Thursday, January 30, 2014

युवराज दुर्योधन का साक्षात्कार

आज युवराज दुर्योधन की डायरी के बिखरे पन्नों के बीच उनका एक इंटरव्यू मिला जो द्वापर युगीय किसी पत्रकार ने लिया था जिसका नाम चिंतामणि गोस्वामी है. गोस्वामी जी का कोई विकीपेज तो नहीं जिससे उनके बारे में जानकारी मिले लेकिन इंटरव्यू में उन्होंने जैसे सवाल किये, उन्हें पढ़कर कहा जा सकता है कि वे बड़े धाकड़ पत्रकार थे. मुझे पूरा विश्वास है कि उनके अंदर पत्रकारिता इस तरह से भरी थी कि उनके वंशज आज के भारतवर्ष में कहीं न कहीं पत्रकारिता झाड़ रहे होंगे।

खैर, आप युवराज का इंटरव्यू बांचिये जो मैं यहाँ नीचे टाइप कर रहा हूँ.


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चिंतामणि गोस्वामी: स्वागत है युवराज आपका. आपने साक्षात्कार के लिए समय दिया, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ.

युवराज: धन्यवाद गोस्वामी जी.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज, साक्षात्कार के आरम्भ में ही मैं आपको सूचित कर दूँ कि मैं आपसे जो प्रश्न पूछूंगा वे विशिष्ट प्रश्न होंगे. विशिष्ट इसलिए क्योंकि ऐसे प्रश्न आपसे से निकटता रखनेवाले किसी पत्रकार ने पहले नहीं किये होंगे.

युवराज: जैसी आपकी इच्छा पत्रकार श्री. मुझे कोई आपत्ति नहीं है.

चिंतामणि गोस्वामी: मेरा पहला प्रश्न यह है कि आपने पिछले चौदह वर्षों में व्यक्तिगत साक्षात्कार नहीं दिया. क्या कारण है?

युवराज: ऐसा नहीं है कि मैंने साक्षात्कार नहीं दिया.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मैं व्यक्तिगत साक्षात्कार के बारे में कह रहा था. आपने इससे पहले चौदह वर्ष पूर्व संवाददाताओं के साथ एक प्रश्नोत्तर सत्र किया जब समाचार माध्यमों ने आपके ऊपर आरोप लगाया था कि आपके संबंध पुरोचन से थे.

युवराज: मैं हस्तिनापुर में परिवर्तन देखना चाहता हूँ.

चिंतामणि गोस्वामी: आपके पुरोचन से संबंध थे या नहीं?

युवराज: प्रश्न यह नहीं कि पुरोचन के साथ मेरे संबंध थे या नहीं? प्रश्न यह है कि युवराज सुयोधन कौन हैं?

चिंतामणि गोस्वामी: कौन हैं युवराज सुयोधन?

युवराज: चलिए मैं आपसे प्रश्न पूछता हूँ. आप बताएं कि कौन हैं चिंतामणि गोस्वामी?

चिंतामणि गोस्वामी: आप मुझसे प्रश्न पूछ रहे हैं?

युवराज: हाँ. आप बताएं न कि कौन हैं चिंतामणि गोस्वामी? देखिये, आप जब छोटे होंगे तब आपके मन में तो आया ही होगा कि बड़े होकर आप क्या बनेंगे?

चिंतामणि गोस्वामी: ये मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ युवराज.

युवराज: चलिए मैं आपको बताता हूँ कि चिंतामणि गोस्वामी कौन हैं? चिंतामणि गोस्वामी बाल्यकाल में कुछ बनना चाहते होंगे. अब वे युवराज तो बन नहीं सकते ऐसे में वे पत्रकार बन गए. अब प्रश्न यह है कि वे युवराज क्यों नहीं बन सकते?

चिंतामणि गोस्वामी: अच्छा चलिए मैं दूसरा प्रश्न पूछता हूँ. आपने पांडवों को लाक्षागृह में आग लगाकर मारने का प्रयत्न किया?

युवराज: पांडव हमारे प्रिय है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु आपने उन्हें मारने का प्रयत्न किया था या नहीं?

युवराज: मैं बाल्यकाल से ही पांडवों से प्रेम करता हूँ. इस पृथ्वी पर पांडव मेरे सबसे प्रिय रहे हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: लेकिन आपने फिर भी उनकी हत्या करने का प्रयास किया?

युवराज: आग मैंने नहीं लगाई थी.

चिंतामणि गोस्वामी: चलिए मैं आपसे एक और प्रश्न पूछता हूँ. आपने गुरु द्रोण की पाठशाला में भीम को भी मारने का प्रयत्न किया था?

