Tuesday, November 4, 2008

खेती-बाड़ी का काम कौन करेगा? आपके रत्न?

बीरबल आज फिर से बहुत प्रसन्न थे. वैसे प्रसन्न रहना उनके लिए कोई नई बात नहीं थी. उन्हें जो भी देखता, यही सोचता कि ये इंसान प्रसन्न रहने के लिए ही इस धरा पर आया है. एक बार फिर से उन्होंने अपनी बुद्धि का लोहा मनवा लिया था. बादशाह के साथ सारे दरबारी खुश नज़र आ रहे थे.

बीरबल बाबू से जलने वाले दरबारी खुश दीखने की एक्टिंग कर रहे थे. उनसे जलने वाले दरबारियों के पास और कोई चारा नहीं था. इनलोगों ने मन ही मन सोच लिया था कि जलने-भुनने का काम 'ऐज यूजुवल' दरबार से बाहर निकलने के बाद कर लेंगे. बीरबल बाबू जितनी बार अपनी तीक्ष्ण बुद्धि का प्रदर्शन करते, उनसे जलने वाले दरबारियों का खून कम हो जाता.

वैसे आज इन दरबारियों का खून कुछ ज्यादा ही जलने वाला था. उसका कारण यह था कि बादशाह जी ने बीरबल को इनाम में दो सौ किलो चावल और पचास किलो मसूर की दाल दे दी थी. इतना कीमती इनाम पाकर बीरबल की प्रसन्नता दूनी हो गई थी.

उनसे जलने वाले दरबारी ये सोचते हुए दुखी थे कि 'एक बीरबल है जिसे आज इनाम में चावल और दाल मिला और एक हम हैं, जिन्हें स्वर्णमुद्राओं से संतोष करना पड़ता है. पता नहीं हमारे दिन ऐसे कब आयेंगे जब हमें भी इनाम में चावल मिलेगा.

ऐसा पहली बार हुआ था कि बीरबल को इनाम में चावल और दाल की प्राप्ति हुई थी. कारण ये था कि बादशाह अकबर आज कुछ ज्यादा ही खुश हो लिए थे. बादशाहों को खुश होने के अलवा और काम ही क्या था? उनके पास दो ही तो काम थे. या तो बैठे-बैठे बोर हो लें या फिर खुश हो लें. कई बार बोरियत से बचने की कोशिश करते तो खुशी अपने आप डेरा दाल देती.

कई लोगों का तो ये भी मानना था कि 'बादशाह दरबार में हंसने का उपक्रम ख़ुद ही करते हैं.'

आज बीरबल बाबू की बुद्धि का लोहा मानते हुए उन्होंने बीरबल से कहा;"बीरबल, आज हम तुम्हारी बुद्धि पर ज़रूरत से ज्यादा खुश हैं. यही कारण है कि आज हम तुम्हें कोई कीमती चीज देना चाहता हैं. वैसे भी तुम्हें इनाम में स्वर्ण मुद्राएं देते-देते हम बोर हो चुके हैं."

बादशाह जी की बात सुनकर बीरबल धन्य हो गए. बोले; "ये तो आलमपनाह की नाचीज पर दया है, वर्ना कीमती चीज पाने की हमारी क्या औकात?"

बादशाह को जोश दिलाने और अपने लिए इनाम की राशि दूनी करवाने का इससे अच्छा साधन और क्या हो सकता है कि दरबारी अपनी औकात को पाताल तक पहुँचा दे. वैसे भी, कितना भी बुद्धिमान दरबारी हो, अगर बादशाह के सामने अपनी औकात को जीरो न बताये तो उसको दरबारत्व का ज्ञान लेने वापस पाठशाला चले जाना चाहिए.

बीरबल का तीर सही निशाने पर लगा. उनकी औकात वाली बात पर बादशाह अकबर का जोश कुलांचे मारने लगा. वे बोले; "नहीं-नहीं, ऐसा मत कहो बीरबल. तुम सचमुच कीमती चीज डिजर्व करते हो. बस, ये बताओ कि तुम्हें क्या चाहिए?"

बादशाह की बात सुनकर बीरबल बोले; "जहाँपनाह, जैसे आप स्वर्णमुद्राएं देकर बोर हो लिए हैं, उसी तरह मैं लेकर बोर हो गया हूँ. आप जो स्वर्णमुद्राएं इनाम में देते हैं, उसे लेकर जब घर पहुँचता हूँ तो और पत्नी को बताता हूँ कि आज इनाम में स्वर्णमुद्राएं मिलीं, तो पत्नी ताने मारती है. कहती है मुझ जैसे निकम्मे को इनाम में और क्या मिलेगा?"

"तो क्या स्वर्णमुद्राएं देखकर तुम्हारी पत्नी खुश नहीं होती?"; बादशाह ने बीरबल से पूछा.

बादशाह की बात सुनकर बीरबल ने कहा; "कैसे खुश होगी, आलमपनाह? स्वर्णमुद्रा पाकर आज के ज़माने में कौन गृहणी खुश रहेगी?"

ये कहते हुए बीरबल मन ही मन मुस्कुरा रहे थे. सोच रहे थे 'स्वर्णमुद्रा की जगह स्वर्ण आभूषण रहता तो ये ताने मारने का कार्यक्रम होता ही नहीं.'

बीरबल की बात सुनकर बादशाह जी को बड़ा आश्चर्य हुआ. कोई स्वर्णमुद्राएं पाकर खुश न हो, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. वे बोले; "तो क्या तुम्हारी पत्नी की निगाह में स्वर्णमुद्राओं की कोई कीमत नहीं है?"

बादशाह की बात सुनकर बीरबल बाबू को समझ नहीं आया कि वे क्या कहें? लेकिन बहुत साहस बटोर कर बोले;
"स्वर्णमुद्राओं की घटती कीमत का अंदाजा आपको नहीं है आलमपनाह. वैसे आपके के राज में चलने वाली मुद्रा की कीमत कितनी गिरी है, इसका अंदाजा आपको कैसे लगेगा?"

"क्या मतलब है तुम्हारा?"; बादशाह ने अचम्भे से पूछा.

"आपको शायद मालूम नहीं जहाँपनाह कि आपके राज में चलने वाली स्वर्णमुद्रा से खरीदारी करने पर आजकल झोले में कुछ नहीं आता. वैसे भी आपको इस बात की जानकारी कौन देगा? आपके पास जितना समय है, वो तो हँसने या फिर हँसने की कोशिश करने में चला जाता है. ऊपर से या तो आप महल से निकलते ही नहीं, या फिर निकलते हैं तो कूटनीति की प्रैक्टिस करने परदेस चले जाते हैं"; बीरबल बाबू ने बादशाह के करीबी होने का फायदा उठाते हुए सच कह डाला.

बीरबल बाबू की बात सुनकर बादशाह जी कुछ सोचने लगे. सोचते हुए बोले; "तो कोई बात नहीं. मैं तुम्हें इनाम में एक कार दे देता हूँ."

बादशाह की बात सुनकर बीरबल ने मन ही मन अपना माथा ठोक लिया. बोले; "कार तो दे देंगे जहाँपनाह, लेकिन पेट्रोल की कीमत का जो हाल है, मैं कार लेकर करूंगा क्या? देना ही है तो कोई सच में कीमती चीज दीजिये."

"तो तुम्ही बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?"; बादशाह ने बीरबल से पूछा.

"आप देना ही चाहते हैं तो मुझे चावल और दाल दे दें. आजकल यही सबसे कीमती चीज है"; बीरबल ने कीमती सामान का नाम बता दिया.

बादशाह ने मंत्री को आदेश दिया कि बीरबल को इनाम में चावल और दाल दे दिया जाय. बीरबल बाबू को जब चावल और दाल मिल गया तो बादशाह ने पूछा; "बीरबल तुमने चावल और दाल क्यों माँगा?"

बीरबल बोले; "आलमपनाह, जिस तरह से आपके राज्य में कृषि की जमीन लगातार कम होती जा रही है, मेरी बुद्धि कहती है कि आनेवाले दिनों में चावल, दाल और गेंहूं ही सबसे कीमती रहेंगे. वैसे भी किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं. जमीन की कमी के साथ-साथ किसानों की कमी हो जायेगी तो खेती-बाड़ी का काम क्या आपके नौ रत्न करेंगे? इसीलिए मैं अभी से खाने-पीने की चीजें इकठ्ठा करने में लगा हूँ."

बादशाह जी बीरबल की बुद्धि पर एक बार फ़िर से फ़िदा हो गए. खुश होते हुए बोले; "मैं एक बार फिर तुम्हारी बुद्धि पर फ़िदा हो गया हूँ. बोलो, तुम्हें और क्या चाहिए?"

बादशाह को अधिकार है कि वह जब चाहे, जिस चीज पर चाहे फ़िदा हो सकता है.

उनकी बात सुनकर बीरबल बोले; " आपसे एक वचन चाहिए. जो दरबारी मुझसे जलते हैं, आज से आप उन्हें इनाम में कंपनियों के शेयर दिया करेंगे."

बादशाह जी ने बीरबल को वचन दे दिया. चावल और दाल लिए बीरबल घर की तरफ़ रवाना हो गए.

21 comments:

  1. बड़ी दूर की सोचता है बिरबल.

    खेत खत्म किसान खत्म...फिकर नॉट....ब्राण्डेड फूड खाएंगे जी. :)

    ReplyDelete
  2. बहुत ही बेहतरीन चोट की है आपने आज की आर्थिक हालत पर। अकबर और बीरबल के किस्से में महंगाई, अनाज की किल्लत सोने में गिरावट से लेकर शेयर बाजार को नाप डाला है।

    ReplyDelete
  3. "जिस तरह से आपके राज्य में कृषि की जमीन लगातार कम होती जा रही है, मेरी बुद्धि कहती है कि आनेवाले दिनों में चावल, दाल और गेंहूं ही सबसे कीमती रहेंगे. वैसे भी किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं. जमीन की कमी के साथ-साथ किसानों की कमी हो जायेगी तो खेती-बाड़ी का काम क्या आपके नौ रत्न करेंगे? इसीलिए मैं अभी से खाने-पीने की चीजें इकठ्ठा करने में लगा हूँ."

    बहुत करारा व्यंग ! और इससे भी इक्कीसा ये वाला लगा :- " आपसे एक वचन चाहिए. जो दरबारी मुझसे जलते हैं, आज से आप उन्हें इनाम में कंपनियों के शेयर दिया करेंगे."

    बीरबल साहब ने जलने वालो से भी क्या अक्लमंदी से हिसाब बराबर किया है ? बेहतरीन पोस्ट ! आज थोड़ी छोटी पोस्ट है ?

    कमाल का लिखा है मिश्रा जी ! आज तो हमारे प्रणाम स्वीकारिये ! मजा आ गया !

    ReplyDelete
  4. 'बादशाह दरबार में हंसने का उपक्रम ख़ुद ही करते हैं."
    लाजवाब वाक्य....मानना पड़ेगा आप भी बीरबल से कम तीक्ष्ण बुद्धि के व्यक्ति नहीं..अफ़सोस की इस बीरबल को ब्लॉग पर ही लोगों का मनोरंजन करना पढ़ रहा है...अब बादशाह अकबर जैसे लोग कहाँ? बहुत आनंद आया पढ़ कर. हम व्यंग इसीलिए नहीं लिखते की लोग हमें आप के मापदंड से परखेंगे...ग़ज़ल लिखते हैं ताकि तुलना से बचे रहें और अगर आपने उस विधा पर भी कलम चलाई...जिसका प्रयास आप गाहे बगाहे कर ही रहें तो वो दिन दूर नहीं जब आप हमारा नाम सिर्फ़ हमारी टिप्पणियों के नीचे ही पाएंगे...हमारे अपने ब्लॉग पर नहीं...
    नीरज

    ReplyDelete
  5. उनकी बात सुनकर बीरबल बोले; " आपसे एक वचन चाहिए. जो दरबारी मुझसे जलते हैं, आज से आप उन्हें इनाम में कंपनियों के शेयर दिया करेंगे."


    waah waah ji mazaa aa gaya

    venus kesari

    ReplyDelete
  6. मैं तो बड़ी सीरियसली ले रहा हूं, इस बीरबल आख्यान को। चावल-दाल का इन्तजाम अम्मा ने किया या नहीं, अभी पता करता हूं।
    किचन गार्डन में सब्जी भरतलाल ने लगा दी है।
    मन्दी के अगले पांच - छ महीने निकल जायें; राम-राम करते!
    भैया पोस्ट चाहे जिस ध्येय से लिखी हो; हमें तो चेत दिलाने के काम आ रही है।

    ReplyDelete
  7. वाह ! वाह ! आज तो कमाल का लिखा है आपने. चावल दाल और कंपनियों के शेयर, सबकी कीमत नाप ली आपने !

    ReplyDelete
  8. सब मसाला हो गया . मजाक भी चेतावनी भी . आभार !

    ReplyDelete
  9. बहुत गजब का करारा व्यंग्य. हम तो बीरबल से ज्यादा आपकी बुद्धि पर फिदा हैं, बोलिये, क्या चाहिये इनाम मेँ चावल, दाल और पैट्रोल छोड्कर ? बेहतरीन एवं सटीक लेखन!!!

    ReplyDelete
  10. आपने सही कहा- एक दि‍न दाल-रोटी की चिंता सबसे अहम हो जाएगी।

    ReplyDelete
  11. सटीक जा रहे हैं... संजय की बात पर गौर किया जाए!
    जिस तरह से एग्रीकल्चर का स्थान एग्रीबिज़नेस्स ने ले लिया है ब्राण्डेड पैक्ड फ़ूड ही मिलेगा खाने के लिये.

    ReplyDelete
  12. वाह!बीरबल तो बीरबल ही रहेगा,भले ही सारे दरबारी एकाक्षी हो जाएँ दिल्ली की सल्तनत में।

    ReplyDelete
  13. बहुत ही खुब , भविष्या आप ने बिलकुल सही बताया इस करारे हास्याव्यंग मै, धन्यवाद

    ReplyDelete
  14. आज के बीरबल जी अपना अकबर ख़ुद चुनवाएं ....तभी अवाम का कल्याण होगा. क्योंकि का जवाब भी पोस्ट में दिया ही है.

    बढ़िया पोस्ट....मोर्टेम..!

    ReplyDelete
  15. करारा व्यँग्य किया आपने -
    किसान और खेती की उपेक्षा करेँगेँ
    तब अन्न कैसे पायेँगेँ ?

    ReplyDelete
  16. भाई आपकी और आलोक पुराणिक की सोच रेखा में कुछ अन्तर है। आलोक पुराणिक टमाटर स्कूल आफ थाट के हैं जबकि आपका दाल-चावल पर झुकाव है। कौन सी लाइन ठीक है इसके लिये एस.एम.एस. सर्वे करवाना पड़ेगा।

    ReplyDelete
  17. स्वर्णमुद्राओं की घटती कीमत का अंदाजा आपको नहीं है आलमपनाह. वैसे आपके के राज में चलने वाली मुद्रा की कीमत कितनी गिरी है, इसका अंदाजा आपको कैसे लगेगा?"
    "ha ha ha ha lggta hai birbal ko us jamne mey hee aaj ke haalat ka andesha ho gya tha.."

    Regards

    ReplyDelete
  18. मेरे पास शेयर तो अब तक पहुँचे नहीं,
    क्या सब के सब ख़ुद ही धर लिये...
    पब्लिक को दिखाने को यहाँ थोथी घोषणा कर दी !

    ReplyDelete
  19. अकबर बीरबल को वर्तमान संदर्भों से जोडकर प्रस्तुत करना अच्छा लगा। बधाई।

    ReplyDelete
  20. जिस तरह से आपके राज्य में कृषि की जमीन लगातार कम होती जा रही है, मेरी बुद्धि कहती है कि आनेवाले दिनों में चावल, दाल और गेंहूं ही सबसे कीमती रहेंगे. वैसे भी किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं. जमीन की कमी के साथ-साथ किसानों की कमी हो जायेगी तो खेती-बाड़ी का काम क्या आपके नौ रत्न करेंगे? इसीलिए मैं अभी से खाने-पीने की चीजें इकठ्ठा करने में लगा हूँ."
    ****************

    एकदम सत्य कहा भाई.
    पूरी अर्थव्यवस्था का हाल समेटकर इन कुछ वाक्यों में रख दिया.बहुत बहुत लाजवाब व्यंग्य (????) है.

    ReplyDelete
  21. बीरबल तो वाकई बड़ी चालू चीज़ है..

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय