पाठशाला में सारी तैयारी हो चुकी थी. गुरु द्रोणाचार्य अपने चेलों की नेट-प्रैक्टिस के लिए चिड़िया को पेड़ पर टंगवा चुके थे. उन्हें पता था कि केवल अर्जुन को ही चिड़िया की आँख दिखाई देगी और उनके बाकी चेले निशाना लगाने के बावजूद पेड़ से लेकर मैदान तक सबकुछ देखेंगे. फिर भी उन्होंने खानापूर्ति के लिए युधिष्ठिर से पूछा; "युधिष्ठिर, तुमने चिड़िया पर निशाना लगा लिया हो तो बताओ कि तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"
युधिष्ठिर बोले; "हे गुरुदेव, मुझे डाल से लटकाई गई चिड़िया दिखाई दे रही है. जिस डोरी से उसे लटकाया गया है, वह डोरी दिखाई दे रही है. पेड़ दिखाई दे रहा है. पेड़ की डालें दिखाई दे रही हैं. पत्ते दिखाई दे रहे हैं. आप दिखाई दे रहे हैं. और हे गुरुदेव, मुझे संसार में चारों तरफ फैला अधर्म दिखाई दे रहा है. अधर्म से पीड़ित धर्म दिखाई दे रहा है. मुझे दुशासन के कान में कुछ कहता दुर्योधन दिखाई...."
गुरु द्रोणाचार्य बोले; "ए बेटा, तुमसे नहीं होगा. तुम एक तरफ खड़े हो जाओ."
उसके बाद उन्होंने भीमसेन को निशाना लगाने के लिए कहा. जब भीम ने निशाना लगा लिया तब उन्होंने उनसे पूछा; "वत्स भीमसेन, तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"
भीमसेन बोले; "गुरुदेव मुझे वह सबकुछ दिखाई तो दे ही रहा है जो भ्राताश्री युधिष्ठिर को दिखाई दे रहा था, उसके अलावा मुझे नेट प्रैक्टिस के बाद खाए जानेवाले जलपान दिखाई दे रहे हैं. मुझे बगीचे में आम के पेड़ के नीचे रखे टेबल पर रखा खीर का पात्र और लड्डुओं से भरा परात दिखाई दे रहा है. साथ ही मुझे उस बदमाश दुर्योधन का माथा दिखाई दे रहा है और हे गुरुदेव, इच्छा तो हो रही है कि पहले मैं इस दुर्योधन का माथा फोड़ आऊँ, निशाना वगैरह बाद में लगाउँगा"
भीमसेन की बात सुनकर गुरु द्रोण बोले; "तुम भी अपना धनुष-वाण लेकर हट जाओ और युधिष्ठिर के पास खड़े हो जाओ. तुम्हें मेरी आज्ञा है कि दुर्योधन के पास मत जाना"
भीमसेन जाकर युधिष्ठिर के पास खड़े हो गए.
इसी तरह गुरु द्रोण ने सभी चेलों से एक ही प्रश्न कर और उनके जवाब सुनकर भगा दिया. उन्होंने अंत में अर्जुन को बुलाया. अर्जुन ने धनुष पर वाण रखकर निशाना लगाया. गुरु द्रोण ने उनसे पूछा; "अर्जुन, तुम बताओ कि तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"
अर्जुन बोले; "हे गुरुदेव, आपको यह नहीं पूछना चाहिए कि मुझे क्या-क्या दिखाई दे रहा है? आप मात्र यह पूछें कि मुझे क्या दिखाई दे रहा है"
द्रोण बोले; "ऑब्जेक्शन सस्टेंड. अच्छा मैं फिर से प्रश्न करता हूँ; तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?"