युवराज: मेरे पिताश्री धृतराष्ट्र जन्म से अंधे हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ.

युवराज: चलिए मैं अपनी बात को ऐसे समझाता हूँ. पत्नी के कहने पर आप हाट में आलू लेने जाते हैं और आपको बीच में आभूषणों का व्यापारी मिल गया. क्या आप आलू भूलकर आभूषण पर मुद्रा व्यय करेंगे? नहीं करेंगे. क्यों? क्योंकि आपके पास उतनी मुद्रा है ही नहीं.

चिंतामणि गोस्वामी: मैं आपसे एक और प्रश्न करता हूँ. आपने दुशासन को आदेश क्यों दिया कि वे द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र कर दें?

युवराज: मेरी माताश्री ने विवाहोपरांत अपनी आँखों पर पट्टी बांधने का संकल्प लिया था.

चिंतामणि गोस्वामी: यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ युवराज.

युवराज: आप मेरी बात को ऐसे समझने का प्रयत्न करें. देखिये, नितिशास्त्र कहता है कि हर कार्य धर्मानुसार होना चाहिए. अब आप कोई कार्य धर्मानुसार तब तक नहीं कर सकते जबतक आपको धर्म की व्याख्या का ज्ञान नहीं है. प्रश्न यह नहीं कि द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रयत्न किया गया या नहीं, प्रश्न यह है कि धर्म क्या होता है? एक और प्रश्न यह भी है कि क्या चिंतामणि गोस्वामी धर्म का पालन कर रहे हैं? इसका उत्तर यह है कि वे नहीं कर रहे क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता की शिक्षा ली है, धर्म की नहीं. अब प्रश्न यह उठता है कि जब उन्होंने धर्म की शिक्षा नहीं ली तो फिर धर्म की शिक्षा किसने ली? उत्तर यह है कि धर्म की शिक्षा युवराज सुयोधन और उनके भाइयों ने ली. अब प्रश्न यह है कि किससे ली? तो उसका उत्तर यह है कि गुरु द्रोण से ली. तो जब हर प्रश्न का प्रमाणिक उत्तर मैं आपको दे ही रहा हूँ तो फिर यह कहना कि मैं आपके प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे रहा, तर्कसंगत नहीं जान पड़ता.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु युवराज, मेरा प्रश्न यह था कि आपने द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने की आज्ञा क्यों दी?

युवराज: मैंने जब अपने बाल्यकाल से ही अपनी माताश्री को आँखों पर पट्टी बांधे देखा तभी से मेरे ह्रुदय में यह बात घर कर गई कि बड़ा होकर मुझे स्त्रियों के अधिकार के लिए कुछ करना है. मैंने तभी से अपना पूरा जीवन स्त्रियों के अधिकार की रक्षा में समर्पित कर दिया.

चिंतामणि गोस्वामी: अच्छा कुरु-नंदन, मेरा प्रश्न अब राज्य की समस्याओं के बारे में है. यह बताएं युवराज कि हस्तिनापुर में मंहगाई की समस्या, भ्रष्टाचार की समस्या, किसानो की समस्या और ऐसी ही न जाने कितनी और समस्याएं हैं, जिनसे हस्तिनापुरवासी संघर्ष कर रहे हैं. आपके पास शक्ति है कि आप इन समस्याओं का समाधान कर सके. आपने आजतक कभी इस समस्याओं का समाधान की दिशा में क्यों नहीं सोचा?

युवराज: मैंने इन समस्याओं पर समग्र चिंतन किया है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु किसी ने आपको इन समस्याओं पर बात करते नहीं देखा.

युवराज: मैंने अपनी डायरी में इन समस्याओं और इनसे जुडी चिंताओं का वर्णन किया है.

चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु प्रजा-जनों को आपकी डायरी से क्या लेना-देना?

युवराज: आपने मेरे उत्तर को समझा नहीं. चलिए मैं आपको ऐसे समझता हूँ. कल्पना कीजिये कि मैं आखेट के लिए जंगल में गया. आप प्रश्न कर सकते हैं कि आपके प्रश्न का मेरे आखेट और हस्तिनापुर के जंगल से क्या लेना-देना? तो उसका उत्तर यह है कि आखेट ही हर प्रश्न का उत्तर है. और मैं जबतक जंगल में नहीं जाऊँगा तबतक आखेट नहीं कर पाऊंगा. प्रश्नों के जंगल में ही कहीं उत्तरों का भी एक जंगल समाया हुआ है. मैंने हमेशा से प्रश्न और उत्तरों के जंगल में विचरण करने को ही अपना धर्मं माना है. इस काल की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम युवराजों के लिए आरक्षित जंगलों को प्रजा-जनों के लिए खोल दें. यदि जंगल खुले तो हर प्रश्न के साथ उसका उत्तर भी खुल जायेगा परन्तु समस्या यह है कि जब मैं जंगलों को खोलने की बात करता हूँ तो पांडव यह बात नहीं करते.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मेरा अगला प्रश्न यह है कि आपके मामाश्री क्या आपको अधर्म करने के लिए उकसाते रहे हैं?

युवराज: जब पाठशाला में गुरु द्रोण ने एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया था मुझे उसी क्षण लगा था कि ये एकलव्य एकदिन बहुत बड़ा धनुर्धर बनेगा।

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज यह मेरे प्रश्न का उत्तर कैसे हुआ?

युवराज: यही कारण है कि मैं हस्तिनापुर में राजपाट के तौर-तरीके में आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहता हूँ. धर्म क्या है? अधर्म क्या है? प्रश्न क्या और उत्तर क्या है? इन सब बिंदुओं पर विचार कर उनकी पुनः व्याख्या प्रजा-जनों को संतोष प्रदान करेगी।

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज, ये बताएं कि प्रजा-जनों के भले के बारे में आपके पास कोई योजना है?

युवराज: हमारे पास प्रजा-जनों की भलाई की समग्र योजना है. हम निकट भविष्य में हस्तिनापुरवासियों को खेल-कूद का सम्पूर्ण अधिकार प्रदान करने वाले हैं.

चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मेरा एक प्रश्न यह है कि क्या आप भीम से लड़ने के लिए उद्यत हैं? मैं यह प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूँ कि प्रजा-जनों में ऐसे अनुमान लगाये जा रहे हैं कि आप भीम से भयाक्रांत हैं. इस बात को कहाँ तक सत्य माना जाय?

युवराज: मैंने बाल्यावस्था से ही अपने पिताश्री को संजय के सहारे चलते हुए देखा है. मेरी माताश्री ने विवाहोपरांत ही आँखों पर पट्टी बांधने का निर्णय ले लिया था. मेरी एकमात्र बहन का विवाह जयद्रथ जैसे हलकट के साथ हो गया. मेरे मामाश्री न जाने कितने वर्षों से अपनी बहन के घर की रोटियां तोड़ रहे हैं. पितामह ने सदैव अर्जुन को ही अपना चहेता माना. मैं द्रौपदी स्वयंवर में द्रौपदी को वरण नहीं कर पाया. भीम बाल्यावस्था में हम भाइयों को पटककर मारता था. भीम को विष देकर मारने का प्रयत्न किया तो वह नागलोक में जाकर और बलशाली बन गया. मित्र कर्ण को द्रौपदी ने सूत-पुत्र कहा और मैं कुछ नहीं कर पाया. गुरु द्रोण को वचन देने के उपरांत भी मैं महाराज द्रुपद को बंदी बनाकर लाने में असफल रहा. पत्रकार श्री जिस युवराज सुयोधन के साथ इतनी दुर्घटनाएं हुई हों, उसके पास खोने को क्या रह जाता है? मुझे अब किसी से भय नहीं लगता.

चिंतामणि गोस्वामी: तो क्या मैं यह निष्कर्ष निकालूँ कि आवश्यकता पड़ने पर आप भीम से युद्ध करने के लिए तत्पर हैं?

युवराज: न केवल तत्पर हूँ अपितु यह भी कहता हूँ कि भीम का वध भी करूँगा।

चिंतामणि गोस्वामी: हे कुरु-नंदन आपने यह साक्षात्कार देकर मुझे अनुगृहीत किया. धन्यवाद.

युवराज: धन्यवाद.

Monday, January 13, 2014

हस्तिनापुर

बहुत दिनों बाद करीब सौ ग्राम तुकबंदी/पैरोडी इकठ्ठा हुई है. अभी तो इतना ही बांचिये। आगे इकट्ठी होगी तो प्रस्तुत करूँगा:-)



जय हो जग में जमे जहाँ, औ भ्रष्टाचार अचल हो,
जहाँ रात-दिन नागरिकों संग लूट-पाट हो, छल हो,
जहाँ राष्ट्रहित चिंतक, साधक अपराधी कहलायें,
शासक जहाँ भ्रष्ट हो फिर भी नीतिवचन दोहराए

जहाँ प्रताड़ित हो खुद को धिक्कार रहा जन-जन हो,
जहाँ शुल्क और कर से कुचला शासित का तन मन हो,
जहाँ नीति हो शासन करना जन-जन को वंचित कर,
जहाँ राज करता हो शासक बेशर्मी संचित कर,

जहाँ प्रिंस सम्मान ढूंढता नाम-गोत्र बतलाकर,
खोज रहा पहचान-मान जो दलितों के घर खाकर,
स्वामि-भक्त आमात्य जहाँ चुप्पी साधे जीता हो,
जहाँ नागरिक रोज-रोज अपमान-घूँट पीता हो,

जहाँ ज्ञानसागर गिरवी हो राजमहल में सोता,
कपट खोट से कुंठित होकर निपुण व्यक्ति भी रोता,
जहाँ मिलें अधिकार उन्हें जो हैं कुपात्र और ओछे,
जहाँ सब जगह चमचे मिलते धारण किये अगौंछे,

जहाँ खुशामद जो करता हो, वही श्रेष्ठ ज्ञानी हो,
जहाँ लहू बहता हो जैसे नदियों का पानी हो,
जहाँ दिखाई न देती हो निर्भयता की आग,
जहाँ सुरक्षित नहीं किसी दिश नागरिकों की लाज,

जहाँ समूचा राष्ट्र पड़ा हो अलग दूर कोने में
जहाँ राष्ट्र का आम नागरिक लगा रहे रोने में,
जहाँ नागरिक वंचित हो आधारभूत साधन से,
और जहाँ हो कार्य सिद्ध बस संबंधों से, धन से,

युग की अवहेलना जहाँ हो शासक दल के कर से,
जहाँ कभी आमात्य न निकलें अपने-अपने घर से,
जहाँ दास बन जीवनयापन सर्जक भी करता हो,
जहाँ बुद्धि का स्वामी शासक का पानी भरता हो,

जहाँ करारोपण करने में सत्ता रहती व्यस्त
जहाँ रहे मृतप्राय राष्ट्र और रहे नागरिक पस्त,
जहाँ नशा सत्ता का करवाता रहता अन्याय,
जहाँ अनैतिक शासक करता रहता अर्जित आय,

जहाँ शासकों के मित्रों का बढ़ा चले व्यापार,
जहाँ दुखी होकर सुपात्र बस कहता हो धिक्कार,
वंशवाद की राजनीति हो जहाँ, राष्ट्र मरता हो,
जहाँ प्रजा का नायक भी शासक दल से डरता हो,

जहाँ भीष्म चुप्पी साधे इस युग में भी रहते हों,
जहाँ विदुर बस दुर्योधन की हाँ में हाँ भरते हों,
जहाँ द्रोण और कृपाचार्य फिर हों कौरव के साथ,
जहाँ कर्ण ने कलियुग में भी बाँध लिए हों हाथ,

जहाँ सुरक्षित नहीं दीखती कहीं राष्ट्र सीमायें,
जहाँ पड़ोसी धमकी भी दे अंदर भी घुस आयें,
तुष्टीकरण जहाँ हो आतंकी का, अपराधी का,
जहाँ राज साधन देता हो राष्ट्र की बरबादी का,

जहाँ रहे शासक सह मंत्री निज घमंड में चूर,
जहाँ महल होते जाते है प्रजा जनों से दूर,
जहाँ फूलते कुसुम मात्र अमात्यों के उपवन में,
जहाँ उमड़ता क्रोध ग्लानि बस नागरिकों के मन में,

वहाँ नहीं रख सकता शासक प्रजा-जनों को बांधे,
वहाँ नीयति अपने रस्ते चल अपना आशय साधे,
बुझनी ही हैं वहाँ मनों में धधक रही जो ज्वाला,
वहाँ प्रजा देगी शासक को एक दिन देश निकाला.


Friday, January 3, 2014

आम आदमी, खाँस आदमी

तोला भर तुकबंदी



आम आदमी, खाँस आदमी
मार रहा है बास आदमी
नई-नई टोपी पहनाकर
टाँक रहा इतिहास आदमी

बंगला-मोटर नहीं चाहिए
छोटा सा घर कहीं चाहिए
बड़े बड़े वादे करके भी
घूम रहा बिंदास आदमी

वादे-प्यादे हैं प्रचार में
पर शहज़ादे हैं विचार में
क्लेम करे मिर्चा अचार का
खाये खाली सॉस आदमी

बिजली सस्ती पानी सस्ता
काँधे धारे मोटा बस्ता
भ्रष्टाचार मिटाने वाला
उसी का अंतिम आस आदमी

कहता साथ चलेंगे सबके
जिससे काज फलेंगे सबके
लेकिन आखिर भूले सबको
और करे उपहास आदमी

लोकतंत्र का ढोंग रचाकर
अपनी प्रतिमा खूब सजाकर
फिर लोगों की आशाओं का
करता सत्यानाश आदमी