Friday, January 3, 2014

आम आदमी, खाँस आदमी

तोला भर तुकबंदी



आम आदमी, खाँस आदमी
मार रहा है बास आदमी
नई-नई टोपी पहनाकर
टाँक रहा इतिहास आदमी

बंगला-मोटर नहीं चाहिए
छोटा सा घर कहीं चाहिए
बड़े बड़े वादे करके भी
घूम रहा बिंदास आदमी

वादे-प्यादे हैं प्रचार में
पर शहज़ादे हैं विचार में
क्लेम करे मिर्चा अचार का
खाये खाली सॉस आदमी

बिजली सस्ती पानी सस्ता
काँधे धारे मोटा बस्ता
भ्रष्टाचार मिटाने वाला
उसी का अंतिम आस आदमी

कहता साथ चलेंगे सबके
जिससे काज फलेंगे सबके
लेकिन आखिर भूले सबको
और करे उपहास आदमी

लोकतंत्र का ढोंग रचाकर
अपनी प्रतिमा खूब सजाकर
फिर लोगों की आशाओं का
करता सत्यानाश आदमी



14 comments:

  1. आम से ख़ास होना मानवीय स्वभाव है। प्रत्येक मानव इस प्रयास में होता है कि समाज में एक "पहचान" बनाये। यही बात उसे विशिष्ट या ख़ास होने को प्रेरित करती है। किन्तु यही तत्व बाद में वर्ग परिवर्तन का कारक भी बनता है।
    http://haridhari.blogspot.in/2013/12/common-manmango-man-aam-admi.html

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  2. अतिश्योक्ति.....

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  3. हा हा आम आदमी खाँस आदमी। खाँसता ही कर देते तो भी चलता।

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  4. जी लेने दो, ख़ास आदमी।

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  5. आदमी जब चुनाव जित कर जाता है वह खास हो जाता है |परन्तु उसका व्यावहार आम आदमी जैसा होना चाहिए तभी वह आम आम आदमी कहलायगा |
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
    नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
    नई पोस्ट नया वर्ष !

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  6. सुन्दर कविता । तीखा व्यंग्य । लेकिन यह खाँस क्या है ।

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  7. लूट मार ठगई चोरी का रचता नया इतिहास आदमी

    बहुत सुन्दर और समकालीन परिस्थतियों को बखुबी व्यक्त करती कविता लिखी है आपने।

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  8. सुंदर कवि‍ता ।
    कृप्‍या यह कवि‍ता मुझे अपनी नई मैगजीन में छापने की अनुमति‍ दें!
    http://jitjiten.blogspot.in/2014/01/blog-post.html
    EMAIL : jitjiten@gmail.com

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  9. gurudev, maine pehle bhi kaha hai, aur phir kehta hun - parasi ji ke baad yadi koi vyangkar hua hai, to wo aap hain !

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  10. एकदम भड़ास-निकाल कविता। राजनैतिक आशय समझ में तो आता है लेकिन आधारहीन है।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय