Tuesday, January 1, 2013

दुर्योधन की डायरी - पेज 699

सात दिन हो गए द्रौपदी चीरहरण कार्यक्रम हुए। मीडिया वाले हैं कि उसके बारे में बात करके अघा नहीं रहे। करते जा रहे हैं, करते जा रहे हैं। पता नहीं कबतक करेंगे? मैं पूछता हूँ, और कोई विषय नहीं है क्या? द्वारका से तीरंदाजों की बी-टीम भी तो हस्तिनापुर आयी है, उसपर समाचार कब दिखाएँगे? आचार्य देवधर शास्त्री लिखित नाटक "प्रतापी युवराज" का मंचन हो रहा है, उसपर कोई समाचार कैप्सूल क्यों नहीं दिखाते? राजमहल ने हाल ही में "मुफ्त का गेंहू दो किलो, कार्ड दिखाओ औ ले लो" नामक नारे के साथ प्रजा के लिए अपनी नई स्कीम लांच की है, उसके बारे में क्यों नहीं लिखते? मंहगाई कम करने के राजमहलिक प्रयासों के बारे में क्यों नहीं लिखते? कोई टीवी चैनल यह नहीं दिखा रहा है कि किस तरह से परसों आखेट के दौरान मैंने एक हिरन मार गिराया? अभी पंद्रह दिन पहले ही कर्ण ने तपस्या करके अपने लिए नए अस्त्र की प्राप्ति की है, उसपर कोई कार्यक्रम नहीं दिखा रहा। जयद्रथ ने नर्तकियों के एक नृत्य नाटिका का उद्घाटन करते हुए रीबन काटा लेकिन किसी न्यूज चैनल ने उसकी चर्चा नहीं की। न ही कोई यह दिखा रहा है कि कृपाचार्य, गुरु द्रोण, पितामह और चाचा विदुर ने "धर्म और राजनीति" नामक सेमिनार में हिस्सा लेते हुए बड़े जोरशोर से अपने विचार रखे।

इतने बड़े-बड़े कार्यक्रम हुए लेकिन पता नहीं क्यों मीडिया इनपर बात नहीं कर रहा? जिसे देखो वही द्रौपदी चीरहरण की बात किये जा रहा है और प्रजा से सुझाव मांग रहा है कि प्रजा बताये कि चीरहरण की ऐसी घटनाओं को भविष्य में कैसे रोक जाय? मैं पूछता हूँ, चीरहरण की घटनाओं को रोकने का सुझाव प्रजा कैसे देगी? उसे किसी के चीर को हरने का कोई अनुभव है क्या? उसे अगर पता ही होता तो सबसे पहले अपना चीरहरण रोकती न। मुझे तो बहुत गुस्सा आया। एकबार तो सोचा कि अखबारों और न्यूज चैनलों का लाइसेंस ही कैंसिल कर दूँ लेकिन भला हो मामाश्री का कि उन्होंने मुझे रोक दिया। मुझसे बोले; "क्रोध में युवराजों की दृष्टि अक्सर क्षीण हो जाती है भांजे। क्रोध के जिस अश्व पर तुम सवार हो, उसपर से उतरो। उसपर से उतरोगे तब तुम्हें वास्तविकता का पता चलेगा।"

गजब हैं मामाश्री भी। बिंब और दर्शन ठेलने पर उतारू हो जाएँ तो मजाल है कि बड़े से बड़ा भावार्थ-वीर भी उनकी बातें समझ जाए। जब करीब ढाई मिनटों तक मैंने उन्हें प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा तो उन्होंने मुंह खोला। बोले; "राजनीति का एक पाठ हमेशा याद रखना भांजे। जब प्रजा रूपी कीडे-मकोड़े किसी बात पर बहस करना चाहें तो उन्हें रोकना नहीं चाहिए। दूसरी तरफ जब मीडिया रूपी राजमहलिक सेना उस प्रजा की बहस में हिस्सा ले और उन्हें हिस्सा दे तो उसे भी नहीं रोकना चाहिए। इससे 'हमारी' मीडिया की क्रेडिबिलिटी पुनः स्थापित करने में मदद मिलती है। वत्स दुर्योधन, तुमने यह तो देखा कि मीडिया द्रौपदी चीरहरण पर बहस कर रही है परन्तु अगर तुम अपने क्रोध के अश्व से उतर कर देखते तब तुम्हें मामला समझ में आता। समझ में आता कि मुद्दा द्रौपदी के चीरहरण से तो दूसरे दिन ही हट गया था। तुम क्रोध में थे इसलिए तुम्हें दिखाई नहीं दिया कि विशेषज्ञ, न्यूज एंकर, लेखक, बुद्धिजीवी वगैरह मिलकर चीरहरण पर नहीं अपितु धर्मराज युधिष्ठिर की गलतियों पर बात कर रहे हैं। सारे इस बात पर बहस किये जा रहे हैं कि क्या युधिष्ठिर को अधिकार था कि वह अपने भाइयों और पत्नी को दांव पर लगाता? तुम्हें यह दिखाई नहीं दिया कि हमारी मीडिया किस तरह से प्रजा से सुझाव मांग रही है कि वह बताये कि द्यूतक्रीडा राष्ट्र के लिए सही है या नहीं? तुमने यह नहीं देखा कि हमारे एंकर यहाँ तक सवाल उठा रहे हैं कि जब द्रौपदी को दुशासन दरबार में ले आया तो भीम का क्रोध से लाल हो जाना उचित था या नहीं? क्रोध में तुमने यह नहीं देखा भांजे कि हमारे धर्मशास्त्री और बुद्धिजीवी यह प्रश्न कर रहे हैं कि तुम्हारे अधीन होने के बाद भी राजदरबार में भीम का क्रोधित हो जाना क्या धर्म के विरुद्ध नहीं था? अगर तुम ध्यान से देखो तो पाओगे कि मीडिया एक तरह से तुम्हारी मदद ही तो कर रहा है। तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दे दो। मुझे बताओ कि कौन सा न्यूज एंकर चीरहरण पर बात कर रहा है?"

पूरे सात मिनट बोले मामाश्री। जब बोलते हैं तो बड़े से बड़ा धनुर्धर उनकी बातों से ही मूर्छित हो जाए। उनकी बातें सुनकर मुझे लगा कि मैं तो ऐं-वें ही हलकान हुआ जा रहा था, मामाश्री ने तो सबकुछ पहले ही मैनेज कर लिया है। एकबार फिर से मेरे मन में आया कि अगर मामाश्री नहीं होते तो मैं कौन घाट लगता?

अभी परसों लंच के बाद मैं दुशासन, जयद्रथ और कर्ण इसबात पर विचार कर रहे थे कि क्या किया जाय कि मीडिया और प्रजा का ध्यान द्रौपदी चीरहरण से हटे? दुशासन ने तो यहाँ तक सुझाव दिया कि ध्यान हटाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि दो-चार न्यूज चैनल के कैमरामैन और संवाददाताओ को किसी बहाने हाट में बुलाया जाय और वहीँ दुशासन किसी युवती को छेड़ दे। एक बार अगर इस छेड़-छाड़ की घटना को मीडिया उछाल देगा तो प्रजा का ध्यान राजदरबार में हुई द्रौपदी की बेइज्जती से हट जाएगा। जयद्रथ ने तो यहाँ तक कहा कि क्यों न हम किसी राज्य पर हमला कर दें? हमला कर देंगे तो प्रजा फट से राष्ट्रप्रेमी हो जाएगी और उसे कुछ याद नहीं रहेगा। कर्ण ने सुझाव दिया कि द्वारका से आई तीरंदाजी की बी-टीम के साथ "राजमहल वैरियर्स" का एक फ्रेंडली मैच करवा सकते हैं।

लेकिन मामाश्री की बात सुनकर मुझे लग रहा है कि कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। मुझे अब उनका ही लिखा एक नारा याद आ रहा है कि; "जिन भांजों के साथ हो शकुनि मामा, उनका क्या कर लेगा पहलवान गामा?"

