एक जमाना था जब परीक्षा का प्रश्नपत्र सेट करने वाले विद्वान् विद्यार्थियों को चैलेन्ज जैसा देते थे कि वे पोस्टमैन, मेरा गाँव, रेलयात्रा जैसे विषयों पर निबंध लिख कर दिखायें. पोस्टमैन नहीं आते तो मेरा गाँव आ जाता. मेरा गाँव नहीं आता तो रेलयात्रा आ जाता. कुल मिलाकर विकट सरल दिन थे. विद्यार्थीगण बहुत जोर रटते थे और परीक्षा की कापी रंग आते थे. अब चूंकि ज़माना हर ज़माने में बदलता है इसलिए अब ऐसे पुराने विषयों पर निबंध लिखने के लिए नहीं कहा जाता. और कारण यह भी हो सकता है कि पोस्टमैन की जगह कूरियर बॉय ने ले ली है और उसके चरित्र चित्रण की बारीकियों का निर्धारण अभी तक नहीं हो पाया है.
हाल ही में एक विद्यार्थी के परीक्षा की कॉपी मिल गई. अरे भाई साहब, हाल ही में से मेरा मतलब है परसों. अब हिंदी दिवस से दो दिन पहले इतिहास की कॉपी थोड़े न मिलेगी. तो प्रस्तुत है उस विद्यार्थी द्वारा लिखा गया निबंध जिसका शीर्षक है; सिंगिंग रियलटी शो. अब मेरे ऊपर गुस्सा न होइए कि शीर्षक अंग्रेजी में क्यों है? है तो है. शीर्षक पर ध्यान मत दीजिये अब निबंध बांचिये.
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भारत में रियल्टी शो का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. हाँ, यह ज़रूर है कि तमाम तरह के रियल्टी शो में सबसे पुराना शो गाने का ही है. वैसे इतिहासकारों और विद्वानों का मानना है कि हमारे देश में भी रियल्टी शो का इतिहास पुराना हो सकता था लेकिन उनदिनों सेल फ़ोन न होने के कारण ऐसा हो नहीं सका.
विद्वानों का मानना है कि १९८५ में जब श्री वारेन एंडरसन को सरकारी कार में हवाई अड्डे ले जाया जा रहा था उस समय उनके कार में बैठाकर एयरपोर्ट प्रस्थान करने की रीयल तस्वीर टीवी कैमरे से ले ली गई थी लेकिन उनदिनों सेल फ़ोन न होने के कारण दूरदर्शन वो फूटेज दिखाकर दर्शकों से यह नहीं कह सका कि; "वारेन एंडरसन को कार में बैठाकर भगाने के लिए कौन जिम्मेदार है? आपके आप्शन हैं; (ए) राजीव गाँधी (बी) अर्जुन सिंह (सी) नरसिम्हा राव और (डी) रतन नूरा. अपना जवाब हमें पाँच शून्य शून्य सात एक पर भेज दीजिये. जवाब के आगे अपना नाम और अपना पता ज़रूर लिखिए."
ऐसा न हो सका और हम इतिहास का निर्माण नहीं कर सके. एक अदद सेल फ़ोन न होने की वजह से सब गुड़ गोबर हो गया. अगर सेल फोन होता तो हम रीयल्टी शो के आविष्कार का पेटेंट करवा लेते और फिर अमेरिकी इंटरटेनमेंट कम्पनियाँ भारत सरकार को लाइसेंस फीस देकर ही अपने देश में रीयल्टी शो कर पातीं. खैर, जो हो गया सो हो गया.
गाने का रियल्टी शो केवल गाने के बारे में नहीं होता. यह जजों के बारे में भी होता है. यह प्रतियोगी के माँ-बाप के बारे में भी होता है और यह एंकर के बारे में भी होता है. सेलेक्शन का प्रोसेस बहुत झमेले वाला होता है. (सर जी, नंबर मत काटियेगा. प्रोसेस का हिंदी शब्द दिमाग में नहीं आ रहा है) कभी-कभी सेलेक्शन में इतना झमेला हो जाता है जितना इलेक्शन में नहीं होता. (सर जी, सेलेक्शन से इलेक्शन की तुकबंदी मिला दिया है मैंने. आशा है आप उसके लिए एक नंबर ज्यादा देंगे).
जहाँ सिंगिंग रियल्टी शो के लिए सेलेक्शन होने वाला रहता है वहाँ कई घंटे पहले से ही भीड़ हो जाती है. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि प्रतियोगी के माँ-बाप एक दिन पहले शाम पाँच बजे से ही लाइन लगा देते हैं. जिन माँ-बाप को गाने और संगीत के बारे में थोड़ा-बहुत आईडिया होता है वे पाँच बजे से लाइन लगाते हैं और जिन माँ-बाप को गाने के बारे में कम जानकारी रहती है वे उनसे भी दो घंटे पहले से यानि ३ बजे शाम से ही लाइन लगा देते हैं.
सेलेक्शन के समय प्रतियोगी का कर्त्तव्य होता है कि वह जजों को अपने कर्म से रिझाए.रिझाने के इस महत्वपूर्ण काम को करने के ढेरों तरीके हैं. जैसे प्रतियोगी अगर गरीब रहे तो जज जल्द रीझते हैं. या फिर प्रतियोगी अगर सात सौ किलोमीटर चलकर सलेक्शन के लिए आडिशन देने आये तो भी जज लोग रीझ जाते हैं. सेलेक्शन प्रोसेस (सर जी, क्षमा कीजियेगा अभी तक माइंड में प्रोसेस का हिंदी शब्द नहीं घुसा) का एक महत्वपूर्ण विषय होता है प्रतियोगी का खाना न खाने की वजह से बेहोश हो जाना.
रीयल्टी शो रीयल लगे इसके लिए कई बार प्रतियोगी जजों को घटिया और निकम्मा बता देता है. कोई-कोई प्रतियोगी गाली भी दे डालता जिसे चैनल वाले आवाज़ के पैबंद से ढक देते हैं. ऐसा होने से शो करीब बावन प्रतिशत ज्यादा रीयल लगता है.
जो प्रतियोगी गाना गाकर जजों को खुश कर देता है जज उसे तुरंत सेलेक्ट कर लेता है और उसे मुंबई बुला लेता है.मुंबई बुलाने का यह सिद्धांत नया नहीं है. इतिहास गवाह है कि पिछले करीब साठ वर्षों से कोई भी भारत के किसी भी कोने से चलता है तो वह मुंबई ही पहुँचता है. भारत के हर कोने से चली हुई सड़क, रेलगाड़ी और ट्रक अक्सर मुंबई ही पहुँचती है. विद्वानों का मत है कि मुंबई पहुँचने के इस ऐतिहासिक सिद्धांत की नींव श्री देवानंद ने रखी जब वे पंजाब से निकलकर फ्रोंटियर मेल पकड़कर सीधा मुंबई पहुंचे थे.
मुंबई पहुंचकर सारे प्रतियोगी अभ्यास वगैरह करते हैं. उन्हें हमेशा कान में आई-पॉड का हेडफोन लगाये देखा जा सकता है. वे अभ्यास करके जजों के सामने गाते हैं. इस दौरान प्रतियोगी पाँव छूने का भी अभ्यास करता है. वह ऐसा इसलिए करता है जिससे प्रोग्राम में आनेवाले हर गेस्ट जज का और बाकी जजों का जब-तब पाँव छूता रहे. पाँव छूना गायक बनने के लिए गायन के रियाज से भी ज़रूरी है.
जज लोग करीब नब्बे प्रतिशत प्रतियोगियों को बताते हैं कि उनके पास प्ले-बैक की वायस है. वैसे जानकारों का ऐसा मानना है कि जजों की यह बात सही नहीं है क्योंकि अगर ऐसा होता तो अभी तक भारतवर्ष में प्ले-बैक गायकों की संख्या करीब तीन लाख सत्तावन हज़ार होती.
यह भी देखा गया है कि अपने कमेन्ट में जज लोग ऐसे स्टेटमेंट देते हैं जो किसी की समझ में नहीं आता. उनमें कुछ स्टेटमेंट हैं; "तुम्हारी आवाज़ का थ्रो बहुत बढ़िया है", "तुम्हारी वायस की टेक्सचर गज़ब है", "तुम्हारी आवाज़ जो है उसकी फैब्रिक मुझे बहुत पसंद है".
ऐसी बातें सुनकर प्रतियोगी को अपने ऊपर शंका होने लगती है. वह यह सोचने में बिजी हो जाता है कि; "वह एक गायक है या बुनकर?"
जजों के कमेन्ट के बारे में प्रतियोगियों की इस नासमझी को दूर करने के लिए हाल ही में
आल इंडिया सिंगिंग रिअलिटी शो पार्टीसिपेंट्स पैरेंट्स एसोसियेशन ने यूजीसी से यह मांग रखी कि वह एक शोध करवाए जिससे प्रतियोगियों और उनके अभिभावकों को जजों के कमेन्ट समझने में आनेवाली मुश्किलों को दूर किया जा सके. सरकार पहले तो नहीं मान रही थी लेकिन जब किसी विद्वान ने उसे यह बताया कि सिंगिंग रियल्टी शो के पार्टिसिपेंट्स बहुत बड़ा वोटबैंक साबित हो सकते हैं तो सरकार ने उनकी मांग मान ली.
रियल्टी शो के दौरान जज यह बताते रहते हैं कि जैसे ही यह शो ख़त्म हुआ देश को उसकी आवाज़ मिल जायेगी. उनकी बात सुनकर लगता है जैसे यह शो नहीं होता तो देश गूंगा ही रहता. कुछ सूत्रों का यह भी मानना है कि जब चैनल वाले अपने विज्ञापनों में देश की आवाज़ खोजने का दावा करते हैं उनदिनों देश की सबसे पावरफुल नेत्री को अपनी आवाज़ पर शंका होने लगती है और वे ज्यादा बोलने लगती हैं.
कई बार ऐसा भी होता है कि शो में आनेवाले प्रतियोगी जजों से ज्यादा जानकार होते हैं. ऐसे में जब कोई प्रतियोगी शास्त्रीय संगीत पर आधारित कोई गीत, ठुमरी या टप्पा गाता है तब जज घबड़ाकर राग और सरगम के साथ-साथ अपना हाथ हिलाते-डुलाते और ऊपर-नीचे करते हैं. जानकारों का ऐसा मानना है कि जज ऐसा इसलिए करते हैं जिससे देशवासियों का यह भ्रम बना रहे कि उन्हें संगीत का ज्ञान है.
हाल ही में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जब टीवी पर रियल्टी शो देखनेवाला दर्शक जब इस बात पर स्योर हो जाता है कि कोई प्रतियोगी बहुत अच्छा गा रहा है उसी समय जज उस प्रतियोगी के गाने को घटिया बता देता है. ऐसा करने से जज और जनता के बीच ज्ञान की खाई और चौड़ी हो जाती है. मनोरंजन की दुनियाँ में
इसे जजेज सरप्राइज अटैक कहते हैं.
चूंकि ऐसे शो में ज्यादातर जज फ़िल्मी दुनियाँ के चुक गए संगीतकार होते हैं इसलिए उन्हें प्रतियोगियों से यह कहते हुए शर्म नहीं आती वे अपनी अगली फिल्म में फलां प्रतियोगी से एक गाना गवाएंगे. सबको यह मालूम रहता है कि जब इस जज को ही कोई फिल्म नहीं मिलेगी तो फिर उस फिल्म में प्रतियोगी के गाना गाने का सवाल ही नहीं उठता. ऐसे में जजों द्वारा किया जानेवाला यह अनाऊँस्मेंट देशवासियों के मनोरंजन का साधन बनता है.
कम्पीटीशन से धीरे-धीरे करके प्ले-बैक की वायस वाले एक-एक प्रतियोगी का निष्कासन होता रहता है. अंत में जिसका निष्काशन नहीं हो पाता उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है और उसकी आवाज़ को ही देश की आवाज़ मान लिया जाता है. कुछ विद्वानों का मानना है कि अभी तक सारे रियल्टी शोज मिलाकर देश को करीब तीन हज़ार चार सौ तेरह आवाजें मिल चुकी हैं. शायद यही कारण है कि देश में हर मामले पर अलग-अलग आवाज़ सुनाई देती है.
प्ले-बैक वायस के मालिक प्रतियोगी जब प्रतियोगिता से निकलते हैं तो उनके माँ-बाप को भी टीवी कैमरे के सामने अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है. ये माँ-बाप अपनी हैसियत और टैलेंट के हिसाब रो लेते हैं और दुखी दीखते हैं.
प्राइसवाटर हाउस कूपर्स द्वारा हाल ही में किये गए एक सर्वे के अनुसार भारत में अगले आठ वर्षों में करीब चालीस हज़ार सात सौ सिंगिंग रियल्टी शोज बनने की संभावना है. कुछ विद्वान मानते हैं कि अगर भारत को अपने ट्वेंटी-ट्वेंटी मिशन (सर जी, यहाँ क्रिकेट की बात नहीं कर रहा हूँ मैं. यहाँ मैं कलाम साहब के इंडिया ट्वेंटी ट्वेंटी मिशन की बात कर रहा हूँ) की सफलता के लिए भारतवर्ष को कुल तीन करोड़ सिंगर तैयार करने पड़ेंगे. यह संख्या करीब सात करोड़ होती लेकिन चूंकि चार करोड़ प्रतियोगी डांसिंग रियल्टी शोज में भी भाग लेंगे इसलिए गायकों की संख्या करीब तीन करोड़ ही रखी गई है.
कुल मिलाकर भारत में सिंगिंग रियल्टी शोज का भविष्य उज्जवल है. भविष्य इतना उज्जवल है कि हर माँ-बाप अपने बेटे-बेटियों को सिंगर ही बनाना चाहता है. अब माँ-बाप भी नहीं चाहते कि बेटी/बेटे डॉक्टर-इंजिनियर बने.समाजशास्त्रियों का ऐसा मानना है कि आनेवाले वर्षों में देश में डाक्टरों और इंजीनियरों की भयंकर कमी हो सकती है.
माँ-बाप की चाहत की बात को आप निम्नलिखित संवाद से आंक सकते हैं;
"नहीं माँ, मैं डॉक्टर बनना चाहती हूँ. मुझे सिंगर नहीं बनना है"; बेटी ने अपनी माँ को समझाते हुए कहा.
"क्या कहा!, डॉक्टर बनना चाहती हो? डॉक्टर बनकर हमारी नाक कटवावोगी क्या? बेटा, आजकल कोई डॉक्टर इंजीनियर बनता है भला?"; माँ कहती है.
"नहीं माँ. प्लीज मेरी बात सुनो. गाने की प्रैक्टिस करके मैं थक जाती हूँ. फिर पढाई नहीं कर पाती"; बेटी ने कहा.
"अरे बेटा, क्या जरूरत है पढाई करने की? आजकल कोई पढाई करता है भला?"; माँ कहती है.
"मेरी बात सुनो तो माँ. हमारी टीचर भी कहती हैं कि दुनियाँ में हर कोई सफल नहीं हो सकता. मैं मानती हूँ कि मैं डॉक्टर बनने से असफल कहलाऊंगी. तो क्या हुआ? मैं एवरेज बच्ची हूँ इसलिए डॉक्टर बन जाऊंगी. जो बच्ची तेज है, वो सिंगर बन जायेगी. यही तो होगा"; बच्ची कहती है.
माँ उसी जगह से पतिदेव को आवाज लगाती है; "अजी सुनते हो?"
पतिदेव वहीँ से जवाब देगे; "अरे क्या हुआ, क्यों शोर मचा रही हो?"
"शोर नहीं मचाऊंगी तो और क्या करूंगी. सुन लो, तुम्हारी लाडली बेटी क्या कह रही है. कह रही है डॉक्टर बनेगी. लो और सर पर चढ़ाकर रखो इसे. डॉक्टर बनकर हमारा नाम डूबोने के लिए ही बड़ा कर रहे हैं हम इसे"; माँ ने जवाब दिया.
अब बच्ची को समझाने की बारी पिताश्री की है; "बेटा, एक बार कांटेस्ट में पार्टीसिपेट कर लो. अगर नहीं जीत पाओगी तो हम अपने किस्मत को रो लेंगे. फिर तुम्हारी जो इच्छा हो, करना. हम तुम्हें डॉक्टर बनने से नहीं रोकेंगे."
नोट: सर जी, अब और नहीं लिख पा रहा हूँ. पेन पकड़ने की वजह से अंगुलियाँ दर्द कर रही हैं. वैसे आपको राज की बात बताऊँ तो मैंने भी एक रियल्टी शो में ऑडिशन दिया था. मेरा सेलेक्शन हो गया है. परीक्षा के बाद मैं भी मुंबई जा रहा हूँ.