सब की डीपी पर अंडा लगा रहता है.

वीरू: अब अब क्या बोलूँ, इसकी तो आदत है बक-बक करने की.

ठाकुर: कब से हो तुम ट्विटर पर? कब से दूसरों की ट्वीट चोरी कर रहे हो?

वीरू: बस समझिये थानेदार साहब कि जब पहली बार नौकरी मिली थी, तभी से ट्विटर पर हैं. तभी से ट्वीट-चोरी भी शुरू कर दी थी.

ठाकुर: लेकिन जब नौकरी मिल गई थी तो तुमने फिर ट्वीट की चोरियां करनी क्यों शुरू कर दी?

वीरू: अब क्या कहें थानेदार साहब? जिस दिन से नौकरी मिली उसी दिन लाइफ सीक्योर्ड फील होने लगी और मैंने ट्विटर अकाउंट खोल लिया. उसके बाद नौकरी के बारह बज गए और मैं केवल ट्वीट करने लगा. मालिक से पंद्रह दिन की नोटिस देकर नौकरी से निकाल दिया. बस तभी से चोरियां करने लगे हमलोग. लेकिन अब सब ठीक है. ट्वीट चोरी के धंधे में खतरा है लेकिन फिर खतरा तो आपके धंधे में भी है.

ठाकुर: क्यों हो तुम ट्विटर पर?

वीरू: वही जिसके लिए आप हैं. फेम.

ठाकुर: फेम तो मेरे पास बहुत है. मेरे पुरखे भी फेमस थे. मेरे पिताजी फेमबुक पर थे. मेरा पूरा परिवार ट्विटर पर है. मैं खुद भी ट्विटर पर हूँ. मेरा पोता फोर-स्क्वायर और लिंक्ड-इन पर है. वैसे मैं ट्विटर पर एक मकसद के लिए हूँ. मैं ट्विटर पर रहकर चोर-उचक्कों की ट्वीट पढ़ता हूँ और उन्हें पकड़ लेता हूँ. वहाँ मैं एक कॉज के लिए हूँ. शायद खतरों से खेलने का शौक है मुझे.

जय: हम भी तो रोज खतरों से खेलते हैं.

ठाकुर: फर्क है. मैं साइबर कानून की हिफाज़त के लिए खतरे मोल लेता हूँ और तुम साइबर कानून तोड़ने के लिए.

जय: और दोनों ही कामों में बहादुरी की ज़रुरत होती है.

ठाकुर: तुम अपने आपको बहुत बहादुर समझते हो?

वीरू: वक़्त आने पर साबित कर देंगे थानेदार साहब. हमदोनों एक दिन में पचास-पचास ट्वीटर की ट्वीट चोरी कर सकते हैं. गाली-फक्कड़ में हमदोनों सौ-सौ पर भारी पड़ेंगे.

सीन - ३


जय और वीरू गाँव के बाहर पत्थर के पास बैठे हैं. वीरू ने कई दिनों तक सोचा कि डी एम करके बसन्ती से प्यार का इज़हार कर दे लेकिन डी एम इसलिए नहीं कर पा रहा क्योंकि बसन्ती उसे फालो नहीं कर रही है. इस गम में वह बीयरपान किये जा रहा है. थोड़ी देर बाद जब नशा हो गया;

वीरू: जय, आज मैंने कुछ सोचा है.

जय: हा, कभी-कभी ये काम भी करना चाहिए. दिन भर ट्वीट करके ट्वीटर बोर भी तो हो जाता है. कुछ सोचकर ट्वीट करना बुरी बात नहीं. ये अलग बात है कि तेरे जैसे लोग़ ट्वीट पहले करते हैं और सोचने का काम बाद में.

वीरू: आज मैंने एक बहुत बड़ा फैसला किया है.

जय: मैं बताऊँ तेरा वो बहुत बड़ा फैसला? तू चाहता है कि बसंती को ट्वीट करके उसको फालो करने के लिए बोलेगा.

वीरू: अरे वाह यार. तू मेरा सच्चा यार है. एक यार ही यार के दिल की बात जान सकता है.

जय: और वो यार यह भी जानता है कि इस साल किसी लड़की को फालो करने का रिक्वेस्ट वाली ट्वीट करने का ये तेरा आठवां फैसला है.

वीरू: ये फाइनल है यार.

जय: फाइनल है? सुबह से बीयर पी रहा है न.

वीरू: यार पार्टनर, मेरा एक काम करेगा?

जय: क्या?

वीरू: वो बसन्ती की मौसी है न. उससे जाकर कह कि वो बसन्ती से कहे कि बसन्ती मुझे फालो करे.

जय: मैं क्यों करूं ऐसा? मौसी से कहना ही होगा तो मैं उससे कहूँगा कि वह बसन्ती से मुझे फालो करने के लिए कहे. तुझे क्यों?

वीरू: समझा. तू मेरा दोस्त नहीं है. लानत है ऐसी दोस्ती पर. इसीलिए अकड़ रहा है न कि मेरा तेरे सिवाय और कोई नहीं? तू नहीं चाहता कि बसन्ती मुझे फालो करे. तू नहीं चाहता कि मैं उसे डी एम करके उससे प्यार का इज़हार करूं. आज ट्विटर पर मेरी माँ होती तो वह बसन्ती की फालोवर बनकर उसके साथ दोस्ती करके उससे मुझे फालो करने को कहती. मेरे बाप से मैंने कितनी बार कहा कि ऑर्कुट छोड़कर ट्विटर पर ट्विटर पर आ जाए क्योंकि अब ऑर्कुट आउट-डेटेड हो गया है लेकिन वो सुने तब तो. मेरे भाई बहन होते....तू नहीं चाहता कि बसन्ती मेरी हो. समझ गया...

जय: स्साला, घड़ी-घड़ी ड्रामा करता है. ठीक है ठीक है. मैं मौसी से बात करूँगा.

सीन - ४

जय मौसी से बात करने गया है. दोनों आमने-सामने बैठे हैं. बातचीत शुरू हुई.

मौसी: अरे बेटा, बस इतना समझ लो कि ट्विटर पर जवान बेटी सीने पर पत्थर के शिल की तरह होती है. एक बार बसंती का फालोवर्स काउंट दस हज़ार क्रॉस करे तो चैन की सांस लूँ.

जय: हाँ, सच कहा मौसी आपने. बड़ा बोझ है आप पर.

मौसी: लेकिन बेटा इस बोझ को कोई इंटरनेट के कुएं में तो फेंक नहीं देता. बुरा नहीं मानना. इतना तो पूछना ही पड़ता है कि लड़का ट्विटर पर कितना फेमस है? फालोवर्स कितने हैं?

जय: अब फालोवर्स का तो ये रहा मौसी कि एक बार बसन्ती फालो करने लगेगी तो बसन्ती के हजारों फालोवर्स इसके भी फालोवर्स बन जायेंगे.

मौसी: तो क्या अभी एक भी फालोवर नहीं है?

जय: नहीं-नहीं ये मैंने कब कहा मौसी? फालोवर्स हैं. लेकिन अब रोज-रोज तो फालोवर्स नहीं मिल सकते न. फालोवर्स तो उसके बारह सौ के आस-पास हैं लेकिन उनमें से ज्यादाटर ट्रोल्स हैं. अमेरिका के ट्रोल्स ज्यादा हैं.

मौसी: तो क्या इंडिया वाले बिलकुल भी फालो नहीं करते?

जय: ये मैंने कब कहा. करते हैं इंडिया वाले भी फालो करते हैं लेकिन क्या है मौसी कि एक बार वीरू गाली-गलौच पर उतर आता है तो फिर कईलोग़ एक साथ अनफालो भी कर देते हैं.

मौसी: गाली-गलौच पर उतर आता है? तो क्या गाली भी देता है.

जय: नहीं-नहीं मौसी वो तो बहुत ही अच्छा और नेक लड़का है. लेकिन मौसी एक बार शराब पी ले न फिर अच्छे-बुरे का कहाँ होश? किसी ने उसके साथ किसी मुद्दे पर ट्वीटबाज़ी शुरू कर दी तो वह भी नशे में गाली-गलौच शुरू कर देता है.

मौसी: आय-हाय, तो क्या शराब भी पीता है?

जय: अरे तो शराब कौन नहीं पीता मौसी? शराब तो बड़े-बड़े ट्वीटर पीते हैं. कईयों ने तो अपने डी पी में शराब की बोतल भी लगा रखी है. कई तो दारु पीते हुए ट्वीट करके बताते हैं कि उन्होंने कितने पेग पी ली है. अब शराब के नशे में अगर वो गाली-गलौच शुरू कर दे तो इसमें बेचारे वीरू का क्या दोष?

मौसी: ठीक कहते हो बेटा. शराबी हो, गाली-गलौच करे लेकिन इसमें उसका कोई दोष नहीं.

जय: मौसी आप तो मेरे दोस्त को गलत समझ रही हैं. वो तो इतना सीधा है और भोला है. अरे बसंती से उसको फालो करने के लिए कहकर तो देखिये. बसंती फालो करने लगेगी तो गाली-गलौच और शराब की आदत तो दो दिन में छूट जायेगी.

मौसी: अरे बेटा, मुझ बुढ़िया को समझा रहे हो? ये शराब और गाली-गलौच की आदत किसी की छूटी है आजतक?

जय: मौसी आप मेरा विश्वास कीजिये वीरू इस तरह का लड़का नहीं है. बसंती उसे फालो करने लगेगी तो वह दूसरी लड़कियों को डी एम भेजना बंद कर देगा. जवाब न मिलने का फ्रस्ट्रेशन नहीं रहेगा तो शराब वगैरह ऐसे ही छूट जायेगी.

मौसी: आय-हाय तो बस यही एक कमी रह गई थी? तो क्या और लड़कियों को भी डी एम भेजता है?

जय: लड़कियों को डी एम भेजने की कोशिश कौन नहीं करता मौसी? बड़े-बड़े ट्वीटर लड़कियों को डी एम भेजते हैं. खानदानी लोग़ भेजते हैं.

मौसी: तो बेटा ये भी बताते जाओ कि तुम्हारे ये दोस्त हैं किस खानदान के?

जय: बहुत बड़े खानदान के हैं मौसी. वीरू के पिताजी भी ऑर्कुट पर हैं.

मौसी: तो तुम चाहते हो कि बसन्ती ऐसे लड़के को फालो करे जिसके पिताजी आजतक ऑर्कुट पर हैं? एक बात कान खोलकर सुन लो. भले ही बसन्ती का फालोवर्स काउंट दो साल बाद दस हज़ार क्रॉस करे लेकिन मैंने उससे ऐसे लड़के को फालो करने के लिए नहीं कहूँगी जिसका बाप अभी तक ऑर्कुट पर है. सगी मौसी हूँ, कोई सौतेली माँ नहीं.

जय : अजीब बात है. मेरे इतना समझाने पर भी आपने ना कर दिया. बेचारा वीरू, न जाने क्या करेगा?

Wednesday, January 4, 2012

दुर्योधन की डायरी - पेज १४८९

फिर से वही बातें. फिर से वही नीतिवचन. जिसे देखो एक ही बात की रट लगाए हैं कि पांडवों को उनका राज-पाट वापस मिलना चाहिए. मैं पूछता हूँ कौन सा राज-पाट? जो उनका कभी था ही नहीं? जिसकी थोड़ी-बहुत भी औकात है वह भी दिन में चार बार नीतिवचन ठेल देता है. एक ही बात समझाये जा रहा है कि हम हस्तिनापुर का राज-पाट पांडवों को सौंप दें. मैं पूछता हूँ क्या पिताश्री ने यह राज-पाठ उनको वापस सौंपने के लिए स्वीकार किया था? राज-पाट न हुआ पड़ोसी का गहना हो गया जिसे किसी उत्सव से वापस आने के बाद शरीर से उतारें और उसे सौंप दें.

एक पितामह हैं. पहले मन ही मन चाहते थे कि पांडवों को उनका राज-पाट वापस मिल जाए लेकिन अब तो चचा विदुर से बात-बात में बोल भी देते हैं. साथ ही एक प्रश्न जोड़ देते हैं - तुम कहो विदुर कि नीति क्या कहती है? मुझे क्या पता नहीं है कि वे ऐसा क्यों करते हैं? मुझे सब पता है. मैं बच्चा थोड़े न हूँ. मैं पूछता हूँ क्यों दूँ वापस? कभी-कभी तो यह लगता है कि पितामह से निपटने के लिए मामाश्री का सुझाव ही ठीक था. मुझे याद है कि एक दिन मीटिंग में मामाश्री ने कहा था कि जब यह लगे कि पितामह राज-पाट वापस देने के लिए बहुत ज्यादा हस्तक्षेप कर रहे हैं तब उन्हें बदनाम कर दिया जाय. मीडिया में यह खबर फैला दी जाय कि काशीनरेश की पुत्रियों को इन्होने जो वर्षों पहले किडनैप किया था, उसके लिए आजकल ये हर महीने पश्चाताप सप्ताह मनाते हैं. मामाश्री का कहना था कि एक बार अगर यह बात फैला दी गई तो फिर लोग़ इनके पश्चाताप की बात नहीं करेंगे बल्कि यह सवाल उठाने लगेंगे कि काशीनरेश की पुत्रियों को किडनैप करके अपने भाई के साथ ज़बरदस्ती उनका विवाह कर देना नीतिगत सही कर्म था या नहीं? ऐसा होने से हर चाय-पान की दूकानों पर रोज पितामह की बेईज्ज़ती ख़राब होगी.

वैसे कहने को तो खुद मैंने पिताश्री से कितनी बार कहा कि जब भी ये पांडव राज-पाट वापस देने की बात शुरू करें, हमें काकाश्री पांडु के ऊपर ऋषी किन्दम की हत्या का आरोप लगाकर उनकी ईमेज का सत्यानाश कर देना चाहिए. एक बार काकाश्री के ऊपर आरोप लगने शुरू हुए और प्रजा में कन्फ्यूजन बना तो फिर उनके पुत्रों के विरुद्ध भी कुछ न कुछ प्लांट कर ही देंगे. और फिर नहीं भी कर सके तो लोग़ तो प्रश्न पूछेंगे ही कि जिस राजा के माथे पर एक ऋषि की हत्या का कलंक है उसके पुत्रों को राज करने का अधिकार है या नहीं? इतिहास बताता है कि प्रजा के लोगों को प्रश्न पूछने में बड़ा मज़ा आता है. वैसे भी जब एक धोबी ने श्रीराम से प्रश्न पूछ लिए तो पांडव किस खेत के बैंगन हैं? और अगर यह बात प्रजा के लोग़ नहीं भी पूछ सके तो फिर अपने विद्वान किस दिन काम आयेंगे? उनसे कॉलम लिखवा कर पांडवों की इज्ज़त के परखच्चे उड़वा दूंगा.

इतना बढ़िया सुझाव था लेकिन पिताश्री माने तब तो? मेरी बात को कान ही नहीं देते. कहने लगे कि चचा विदुर से विचार करके बतायेंगे. अरे चचा विदुर कभी हमारे पक्ष में कुछ कहते हैं जो इस बात पर हमारा पक्ष लेंगे?

मैं कहता हूँ क्या बुराई है ऐसा करने में? पिताश्री कहने लगे कि किसी मृत व्यक्ति के लिए मरणोपरांत इस तरह की बात करना राजनीति के नियमों के विरुद्ध है. राजनीति के नियम, माय फुट. मैंने तो यहाँ तक कहा कि ठीक है अगर वे नहीं चाहते कि मरणोपरांत उनके भाई की बेईज्ज़ती इस बात से हो कि उन्होंने ऋषि किन्दम की हत्या की थी, तो इसी बात को फैला देते हैं कि काकाश्री ने आखेट के दौरान गौ-हत्या कर दी थी. इस बात का आरोप लगाकर भी तो उनकी बदनामी करवाई जा सकती है. जितने गवाहों की ज़रुरत होगी मैं ले आऊंगा. लेकिन उन्होंने मेरी इस बात पर को भी नहीं सुना. मेरी बात मान ली गई होती तो आज पितामह और चचा विदुर किस मुँह से पांडवों को राज-पाठ वापस सौंप देने की बात करते?

कैसे बताऊँ कि इनलोगों को राज-पाट सौंप देने की बात पर मेरी छाती पर सांप डोल जाते हैं. कैसे भूल जाऊं कि इस भीम ने मुझे और मेरे भाइयों को कितना सताया है. आजतक याद है कि एकबार मैं और दुशासन पेड़ पर कैरी तोड़ने चढ़े थे तो इसी भीम ने लात मारकर पेड़ हिला दिया था और हम दोनों भाई पके हुए आम की तरह गिर गए थे. कैसे भूल जाऊं कि यही भीम मेरे भाइयों को केश से पकड़कर उनका माथा आपस में भिड़ा देता था. ऐसा लुच्चा भीम था और ये लोग़ उसे ही राज-पाट सौंपना चाहते हैं? ये गुरु द्रोण, वैसे तो सामने कुछ नहीं कहते लेकिन मैंने सुना है कि वे भी चाहते हैं पांडवों को उनका तथाकथित अधिकार मिलना चाहिए. मैंने तो मामाश्री से साफ़-साफ़ कह दिया है कि जिस दिन ये बोले उस दिन पूरा हस्तिनापुर देखेगा कि मैं क्या करता हूँ? पूरी मीडिया में इनका पुराना केस खुलवा दूंगा कि कैसे इन्होने एकलव्य से उसका अंगूठा कटवा लिया था. मानवाधिकार वालों को इनके पीछे ऐसा लगाऊंगा कि इन्हें मुँह छिपाने के लिए जंगल कम पड़ जायेंगे.

एक बात समझ में नहीं आती. मेरे, कर्ण, दुशासन और मामाश्री के रहते पिताश्री सलाह भी लेते हैं तो हमेशा ही एक मामूली राजनीतिज्ञ कणिक से. कल शाम को पिताश्री ने बुलाया था वो भी ढाई घंटा लेक्चर दे गया. मैं पूछता हूँ कि इस मामले में जो काम हमारी धूर्त-मण्डली कर पाएगी क्या कणिक कर पायेगा? आज शाम को मीटिंग में मामाश्री ने सुझाव दिया है कि अब समय आ गया है कि हर पांडव के नाम से दस-पाँच लफड़े मीडिया में फैला दिए जायें.

मामाश्री ने तमाम बातों की लिस्ट बना ली है. सबसे पहले भीम की ऐसी-तैसी करनी है. अब समय आ गया है कि भीम और हिडिम्बा की मैरेज को एक बड़ा इश्यू बनाया जाय. प्रजा को यह बताया जाय कि भीम ने एक राक्षसी के साथ कैसे विवाह किया? इस विवाह के बाद क्या पांडवों को अधिकार है कि वे राज-पाट वापस मिलने की बात करें? साथ ही भीम और हिडिम्बा के विवाह के लिए युधिष्ठिर को दोषी करार दे दिया जाय. विद्वानों और बुद्धिजीवियों को कहकर इस बात पर जोर डलवाता हूँ कि वे लिखें कि एक आर्य ने राक्षसी के साथ विवाह किया तो इसमें युधिष्ठिर का भी हाथ है. भीम तो हिडिम्बा को मारने जा रहा था लेकिन युधिष्ठिर ने उसे समझा-बूझा कर भीम को विवश किया कि वह हिडिम्बा से विवाह कर ले. यह प्रश्न उठाया जाय कि अगर बड़ा भाई अपने छोटे भाई को रोकने की बजाय एक राक्षसी के साथ विवाह करने के लिए उकसाता है तो फिर ऐसा व्यक्ति क्या राज-पाठ ग्रहण करने लायक है? जो व्यक्ति अपने भाई को गलत रास्ते पर जाने के लिए उकसा सकता है, क्या गारंटी है कि वह राज-पाट ठीक तरह से चलाएगा? क्या गारंटी है कि वह हस्तिनापुर को किसी के हाथों बेंच नहीं देगा?

फिलहाल तो पांडवों के चरित्र-हनन की शुरुआत यहाँ से शुरू करते हैं. आगे बाकी पांडवों के विरुद्ध कुछ न कुछ निकालते रहेंगे. कल मामाश्री ने कुछ समाचार पत्रों के संपादकों की मीटिंग बुलाई है ताकि इस पर काम शुरू किया जा सके.

Monday, January 2, 2012

बीती विभावरी जाग री .... (री-मिक्स्ड)

आदरणीय श्री जयशंकर प्रसाद के प्रसंशकों से क्षमा याचना सहित.


बीती विभावरी जाग री
सास जी घर में झाड़ू देती
पेड़ पे बोले काग री
बीती विभावरी जाग री

बजता जाता टीवी, ऍफ़ एम्
सुन जिन्हें साधु भी जाते रम
स्मृति में ला कर्त्तव्य सभी
औ वह विराट बैक-लॉग री
बीती विभावरी जाग री

बिस्तर पर तू, अधखुले नेत्र
अब निकल छोड़कर कर शयन क्षेत्र
माना अबतक रवि नहीं दिखें
पर रीजन है यह फ़ॉग री
बीती विभावरी जाग री

आ पहुँचा है अब नया साल
दिक्खेंगे सारे नव-बवाल
क्या हमें मिलेगा लोकपाल
यह पूछ रही सब नागरी
बीती विभावरी जाग री

जो बीता गया अब उसे भूल
बातों का 'उनके' यही मूल
हर भारतवासी को देंगे
ऑनेस्टी भरके गागरी
बीती विभावरी जाग री

उठकर कर ले मॉर्निंग वॉक
कर लिया हेल्थ पर बहुत टॉक
कंट्रोल रहेगा रक्त-चाप
दे दुनियाँ को नव-राग री
बीती विभावरी जाग री