अर्जुन बोले; "हे गुरुदेव, मुझे उस चिड़िया की आँख दिखाई दे रही है और आँख के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा"
यह सुनकर गुरु द्रोण की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने अर्जुन को गले से लगा लिया. इस दृश्य को देखकर आकाश में बैठे इंद्र के प्रभारी देवताओं के मन में आया कि तुरंत पुष्पवर्षा कर दी जाय लेकिन वे ऐसा न कर पाये. जल्दी-जल्दी में वे पुष्प लाना भूल गए थे.
खैर, गुरुवर देशबंधु … क्षमा करें, गुरुवर द्रोण ने अर्जुन को गले से लगाया. उन्हें शाबाशी प्रदान की और बोले; "हे पांडुनंदन अर्जुन, मैं आज तुम्हें वचन देता हूँ कि इस संसार में तुमसे बड़ा धनुर्धर कोई नहीं होगा"
उसदिन के लिए नेट प्रैक्टिस खत्म हुई और सारे राजकुमार जलपान पर टूट पड़े.
कुछ दिन बीते. एकदिन सारे राजकुमार पाठशाला में पड़े-पड़े बोर हो रहे थे तो उन्होंने सोचा कि क्यों न जंगल में घूम लिया जाय. घूमने का फैसला कर वे निकल पड़े. अब राजकुमार हैं तो उनके कुत्ते भी होंगे ही. हस्तिनापुर महाराज भरत के जमाने से आगे बढ़ चुका था इसलिए बाघों की जगह अब कुत्तों ने ले ली थी.
तो सारे राजकुमार एक कुत्ता लेकर जंगल भ्रमण पर निकल गए. अपने धर्म का पालन करते हुए कुत्ता राजकुमारों के पीछे-पीछे चल रहा था. कुछ दूर जाने के बाद राजकुमारों पीछे मुड़कर देखा तो कुत्ता उनके साथ नहीं था. अब वे जंगल भ्रमण भूल कुत्ते की खोज में निकल गए. खैर, थोड़ी देर बाद कुत्ता मिला. कुत्ते अक्सर मिल ही जाते हैं.
लेकिन राजकुमारों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि कुत्ते के मुँह में सात वाण ठूंस दिए गए हैं और इस तरह ठूंसे गए हैं कि कुत्ते के मुंह में खून भी नहीं लगा था. बाकी राजकुमारों के लिए तो बात आई-गई हो गई लेकिन अर्जुन चिंतित थे. उन्हें तुरंत गुरु द्रोण का वचन याद आया. कुत्ते को लिए वे गुरु द्रोण के पास पहुंचे और छूटते ही प्रणाम कर बोले; "हे गुरुवर, आपने तो वचन दिया था कि मुझसे बड़ा धनुर्धर पूरे संसार में नहीं होगा फिर यह कौन है जिसने वाण चलाकर कुत्ते के मुंह बंद कर दिया? इसका अर्थ यह है कि कोई न कोई है जो मुझसे बड़ा धनुर्धर है"
गुरु द्रोण भी आश्चर्यचकित थे. इतने बड़े धनुर्धर की जानकारी मिलने के बावजूद वे खुश होने की जगह दुखी थे. उन्हें लगा कि उनका वचन तो असत्य साबित हो जाएगा. वे अर्जुन और बाकी राजकुमारों को लिए उस धनुर्धर की खोज में निकल गए जिसके अंदर धनुर्धरी की ऐसा प्रतिभा थी. कुछ दूर चलने के पश्चात उन्हें एक स्थान पर वाण चलकर प्रैक्टिस करता हुआ एक योद्धा मिला. कुत्ते ने भी योद्धा को पहचान लिया और वहीँ रुक गया. सब जान चुके थे कि यही वह धनुर्धर है जिसने कुत्ते की यह दशा की थी.
गुरु द्रोण को देखकर वह धनुर्धर रुक गया. उसने गुरु द्रोण को प्रणाम किया. कुछ ही क्षणों में उन्होंने उसे पहचान लिया. वह एकलव्य था. उसने गुरु द्रोण को सारी बात बताई कि कैसे पाठशाला से वापस किये जाने के बाद उसने गुरु द्रोण की मूर्ति बनाई और उसे ही प्रणाम करके धनुर्विद्या सीखने लगा. उधर वह सारी बात बता रहा था और इधर गुरुवर मन ही मन सोच रहे थे कि वे कैसे अपने वचन की लाज रखें.
अंत में उन्होंने दुविधा और शर्म का त्याग कर एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अँगूठा मांग डाला. उनके अपने वचन के आगे एकलव्य की प्रतिभा के लिए कोई स्थान नहीं था.
गुरुदक्षिणा में अंगूठा काटकर देने की उनकी मांग सुनकर एकलव्य जरा भी विचलित नहीं हुआ. उसने कहा; "हे गुरुश्रेष्ठ, मैं गुरुदक्षिणा में आपको अपना अँगूठा देने में जरा भी पीछे नहीं हटूँगा. परंतु हे गुरुदेव, आपसे धनुर्विद्या सीखने चक्कर में मैंने महीनों से स्नान नहीं किया है. अब मैं कोई राजकुमार तो हूँ नहीं, जो विद्या ग्रहण करते समय भी ठाट से रहता. ऐसे में हे गुरुदेव, आपको गुरुदक्षिणा में अंगूठा देने से पहले मैं शुद्ध होना चाहता हूँ. मैं कल स्नान करूँगा और उसके बाद आपको अँगूठा काटकर दे दूँगा. आप मुझे कल सुबह तक का समय दें"
गुरु द्रोण खुश हो गए. वे तो खुश थे ही, धनुर्धर अर्जुन यह सोचकर उनसे भी ज्यादा खुश थे कि संसार के सबसे बड़े धनुर्धर के उनके पद पर अब कोई संकट नहीं था. दोनों वापस पाठशाला आ गए.
दूसरे दिन गुरु द्रोण नींद से जाग, नित्यक्रिया कर एकलव्य की प्रतीक्षा करने लगे. सारे राजकुमार उनके साथ थे. पाण्डु राजकुमार यह सोचकर फूले नहीं समा रहे थे कि गुरुवर द्वारा एकलव्य से अँगूठा लेने के कारण अर्जुन महान बने रहेंगे. वे एकलव्य की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी हस्तिनापुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति का चारण एक नोटिस लिए उपस्थित हुआ. उसने गुरु द्रोण के हाथ में नोटिस थमा दिया. उन्होंने नोटिस खोला.
यह उपकुलपति की तरफ से एक कारण बताओ नोटिस था जिसमें लिखा था; "एकलव्य नामक छात्र से मिली शिकायत के अनुसार यह प्रकाश में आया है कि आप गुरुदक्षिणा में शिष्यों से उनका अँगूठा कटवा लेते हैं. अगर यह सच है तो आप यह बतायें कि क्यों न उपकुलपति द्वारा आपके पाठशाला को दी गई मान्यता को रद्द कर दिया जाय और आपके ऊपर मानवाधिकार को नष्ट करने का मुकदमा क्यों न चलाया जाय?"
अभी वे यह नोटिस पढ़ ही रहे थे कि अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्यालय से एक नोटिस......
परेशान गुरुवर के माथे पर पसीने की बूँदें पड़ने लगी. वे पोछना शुरू ही करने वाले थे कि अचानक नींद से उठकर बैठ गए. देखा तो सामने उनका पुत्र अस्वथामा खड़ा था. उसने गुरु द्रोण पर दृष्टि डाली मानो कोई प्रश्न कर रहा हो.
गुरु द्रोण बोले; "अपराध बोध अब जीवनपर्यन्त साथ नहीं छोड़ेगा पुत्र"
वाह, सुन्दर व्यंग
ReplyDeleteअपराध बोध...........ऐसा भी कुछ होता है क्या?
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ReplyDeleteThanks
Ayaan
बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार
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