बात उनदिनों की है जब गणतांत्रिक देश की जनता को समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस बात पर परेशान हो? मंहगाई की बात पर परेशान होना शुरू करती तो भ्रष्टाचार से न परेशान होने की बात पर हीन भावना से ग्रस्त हो जाती. सड़क के गड्ढों की बात पर परेशान होना शुरू करती कि कामनवेल्थ गेम्स में पैसों की हेरा-फेरी पर परेशान न हो पाने की बात खलने लगती. कामनवेल्थ गेम्स में हुई पैसों की हेरा-फेरी से परेशान होने के लिए कमर कस रही होती कि कोई पूछ बैठता; "नक्सली समस्या पर परेशान नहीं हुए? उसका नंबर कब आएगा?"
जनता की इस परेशानी को ध्यान में रखते हुए किसी तत्कालीन न्यूज चैनल के नारा सर्जक ने नारा भी लिख दिया था; "किस पर हो परेशान किसको दे फेंक, जनता एक और समस्याएं अनेक".
हाँ, उनदिनों टीवी न्यूज चैनल्स की चांदी थी. न्यूज चैनल वाले एक समस्या पर पैनल डिस्कशन करते और दूसरी पर चले जाते. फ़ॉलो-अप के लिए समय देने की ज़रुरत नहीं पड़ती.
एक दिन जनता के रूप में जन्मे किसी गुनी ने बताया कि सारी समस्याओं का जन्म एक ही समस्या से हुआ है और वह है भ्रष्टाचार. मतलब यह कि अगर भ्रष्टाचार को रोक लिया जाय तो बाकी समस्याएं अपने आप ख़त्म हो जायेंगी.
बस फिर क्या था. जनता का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री के पास पहुँचा. वहाँ लोगों ने देखा कि प्रधानमंत्री एक एक्सेल शीट और पेंसिल लिए बैठे थे. वे बार-बार अपनी आँख बंद कर कुछ बुदबुदाते हुए पेंसिल को घुमाते और एक खाने पर रख देते. पेंसिल कभी ८.९ प्रतिशत पर बैठती तो कभी ८.७५ पर. कभी ९ प्रतिशत पर बैठती तो ८.६५ प्रतिशत पर.
प्रतिनिधमंडल के लोग प्रधानमंत्री का यह कार्यक्रम बड़े ध्यान से देख रहे थे. उनमें से एक ने अपने पास खड़े आदमी से धीरे से कहा; "शायद कोई टोटका कर रहे हैं."
उसकी बात सुनकर प्रतिनिधिमंडल में से ही एक विद्वान् बोला; "टोटका नहीं है यह. यह अर्थशास्त्र है. प्रधानमंत्री जी अगले क्वार्टर के लिए जीडीपी का फिगर फाइनल कर रहे हैं."
अभी वे बात कर ही रहे थे कि प्रधानमंत्री ने कहा; "हैं जी? आपलोग किसी काम से आये हैं? बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?"
जनता में से ही एक नेता टाइप दिखने वाला व्यक्ति भाषण देने वाले अंदाज़ में बोला; "प्रधानमंत्री महोदय हम आज देश के हालात अच्छे नहीं हैं. समस्याओं की भरमार हो गई है. एक तरफ मंहगाई की समस्या है तो दूसरी तरफ आतंकवाद की. एक तरफ बाढ़ की समस्या है तो दूसरी तरफ नक्सलवाद की. एक तरफ....."
अभी वह बोल ही रहा था कि प्रधानमंत्री उसे टोंकते हुए बोले; "आप प्वाइंट की बात करें. समस्याएं हैं यह मुझसे बेहतर कौन जान सकता है? आपको मुझसे क्या काम है वह बताइए."
प्रधानमंत्री की बात सुनकर उस नेता टाइप आदमी ने हडबडाते हुए कहा; "महोदय हमने अपने अध्ययन से यह पता लगाया है कि देश की सारी समस्याओं की जड़ भ्रष्टाचार है. आप भ्रष्टाचार को रोक दें तो देश सुधर जाएगा."
उसकी बात सुनाकर प्रधानमंत्री बोले; "मैं क्या-क्या करूं? देश को ९ प्रतिशत की ग्रोथ दूँ या भ्रष्टाचार रोकूँ? मैं अपना समय ऐसी फालतू बातों में खर्च करूँगा तो ग्रोथ का क्या होगा? वैसे भी आप ९ प्रतिशत की ग्रोथ रेट पर खुश होइए. भ्रष्टाचार की बात क्यों करते हैं?"
उनकी बात सुनकर जनता में से एक और विद्वान बोला; "महोदय, आज देश की हर समस्या की जड़ है भ्रष्टाचार. यह बात मैंने कल ही टीवी पर होनेवाले पैनल डिस्कशन में एक विद्वान् के मुँह से सुनी. अगर आप भ्रष्टाचार को रोक दें तो भारत एक बार फिर से सोने की चिड़िया हो जाएगा. आपके ही सरकार के मंत्रीगण भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं. टेलिकॉम मिनिस्ट्री को ही ले लें...."
प्रधानमंत्री ने उसे बीच में टोकते हुए कहा; "देखिये, मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं है. मैंने अपने मंत्रियों से खुद पूछा था कि क्या वे भ्रष्टाचार में लिप्त हैं? उन्होंने बताया कि वे भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं हैं. वैसे अगर आपको लगता है कि भ्रष्टाचार के बार में मुझे कुछ करना चाहिए तो ठीक है. मैं आज शाम को ही राष्ट्र को संबोधित करूँगा और अपील कर दूंगा कि जो लोग भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो तुरंत उसका त्याग कर दें."
उनकी बात सुनकर एक व्यक्ति बोला; "लेकिन सर, सरकार को कुछ कार्यवाई भी करनी चाहिए. छापे वगैरह मारने चाहिए. केवल अपील से क्या होनेवाला है?"
उसकी बात सुनकर प्रधानमंत्री बोले; " आपलोगों को अपील की ताकत का अंदाजा नहीं है. यह महात्मा गाँधी का देश है. जयप्रकाश नारायण का देश है. विनोबा भावे का देश है. यहाँ अपील से सबकुछ हो जाता है. अपील पर मुझे पूरा विश्वास है. मैंने कल ही कश्मीर में पत्थर फेंकने वालों से अपील की कि वे पत्थर फेंकना बंद कर दें. अभी हाल ही में मैंने नक्सली 'भाइयों' से अपील की कि वे हिंसा छोड़कर राष्ट्र की मुख्यधारा में लौट आयें."
"लेकिन सर...?" एक व्यक्ति फिर बोला.
"देखिये, मैं और कुछ नहीं कहूँगा. आप जाइए. मैं आज शाम को ही देश के तथाकथित भ्रष्टाचारियों से अपील कर दूंगा"; प्रधानमंत्री ने यह कहकर उन्हें विदा कर दिया.
शाम को राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचारियों से अपील कर दी. बोले; "लोग चाहे जो भी कहें परन्तु मुझे विश्वास नहीं होता कि हमारे देश में भ्रष्टाचार फैला है. विश्वास इसलिए नहीं होता क्योंकि देश में फैले भ्रष्टाचार का सबूत नहीं है. लेकिन फिर भी अगर कोई मंत्री, अफसर, दरोगा, क्लर्क वगैरह-वगैरह भ्रष्टाचार में लिप्त हो तो मैं उससे अपील करूँगा कि वह तुरंत उसे त्याग दे और सामान्य व्यवहार करें. ऐसा करने से देश की तरक्की होगी और हमारा देश फिर से महान हो जाएगा. यहाँ तक कि हम डबल डिजिट ग्रोथ भी अचीव कर सकते हैं."
दूसरे दिन पूरे देश में क्रान्ति हो गई. देश के हर शहर, हर जिले, हर ताल्लुके में लोगों ने भ्रष्टाचार त्याग दिया. मंत्री, अफसर, पुलिस, दरोगा, क्लर्क, चपरासी वगैरह वगैरह ने भ्रष्टाचार का त्याग कर दिया. हर महकमे में काम करने वालों ने घूस लेना बंद कर दिया. महानगर पालिका के सफाई इंस्पेक्टर से लेकर क्लर्क तक, सभी ने फैसला किया कि अब से वे घूस नहीं लेंगे. अब पी डब्ल्यू डी डिपार्टमेंट में भी घूस को घुसने की अनुमति नहीं थी. पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के इंस्पेक्टर ने घूस लेने से मना करना शुरू कर दिया और राशन दूकान वालों को फाइन करना शुरू कर दिया. मिलावट की जांच करने वाले इंस्पेक्टर ने मिठाई की दूकानों से गिफ्ट में मिठाई लेना बंद कर दिया. ट्रैफिक कांस्टेबल ने अब पचास की पत्ती न लेकर रसीद काटना शुरू कर दिया. म्यूनिसिपल कारपोरेशन के क्लर्क ने जन्म प्रमाणपत्र अब बिना सौ रूपये लिए देना शुरू कर दिया.
देश में हाहाकार मच गया. एक तरफ जहाँ कुछ लोग खुश थे वहीँ दूसरी तरफ कुछ लोगों को यह शिकायत थी कि जब प्रधानमंत्री को यह मालूम था कि उनकी एक अपील से ऐसा जादू हो सकता था तो उन्होंने यही अपील पहले क्यों नहीं की? ऐसे लोगों को देखकर यही लगा कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके सामने अगर सरकार अपना कलेजा निकालकर भी रख देगी तो भी उन्हें संतुष्टि नहीं होगी.
सरकारी महकमों में जगह-जगह नारों की तख्तियां लटक रही थीं जिनपर सरकारी कर्मचारियों ने लिखकर बता दिया था कि वे अब घूस नहीं लेंगे. म्यूनिसिपल कारपोरेशन के हर डिपार्टमेंट में कोई न कोई नारा लटक रहा था. जैसे जन्म-मृत्यु पंजीकरण विभाग की दीवार पर नारा लटक रहा था जिसमें लिखा था; "दिन भर में घूस के लिए अब नहीं कोई सत्र, बिना घूस के ही लीजिये जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र".
पी डब्लू डी में सड़कों के टेंडर जिस विभाग में खुलते थे वहाँ दीवार पर नारा लटक रहा था; "पूरे देश में होगी अब सड़क ही सड़क, अब हम नहीं सहेंगे घूस की तड़क-भड़क."
कुल मिलाकर कहा जा सकता था कि सरकार के सभी विभागों के कर्मचारियों ने अपनी भावनाओं को नारों में कैद करके लटका दिया था.
टीवी वाले हर शहर के सरकारी विभागों में होनेवाली चहल-पहल का लाइव कवरेज दिखा रहे थे. दिखाना बनता भी था. जब घूस का लेन-देन कार्यक्रम बंद हो ही चुका था तो छुपाने के लिए कुछ नहीं था. विदेशों के पत्रकार देश में होनेवाली इस क्रान्ति के बारे रपट ठेले जा रहे थे. ट्रांसपरेंसी इंटर्नेशनल के पदाधिकारी दंग थे. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक अपील से ऐसा कुछ हो सकता है. कई विदेशी विश्वविद्यालयों ने अपने छात्रों को "गणतंत्र में भ्रष्टाचार की रोक-थाम" पर शोध और केस स्टडी के लिए यहाँ भेजना शुरू कर दिया.
सरकार के हर महकमे के कर्मचारी सड़कों पर नारे लगा रहे थे. जगह-जगह सम्मलेन हो रहे थे. वे नारे लगा रहे थे कि देश में होगा शिष्टाचार, नहीं बचेगा भ्रष्टाचार....वगैरह-वगैरह. वे चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे कि हम अब घूस नहीं लेंगे...नहीं लेंगे-नहीं लेंगे.
बिना घूस के चलते हुए गणतंत्र को अभी बीस-पच्चीस दिन हुए थे कि अचानक पता चला कि सभी महकमों में जनता और सरकारी कर्मचारियों के बीच तू-तू मैं-मैं होना शुरू हो गया. एक-दो दिन तो मामला केवल कह-सुनी तक अटका रहा लेकिन तीसरे दिन जब सरकारी कर्मचारी घूस और भ्रष्टाचार विरोधी नारे लगाते हुए सड़कों पर जा रहे थे तो जनता और उनके बीच मार-पीट हो गई.
जनता इस बात पर अड़ी थी कि सरकारी कर्मचारियों को घूस लेना ही पड़ेगा वहीँ महकमों के कर्मचारी इस बात अड़े थे कि चाहे जो हो जाए वे घूस नहीं लेंगे. वे जनता से कह रहे थे; "तुम्ही लोगों ने तो कहा कि हम घूस न लें और अब जब हम नहीं ले रहे हैं तो क्यों परेशान हो रहे हो?"
जनता में से भी कुछ लोगों ने सड़क पर नारे लगाने शुरू कर दिया. वे चिल्ला रहे थे; "घूस न लेने का यह निर्णय नहीं सहेंगे-नहीं सहेंगे..."
नारेबाजी हो ही रही थी कि दोनों तरफ के अति उत्साही तत्वों ने एक-दूसरे के ऊपर हमला कर दिया. टीवी वाले, रेडिओ वाले, देसी पत्रकार, विदेशी पत्रकार सब दंग थे कि यह क्या हो रहा है? किसी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक गणतंत्र की जनता इस बात पर अड़ी है कि भ्रष्टाचार करने वालों को सुधरने नहीं देंगे. मार-पीट इतनी बढ़ गई कि शहरों में कर्फ्यू लग गया.
दूसरे दिन जनता का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिला. जनता ने प्रधानमंत्री से रिक्वेस्ट किया कि वे अपनी अपील वापस ले लें. जब प्रधानमंत्री ने कारण जानना चाहा तो प्रतिनिधिमंडल के नेता ने कहा; "सर, आपने अपील क्या की हमारी जान की तो आफत आ गई. घूस न लेने के कारण सभी महकमों में इतना नियमपूर्वक काम हो रहा है कि हम नियम के सामने टिक नहीं पा रहे. सड़कें नहीं बन रही हैं क्योंकि सड़कों के लिए निकलनेवाले टेंडर की शर्तें कोई भी ठेकेदार पूरी नहीं कर पा रहा. फ़ूड इंस्पेक्टर ने घूस लेना बंद कर दिया है इसलिए मिठाई दूकानदारों की शामत आ गई है. अब वे न तो बासी मिठाइयाँ बेंच पा रहे हैं और न ही नकली मावा यूज कर पा रहे हैं. इनकम टैक्स अफसर नियम के हिसाब से चल रहा है तो जनता के लोग टैक्स की चोरी नहीं कर पा रहे हैं. सेल्स टैक्स वाले नियम पालन के लिए जगह-जगह छापे मार रहे हैं. ऐसे में तो जनता का जीना ही मुश्किल हो जाएगा. और तो और न जाने कितनी गाड़ियाँ मोटर वेहिकिल वालों ने जब्त कर ली हैं. ट्रैफिक पुलिस वाला......"
"बस-बस. मैं समझ गया. मुझे नहीं पता था कि मेरी एक अपील की वजह से इतना बड़ा बवाल हो जाएगा"; प्रधानमंत्री ने उनसे कहा.
नेता बोला; "सर, हमने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए आपसे जो रिक्वेस्ट किया उसके लिए हम आपसे क्षमा मांगते हैं. आप कुछ कीजिये जिससे स्थिति पहले जैसे हो जाए और देश एक बार फिर से प्रगति की राह पर चल निकले."
प्रधानमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे जल्द ही स्थिति पहले जैसी कर देंगे.
दूसरे दिन उन्होंने देशवासियों से अपील करते हुए कहा; "मैंने आप सब से सामान्य व्यवहार करने की अपील की थी. घूस न लेना कोई सामान्य व्यवहार थोड़ी न है. मैं आपसब से अपील करता हूँ कि आप सब पहले जैसे हो जाएँ और देश को प्रगति की राह पर आगे ले जाएँ."
दूसरे दिन फिर सब पहले जैसा हो गया और देश प्रगति की राह पर दौड़ने लगा...
नोट: यह लेख परसाई जी के लेख एक अपील का जादू का नया संस्करण हैं. लेख के 'आइडिये'की मौलिकता पर मेरा कोई दावा नहीं है. परसाई जी का लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर सकते हैं.
मेरे सारे शब्द स्तब्ध हैं अभी.....
ReplyDeleteदेखती हूँ कुछ देर में दिमाग सामान्य हुआ तो कुछ कहने का प्रयास करुँगी...
आज सभी मेरे विश्वास को प्रबल करने में लगे है.. सुबह सुबह पांडे जी ने किया अभी आप कर रहे है..
ReplyDeleteदेखिये मैंने आपको परसाई जी यूही नहीं कहा था आप भी वही धार रखते है... परसाई जी के लेखन का टेस्ट बराबर बना हुआ है आपके लेखन में.. हमने उनका अपील का जादू भी पढ़ लिया.. नारे सारे हमारे दिल लिए जा रहे है.. सोच रहा हु पोस्ट में शुमार सभी नारों को नाडो से बांधकर यही रख लु..
यदि नारे किसी ब्लोगर ने लिखे है तो एक नारू ब्लोगर सम्मान दे दिया जाना चाहिए उनको..
अंत में देश की लुटती पिटती और ठुकती हालत में पी एम् साहब को एक गाना सुनाने का मन हो रहा है..
हो रहा भारत निर्माण... हो रहा भारत निर्माण
इस लेख के द्वारा आपने दो सामजिक सच्चाइयों को बेहद खूबसूरती से पेश किया है:
ReplyDelete१. जी डी पि ग्रोथ का असर गरीब इंसान तक नहीं पहुच पा रहा है|
२. भ्रष्टाचार हमसे है और भ्रष्टाचार से हम हैं|
लोग बिना अनालिसिस किये कुछ भी बोलते रहते हैं. बताइये तो !
ReplyDeleteपहले ये सब सोच लेना चाहिए.
bahut badhiya vyangya kiya hai aapne....
ReplyDeleteक्या बात है...एकदम अपीलास्टिक पोस्ट।
ReplyDeleteकई जगह शायद प्रधानमंत्री जी खुद आकर बोल गए लगता है :)
शानदार।
राजनेताओं को सिर्फ गांधीवादी तरीके से अपील करना आता है ... देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में सर्वाधिक योगदान इन्हीं नेताओं का है ....बहुत ही रोचक व्यंग्य पोस्ट ...
ReplyDeleterapchik....
ReplyDeletebole to kurkure jaisa
hasya-gulle ke oopar vaynga-ki-malai
pranam.
हमारे देश के लोग प्रधान मंत्री की अपील को कब से इतना सीरियसली लेने लगे...??? आप भी अच्छा मज़ाक कर लेते हैं...अगर इस तरह अपीलों पे लोग चलने लगें तो समझो हो गया बंटा धार देश का...
ReplyDeleteमुझे तो पोस्ट में लोचा नज़र आ रहा है...आप जरूर किसी और देश की बात कर रहे होंगे...उस देश की जिस देश की धरती सोना नहीं उगलती ना ही हीरे मोती उगलती है...
नीरज
माँग कम है, पूर्ति अधिक। समस्याओं का भी अवमूल्यन हो गया है।
ReplyDeleteदेश की जनता पर खीझ और क्रोध - बहुत तीव्रता से आ रहा है।
ReplyDeleteसच में करप्शन-चाहक जनता है। और नाहक विलाप करती है।
सच में, भ्रष्टाचार की गुंजाइश न रहे तो जीना कितना कठिन हो जाय। ईमानदार आदमी कोई जिंदगी जीता है?
ReplyDeleteधन्य हो परसाई जी...। आपने कमाल का लिखा है।
जय हो!
ReplyDeleteईमानदारी एक ऐसा फ़ूल है जो दूसरे की बगिया में ज्यादा खूबसूरत लगता है। देखने में जितना आकर्षक है, नाक के पास लाते ही बहुत बुरी तरह गंधाता है।
ReplyDeleteपढ़्ना शुरू किया ही था कि दादा कोंडके की फ़िल्म ’खोल दे मेरी ज़ुबान’ याद आ गई। गुस्सा मत कीजियेगा भाईजान, सिर्फ़ थीम मिलता है। गूंगा आदमी रोज भगवान से अपनी जुबान खोलने की विनती करता है और जबान खुलने के बाद सच्चाई के कारण जो हंगामें होते हैं, फ़िर वही, जैसे अपील वापिस लेने की अपील..।
गज़ब हो शिव भैया, ये पोस्ट बेहतरीनतमेस्ट है।
आपकी पोस्ट पढ कर मेंढक और सांप वाली कहानी याद आ गई । आपने भी पढ रखी होगी । एक कुएँ में कुछ मेढक रहते थे बहुत राजी खुशी जीवन व्यतीत हो रहा था पर मेंढकों को लगा उन्हें एक राजा की जरूरत है तो उन्होने भगवान से प्रार्थना की कि उन्हे एक राजा चाहिये । भगवान ने अक लकडी का लठ्ठ कुएँ में डाल दिया । पहले तो मेंढक डरे पर थोडी देर बाद पानी शांत हो गाय तो सब लठ्ठ के पास आये कुछ उसके ऊपर चढ कर खेलने लगे । फिर लठ्ठ तो वैसे का वैसा रहा । मेंढक सोचने लगे ये कैसै राजा.. ये तो कुछ करता ही नही । तो वे फिर भगवान के पास गये कि ये राजा तो कुछ करता नही किसी काम का नही है । तो भगवान जी नें इस बार एक सांप डाल दिया सांप को तो मज़ा आ गया रोज मेंढक खाता और कुछ मेंढक कम हो जाते । मेंढक परेशान, फिर गये भगवान के पास कि कुछ करो हमारी तो जान पर बन आई है । भगवान ने कहा मैने तुम्हे अच्छा राजा दिया था सो रास नही आया अब भुगतो ।
ReplyDeleteअपील इतनी अपीलिंग होती है क्या ?
HAM TIPPNIKAR HAIN ..... SO TIPPANI SE SAMBABDGUT SURVEY KE LIYE JAROOR
ReplyDeletePADHAREN.
बात तो बहुत पते की है गुरुदेव. बिना भ्रष्टाचार का देश हमसे पचेगा नहीं. आगे निकलने के लिए एक्स्ट्रा देने की जो आदत है और जल्दी काम करने के लिए दो सौ की जगह पांच सौ देने की.
ReplyDeleteऔर अपील इतनी सिद्धकर तभी होगी जब कहने वाले का आचरण उस अपील को मानता हो. धर्म और कर्म दोनों से.
सुबह की ताज़ी हवा, शुद्ध शाक और साफ़ पानी के सेवन से धीरे धीरे पाचन ठीक हो भी सकता है. बस प्यूरीफायर लगाने पढेंगे. छोटा और जल्दी का काम नहीं है, परन्तु डायट चार्ट बना लेने से अच्छे इरादों की शुरुवात तो हो ही सकती है.
पोस्ट हमेशा की तरह बढ़ी मनोरंजक लगी!
बताने के लिए धन्यवाद!