अब मुझे जरा भी टेंशन नहीं है। आज सोच रहा हूँ तो सात दिन पहले दरबार में जो कुछ भी हुआ था वह आँखों के सामने नाच गया। अब लग रहा है कि उस दिन बहुत जोर बच गए। याद आ रहा है कि दुशासन जब द्रौपदी के केश पकड़कर उसे घसीटते हुए दरबार में लाया तो भीम जिस तरह से क्रोधित हुआ, एक क्षण के लिए मेरे मन में भय समा गया था। कोई उस समय देखता तो उसे मेरी आँखों में मृत्यु का भय साफ़ दिखाई देता। मैं सचमुच डर गया था और मुझे लगा कि भीम अभी उठेगा और गदा मार के मेरा माथा फोड़ डालेगा। उसका गुस्साया चेहरा देखकर मेरे मन ने मुझसे कहा; "निकल ले सुयोधन। अगर दरबार में बैठा रहा तो ये भीम आज तेरी हड्डी-पसली एक कर देगा। तुझे मार डालेगा। अभी तो अपनी जान बचा। जान बचेगी तो द्रौपदी को निर्वस्त्र करके उसे जंघा पर बैठाने का सांस्कृतिक कार्यक्रम फिर कभी कर लेगा लेकिन अगर जान ही न बची तो ...."

अब लग रहा है कि ये तो अच्छा हुआ कि द्रौपदी ने पितामह से धर्म पर प्रश्न करके मुद्दे को वहीँ डाईल्यूट कर दिया। मामाश्री की बातें याद आ रही हैं तब समझ मं आ रहा है कि द्रौपदी के प्रश्न की वजह से मुद्दा धर्म वगैरह के चक्कर में फंस कर रह गया नहीं तो कस्सम से बता रहा हूँ, भीम उसदिन मुझे नहीं छोड़ता। अब देखता हूँ तो साफ़ दिखाई देता है कि ये धर्मशास्त्री, विशेषज्ञ, और ज्ञानी टाइप लोग और सबके उप्पर मामाश्री न रहें तो मुझ जैसों के लिए जीना मोहाल हो जाए। रोज ग़दर मची रहे। इनकी वजह से ही उसदिन बच गया था मैं नहीं तो भीम दांत पीसकर तबाही मचाने ही वाला था। थोडा सपोर्ट धर्मराज के ज्ञान से भी मिला उन्होंने ने ही भीम को धर्म ये कहता है और धर्म वो कहता है, बताकर रोक लिया। उन्होंने ही उसे याद दिलाया कि धर्म के अनुसार पांडव बंधु अब मेरे अधीन हैं। भला हो ऐसे धर्माचारियों का जो धर्म के रास्ते पर चलकर अधर्मियों को बचाकर रखते हैं। बाद में मुझे इस बात का एहसास हुआ कि अगर धर्म पर प्रश्न न उठा होता तो उसदिन मामला गदा से ही सुलझता।

आज समझ में आया कि मामाश्री धर्मशास्त्रियों और बुद्धिजीवियों को काहे इतना बढ़ावा देते हैं? पितामह के स्टेटमेंट कि; धर्म कहता है कि पांडव अब सुयोधन के अधीन हैं, ने मुझे बचा लिया। ढाई घंटों तक विद्वानों और तर्कशास्त्रियों को इस बात पर बहस करते देख आनंद आया कि युधिष्ठिर के पास क्या-क्या करने का अधिकार था और क्या-क्या नहीं?

आज शाम की मीटिंग में मामाश्री अट्ठास करते हुए आये। हाथ में तमाम कागज़ थे। बोले; "लो अपनी आँखों से देख लो भांजे कि हमारे अपने न्यूज चैनल्स और अखबारों ने तुम्हें किस तरह से बचा लिया।"

देखा तो उन कागजों पर प्रजा द्वारा दिए गए सुझाव लिखे थे। न्यूज ऐंकर्स ने उनसे सुझाव मांगे थे। यह कहते हुए कि प्रजा द्वारा दिए गए सुझावों को पितामह की अध्यक्षता वाली उस थ्री-मेम्बर्स कमिटी तक पहुंचा दिया जाएगा जो हस्तिनापुर में द्यूतक्रीड़ा के नियमों में होने वाले बदलाव के बारे में विचार कर रही है। एक से बढ़कर एक सुझाव थे। किसी ने सुझाव दिया था कि अबसे द्यूतक्रीड़ा के नियमों में परिवर्तन करके यह निश्चित किया जाय कि भविष्य में कोई भी अपने भाइयों को दांव पर न लगा सके। किसी ने यह सुझाव दिया था कि समाज में महिलाओं की स्थिति पर विचार करने के लिए एक और टू-मेंबर कमिटी बने जो महिलाओं के उत्थान के तरीकों पर अपने विचार राजमहल को दे। किसी ने लिखा था कि ऐसे नियम बनाये जाएँ जिससे कोई महिला किसी युवराज को अंधे का पुत्र कभी न कह सके और अगर कोई महिला ऐसा करे तो उसके लिए कठोर दंड का प्रावधान हो। किसी ने सुझाव दिया था कि द्यूतक्रीड़ा में कोई भी व्यक्ति भाइयों को दांव पर लगाए लेकिन पत्नियों को दांव पर लगाने का अधिकार उसे न दिया जाय। किसी ने तो यहाँ तक सुझाव दिया था कि किसी को भी ऐसा महल बनाने की अनुमति न दी जाय जिसमें फर्श की जगह पानी और पानी की जगह फर्श दिखाई दे। किसी ने सुझाव दिया था यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भविष्य में द्यूतक्रीड़ा का कार्यक्रम किसी न्यूट्रल जगह जैसे किसी स्टेडियम में हो न कि राजमहल में। किसी बैंकर ने सुझाव दिया था कि नए प्रावधानों के अनुसार द्यूतक्रीड़ा में अगर कोई अपना सबकुछ हार जाए तो उसके लिए बैंक से लोन लेकर द्यूतक्रीड़ा के कार्यक्रम को आगे बढाने का महत्वपूर्ण काम सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अगर ऐसा हो जाएगा तो बैंकिंग इंडस्ट्री में क्रेडिट ग्रोथ बरकरार रहेगी और हस्तिनापुर की इकॉनमी मजबूत होगी।

ऐसे-ऐसे सुझाव जिसे पढ़कर मेरी हँसी रुक नहीं रही थी। कहाँ मैं सोच रहा था कि द्रौपदी के लिए कुछ कैश कम्पेंशेसन की घोषणा कर देनी चाहिए ताकि मामला यहीं रुक जाए और कहाँ मामाश्री ने मामले को नया ही मोड़ दिला दिया था। फिर भी मैंने एकबार अपने मन की बात उनसे शेयर की। मैंने कहा; "मामाश्री, क्यों न हम द्रौपदी के लिए कुछ कैश कम्पेंशेसन दिला देते?"

वे बोले; "कैसी बातें करते हो भांजे? अगर ऐसा करोगे तो मेरे मामा होने का क्या फायदा? में तो सोच रहा था कि हम उल्टा द्रौपदी से कैश ले लेंगे। यह कहते हुए कि दुशासन ने इतनी मेहनत की परन्तु वह साड़ी नहीं उतार पाया। ऐसे में क्या धर्म यह नहीं कहता कि पांडव यह सुनिश्चित करें कि दुशासन ने जो बेकारी की उसके लिए उसे कुछ कैश मिले?" आगे बोले; "अब हमें इस मामले को नया मोड़ देना है। अब मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि पूरा हस्तिनापुर इसबात पर बहस करे कि समाज में आमूल-चूल परिवर्तन कैसे लाया जाय? मैं सोच रहा हूँ कि समय आ गया है। समय आ गया है इस थ्योरी को उछालने का कि उसदिन राजदरबार में जो कुछ भी हुआ, उसके लिए पूरा हस्तिनापुर दोषी है। याद रखना भांजे, पूरा हस्तिनापुर दोषी है, इसका मतलब कोई दोषी नहीं है? क्या धर्म पूरे हस्तिनापुर को दंड देगा? अब तुम चिंता छोडो और अपनी युवाराजी पर ध्यान दो। तुम्हें कुछ नहीं होगा। याद रखो मेरा वो नारा कि; "जिन भांजों के साथ हो शकुनि मामा, उनका क्या कर लेगा पहलवान गामा?"

गज़ब हैं मामाश्री भी। मामा कसम, ऐसा मामा दुनियाँ के सभी युवराजों को मिले ताकि उसकी युवाराजी चलती रहे।

11 comments:

  1. वाह! जहां हो शकुनि और उसकी टीम; वहां क्या कल्लेगा इकल्ला भीम! :-)

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  2. सुयोधन को चाहिये कि हस्तिनापुर की वेधशाला पर फ्री में मोमबत्तियां और पोस्टर कागज, कलर पेंसिल आदि दिलवाने की व्यवस्था करे, जिससे जनता का मन लगा रहे।

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  3. गंभीर विषय " द्रौपदी चीरहरण " ...और व्यवस्था पर करार कटाक्ष ...बेहतरीन लेख भैया ...
    मिडिया मैनेजमेंट ...थ्री-मेम्बर्स कमिटी ...मीडिया की क्रेडिबिलिटी .... बैंकर का सुझाव ...सारा कुछ
    इर्द गिर्द घूम रहा हैं ...

    आज पुनः अकेले पढ़ कर हंस हंस कर पेट पीरा रहा हैं ....2013 का इससे शानदार शुभारंभ नहीं हो सकता था
    नव वर्ष की शुभ कामना स्वीकार करे ( ....करेगे न :))

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  4. नए साल का धमाका, एकदम्मै सुपरहिट !!!!

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  5. बैंक लोन के साथ FDI का विचार नहीं आया? जब जुआ चल ही रहा है तो विदेशी भी लगा दे अपना पैसा दाँव लगाने वाले पर...

    बाकि जनता बदली नहीं है, नहीं नहीं कुछ और न समझे. यह तब भी बहस करती थी आज भी करती है ;)

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  6. शकुनी ठीक ही कहते हैं. भला दुर्योधन दोषी कैसे हो सकता है. दुर्योधन के संस्कार ऐसे हैं तो दोष तो धृतराष्ट्र, गांधारी का ही हुआ न. और फिर जुआ का खेल किसने निकाला था? वह तो पहले से ही चला आ रहा था. और फिर धर्मराज को हर दांव हारने की क्या जरूरत थी? दोष तो द्रुपद महाराज का भी था. इतनी सुन्दर बेटी का वर क्यूँ मांग लिया? और तब महल द्रौपदी हंसी न होती, आज इतने बुरे फंसी न होती.
    अब जहाँ इतना कुछ पहले से ही गलत है, वहां दुर्योधन जवानी या नादानी में कोई एक गलती कर दे, तो उसे ही सजा क्यों? कुल मिलाकर किसी का दोष नहीं है. धर्मराज आगे से जुआ न खेलें बल्कि बेहतर हो यदि दारु-जुआ पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगे. दूसरे लोग सीख लेकर अपनी बेटियों को गंदे और बदबूदार कपडे पहनाएं, द्रौपदी या और कोई महल के झरोखे से इधर-उधर न देखे, जिससे उन्हें हंसी न आए. माँ-बाप अपने बच्चों को सही संस्कार दें.
    जब तक ये सब नहीं हो जाता, दुर्योधन को 'सांस्कृतिक कार्यक्रमों'से न रोकें. अब वे तो बदल नहीं सकते, क्या है कि पक्के घड़े पर रंग नहीं चढ़ता.

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  7. धर्म तो चिरकाल से दुर्योधनों (सुयोधनो ) के अधीन है । और शकुनि मामा (न्याय व्यवस्था) उनके कुकर्मों को कालीन के नीचे ठेल रहे हैं ।

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  8. सच में गज़ब हैं मामाश्री :)

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  9. दुष्ट युवराजों का उत्साहवर्धक सहारा,
    शकुनी हमारा..

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय