हनुमान जी माता सीता से अशोक वाटिका में मिल चुके थे। तत्पश्चात लंका को अग्नि के हवाले कर रावण जी को कृतार्थ भी कर चुके थे। वापस आये और उन्होंने भगवान् राम को सारी बात बताई। साथ ही यह बताया कि घर के भेदी विभीषण जी अब भगवान् श्रीराम के शरण में आ अपना जीवन सफल बनाने के लिए तैयार हैं। कि अब विलम्ब न करके भगवान् श्रीराम को लंका पर चढ़ाई करके रावण जी की ऐसी-तैसी कर देनी चाहिए ताकि माँ सीता को वापस लाने का कार्य संपन्न हो। हनुमान जी की इसबात पर श्रीराम और लखनलाल जी प्रसन्न हैं। भगवान् श्रीराम के मन में हनुमान जी को कुछ उपहार देने की इच्छा जागृत होती है परन्तु उनके पास कुछ न रहने के कारण वे ऐसा नहीं कर पाते।
महाराज सुग्रीव की बानरसेना खुश है। इस बात से कि जल्द ही उन्हें अपने करतब दिखाने का अवसर मिलेगा। पूरी सेना के अन्दर एड्रेनेलिन इस समय फुल-फ्लो में है। योद्धाओं ने कसरत का समय बढ़ा दिया है। सेनानायक जामवंत जी अपने अनुभव और मैनेजेरियल स्किल्स और तेज़ कर रहे हैं। बालि पुत्र अंगद ने अब कुछ ज्यादा वजनी गदा के साथ अभ्यास शुरू कर दिया है। सेना की टुकड़ियों को तैयार किया जा रहा है। हर टुकड़ी के लिए नायक का चुनाव हो रहा है। युद्ध के नये-नये तरीके आजमाने के लिए व्यूह रचना का अभ्यास किया जा रहा है। किष्किन्धा के अलावा और भी पहाड़ों और जंगलों से बानर योद्धा अपने भगवान के लिए अपने प्राण लिए चले आ रहे हैं।
भगवान श्रीराम के संयुक्त मुख्य अभियंता श्री नल और श्री नील बड़े आराम से हैं। उन्हें पता है कि इसबार उन्हें किसी सेतु को बनाने की आवश्यकता नहीं है। महाराज सुग्रीव के गुप्तचर आकर यह बता चुके हैं कि भ्राता-द्वय द्वारा त्रेता युग में बनाया गया सेतु अभी भी है। उसी सेतु पर से होकर भगवान श्रीराम की सेना श्रीलंका पहुँच जायेगी। उधर भगवान श्रीराम भी इसबात से आश्वस्त हैं कि इसबार समुद्र महाराज की न तो पूजा-अर्चना करने की आवश्यकता है और न ही पूजन करने के उपरांत भी न सुनने के बाद धनुषबाण लेकर हड़काने की। त्रेता युग की डांट समुद्र देवता अभीतक भूल नहीं पाए हैं और इसीलिए उन्होंने रामसेतु को बहुत ज्यादा नुकशान न पहुंचाते हुए लगभग ज्यों का त्यों रखा हुआ है।
महाराज सुग्रीव, सेनानायक जामवंत, भगवान श्रीराम, बजरंगबली, अंगद, वगैरह पूरी बानरसेना के साथ समुद्र के किनारे आ पहुंचे। देखा तो सेतु तो दिखाई दे रहा है परन्तु सेतु के ऊपर समुद्र का जल भी बह रहा है। भगवान श्रीराम को लगा कि जितना जल है वह तो बजरंगबली अपनी अंजुली में उठा लेंगे और उनके लिए मार्ग बन जाएगा। जैसे ही उन्होंने बजरंगबली ने सेतु के ऊपर बह रहे समुद्र के जल को अपनी अंजुली में उठाना चाहा वैसे ही एक सिक्यूरिटी गार्ड ने आकर कहा; "हे पवनसुत, आपसे अनुरोध है कि आप इस सेतु से कोई छेड़-छाड़ न करें।"
हनुमान जी ने सैनिक की बात सुनी और बोले; "हे सैनिकश्रेष्ठ, सेतु के साथ छेड़-छाड़ करने की हमारी कोई मंशा नहीं है। जिस सेतु को हमने बनाया उससे हम छेड़-छाड़ क्यों करेंगे? परन्तु हे सैनिकश्रेष्ठ, हमारे प्रभु श्रीराम और बानरसेना को उसपार जाना ही है। अतः हमें जाने दिया जाय। ऐसा नहीं हुआ तो आप तो मुझे जानते ही है। मैं अपने प्रभु के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।"
उनकी बात सुनकर गार्ड भयाक्रांत हो गया। घबड़ाकर बोला; "हे बजरंगबली, किंचित आपको यह नहीं पता कि इस सेतु को तोड़ने का आदेश निकल चुका है और मामला सब-जुडिश नहीं हुआ होता तो यह सेतु अबतक टूट चुका होता। कुल मिलाकर यह कहना है कि यह सेतु ही अब सब-जुडीशियल हो चुका है। वैसे भगवन, महाराज सुग्रीव की सेना श्रीलंका जाकर क्या करनेवाली है?"
हनुमान जी बोले; "हमारी सेना उसपार जाना चाहती है ताकि रावण का सत्यानाश कर सके।"
उनकी बात सुनकर सैनिक बोला; "हे भगवन, छोटा मुंह और बड़ी बात होगी परन्तु क्या आपको नहीं लगता कि अब रावण केवल उसपार नहीं रहता?"
उसकी बात सुनकर हनुमान जी कुछ सोचने लगे। भगवान् श्रीराम और उनके अनुज लखनलाल से दबे स्वर में कुछ बात करने लगे। भगवान शायद यह सोचने लगे कि पहले किस रावण का वध करना ............................
एक रावण हो तो निपटें भी.
ReplyDeletetreta ka dashanan abhi kaliyug mein sahsranan ho gaya hai - hydra aur susra ke sammilit characteristics bhi kaliyugi ravan mein pravisht ho chuke hai. Ram lala aur lakhan lal se ab ye ravan na har sakega. :(
ReplyDeleteजिधर नजर डालिये, रावण मौजूद हैं.
ReplyDeleteरामराम.
ये तो ’इस पार प्रिये तुम हो मधु हो उस पार न जाने क्या होगा’ वाला मामला हो गया। :)
ReplyDeleteमहाभारत कथा छोड़कर अब आप राम कथा बांचने लगे। एक युग पीछे चले गये। :)
बहुत सुन्दर और प्रेरक आलेख!
ReplyDeleteयहां के रावणों का वध करने के लिए रामसेतु को तोडा जा रहा है?
ReplyDeleteसन्नाट व्यंग, ऐसे गार्डों को ही पहले निपटा दिया जाये..
ReplyDeleteKewal ek raavan se nahin, Anek raavno ki ekta se dar lagta hai saab..Great post sir.
ReplyDelete"हे भगवन, छोटा मुंह और बड़ी बात होगी परन्तु क्या आपको नहीं लगता कि अब रावण केवल उसपार नहीं रहता?"...रावण प्रकार- प्रकार के हो चुके है ... :)
ReplyDelete"हे भगवन, छोटा मुंह और बड़ी बात होगी परन्तु क्या आपको नहीं लगता कि अब रावण केवल उसपार नहीं रहता?"
ReplyDeleteउसकी बात सुनकर हनुमान जी कुछ सोचने लगे।
सोचने वाली बात तो है ।
"Ab har ghar me Raavan baitha,
ReplyDeleteItne Ram kahan se laaon.."