२६ जनवरी के दिन चंदू मेरे पास आया. उदास टाइप लग रहा था. मैंने पूछा; "क्या बात है चंदू? कुछ उदास-उदास लग रहे हो. उदास होने का तो मौसम नहीं है. अभी भी जाड़े का मौसम ही है."
वो बोला; "अब जाने दीजिये पूछकर क्या फायदा?"
मैंने कहा; "आज तुम टीवी के पत्रकारों की तरह बात क्यों कर रहे हो?
वो बोला; "क्या मतलब?"
मैंने कहा; "मेरा मतलब फायदे की बात से था."
वो फिर बोला; "जाने दीजिये."
मैंने कहा; "जाने तो दूंगा ही. तुम्हें जहाँ जाना है तो जाओ लेकिन उदासी का कारण भी तो बताओ."
वो बोला; "तुकबंदी में आपका जवाब नहीं. आपकी इस लाइन को कई शायर अपने शेर की दूसरी लाइन बनाकर पहली लाइन की खोज में निकलें तो एक अदद शेर बन जाएगा. वैसे मेरी उदासी का कारण आज सुबह कुछ पत्रकार मित्रों से मुलाकात है."
मैंने कहा; "पत्रकार आपस में मिलकर उदास हो जाते हैं? लेकिन क्यों?"
वो बोला; "नहीं ऐसी बात नहीं है कि पत्रकार मिलकर उदास होते हैं. दरअसल सच तो यह है कि वे मिल-बाँट कर उदास होते हैं. वैसे मेरी उदासी का कारण एक पत्रकार द्वारा मुझसे किया गया सवाल है."
मैंने कहा; "पत्रकार भी पत्रकार से सवाल करते हैं? वैसे सवाल क्या है?"
वो बोला; "दरअसल मेरे एक पत्रकार मित्र ने आज मुझसे पूछा कि मैंने अब तक किसका-किसका इंटरव्यू लिया? मैंने उसे बता दिया कि मैंने अभी तक बराक ओबामा, सुरेश कलमाडी, पैरिस हिल्टन वगैरह का इंटरव्यू लिया. इस बात पर वो बोला कि टुटपुजियों का इंटरव्यू लिया तो कौन सा तीर मार दिया? बड़े नेताओं का इंटरव्यू लेते तब पता चलता. आगे बोला कि ब्लॉग पत्रकार बना हूँ तो नसीब में ऐसे ही लोगों का इंटरव्यू मिलेगा."
मैंने कहा; "तो फिर किसी बड़े नेता का इंटरव्यू ले लो. मैं तो कहता हूँ कि शरद पवार जी का ले लो. वो भी काफी बड़े हैं. ६ फीट के तो होंगे ही. वैसे तुम किसका इंटरव्यू लेना चाहोगे? तुम्हारी नज़र में कौन है बड़ा नेता?'
वो बोला; "आप कहें तो राहुल गांधी जी का इंटरव्यू ले लूँ. सब बताते हैं कि वे भी बड़े नेता हैं. मेरी बड़ी इच्छा है एक बड़े नेता को नज़दीक से देखने की."
मैंने कहा; "ले लो. मैं तो २८ तारीख को मुंबई जा रहा हूँ. तुम उसी दिन चले जाओ. कुछ दिन राहुल जी के साथ रहो. उनका इंटरव्यू लो. वापस आकर दो मुझे फिर ब्लॉग पर छापा जाएगा."
कल शाम को चंदू वापस आया. आज यह इंटरव्यू छाप रहा हूँ. आप भी पढ़िए और राहुल जी के प्लान, उनके विचार, उनके नेतृत्व और उनसे मिलिए.
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चंदू: नमस्कार राहुल जी.
राहुल: नमस्कार. अपना परिचय दें.
चंदू: सर मैं चंदू चौरसिया. एक ब्लॉग पत्रकार हूँ और आपका इंटरव्यू लेने के लिए कोलकाता से आया हूँ.
राहुल: क्या बात कर रहे हैं? आप कोलकाता से आये हैं! मेरा इंटरव्यू लेने? वैसे इतनी दूर से आये तो आप अकेले क्यों आये? अपने साथ अपने ब्लॉग सम्पादक को भी क्यों नहीं लाये?
चंदू: दरअसल सर, मेरे ब्लॉग सम्पादक किसी काम से मुंबई चले गए हैं. इसीलिए नहीं आ सके.
राहुल: मुंबई चले गए? कोलकाता वाले...मेरा मतलब वेस्ट बंगाल वाले भी मुंबई जाते हैं? मैंने तो सोचा था कि केवल यूपी वाले ही महाराष्ट्र जाते हैं भीख मांगने. वैसे आपके ब्लॉग सम्पादक भी क्या वहाँ भीख मांगने गए हैं?
चंदू: पता नहीं सर. जाते समय तो कह गए कि वे किसी काम से जा रहे हैं. अब वहाँ जाकर क्या करते हैं इसके बारे में कम से कम मुझसे कभी जिक्र नहीं किया.
राहुल: मुझे शक है कि वे भी वहाँ भीख मांगने ही गए होंगे. वैसे वे प्रॉपर कोलकाता के हैं या कहीं और से जाकर वहाँ बसे हैं?
चंदू: नहीं सर, वे यूपी के ही हैं. बनारस के.
राहुल: मेरा अनुमान सही निकला. मेरे मन में था कि अगर इंसान महाराष्ट्र जाता है तो उसका ज़रूर यूपी से कोई न कोई कनेक्शन पक्का होगा. अब तो मुझे डेटा देखना पड़ेगा कि यूपी के लोग़ जो और प्रदेशों में रहकर महाराष्ट्र भीख मांगने जाते हैं, उनकी संख्या कितनी है?
चंदू: लगता है आप आंकड़ों पर बहुत काम करते हैं.
राहुल: यही हमारी कांग्रेस पार्टी की खासियत है चंदू जी. हमारी पूरी पार्टी आंकड़ों पर न केवल खूब काम करती है बल्कि उसे काम में लगाती भी है. अब आठ प्रतिशत जी डी पी ग्रोथ के आंकड़े को ही ले लीजिये. हमारी पार्टी का शायद ही कोई महामंत्री, मंत्री, प्रधानमंत्री, उपमंत्री, राज्यमंत्री वगैरह वगैरह हो, जिसने पिछले ५ सालों में इस आंकड़े को दिन भर में दस बार नहीं दोहराया हो. वित्तमंत्री तो जी डी पी के आंकड़े के साथ-साथ इन्फ्लेशन के आंकड़े का भी खास ख्याल रखते रहे हैं. हमने यूपीए और कांग्रेस पार्टी के हर पदाधिकारी के लिए यह कम्पलसरी कर दिया है कि वह सुबह-शाम कुल तीन घंटे आंकड़ों की किताब का अध्ययन करे. कई बार सम्मेलनों में इन आंकड़ों का सामूहिक पाठ करवाया जाता है. यह पाठ बड़ा फलदायक होता है. आंकड़े कितने महत्वपूर्ण हैं उसका अंदाजा इस बात से लगायें....
चंदू: समझ गया. मैं समझ गया सर कि आंकड़े कितने महत्वपूर्ण हैं. ये बताएं कि आपका चुनाव प्रचार कैसा चल रहा है?
राहुल: सबकुछ बढ़िया चल रहा है. आप देख ही रहे हैं कि मैं भी चल रहा हूँ. बहन-बहनोई चल रहे हैं. बहन के बच्चे तक चल रहे हैं. पार्टी चल रही है. देश चल रहा है. यहाँ तक कि मोतीलाल बोरा और नारायण दत्त तिवारी जी तक चल रहे हैं. ऐसे में चुनाव प्रचार भी बढ़िया ही चलेगा.
चंदू: मेरा अगला सवाल ये है कि...
राहुल: इससे पहले कि आप मुझसे सवाल पूछें, चलिए मैं आप से एक सवाल पूछता हूँ. ये बताइए कि आपको गुस्सा आता है? क्या आपको भी उतना ही गुस्सा आता है जितना मुझे आता है? (इतना कहकर राहुल जी अपने कुर्ते की बांह ऊपर उठाने लगे. एक क्षण के लिए तो चंदू डर गया.)
चंदू: लेकिन राहुल जी, ये आपको अचानक गुस्सा क्यों आ गया? आप कुर्ते की बांह ऊपर क्यों चढ़ा रहे हैं सर? मुझसे कोई भूल हो गई?
राहुल: नहीं-नहीं डरिये मत चंदू जी, डरिये मत. कुर्ते की बांह मैं बार-बार इसलिए ऊपर चढ़ाता हूँ ताकि लोग़ जान सकें कि यूथ पॉवर क्या होता है. मेरा मतलब है कि यूथ काम करने के लिए हमेशा तैयार रहता है, यह बात वोटरों तक जानी ज़रूरी है. बाकी पार्टियों में आपने किसी नेता को कुर्ते की बांह उठाते देखा है? कैसे देखेंगे, बाकी किसी पार्टी में यूथ है ही नहीं. लेकिन आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया. आपको गुस्सा आता है?
चंदू: आता है सर, आता है. मुझे भी गुस्सा आता है. भ्रष्टाचार और मंहगाई देखकर बहुत गुस्सा आता है.
राहुल: एक्जैक्टली. वही तो मैं लोगों को बताता हूँ कि यूपी के भ्रष्टाचार और उसमें फ़ैली मंहगाई पर जैसे मुझे गुस्सा आता है वैसे ही सबको आना चाहिए.
चंदू: लेकिन सर, भ्रष्टाचार और मंहगाई तो यूपी के अलावा और जगहों पर भी तो है. पूरे देश में है.
राहुल: पूरे देश की बात अभी क्यों कर रहे हैं आप चंदू जी? इलेक्शन तो यूपी में है. देखिये इंसान को फोकस से नहीं हटना चाहिए. यूपी पर फोकस कीजिये. अभी यही सवाल मैंने भदोही में वहाँ के बुनकरों से किया था कि क्या उन्हें गुस्सा आता है? लगभग सभी ने कहा कि उन्हें गुस्सा आता है. इलेक्शन के समय गुस्सा करना उतना ही ज़रूरी है जितना बटला हाउस एनकाऊँटरकी बात करना.
चंदू: तो जब वे लोग़ कहते हैं कि उन्हें गुस्सा आता है तो आप उन लोगों की बात मान लेते हैं?
राहुल: पहले मान लेते थे. बाद में दिग्विजय सिंह जी ने सलाह दी कि आँख मूंदकर उनकी बात मानना ठीक नहीं होगा. इसलिए हमने फिर गुस्सा मापने वाली एक मशीन इम्पोर्ट की. अब जब भी कोई वोटर कहता है कि वह मायावती सरकार से गुस्से में है तो उसकी बात सच है या नहीं, यह जांचने के लिए हमारे कार्यकर्त्ता उस मशीन को लगाकर उसका गुस्सा माप लेते हैं. हम उसकी बात कन्फर्म भी कर लेते हैं और अगर किसी का गुस्सा कम रहता है तो फट से कुछ न कुछ बोलकर उसे बढ़ा देते हैं. बड़े काम की है ये गुस्सा मापक मशीन.
चंदू: अच्छा सर, ये बताएं कि आपने बुनकरों का लोन माफ़ करने का वादा किया है लेकिन और भी तो लोग़ हैं यूपी में जिनके लिए आप वादा कर सकते थे. जैसे किसान...
राहुल: बिलकुल कर देते हैं वादा. अरे चंदू जी वादा करना कौन सा कठिन काम है. आप कहिये तो हम पत्रकारों का लोन माफ़ करने का भी वादा कर देते हैं.
चंदू: आपके कहने का मतलब मैं समझा नहीं.
राहुल: ऐसी कौन सी कठिन बात कर दी मैंने? मेरा मतलब यह था कि पत्रकारों ने अगर लोन लिया हो तो हम उसे माफ़ करने का का वादा भी कर देते हैं. अरे भाई पत्रकार भी तो अपने प्रोफेशन के लिए कुछ न कुछ तो खरीदते ही होंगे. मसलन पेन, कागज़, डेस्क चेयर वगैरह वगैरह.
चंदू: अरे कहाँ सर. पत्रकार पेन खरीदते कहाँ हैं आजकल. वे तो पेन बेंचते हैं. रही बात डेस्क और चेयर की तो उन्हें आपलोगों की कृपा से कोई न कोई चेयर मिल ही जाती है.
राहुल: हाहाहा..ये सही कहा आपने. इसीलिए मैंने पत्रकारों का लोन माफ़ करने की बात नहीं की कभी.
चंदू: वैसे आपका प्रचार और किन मुद्दों पर है?
राहुल: खाने और पीने पर. मेरा मतलब आपने तो देखा ही होगा टीवी पर. मैं हमेशा इस बात को दोहरा-तिहरा रहा हूँ कि मैं गरीब के घर जाकर खाना खाता हूँ. उनके कुएं का पानी पीता हूँ. आपने और किसी पार्टी के नेता को खाते हुए देखा है? कैसे देखेंगे वे उतना नहीं खा पाते जितना मैं खाता हूँ.
चंदू: खाने-पीने के अलावा और किस बात पर केन्द्रित है आपका प्रचार?
राहुल: अभी खाने-पीने की अपनी बात मैंने पूरी कहाँ की? मेरा मतलब यह है कि देखिये अमीर आदमी का खाना तो कोई भी खा सकता है लेकिन गरीब आदमी का खाना खाने के लिए बहुत हाइ-क्लास की मैनेजेरियल स्किल्स चाहिए और वो सिर्फ मेरे पास है. खाने-पीने के अलावा मेरा प्रचार इस बात पर भी केन्द्रित रहता है कि आंकड़े क्या कहते हैं...मैं एक बार फिर से आंकड़ों पर आता हूँ. अब देखिये, अगर हमारी पार्टी ने आंकड़ों को महत्त्व नहीं दिया होता तो मेरे पिताजी का वो एक रुपया में से पंद्रह पैसे वाला विश्व प्रसिद्द बयान कहाँ से आता? आपको याद होगा उन्होंने ही पहली बार देश को बताया था कि एक रुपया चलता है तो आम जनता तक पंद्रह पैसे पहुँचते हैं.
चंदू: लेकिन राहुल जी, पंद्रह पैसे तो सन छियासी में पहुँचते थे. आज कितने पहुँचते हैं ये भी तो देखना होगा. उस पंद्रह पैसे को रिवाइज भी तो किया जाना चाहिए.
राहुल: वो हम करना चाहते थे लेकिन बात यहाँ आकर अटक गई कि अब कितने पैसे पहुँचते हैं? मेरा मानना है कि अब दस पैसे पहुँचते हैं. कुछ समझशास्त्री हमसे सहमत नहीं है. उनका मानना है कि अब सात पैसे पहुँचते हैं. इसलिए ये रिविजन वाला मामला अटका पड़ा है. हमने प्लानिंग कमीशन से कहा है कि वे समझशास्त्रियों से एक फिगर पर अग्री करें ताकि हम जनता को बता सकें कि अब रूपये में से कितने पैसे पहुँचते है? मुझे आशा है कि साल २०१४ के आम चुनावों तक आठ पैसे पर अग्रीमेंट हो जाएगा. एक बार अग्रीमेंट हुआ तो हम उसकी घोषणा करवा देंगे.
चंदू: तो आपको लगता है कि इस बार आपकी पार्टी यूपी में सरकार बना लेगी?
राहुल: बिलकुल बनाएगी. यूपीए से लोगों की नाराजगी यह है कि उसने केंद्र में पिछले आठ साल शासन करने के बावजूद देश के लिए कुछ बनाया नहि सिर्फ बिगाड़ा ही बिगाड़ा है. हम यूपी में सरकार बनाकर यह दिखाना चाहते हैं कि हमें केवल
बिगाड़ना ही नहीं बनाना भी आता है. हमें ढाई सौ सीटें ज़रूर मिलेंगी और हम सरकार बनायेंगे. आप देखेंगे कि यूपी में कांग्रेस ऐसे उठेगी इसबार.
इतना कहकर राहुल जी कुर्सी से उठ गए. उनके उठने के स्टाइल से चंदू भी कन्विंस हो गया कि कांग्रेस इस बार यूपी में उठ जायेगी. चंदू ने उनसे विदा ली. एक बड़े नेता इंटरव्यू लेने का उसका सपना पूरा हो चुका था.
नोट: चंदू द्वारा लिए गए राहुल जी के इंटरव्यू का यह संपादित वर्सन है. मुझे पता है कि ब्लॉग पर इंटरव्यू को संपादित करना ब्लॉग के मूल सिद्धांत के खिलाफ है लेकिन मैं क्या करता जब चंदू ने राहुल जी के सामने मुझे सम्पादक कहा तो.
:-)
ReplyDeletekya baat kya baat, agla mamta didi ka sirjee
ReplyDeleteचलिए अब आप छाप दिए हैं तो संतोष कर लेते हैं, वरना अब तो रेहान और मिराया के इंटरव्यू छपने के दिन आ चुके हैं, और आपको पता ही नहीं है… :)
ReplyDeleteReally exclusive -
ReplyDeleteराहुल'जी' की जीवनी आ चुकी है. मगर फिलहाल तो हम रियाया को अभी चंदू का इंटरव्यू पढ़ कर सतोष करना पढ़ेगा. इसी से भावविभोर हुए जा रहे है.
ReplyDeleteपंच कम मारक थे मगर 'पेन बेंचते हैं' जैसे कई पंच ताबड़-तोड़ पड़े है.
एक बार भी प्रधानमंत्रि के ईमानदार होने की बात नहीं हुई. मैं तो कहता हूँ यह एक आपराधिक कृत्य हुआ है.
चंदूजी का जबाब नहीं...
ReplyDeleteशानदार रहा इन्टरव्यू.. और भी आगे आने वाले भविष्य के प्रधानमंत्री का भी इंटरव्यू भी लेने की कोशिश करें चंदू जी..
ReplyDeleteक्या माइकतोड़ इण्टरव्यू है! :-)
ReplyDeleteचन्दू ने एक सपना देखा। आपने पूरा कराया और हमें आनंद आया। वाह...!
ReplyDeleteto ab chandu patrakar kab jaa rahe hai maharashtra ,majedar raha inteview ka safar agla maun mohan singh ka kariyega chindu ji shayd ................... aisa hoga ,padh kar sadev aanand aata hai shiv ji aapke blog ,subhkamnaye
ReplyDelete'बहन-बहनोई चल रहे हैं. बहन के बच्चे तक चल रहे हैं.'
ReplyDeleteअब इतने लोग चलेंगे तो यूं.पी. क्या देश में भी सत्ता येही संभालेंगे.
बहुत इन्सायेटफुल इंटरव्यू लिया चंदू जी ने. हमेशा की तरह पूर्ण मनोरंजक.
धन्यवाद.
@भारतीय नागरिक - नत्तू पांड़े का इण्टर्व्यू लेना चाहें तो मैं अरेंज करवाऊं?! :)
ReplyDeleteमन किया कुर्ता की बांह समेंटकर कुछ टिपियाया जाये लेकिन स्वेटर बीच में आ गया। अच्छा ही हुआ वर्ना नीचे कुर्ता की जगह कमीज निकलती तो बड़ा वैसा फ़ील होता। :)
ReplyDeleteअलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है? अब तो उसकी जांच मशीन से हो सकती है:)
ReplyDeleteआदरणीय, बहुत ही चुटीला व्यंग पढ़ने को मिला, बहन बहनोई के साथ साथ मंहगाई भ्रष्टाचार भी चल रहे है ..................
ReplyDeleteबहुत ही शानदार....
चन्दूजी तो स्टार है़, और युवराज आजकल बीमार है।
ReplyDeleteकांगर्ेस का उठना तो तय है। :)
बढिया। काश चंदूजी, लगे हाथों उनके राजनीतिक गुरु जी से भी बात कर पाते।
ReplyDeleteमेरा अनुमान सही निकला. मेरे मन में था कि अगर इंसान महाराष्ट्र जाता है तो उसका ज़रूर यूपी से कोई न कोई कनेक्शन पक्का होगा. अब तो मुझे डेटा देखना पड़ेगा कि यूपी के लोग़ जो और प्रदेशों में रहकर महाराष्ट्र भीख मांगने जाते हैं, उनकी संख्या कितनी है?
ReplyDeleteवाह..वाह...वाह...इसीलिए कहता हूँ...देश का नेता कैसा हो...राहुल गाँधी जैसा हो...क्या अनुमान है उनका...सुभान अल्लाह...वैसे कुछ हम जैसे छुपे हुए लोग भी हैं महाराष्ट्र में जहाँ तक उनका अनुमान नहीं जा पहुँच पाता... गज़ब...माने बहुत ही गज़ब की पोस्ट...
नीरज
राहुल गाँधी, अमर रहें. राहुल गाँधी अमर रहें.. :D
ReplyDeleteमैं अगर हिंदी का शिक्षक होता तो ये 5 लाईने व्याख्या के हिसाब से इम्पोर्टेंट होती: :)
ReplyDelete1. "जाने तो दूंगा ही. तुम्हें जहाँ जाना है तो जाओ लेकिन उदासी का कारण भी तो बताओ." :)
2. मेरे मन में था कि अगर इंसान महाराष्ट्र जाता है तो उसका ज़रूर यूपी से कोई न कोई कनेक्शन पक्का होगा.
3. कुर्ते की बांह मैं बार-बार इसलिए ऊपर चढ़ाता हूँ ताकि लोग़ जान सकें कि यूथ पॉवर क्या होता है.
4. वे तो पेन बेंचते हैं. रही बात डेस्क और चेयर की तो उन्हें आपलोगों की कृपा से कोई न कोई चेयर मिल ही जाती है.
5. उनके उठने के स्टाइल से चंदू भी कन्विंस हो गया कि कांग्रेस इस बार यूपी में उठ जायेगी.
@प्रशांत
ReplyDeleteअसली नारा भूल गए? "बोलो राहुल गाँधी की
जय!!"
पूरे देश की बात अभी क्यों कर रहे हैं आप चंदू जी? इलेक्शन तो यूपी में है. देखिये इंसान को फोकस से नहीं हटना चाहिए.
ReplyDeleteअन एडिटेड वर्शन कैसा होगा अगर एडिटेड यह है ।
Gadkari ji ka bhi interview kijiye Chandu ji..Unke 5 PM candidates ke funde par bhi toh kuch prakash daliye.
ReplyDeleteNamita joshi
Chandu; "Sahi sujhaav Namita ji. Gadkari ko apne 5 PM ke saath sarkaar banane deejiye, unka interview to roz luunga:-)"
Deletewa wa kya likha he aapne bhut hi acha kha he
ReplyDeleteKya maara lapet ke....
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