नेता और पत्रकार एक शाम शराब पर "देश के लोकतंत्र को और मजबूत कैसे किया जाय?" नमक गंभीर प्रश्न पर चिंतन कर रहे थे. पास ही ताल ठोककर ब्लास्ट की जिम्मेदारी लेनेवाले एक आतंकवादी संगठन ने बम फोड़ दिया. दोनों भगवान को प्यारे हो गए. इधर इन दोनों ने धरती त्यागी और उधर धर्मराज का दूत दोनों को लेने आ पहुँचा. घटनास्थल पर पहुँचकर इस दूत के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि नेता की आत्मा से तो उसकी भेंट हो गई लेकिन पत्रकार की आत्मा आस-पास दिखाई नहीं दी. दूत ने बड़ी खोजबीन की. पत्रकार की आत्मा को आवाज़ भी लगाईं लेकिन उसकी तरफ से जवाब नहीं मिला.
परेशान होकर धर्मराज का दूत केवल नेता की आत्मा काँधे पर लादे धर्मराज के पास पहुँचा। वहाँ पहुँच जब लाई गई आत्मा की एंट्री रजिस्टर में करवा रहा था तब धर्मराज ने पूछा; "पत्रकार की आत्मा क्यों नहीं लाये? तुम्हारा काम अब आउटसोर्स करने लगे हो क्या?"
दूत बोला; "क्षमा करें धर्मराज, पत्रकार की आत्मा की मैंने बहुत खोज की लेकिन वह मिली ही नहीं. मैंने आवाज भी लगाईं थी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो मैंने घटनास्थल पर जो आवाज लगाईं थी उसका खुद स्टिंग भी कर लिया है ताकि आप गुस्सा हों तो आपके सामने सबूत दे दूँ."
धर्मराज ने स्टिंग देखा. उसके बाद वे भी सोच में पड़ गए कि पत्रकार की आत्मा कहाँ गायब हो गई? वे सोच ही रहे थे कि कांख में दुनियाँ की करनी का खाता लिए चित्रगुप्त पधारे. धर्मराज को सोचते हुए देख शायद कारण भांप गए. छूटते ही बोले; "प्रभु कहीं आप उस पत्रकार की गायब आत्मा के बारे में सोचकर चिंतित तो नहीं हैं?"
धर्मराज बोले; "हाँ चित्रगुप्त, ये कैसे हुआ कि नेता की आत्मा तो दूत को मिल गई लेकिन पत्रकार की आत्मा गायब हो गई?"
चित्रगुप्त बोले; "भगवन, मेरे और मेरे खता-बही के रहते आप नाहक परेशान हो रहे हैं."
धर्मराज ने पूछा; "तो क्या तुम्हें पता है कि पत्रकार की आत्मा कहाँ है?"
चित्रगुप्त ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया; "मुझे सब पता है प्रभु. सबकी करनी का हिसाब रखता हूँ तो उनकी आत्माओं का भी हिसाब रखना ही पड़ेगा. दरअसल पत्रकार की आत्मा इस नेता की आत्मा की टेंट में है"
धर्मराज के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. बोले; "पत्रकार की आत्मा नेता की आत्मा की टेंट में? लेकिन ऐसा हुआ कैसे चित्रगुप्त?"
चित्रगुप्त ने रहस्य खोला. बोले; "हे भगवन, वो इसलिए क्योंकि इस पत्रकार ने अपनी आत्मा इस नेता को बेंच दी थी और वर्षों से उस आत्मा का मालिक ये नेता ही था. ये देखिये इसके टेंट से मैंने पत्रकार की आत्मा निकाल ली" कहते हुए चित्रगुप्त ने नेता की आत्मा के जेब से पत्रकार की आत्मा निकालकर धर्मराज के सामने रख दिया.
उसके बाद उन्होंने नेता और पत्रकार की करनी का हिसाब करना शुरू किया।
जब हिसाब हो गया तो धर्मराज बोले; "हाँ तो क्या हिसाब निकला चित्रगुप्त?"
चित्रगुप्त बोले; "हे भगवन, जब से यह पत्रकार कार्यक्षेत्र में आया है तभी से इसने इस नेता के लिए काम किया है. इसने इस नेता और उसकी पार्टी के लिए सत्य को छिपाया है, तोड़-मरोड़ कर दिखाया है, आधा सच बोला है, पोल नहीं खोला है, इससे रुपया खाया है और झूठ फैलाया है"
धर्मराज बोले; "दोनों ने एकसाथ मिलकर पाप किया है. करोड़ों लोगों से एकसाथ सत्य छिपाने से बड़ा पाप और क्या होगा? दोनों को कम से कम अगले दस जनम तक मुक्ति नहीं मिल सकती. इन्हें मुक्ति न मिले उसके लिए जरूरी है कि ये पाप करते जाएँ. जबतक पाप करते रहेंगे, मुक्ति का इनका रास्ता कठिन होता जाएगा. इन्हें फिर से मनुष्य बनाकर पृथ्वी पर भेज दो."
चित्रगुप्त ने पूछा; "मनुष्य बनकर ये वहां तो जायेंगे ही लेकिन इनसे ऐसा कौन सा काम करवाया जाय प्रभु जिससे इनके ऊपर पाप चढ़ता रहे?"
धर्मराज बोले; "किसी बड़े मंदिर में नेता को जानवरों का व्यापारी बना दो और पत्रकार को वो पंडित बना दो जो जानवरों की बलि देता है. बाकी का काम पाप खुद कर लेगा"
चित्रगुप्त आसाम का नक्शा लिए अपने टाइपिस्ट को आर्डर.....
नेता के जेब में पत्रकार.
ReplyDeleteकम्बख्त कितनों की जेब में एक साथ रह लेता है?
सुना है NGO की भी जेब होती है.
पर्पेचुअल पाप स्पायरल :)
ReplyDeleteकुछ एक पत्रकार तो आजकल नेता जी की आत्मा लेकर भी घूम रहे है
ReplyDeletehttp://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/mauka-mauka.html
और हम समझते रहे कि बहुत पुण्य कर्म करने के बाद मनुष्य जन्म मिलता है!!!!!!!!!
ReplyDeleteऔर हम सोचते रहे कि बहुत पुण्य कर्मों के बाद मनुष्य का जन्म मिलता है।
ReplyDelete"अद्भुद"
ReplyDeleteएकदम बेचारा और गरीब है इसके लिए
अद्भूत
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