ये मुख पे शांति भाव औ;
आवाज़ में ये भारीपन
कि जिसकी बात-बात में
दिखाई दे रहा पतन
असत्य ले जुबान पर
असत्य ले जुबान पर
जो जीये झूठी शान पर
कि भ्रष्ट को बचाने का ये;
जिसके काँधे भार है ?
ये कौन पत्रकार है?
ये कौन पत्रकार है?
है शस्त्र शत्रुदेश का
जो राष्ट्र के विरुद्ध है
जो त्रस्त अपने लोभ से
विचार से अशुद्ध है
आकंठ डूब गर्त में
आकंठ डूब गर्त में
ऋणी है भ्रष्ट शर्त में
कि जिसके शब्दवाण सह के;
सत्य तार-तार है
ये कौन पत्रकार है?
ये कौन पत्रकार है?
जो तर्क में गरीब पर;
कलम चलाये जा रहा
न देखता है राष्ट्रहित
जो झूठ की है खा रहा
जिसे न गर्व देश पर
जिसे न गर्व देश पर
जो हँस रहा है क्लेष पर
चढ़ा है जिसकी लेखनी से
झूठ का बजार है
ये कौन पत्रकार है?
ये कौन पत्रकार है?
दलाल सत्ता का है जो
गले मिले जो पाप के
असत्य का व्यापारी जो
कहे जो सत्य नाप के
जो अपना धर्म भूलकर
जो अपना धर्म भूलकर
रहे जो कर्म भूलकर
कि जिसके आचरण को देख;
देश शर्मसार है
ये कौन पत्रकार है,
ये कौन पत्रकार है
बहुत शानदार रचना। "ये कौन चित्रकार है " गाने से प्रेरित लगती है।
ReplyDelete--
सादर,
शिवेंद्र मोहन सिंह
भैया, ये पढ़ने के लिए पेंडिंग था पर पढ़ने के पहले ही कवि सम्मेलन में सुनने को मिला :)
ReplyDelete:-)
Deleteवाह!
ReplyDeleteजिन्दाबाद
ReplyDeleteशानदार रचना।
ReplyDeleteमाता सदा सहाय रहें तुमपर....आत्मा तर कर दिया....
ReplyDeleteलिखते रहो ऐसे ही....
आज पढ़ा रुच्चन ने शीर्षक और आपके दिए लिंक से । वाह ।
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