Monday, September 3, 2012

देवी अहल्या, भगवान राम और स्टोन माफिया

श्री राम और उनके अनुज श्री लक्ष्मण को लिए महर्षि विश्वामित्र जनकपुर चले जा रहे थे. उन्हें पता था कि जनकपुर जानेवाले मार्ग में ही ऋषि गौतम का आश्रम पड़ेगा. श्री राम को याद था कि महर्षि विश्वामित्र के कहने पर उन्हें पत्थर रूपी अहल्या का कल्याण करना है. मनुष्य के रूप में ही सही, जब भगवान पृथ्वी पर आये हैं तो कल्याण करेंगे ही. पृथ्वीवासी चाहकर भी उनके कल्याणकारी कर्मों से नहीं बच सकते. श्री राम, अनुज लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र मन ही दृश्य बुनते जा रहे थे. कि कैसे तीनों ऋषि गौतम के आश्रम के पास से गुजरेगें. कि उन्हें वहाँ जाकर पता चलेगा कि ऋषि गौतम तप करने हिमालय चले गए हैं. कि उन्हें एक शिला दिखाई देगी और महर्षि विश्वामित्र के कहने पर श्री राम उस शिला को छूएंगे और देवी अहल्या अपने असली रूप में प्रकट हो जायेंगी. फिर वे भगवान राम और महर्षि विश्वामित्र को प्रणाम करेंगी. कि देवतागण ऊपर से सबकुछ देखते हुए प्रसन्न होंगे. कि केवल प्रसन्न होने से उनका मन नहीं भरेगा और वे ऊपर से पुष्पवर्षा करके अपने कर्त्तव्य का निर्वाह कर डालेंगे.

मन ही मन सारे दृश्य सोचते हुए वे चलते-चलते ऋषि गौतम के आश्रम पहुँच गए. भगवान राम को पता था कि एक व्यवस्था के अनुसार सरकार ने शिला रूपी अहल्या को वैश्विक धरोहर घोषित करते हुए उस शिला के आस-पास की ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया था और शिला के पास एक सूचना पट्टी लगा दी कि राज्य का कोई भी नागरिक इस शिला के आस-आस न फटके और किसी भी तरह से इस शिला को अपवित्र न करे. सरकार इस बात से निश्चिन्त थी कि सूचना पट्टी लगाने से नागरिक उस शिला के आस-पास नहीं आयेंगे और उसकी रक्षा करना अपना धर्म समझेंगे. शिला की रक्षा के लिए वहाँ अर्ध-सैनिक बल के जवानों को ड्यूटी पर भी लगा दिया गया था.

इतनी मेहनत करके सरकार ने अपने कर्त्तव्य का पालन कर डाला था.

इधर जब भगवान राम, उनके अनुज लक्ष्मण और महर्षि जब वहाँ पहुंचे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. वे देखते क्या हैं कि सरकारी सूचना पट्टी तो थी और शिला के चारों तरफ सरकारी अहाता भी था लेकिन शिला गायब थी. सरकारी सूचना पट्टी पर भी राज्य के नागरिकों ने खड़िया मिट्टी से तमाम संदेश लिख डाले थे. कहीं किसी नौजवान ने अपनी प्रेमिका के लिए संदेश लिख डाला था तो किसी ने उसपर पान खाकर थूक भी दिया था. इतनी कलाकारी के बाद सरकारी संदेश का दिखना असंभव था.

यह सब देखकर महर्षि बहुत क्रोधित हुए. उन्होंने पास ही खड़े एक नागरिक से पूछा; "हे वत्स, यहाँ रखी गई शिला किधर लुप्त हो गई? क्या किसी ने उसे उठाकर कहीं और रख दिया?"

नागरिक बोला; "हे महर्षि, यहाँ रखी गई शिला तो इस इलाके के स्टोन माफिया ने तुड़वाकर बेंच डाली. हे महर्षि, इस इलाके में पत्थर खदानों के खनन का ठेका यहाँ के ही निवासी जग प्रसिद्द ठेकेदार गया सिंह को मिला है. न्यायपूर्ण खनन के साथ-साथ अन्यायपूर्ण खनन करने के लिए वे प्रसिद्द हैं."

नागरिक की बात सुनकर लक्ष्मण जी को बहुत क्रोध आया. वे क्रोध में ठेकेदार गया सिंह की खोज में निकल गए जिससे उसे दण्डित कर सकें. उधर भगवान राम सोचने लगे कि न ऋषि गौतम देवी अहल्या को श्राप देते, न यह होता. एक देवता ने देवी अहल्या का अपमान किया. एक ऋषि ने उसे श्राप दिया. एक और पुरुष ने उसे शिला भी न रहने दिया.

वे पुरुषों के कर्मों पर विचार कर ही रहे थे कि महर्षि विश्वामित्र बोले; "हे राम, अपनी दिव्य-शक्ति से पता लगाओ कि उस शिला के खंड कहाँ-कहाँ हैं. हम वहीँ चलकर देवी अहल्या का उद्धार करेंगे.

12 comments:

  1. शुक्र है कि भगवान भी समझदार हो गए है. आजकल किसी को पत्थर नहीं बनाते. पत्थर क्या कोयला या थोरियम भी बना दे तो खैर नहीं...

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  2. आपकी नव कथाएं अब दुर्योधन की डायरी की तरह मारक क्षमता वाली हो गयीं...बल्कि ये कथाएं "....घाव करें गंभीर" वाली श्रेणी में आती हैं...कैसे कैसे प्रसंग और उन पर बुनी आपकी कथाएं ...शम्मी कपूर के अंदाज़ में "उफ़ यूँ माँ" टाइप की हैं...हम तो आपकी विलक्षण बुद्धि का इस्पात (लोहा नहीं) पहले भी मानते थे आगे भी मानते रहेंगे...आप और आपकी लेखनी धन्य हैं...

    अगली बार जब खोपोली पधारें तब उस कलम को लेते आयें जिस से आप ये कथाएं लिखते हैं या फिर उस पी.सी/ लैपटाप को लेते आयें जिसपर आप ये टाइप करते हैं, हम उनका निरक्षण करेंगे ये जान्ने को की ये अद्भुत विचारों वाली पोस्ट लिखने में कमाल वास्तव में आपकी बुद्धि का है या इन तकनिकी यंत्रों का...क्यूँ के आपसे मिलने के बाद हमें शंका है की ये इन यंत्रों का ही करिश्मा हो सकता है...ये निरिक्षण ठीक वैसे ही होगा जैसे ध्यान चंद जी की हाकी का निरिक्षण उनके विरोधियों ने ये देखने के लिए किया था के उनकी हाकी में कोई ऐसा चुम्बकीय तत्व तो नहीं जिस से बाल उनकी हाकी के आसपास ही रहती है...

    शंका का निवारण अनिवार्य है बंधू...हमारी बात को अन्यथा न लें.

    नीरज

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    1. एक ठो सत्यवचन अपुन का भी। जय हो!

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  3. भगवान् राम ने अपनी दिव्य-शक्ति से पता लगाने की कोशिश की तो पता चला पत्थर के टुकड़े दुनिया भर में फ़ैल गए हैं | अब वो अगर भगवान् रूप में होते तो फटाफट स्पीड ऑफ़ लाईट से जाकर पत्थर कलेक्ट कर लेते | पर अपने गेट-अप का भी तो ध्यान रखना था | "रा.वन" को फोनिया दिए "जिस भी हालत में हो पुष्पक विमान तुरंत भेजो" | रावण ने मना कर दिया | बोले "पायलट स्ट्राइक पर है" |

    उधर लक्ष्मण गया सिंह के पास पहुंचे | गया सिंह दिल्ली गए थे | लक्ष्मण ने दिल्ली का नाम भी नहीं सुना था | अब भगवान् तो वो भी ठहरे | हनुमान जी याद आ गए उन्हें | उन्होंने हनुमान को मोबाइल पर कॉल कर दिया क्यूंकि लैंड लाइन डेड थी | हनुमान जी बोले कि जामवंत ने उनसे उड़ने की प्रैक्टिस करने को बोला है पर ये नहीं बताया कि क्यूँ, कह रहे हैं भविष्य में बताएँगे | अभी नहीं आ सकते |

    उधर रावण से इंकार मिलने के बाद राम दुखी बैठे थे, लक्ष्मण जी भी आ गए अपनी करूँ कथा सुनाते हुए | ऋषि महाराज को भी कुछ न सूझा |


    तीनो पहुंचे ब्रह्मा जी के पास कि भैया पत्थर गायब हो गया, उद्धार कैसे करें, कृपया फ़ाइल क्लोज़ कर दो | ब्रह्मा जी ने मानने से इंकार कर दिया कि पत्थर वहां नहीं है क्यूंकि उसका तो आवंटन हुआ ही नहीं था | सुबूत लाने को बोला |


    उस समय केस लोकल पुलिस को दिया गया था | कालांतर में वो "सी आई डी" के पास आया | अभी "सी बी आई" को दे दिया गया है | राम को गुज़रे हुए ज़माना हो गया पर केस अभी पेंडिंग है |

    हाँ, उस अहिल्या वाले स्थान पर "ठा. गया सिंह स्मारक" पार्क बन गया है | सुना है वहां अक्सर धरने प्रदर्शन होते रहते हैं |

    (माफ़ कीजियेगा, आपकी पोस्ट पढ़कर ये सब आ गया दिमाग में| पोस्ट चकाचक है ) :) :)

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  4. कहीं गया सिंह के नये कोठी का फर्श तो नही बन गया उससे अब अहिल्या शिला बनी थीं तो हो सकता है मार्बल की हो ।

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  5. गया सिंह जी अगर स्टोन माफिया हैं तो एक नहीं कई "अहिल्याओं" का उद्धार कर सकने की क्षमता रखते हैं। राम जी की क्या जरूरत?

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  6. श्री शिवकुमार मिश्र जी.. इस अत्यंत सुंदर लेख के लिए आपको और आपकी लेखनी दोनों को मेरी तरफ से हार्दिक धन्यवाद...... आज के परिदृश्य को इतनी सुन्दरता से चित्रित करने के लिए और सरकार की नीतियों पर जो कटाक्ष किया है, उनके लिए धन्यवाद ज्ञापित कर्ता हूँ......

    अरुण पाण्डेय

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  7. सर अब नेता भारत को शीला समझकर उद्धार कर रहें हैं

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय