आज बाल किशन के ब्लॉग पर इराक की मशहूर कवियित्री नजीक अल-मलाईका की एक बहुत सुंदर कविता पढने को मिली. बाल किशन ने अंतराष्ट्रीय कवियों और कवियित्रियों की कवितायें काफी पढ़ी हैं. मुझे कविता बहुत पसंद आई. लेकिन इस पोस्ट पर काकेश जी का कमेंट है कि बाल किशन कभी दिनकर जी और पन्त जी की कवितायें भी पब्लिश करें. बाल किशन तो भविष्य में पब्लिश करेंगे ही. लेकिन काकेश जी की इस बात पर मैं दिनकर जी के दो छंद पब्लिश कर रहा हूँ, जो कुरुक्षेत्र से लिये गये हैं.
युद्ध क्यों शुरू हुआ, इसके बारे में युधिष्ठिर कहते हैं:
"किंतु हाय, जिस दिन बोया गया युद्ध-बीज ,
साथ मेरा दिया नहीं मेरे दिव्य-ज्ञान ने;
पलट दी मति मेरी भीम की गदा ने और
पार्थ के शरासन ने, अपनी कृपाण ने;
और जब अर्जुन को मोह हुआ रण बीच
बुझती शिखा में दिया घृत भगवान ने;
सबकी सुबुद्धि पितामह, हाय, मारी गई
सबको विनष्ट किया एक अभिमान ने।
"कृष्ण कहते हैं, युद्ध अनघ है, किंतु, मेरे
प्राण जलते हैं पल-पल परिताप से;
लगता मुझे है, क्यों मनुष्य बच पाता नहीं
दह्यमान इस पुराचीन अभिशाप से!
और महाभारत की बात क्या? गिराए गए
जहाँ छल-छद्म से वरेण्य वीर आपसे,
अभिमन्यु वध औ’ सुयोधन का वध हाय,
हममे बचा है यहाँ कौन किस पाप से?
धन्यवाद जी. मजा आ गया.
ReplyDeleteसबकी सुबुद्धि पितामह, हाय, मारी गई
सबको विनष्ट किया एक अभिमान ने।
बहुत सही बात कह दी दिनकर जी. बीच बीच में पढ़ाते रहिये.
बहुत खूब.
ReplyDeleteकोटी-कोटी साधुवाद.
गुजारिश तो हमसे की गई थी पर पूरी आपने की.
लगे रहो मुन्ना भाई इसी तरह हमरे काम करते रहो.
रहेगा अभिमान जब तक
ReplyDeleteअभिशाप से न बच पाएगा।
कवियित्रियों से दिनकर जी पर लाये? और लाये भी तो युद्ध में? दिनकर जी पर भी लाये तो ऊर्वशी पर लाये होते।
ReplyDeleteऔर वे अंश जहां पुरुरवा अपनी कमजोरियों के वश में विलाप कर रहा है।
बढिया है जी। शान धारम्।
ReplyDeleteबड़िया है बीच बीच में ऐसे ही कविताएं सुनाते रहिए
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