Monday, January 28, 2008

तुम मुझे पैसे दो, मैं तुम्हें नेता दूँगा.


मीडिया समूह बड़ा दुखी था. उसे दुःख इस बात का था कि करोड़ों भारतीयों ने हजारों बार वोट दिया लेकिन एक ऐसा नेता नहीं चुन पाये, जो भारत को 'लीड' कर सके. अभी तक जितने नेता चुने गए, ज्यादातर ने भारत को लीद ही किया, 'लीड' नहीं कर सके. बस, फिर क्या था. इस मीडिया समूह ने जनता को बताया कि; "तुम सब अंधे हो. नेता तुम्हारे बीच है और तुमने देखा नहीं. तुम्हें उसकी पहचान नहीं है. तुमसे कुछ नहीं होगा. अब नेता चुनने का काम तुम हमपर छोड़ दो और देखो कि हम बिना वोट दिए कितना बढ़िया नेता चुनते हैं."

जनता को फटकार लगाना नेता चुनने की पहली सीढ़ी थी. उसके बाद चुनाव प्रचार शुरू हुआ. गुलज़ार साहब से गीत लिखवाया गया. उन्होंने लिखा; "भारत उम्मीद से है." अमिताभ बच्चन साहब को प्रचार के लिए बुलाया गया. वे चुनाव प्रचार में उतरे. बाद में शाहरुख़ खान और जूनियर बच्चन भी उतरे. सब ने चुनाव प्रचार शुरू किया. करते गए. 'नेताओं' की तलाश हुई. जनता से कहा गया कि जिन्हें नेता बनना हो, अपना हाथ ऊपर करें टाइप से. बहुत सारे हाथ ऊपर किए गए. जनता आशा लगाए मीडिया समूह का मुंह ताक रही थी. भारत का भविष्य अब मीडिया समूह के हाथों में है.

लेकिन ये क्या? जिस नेता को चुनने का विश्वास इस समूह ने दिया था, उसी को चुनने के लिए ये लोग वापस जनता के पास हाजिर हैं. कहते हैं; "टीवी प्रोग्राम देखो, वोट दो, तब जाकर एक अदद नेता की प्राप्ति कर सकोगे." मतलब नेता चुनने के लिए वोट तो देना ही पडेगा. जनता लग चुकी है वोट देने में. पैसा खर्च कर रही है, इस आशा के साथ कि 'एक दिन ऐसा नेता मिलेगा, जो हमें वैतरणी पार कर के ही दम लेगा.' टीवी प्रोग्राम में दिखाने के लिए सवाल पूछने का सांस्कृतिक कार्यक्रम भी है; "अच्छा भैया ये बताओ कि मुद्रास्फीति की वजह से अर्थव्यवस्था को क्या नुकसान हो सकता है?" जवाब मिल गया. दूसरा सवाल; "अच्छा ये बताईये, विदर्भ में किसानों की समस्या कैसे सुलझाई जा सकती है?" बहुत बढ़िया जवाब. आपको इस जवाब के मैं पांच नंबर दूँगा.

अरे तारनहार, इसी तरह के सवाल-जवाब करके नेता चुनना था तो हमारे अफसर क्या कर रहे हैं? उनसे काबिल कौन है? जो नेता जज की कुर्सी पर बैठे भारत को लीड करने वाले इन नेताओं का चुनाव कर रहे हैं, वे अपने अफसरों से ये सारी समस्याएं सुलझाने के लिए क्यों नहीं कहते? और सिनेमा और एनजीओ के नेताओं के गले ये बात क्यों नहीं उतरती कि वे भी तो दिन भर आज के नेताओं के सम्पर्क में हैं, वे क्यों नहीं उन्हें रास्ता दिखाते. इस तरह से नेता चुनने की नौबत ही नहीं आती.

अब जनता थोडी निराश टाइप दिख रही है. जनता के बीच से एक जन ने कहा; "ये लोग भी पैसा कमाने में लग गए हैं. बताओ, ये भी कोई बात है. कहते हैं, एसएम्एस कर के वोट दो, तब जाकर एक नेता देंगे हम तुम्हें. अरे यही वोटिंग करवानी थी तो हम साल दर साल वोट कर ही रहे थे. कभी तो ऐसा होता कि हमारा वोट एक अच्छा नेता खोज लेता. ऊपर से इन नेताओं को चुनने के लिए जिन्हें बैठा रखा है वे ख़ुद भी नेता हैं. कुछ तो राजनीति में नेता हैं. जो राजनीति में नेता नहीं हैं, वो एक्टिंग के नेता हैं, सिनेमा के नेता हैं. कुछ की नेतागीरी 'एनजीओ समाज' में चलती है. अरे भइया नेता दूसरे नेता को चुने, इससे अच्छा तो यही था कि जनता ही नेता चुन लेती."

जनता शायद महसूस कर रही है कि अब नारा बदल चुका है. अब नारा है; "तुम मुझे पैसे दो, मैं तुम्हें नेता दूँगा."

11 comments:

  1. वाह जनाब. बहुत सही कहा आपने. ये टी वी वाले हर चीज मे दुकानदारी सज़ा लेते है. ऊपर से तुर्रा ये कि हम कुछ अलग लेकर आए है और हमारे इस प्रोग्राम से देश का बहुत भला होने वाला है. देश का भला हो न हो इनका भला और जनता को भाला जरुर हो जायेगा.
    जबरदस्त व्यंग्य है आपका. बिल्कुल सही तरीके से आपने धोया है इनको.
    आपको इस बहुत ही अच्छे व्यंग्य के लिए बधाई.

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  2. बढिया है जी.
    पर पैसों के बदले नेता किसे चाहिएजी।
    फोकटी में भी ना चाहिए।
    तुम मुझे पैसे दो, मैं तुम्हे नेताओं से फ्री करुंगा, ये वाला स्लोगन सा बनाइये जी।

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  3. चकाचक च झक्कास.

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  4. "अभी तक जितने नेता चुने गए, ज्यादातर ने भारत को लीद ही किया"
    बंधू
    एक ही लाइन में सब कुछ कह दिया आपने , इसे कहते हैं लेखन वाह जी वा.... बहुत बढ़िया.
    नीरज

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  5. यह हुई न बात। मीडिया कह रहा है - तुम मुझे समोसा (एसएमएस) दो। मैं उसे खा कर तुम्हें लीद दूंगा। उस लीद से तुम धन्य होगे।
    पहले ग्रेत लीदर इटली से आये। अब मीदिया देगा!

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  6. सब दुकानदारी है भाई साहब, चलने दीजिए। नेता चुनना भी जनता का काम, बदलना भी। आगे-आगे देखते जाएं, मामला बढ़ता जाएगा।

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  7. जबरदस्त लिखा है।

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  8. औ ई सारी मशक्कत के बाद निकला एक नेता भाड़ में जाएगा क्या। लोकसभा में तो उसकी आवाज सुनाई भी नहीं देगी। औ अब तक तो हम जउन नेता देखे हैं, इंडिया का लीड जउन कर रहे हैं, ऊ सब गोल-गोल बौलै भर सीखे हैं। अब के नेतन से कुछ अलग नै कर रहे हैं। बल्कि, कहैं तो, बेकारै कर रहे हैं। बढ़िया विषय

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  9. आप की कलम दिनों दिन पैनी होती जा रही है जनाब ये मौसम का असर है या कुछ खास खा रहे है

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय